non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:54 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
सुबह हुई!
उस वक्त सुबह के लगभग साढ़े आठ बज रहे थे जब रास्तों पर धूल उड़ाती हुई कई सारी गाड़ियाॅ आकर हवेली के बाहर एक एक करके रुकीं। वो तीन गाड़ियाॅ थी। एक सफारी, एक इनोवा, और एक आई20 थी। तीनों गाड़ियों के रुकते ही सभी गाड़ियों के दरवाजे एक साथ खुले और खुल चुके दरवाजे से एक एक दो दो करके कई सारे आदमी गाड़ियों से बाहर निकले।

बाहर आते ही वो सब एक साथ हवेली के उस हिस्से के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़े जो हिस्सा अजय सिंह का था। इस वक्त दरवाजा बंद था। आस पास कुछ ऐसे आदमी भी बाहर मौजूद थे जिनके हाॅथों में बंदूख, रिवाल्वर आदि हथियार थे। गाड़ियों से आने वाले सभी लोग मुख्य दरवाजे की तरफ मुड़ चले। आस पास खड़े अजय सिंह के बंदूखधारी आदमियों के चेहरों पर अजीब से भाव उभरे। अजीब से इस लिए क्यों कि गाड़ियों से आने वाले सभी आदमी एकदम दनदनाते हुए मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ चले थे।

आस पास खड़े बंदूखधारी आदमी उन लोगों की इस धृष्टता को देख उन्हें रोंकने के लिए उन लोगों के सामने आ गए और उन्हें रोंक कर उनसे पूछने लगे कि वो कौन लोग हैं और इस तरह कैसे बिना कुछ पूछे अंदर की तरफ बढ़े चले जा रहे हैं? किन्तु बंदूखधारियों के पूछने पर उन लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपने अपने कोट की सामने वाली पाॅकेट से अपना अपना आई कार्ड निकाल कर बंदूखधारियों को दिखा दिया। बंदूखधारी ये देख कर बुरी तरह चौंके कि वो सब सी बी आई की स्पेशल ऑफीसर थे। बंदूखधारियों को बिलीउल भी समझ न आया कि वो लोग यहाॅ क्यों आए हैं और वो खुद अब क्या करें? उधर आई कार्ड दिखाने के बाद वो लोग मुख्य दरवाजे के पास पहुॅच गए और दरवाजे पर लगी कुण्डी को ज़ोर से बजा दिया।

कुछ ही देर में दरवाजा खुला। दरवाजे पर नाइट गाउन पहने प्रतिमा नज़र आई। अपने सामने इतने सारे अजनबी आदमियों को देख कर वो चौंकी। उसके चेहरे पर ना समझने वाले भाव उभरे।

"जी कहिए।" फिर उसने अजीब भाव से कहा___"आप लोग कौन हैं? और यहाॅ किस काम से आए हैं?"
"हमें अंदर तो आने दीजिए मैडम।" एक आदमी ने ज़रा शालीन भाव से कहा___"मिस्टर अजय सिंह से मिलना है।"

"पर आप लोग हैं कौन?" प्रतिमा ने दरवाजे पर खड़े खड़े ही पूछा___"ये तो बताया नहीं आपने।"
"सब पता चल जाएगा मैडम।" उस आदमी ने कहा__"हम सब मिस्टर अजय सिंह के गहरे दोस्त यार हैं। प्लीज, उन्हें कहिए कि हम उनसे मिलने आए हैं।"

प्रतिमा उस आदमी की बात सुन कर देखती रह गई उसे। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे यकीन न आ रहा हो कि ये लोग अछय सिंह के दोस्त हो सकते हैं। कुछ देर उस आदमी को देखते रहने के बाद जाने क्या सोच कर प्रतिमा दरवाजे से हट कर पलटी और अंदर की तरफ बढ़ती चली गई। उसके पीचे पीछे ये सब भी ओल दिये।

कुछ ही देर में प्रतिमा के पीछे पीछे ये सब ड्राइंग रूम में पहुॅच गए। प्रतिमा ने सोफों की तरफ हाॅथ का इशारा कर उन लोगों को बैठने के लिए कहा। प्रतिमा के इस प्रकार कहने पर वो सब लोग सोफों पर बैठ गए जबकि प्रतिमा अंदर कमरे की तरफ बढ़ गई।

थोड़ी ही देर में अजय सिंह ड्राइंग रूम में दाखिल हुआ। ड्राइंग रूम में सोफों पर बैठे इतने सारे लोगों पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे पर अजनबीयत के भाव उभरे। जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो कि ये सब लोग कौन हैं?

"माफ़ करना मगर हमने आप लोगों को पहचाना नहीं।" फिर उसने एक अलग सोफे पर बैठते हुए कहा।
"इसके पहले कभी हम लोग आपसे मिले ही कहाॅ थे जो आप हमें पहचान लेते।" एक कोटधारी ने अजीब भाव से कहा___"ख़ैर, आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि हम सब सी बी आई से हैं और यहाॅ आपको चरस, अफीम, और ड्रग्स का धंधा करने के जुर्म में गिरफ्तार करने आए हैं। हमारे पास आपके खिलाफ़ स्पेशल वारंट भी है। इस लिए आप बिना कुछ सवाल जवाब किये हमारे साथ चलने का कस्ट करें।"

सी बी आई के उस आदमी के मुख से ये बात सुन कर अजय सिंह के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। बुत सा बन गय था वह। मुख से कोई बोल न फूटा। जिस्म के सभी मसामों ने पल भर में ढेर सारा पसीना उगल दिया। चेहरा इस तरह नज़र आने लगा था जैसे धमनियों में दौड़ते हुए लहू की एक बूॅद भी शेष न बची हो। एकदम फक्क पड़ गया था।

"ये...ये...क्...क्या बकवास कर रहे हैं आप?" फिर सहसा बदहवाश से अजय सिंह ने जैसे खुद को सम्हाला था और फिर वापस ठाकुरों वाले रौब में आते हुए बोला था। ये अलग बात है कि उसके उस रौब में रत्ती भर भी रौब दिखाई न दिया, बोला___"आप होश में तो हैं न? आप जानते हैं कि आप किसके सामने क्या बकवास कर रहे हैं?"

"हम तो पूरी तरह होशो हवाश में ही हैं मिस्टर अजय सिंह।" सीबीआई ऑफिसर ने कहा___"किन्तु आपके होशो हवाश ज़रूर कहीं खो गए से नज़र आने लगे हैं। रही बात आपकी कि आप कौन हैं और हम आपसे क्या कह रहे हैं तो इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता। क्योंकि हम कानून के नुमाइंदे हैं। हमारे लिए छोटे बड़े सब एक जैसे ही होते हैं। ख़ैर, हमने आपके शहर वाले मकान से भारी मात्रा में ग़ैर कानूनी ज़खीरा बरामद किया है। सारी जाॅच पड़ताल के बाद जब हमें ये पता चला कि वो सब आपकी संमत्ति है तो हम कोर्ट से स्पेशल वारंट लेकर आपको यहाॅ गिरफ्तार करने चले आए। इस लिए अब आपके पास हमारे साथ चलने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं है।"

ऑफीसर की ये बात सुन कर एक बार फिर से अजय सिंह की हालत ख़राब हो गई। वो सोच भी नहीं सकता था कि उसके साथ ऐसा भी कभी हो सकता है। उसे तुरंत ही फैक्ट्री में लगी आग का वाक्या याद आया जब तहखाने से उसका ग़ैर कानूनी सामान गायब होने का पता चला था उसे। वो ये भी समझ गया था कि ये सब विराज ने ही किया था। प्रतिमा ने इस बात का अंदेशा भी ब्यक्त किया था कि किसी ऐसे मौके पर वो ये सब कानून के हवाले कर सकता है जबकि हम कुछ भी करने की स्थिति में ही न रह जाएॅगे। मतलब साफ था कि प्रतिमा की कही बात आज सच हो गई थी। यानी विराज ने उस सारे सामान को उसके शहर वाले मकान में रखा और फिर इसकी सूचना सीबीआई को दे दी और अब सीबीआई वाले अजय सिंह के पास स्पेशल वारंट लेकर आ गए थे। अजय सिंह खुद भी सरकारी वकील रह चुका था इस लिए जानता था कि ऐसे मौके पर वह कुछ भी नहीं कर सकता था। कोई दूसरा जुर्म होता तो कदाचित वो कोई जुगाड़ लगा कर अपनी ज़मानत करवा भी लेता मगर यहाॅ तो जुर्म ही संगीन था।

"किस सोच में डूब गए मिस्टर अजय सिंह?" तभी उसे सोचो में गुम देख ऑफीसर ने कहा___"आप अपनी मर्ज़ी से हमारे साथ चलेंगे तो बेहतर होगा, वरना आप जानते है कि हमारे पास बहुत से तरीके हैं आपको यहाॅ से ले चलने के लिए।"

"ऑफीसर।" सहसा अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"ये सब झूॅठ हैं। हम ऐसा कोई काम नहीं करते जिसे कानून की नज़र में जुर्म कहा जाए। ये यकीनन किसी की साजिश है हमें फसाने की। हाॅ ऑफीसर, ये साजिश ही है। काफी समय से हमारा शहर वाला मकान खाली पड़ा है इसलिए संभव है कि किसी ने ये सब गैर कानूनी चीज़ें वहाॅ पर छुपा कर रखी रही होंगी। हमारा इस सबसे कीई लेना देना नहीं है।"

"सच और झूठ का फैसला तो अब अदालत ही करेगी मिस्टर अजय सिंह।" ऑफिसर ने कहा___"हमारा काम तो बस इतना है कि प्राप्त सबूतों के आधार पर आपको गिरफ्तार कर अदालत के समक्ष खड़ा कर दें। इस लिए अब आपकी कोई दलील हमारे सामने चलने वाली है।"

अभी अजय सिंह कुछ कहने ही वाला था कि तभी अंदर से प्रतिमा और शिवा आकर वहीं पर खड़े हो गए। दोनो के चेहरों पर हल्दी पुती हुई थी। मतलब साफ था कि यहाॅ की सारी वार्तालाप उन दोनो ने सुन ली थी।

"ये सब क्या है डैड?" शिवा ने अंजान बनते हुए पूछा___"ये कौन लोग हैं और यहाॅ किस लिए आए हैं?"
"ये सब सीबीआई से हैं बेटे।" अजय सिंह ने बुझे मन से कहा___"और ये हमे गिरफ्तार करने आए हैं। इनका कहना है कि हमारे शहर वाले मकान से इन्होंने भारी मात्रा में चरस अफीम ड्रग्स आदि चीज़ें बरामद की हैं।"

"व्हाऽऽट??" शिवा ने चौंकते हुए कहा___"ये आप क्या कह रहे हैं डैड? भला ऐसा कैसे हो सकता है? हमारे शहर वाले मकान में वो सब चीज़ें कहाॅ से आ गई?"
"मैं तो पहले ही कहती थी कि तुम शहर वाले उस मकान को बेंच दो।" प्रतिमा ने जाने क्या सोच कर ये बात कही थी, बोली___"मगर मेरी सुनते कहाॅ हो तुम? अब देख लो इसका अंजाम। जाने कब से खाली पड़ा था वह। आज कल किसी का क्या भरोसा कि वो मकान के अंदर आकर क्या क्या खुराफात करने लग जाएॅ।"

"अरे तो भला हमें क्या पता था प्रतिमा कि ऐसा भी कोई कर सकता है?" अजय सिंह ने प्रतिमा की चाल को बखूबी समझते हुए कहा___"अगर पता होता तो हम उस मकान की देख रेख के लिए कोई आदमी रख देते न।"
"किसने किया होगा ये सब?" प्रतिमा ने कहा___"भला हमसे किसी की ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती है जिसके तहत उसने हमारे साथ इतना बड़ा काण्ड कर दिया?"

"मिस्टर अजय सिंह।" सहसा ऑफिसर ने हस्ताक्षेप करते हुए कहा___"ये सब बातें आप बाद में सोचिएगा। इस वक्त आप हमारे साथ चलने का कस्ट करें प्लीज़।"
"अरे ऐसे कैसे ले जाएॅगे आप डैड को?" सहसा शिवा आवेशयुक्त भाव से बोल पड़ा___"मेरे डैड बिलकुल बेगुनाह हैं। आप इन्हें ऐसे कहीं नहीं ले जा सकते। ये तो हद ही हो गई कि करे कोई और भरे कोई और।"

"तुम शान्त हो जाओ बेटे।" अजय सिंह ने अपने कूढ़मगज बेटे की बातों पर मन ही मन कुढ़ते हुए बोला___"बात चाहे जो भी हो लेकिन हमें इनके साथ जाना ही पड़ेगा। ये सब कानून के रखवाले हैं। दूसरी बात इन्हें हमारे मकान से वो सब चीज़ें मिली हैं इस लिए पहली नज़र में हर कोई यही समझेगा और कहेगा कि वो सब चीज़ें हमारी हैं। यानी हम ग़ैर कानूनी धंधा भी करते हैं। दूसरा ब्यक्ति ये नहीं सोचेगा कि कोई अन्य ब्यक्ति ये सब चीज़ें हमारे मकान में रख कर हमें फॅसा भी सकता है। अतः मौजूदा हालात में हमें कानून का हर कहा मानना पड़ेगा और उसका साथ देना पड़ेगा। तुम फिक्र मत करो बेटे, ये हमें ले जाकर हमसे इस सबके बारे में पूॅछताछ करेंगे। इस सबके लिए हमें तभी सज़ा मिलेगी जब ये साबित हो जाएगा कि वो सब चीज़ें वास्तव में हमारी ही हैं या हम कोई ग़ैर कानूनी धंधा भी करते हैं।"

अजय सिंह की बात सुन कर शिवा कुछ बोल न सका। प्रतिमा ने भी कुछ न कहा। कदाचित वो खुद भी अजय सिंह की इस बात से सहमत थी। दूसरी बात, वो तो जानती ही थी कि वो सब चीज़ें सच में अजय सिंह की ही हैं। इस लिए ये सब सोच कर और इसके अंजाम का सोच कर वो अंदर ही अंदर बुरी तरह घबराए भी जा रही थी। वो अच्छी तरह जानती थी कि ऐसे मामले में कानून की गिरफ्त से बचना असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर था।

इधर अजय सिंह के मन में भी यही सब चल रहा था। उसे भी एहसास था कि इससे बचना बहुत मुश्किल काम है। इस लिए वो कोई न कोई जुगाड़ लगाने भी सोच रहा था। मगर चूॅकि उसके पुराने कानूनी कनेक्शन पहले ही खत्म हो चुके थे इस लिए वो कुछ कर पाने की हालत में नहीं था। दूसरी सबसे बड़ी बात ये थी कि उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि अगर किसी तरह वो पुलिस कमिश्नर अथवा प्रदेश के मंत्री को अपने हक़ में कर भी ले तो तब भी बात अपने पक्ष में नहीं होनी थी। क्योंकि उसने देखा था कि उसके साथ घटी पिछली सभी घटनाओं में ऐसा हुआ था कि ऊपर से ही शख्त आदेश मिला था।

अजय सिंह के पसीने छूट रहे थे मगर उसके दिमाग़ में कोई बेहतर जुगाड़ आ नहीं रहा था। वक्त और हालात ने अचानक ही इस तरह से अपना रंग बदल लिया था कि उसको कुछ करने लायक छोंड़ा ही नहीं था। उसने कल्पना तक न की थी कि वो इतना बेबस व लाचार हो जाएगा और इतनी आसानी से कानून की चपेट में आ जाएगा।

"तो चलें मिस्टर अजय सिंह?" सहसा ड्राइंग रूम में छाए सन्नाटे को भेदते हुए उस ऑफिसर ने कहा__"अगर आपको ये लगता है कि ये सब किसी ने आपको फॅसाने के उद्देश्य से किया है और इस सबमें आपका कोई हाॅथ नहीं है तो फिक्र मत कीजिए। हम सच्चाई का पता लगा लेंगे। किन्तु उससे पहले आपको हमारे साथ चलना ही पड़ेगा और तहकीक़ात में हमारा सहयोग करना पड़ेगा।"

उस ऑफिसर के इतना कहते ही अजय सिंह ने गहरी साॅस ली और फिर सोफे से उठ खड़ा हुआ। इस वक्त उसके बदन पर नाइट ड्रेस ही था इस लिए उसने ऑफिसर से ड्रेस बदल लेने की परमीशन माॅगी। ऑफिसर ने परमीशन दे दी। परमीशन मिलते ही अजय सिंह कमरे की तरफ बढ़ गया। उसके जाते ही ऑफिसर ने एक अन्य ऑफिसर की तरफ देख कर ऑखों से कुछ इशारा किया। ऑफिसर का इशारा समझ कर दूसरा ऑफिसर तुरंत ही अजय सिंह के पीछे कमरे की तरफ बढ़ गया। मतलब साफ था कि ऑफिसर को इस बात का अंदेशा था कि अंदर कमरे अजय सिंह कहीं फोन पर किसी से कोई बात वगैरा न करने लगे। जबकि मौजूदा हालात में ऐसा करना हर्गिज़ भी जायज़ बात न थी।

कुछ ही देर में ऑफिसर के साथ ही अजय सिंह कमरे से आता दिखाई दिया। उसके आते ही सभी लोग सोफों पर से उठे और अजय सिंह के साथ ही बाहर आ गए। जबकि पीछे बुत बने अजय सिंह की बीवी और बेटा खड़े रह गए थे। फिर जैसे प्रतिमा को होश आया। वो एकदम से तेज़ क़दमों के साथ बाहर की तरफ भागते हुए गई। जब वो बाहर आई तो उसने देखा कि सीबीआई के सभी ऑफिसर अपनी अपनी गाड़ियों में बैठ रहे थे। एक अन्य गाड़ी की पिछली शीट पर अजय सिंह को बिठाया जा रहा था, और उसके बाद उसके बगल से ही एक अन्य ऑफिसर बैठ गया था।

प्रतिमा के देखते ही देखते सीबीआई वालों का वो क़ाफिला अजय सिंह को साथ लिए हवेली से दूर चला गया। प्रतिमा को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी मुकम्मल दुनियाॅ ही नेस्तनाबूत हो गई हो। इस एहसास के साथ ही प्रतिमा की ऑखें छलक पड़ीं और फिर जैसे उसके जज़्बात उसके काबू में रह सके। वो दरवाजे पर खड़ी खड़ी ही फूट फूट कर रो पड़ी। तभी उसके पीछे शिवा नमूदार हुआ और अपनी रोती हुई माॅ को उसके कंधे से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया और फिर उसे अपने सीने से लगा लिया।
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:54 PM

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