non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:53 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
♡ एक नया संसार ♡

अपडेट.........《 49 》

अब तक,,,,,,,

मार्केट के पास आते ही उसे दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले दिखे। उनमें से एक पुलिस वाले ने रितू को बताया कि उसने उस अधेड़ आदमी को दूसरी दवाइयाॅ खरीद कर दे दी हैं। उसकी बात सुन कर रितू आगे बढ़ गई। उसके पीछे दूसरे पुलिस वाले भी अपनी गाड़ी में चल पड़े। उनकी नज़र रितू की जिप्सी पर थोड़ा सा फैली हुई उस ब्लैक कलर की प्लास्टिक की पन्नी पर पड़ी जिसके नीचे रितू ने उस लड़की को छुपा दिया था। किन्तु उन लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान न दिया। उनको अपने आला अफसर का आदेश था कि इंस्पेक्टर रितू के आस पास ही रहना है और उसकी किसी भी गतिविधी पर कोई सवाल जवाब नहीं करना है।

रितू की जिप्सी ऑधी तूफान बनी हल्दीपुर की तरफ बढ़ी चली जा रही थी। उसके पीछे ही दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले भी थे। रितू को अंदेशा था कि हल्दीपुर के पास वाले रास्तों पर कहीं उसका बाप या उसके आदमी मिल न जाएॅ मगर हल्दीपुर के उस पुल तक तो कोई नहीं मिला था। पुल से दाहिने साइड जिप्सी को मोड़ कर रितू फार्महाउस की तरफ बढ़ चली। कुछ दूरी पर आकर रितू ने जिप्सी को रोंक दिया। कुछ ही पलों में उसके पीछे वाली गाड़ी भी उसके पास आकर रुक गई।

"अब आप सब यहाॅ से वापस लौट जाइये।" रितू ने एक पुलिस वाले की तरफ देख कर कहा___"आज का काम इतना ही था। अगर ज़रूरत पड़ी तो वायरलेस या फोन द्वारा सूचित कर दिया जाएगा।"
"ओके मैडम।" एक पुलिस वाले ने कहा___"जैसा आप कहें। जय हिन्द।"

उन सबने रितू को सैल्यूट किया और फिर अपनी गाड़ी को वापस मोड़ कर वहाॅ से चले गए। उनके जाते ही रितू ने भी अपनी जिप्सी को फार्महाउस की तरफ बढ़ा दिया। आने वाला समय अपनी आस्तीन में क्या छुपा कर लाने वाला था ये किसी को पता न था।"
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,

उधर एक तरफ!
एक लम्बे चौड़े हाल के बीचो बीच एक बड़ी सी टेबल के चारो तरफ कुर्सियाॅ लगी हुई थी। उन सभी कुर्सियों पर इस वक्त कई सारे अजनबी चेहरे बैठे दिख रहे थे। सामने फ्रंट की मुख्य कुर्सी खाली थी। हर शख्स के सामने मिनरल वाटर से भरे हुए काॅच के ग्लास रखे हुए थे। लम्बे चौड़े हाल में इस वक्त ब्लेड की धार की मानिन्द पैना सन्नाटा फैला हुआ था। वो सब अजनबी चेहरे ऐसे थे जिन्हें देख कर ही प्रतीत हो रहा था कि ये सब किसी न किसी अपराध की दुनियाॅ ताल्लुक ज़रूर रखते हैं। उन अजनबी चेहरों के बीच ही कुछ ऐसे भी चेहरे थे जो शक्ल सूरत से विदेशी नज़र आ रहे थे।

"और तो सब ठीक ही है।" उनमें से एक ने हाल में फैले हुए सन्नाटे को भेदते हुए कहा___"मगर ठाकुर साहब का हमसे इस तरह इन्तज़ार करवाना बिलकुल भी पसंद नहीं आता। हर बार यही होता है कि हम सब टाइम से कान्फ्रेन्स हाल में मीटिंग के लिए आ जाते हैं मगर ठाकुर साहब तो ठाकुर साहब हैं। हर बार निर्धारित समय से आधा घंटे लेट ही आते हैं।"

"अब इसमें हम क्या कर सकते हैं कमलनाथ जी?" एक अन्य ब्यक्ति ने मानो असहाय भाव से कहा___"वो ठाकुर साहब हैं। शायद हमसे इस तरह इन्तज़ार करवाने में वो अपनी शान समझते हैं। हलाॅकि ऐसा होना नहीं चाहिए, क्योंकि यहाॅ पर कोई भी किसी से कम नहीं है। हम सबको एक दूसरे का बराबर आदर व सम्मान करना चाहिए। मगर ये बात ठाकुर साहब से कौन कहे?"

"यस यू आर अब्सोल्यूटली राइट मिस्टर पाटिल।" सहसा एक विदेशी कह उठा___"हमको भी ठाकुर का इस तरह वेट करवाना पसंद नहीं आता हाय। वो क्या समझता हाय कि हम लोगों की कोई औकात नहीं हाय? अरे हम चाहूॅ तो अभी इसी वक्त ठाकुर को खरीद सकता हाय। बट हम भी इसी लिए चुप रहता हाय कि तुम सब भी चुप रहता हाय।"


"इट्स ओके मिस्टर लारेन।" पाटिल ने कहा___"ये आख़िरी बार है। आज ठाकुर से हम सब इस बारे में एक साथ चर्चा करेंगे और उनसे कहेंगे कि हम सबकी तरह वो भी टाइम पर मीटिंग हाल में आया करें। इस तरह हमसे वेट करवा कर हमारी तौहीन करने का उन्हें कोई हक़ नहीं है। अगर आप मेरी इस बात से सहमत हैं तो प्लीज जवाब दीजिए।"

पाटिल की इस बात पर सबने अपनी प्रतिक्रिया दी। जो कि पाटिल की बातों पर सहमति के रूप में ही थी। कुछ देर और समय बीतने के बाद तभी हाल में अजय सिंह दाखिल हुआ और मुख्य कुर्सी पर आकर बैठ गया। उसने सबकी तरफ देख कर बड़े रौबीले अंदाज़ से हैलो किया। उसकी इस हैलो का जवाब सबने इस तरह दिया जैसे बग़ैर मन के रहे हों। इस बात को खुद अजय सिंह ने भी महसूस किया।

"साॅरी फ्रैण्ड्स हमें आने में ज़रा देर हो गई।" अजय सिंह ने बनावटी खेद प्रकट करते हुए कहा___"आई होप आप सब इस बात से डिस्टर्ब नहीं हुए होंगे। एनीवेज़....
"ठाकुर साहब दिस इज टू मच।" एक अन्य ब्यक्ति कह उठा___"आप हर बार ऐसा ही करते हैं और फिर बाद में ये कह देते हैं कि साॅरी फ्रैण्ड्स हमें आने में ज़रा देर हो गई। आप हर बार लेट आकर हम सबकी तौहीन करते हैं। हम सब आधा घंटे तक आपके आने का वेट करते रहते हैं। आपको क्या लगता है कि हम लोगों के पास दूसरा कोई काम ही नहीं है? हम सब भी अपने अपने कामों में ब्यस्त रहते हैं मगर टाइम से कहीं भी पहुॅचने के लिए समय पहले से ही निकाल लेते हैं। इस बिजनेस में हम सब बराबर हैं। यहाॅ कोई छोटा बड़ा नहीं है। हम सबने आपको मेन कुर्सी पर बैठने का अधिकार अपनी खुशी से दिया था। मगर इसका मतलब ये नहीं कि आप उसका नाजायज़ मतलब निकाल लें। हम सबने डिसाइड कर लिया है कि अगर आपका रवैया ऐसा ही रहा तो हम सब आपसे बिजनेस का अपना अपना हिस्सा वापस ले लेंगे। दैट्स आल।"

उस ब्यक्ति की ये सारी बातें सुन कर अजय सिंह अंदर ही अंदर बुरी तरह तिलमिला कर रह गया था। ये सच था कि हर बार वो इन सबसे इन्तज़ार करवा कर यही जताता था कि उसके सामने इन लोगों की कोई अहमियत नहीं है। बल्कि वो इन सबसे ज्यादा अहमियत रखता है। आज तक इस बिजनेस से जुड़े ये सब लोग उसकी इस आदत पर कोई सवाल नहीं खड़ा किये थे जिसकी वजह से उसे यही लगता रहा था कि यू सब उसे बहुत ज्यादा इज्ज़त व अहमियत देते हैं और इसी लिए वो ऐसा करता रहा था। मगर आज जैसे इन सबके धैर्य का बाॅध टूट गया था। जिसका नतीजा इस रूप में उसके सामने आया था। उस शख्स की बातों से उसके अहं को ज़बरदस्त चोंट पहुॅची लेकिन वो ये बात अच्छी तरह जानता था कि इस बारे में अगर उसने कुछ उल्टा सीधा बोला तो काम बिगड़ जाने में पल भर की भी देर नहीं लगेगी। इस लिए वो उस शख्स की उन सभी कड़वी बातों को जज़्ब कर गया था।

"आई नो मिस्टर तेवतिया।" अजय सिंह ने कहा__"बट इस सबसे हमारा ये मतलब हर्गिज़ भी नहीं है कि हम आप सबको अपने से छोटा समझते हैं। हम सब फ्रैण्ड्स हैं और हम में से कोई छोटा बड़ा नहीं है। हर बार हम मीटिंग में देर से पहुॅचते हैं इसका हमें यकीनन बेहद अफसोस होता है। मगर क्या करें हो जाता है। मगर हमें ये भी पता होता है कि आप सब हमारी इस ग़लती को नज़रअंदाज़ कर देंगे।"

"इट्स ओके ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा__"बट ध्यान रखियेगा कि अगली बार से ऐसा न हो। कभी कभार की बात हो तो समझ में आता है मगर हर बार ऐसा हो तो मूड ख़राब होना स्वाभाविक बात है।"

"यस ऑफकोर्स मिस्टर कमलनाथ।" अजय सिंह एक बार फिर गुस्से और अपमान का घूॅट पीकर बोला__"अब अगर आप सबकी इजाज़त हो तो काम की बात करें?"
"जी बिलकुल।" पाटिल ने कहा___"
उसके पहले हम ये जानना चाहते हैं कि समय से पहले इस तरह अचानक मीटिंग रखने की क्या वजह थी?"

"आप सबको तो इस बात का पता ही है कि मौजूदा वक्त में हमारे हालात बिलकुल भी ठीक नहीं हैं।" अजय सिंह ने बेबस भाव से कहा___"पिछले कुछ समय से हमारे साथ बेहद गंभीर और बेहद नुकसानदाई घटनाएॅ घट रही हैं। उन घटनाओं के पीछे कौन है ये भी हम पता लगा चुके हैं। इस लिए अब हम चाहते हैं कि आप सब हमारे इस बुरे वक्त में हमारा साथ दें।"

"वैसे तो आप खुद ही सक्षम हैं ठाकुर साहब।" पाटिल ने कहा___"किन्तु इसके बाद भी आप हम सबसे मदद की आशा रखते हैं तो मैं तैयार हूॅ। आख़िर हम सब एक ही तो हैं। हर तरह की मसीबत व परेशानी का एक साथ मिल कर मुकाबला करेंगे तो हर जंग में हमारी फतह होगी।"

"हमें भी आपके इन मौजूदा हालातों का पता है ठाकुर साहब।" एक अन्य ब्यक्ति ने कहा___"इस लिए हम सब आपके साथ हैं। आप हुकुम दें कि हमें क्या करना होगा?"
"आप सब हमारा साथ देने के लिए तैयार हैं इससे बड़ी बात व खुशी और क्या होगी भला? रही बात आपके कुछ करने की तो आप बस हमारे साथ ही बने रहें कुछ समय के लिए या फिर अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीजिए जो हर तरह के फन में माहिर हों।"

"जैसी आपकी इच्छा ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा___"हम सब आपके साथ हैं और हमारे ऐसे आदमी भी आपके पास आ जाएॅगे जो हर तरह के फन में माहिर हैं। अब से आपकी परेशानी हमारी परेशानी है। क्यों फ्रैण्ड्स आप सब क्या कहते हैं??"

कमलनाथ के अंतिम वाक्य पर सबने अपनी प्रतिक्रिया सहमति के रूप में दी। ये सब देख कर अजय सिंह अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था।

"मिस्टर सिंह।" सहसा इस बीच एक विदेशी ने कहा___"पिछली डील अभी तक कम्प्लीट नहीं हुआ। क्या हम जान सकता हाय कि इतना डिले करने का तुम्हारा क्या मतलब हाय? बात थोड़ी बहुत की होती तो हम उसको भूल भी सकता था बट एज यू नो वो सारी चीज़ें लाखों करोड़ों में हाय। सो हाउ कैन आई फारगेट?"

"हम जानते हैं मिस्टर लाॅरेन।" अजय सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला___"कि वो सब करोड़ों का सामान है। लेकिन मौजूदा वक्त में हम ऐसी स्थित में नहीं हैं कि आपका पैसा आपको दे सकें। इसके लिए आपको तब तक रुकना पड़ेगा जब तक कि हमारे सिर पर से ये मुसीबत और ये परेशानी न हट जाए। प्लीज़ ट्राई टू अण्डरस्टैण्ड मिस्टर लाॅरेन।"

"ओखे।" लाॅरेन ने कहा___"नो प्राब्लेम हम तुम्हारी हर तरह से मदद करेगा। बट सारी प्राब्लेम फिनिश होने के बाद तुम हमारा पूरा पैसा देगा। इस बात का प्रामिस करना पड़ेगा तुमको।"
"मिस्टर लाॅरेन।" सहसा कमलनाथ ने कहा___"ये आप कैसी बात कर रहे हैं? आप जानते हैं कि ठाकुर साहब के पास इस समय कितनी गंभीर समस्याएॅ हैं इसके बाद भी आप सिर्फ अपने मतलब की बात कर रहे हैं। जबकि आपको करना तो ये चाहिए था कि आप सब कुछ भूल कर सिर्फ ठाकुर साहब को उनकी समस्याओं से बाहर निकालें।"

"तो हमने कब मना किया इस बात से मिस्टर कमलनाथ?" लाॅरेन ने कहा___"हम कह ओ रहा है कि हम हर तरह से इनकी मदद करेगा।"
"हाॅ लेकिन यहाॅ पर आपको अपने पैसों की बात करना उचित नहीं है न।" कमलनाथ ने कहा___"आपको ये भी तो सोचना चाहिए कि पैसा सिर्फ आपका ही बस बकाया नहीं है ठाकुर साहब के पास, हम सबका भी है। लेकिन हमने तो इनसे पैसों के बारे में कोई बात नहीं की।"

"ओखे आयम साॅरी।" लाॅरेन ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"सो अब बताइये क्या करना है हम लोगो को?"
"ये तो ठाकुर साहब ही बताएॅगे।" कमलनाथ ने कहा__"कि हम सबको क्या करना होगा?"
"हमने आप सबको पहले ही बता दिया है कि आप सब अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीजिए जो हर तरह के काम में माहिर हों।" अजय सिंह ने कहा___"उसके बाद हम खुद ही तय करेंगे कि हमें उन आदमियों से क्या और कैसे काम लेना है?"

"ठीक है ठाकुर साहब।" पाटिल ने कहा___"हमारे पास जो भी ऐसे आदमी हैं। उन सबको आपके पास भेज देंगे।"
"ओह थैक्यू सो मच टू आल ऑफ यू डियर फ्रैण्ड्स।" अजय सिंह ने खुश होकर कहा___"और हाॅ, हम आप सबसे वादा करते हैं कि इस सबसे निपट लेने के बाद हम बहुत जल्द आप सबके पैसों का हिसाब किताब कर देंगे।"

अजय सिंह की इस बात के साथ ही मीटिंग खत्म हो गई। सबने अजय सिंह को अपने आदमी भेजने का कहा और फिर सब एक एक करके मीटिंग हाल से बाहर की तरफ चले गए। सबके जाने के बाद अजय सिंह भी बाहर की तरफ निकल गया। बाहर पार्किंग में खड़ी अपनी कार में बैठ कर अजय सिंह घर की तरफ निकल गया।

कुछ ही समय में अजय सिंह हवेली पहुॅच गया। अंदर ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर प्रतिमा और शिवा बैठे थे। अजय सिंह भी वहीं रखे एक सोफे पर बैठ गया। उसने प्रतिमा को चाय बनाने का कहा तो प्रतिमा रसोई की तरफ बढ़ गई। जबकि अजय सिंह ने गले पर कसी टाई को ढीला कर आराम से सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर लगभग लेट सा गया।

शिवा को समझ न आया कि अपने बाप से बातों का सिलसिला कैसे और कहाॅ से शुरू करे? ऐसा कदाचित इस लिए था क्योंकि आज सारा दिन उसने अपनी माॅ के साथ मौज मस्ती की थी। इस बात के कारण कहीं न कहीं हल्की सी झिझक उसके अंदर मौजूद थी।

"आप इतना लेट कैसे हो गए डैड?" आख़िर शिवा ने बात शुरू कर ही दी, बोला___"आपने तो कहा था कि जल्दी आ रहा हूॅ?"
"एक ज़रूरी मीटिंग में ब्यस्त हो गया था बेटे।" अजय सिंह ने उसी हालत में कहा___"कल से हमारे पास कुछ ऐसे आदमी होंगे जो हर तरह के काम में माहिर होंगे। अब मैं भी देखूॅगा कि वो हरामज़ादा विराज और रितू कैसे उन आदमियों को ठिकाने लगाते हैं?"

"ऐसे वो कौन से आदमी हैं डैड?" शिवा ने ना समझने वाले भाव से कहा___"क्या आप अभी भी ऐसे किन्हीं आदमियों पर ही भरोसा करेंगे? जबकि पालतू आदमियों का क्या हस्र हुआ है ये आपको बताने की ज़रूरत नहीं है।"

"हमारे आदमी दिमाग़ से पूरी तरह पैदल थे बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"वो सब अपने शारीरिक बल को महत्व देते थे तभी तो मात खा गए। उन्होंने ये कभी सोचा ही नहीं कि शरीरिक बल से कहीं ज्यादा दिमाग़ी बल कारगर होता है। ख़ैर, अब जो आदमी यहाॅ आएॅगे वो सब खलीफ़ा लोग होंगे। जो हर वक्त हर तरह के ख़तरे वाले कामों को ही अंजाम देते हैं। दूसरी बात ये है कि रितू एक आम लड़की नहीं है जिसे कोई भी ऐरा गैरा ब्यक्ति आसानी से पकड़ लेगा, बल्कि वो एक पुलिस वाली भी है। जिसके पास सारा पुलिस डिपार्टमेन्ट भी है। ऐसे में अगर हम खुद उस पर हाॅथ डालेंगे तो वो हमें कानून की चपेट में डाल सकती है। इस लिए हमने सोचा है कि हम पहले ऐसे आदमियों के द्वारा उसे पकड़ लें कि जिनसे वो आसानी से मुकाबला भी न कर सके। मुकाबले से मेरा मतलब ये है कि मेरे वो आदमी उसे ऐसा घेरा बना कर पकड़ेंगे जिसके बारे में उसे अंदेशा तक न हो पाएगा।"

"ओह आई सी।" शिवा को सारी बात जैसे समझ आ गई थी, बोला___"ये सही रणनीत है डैड। अगर वो सब आदमी वैसे ही हर काम में माहिर हैं जैसा कि आप बता रहे हैं तो फिर यकीनन ये सही क़दम है।"

अभी अजय सिंह कुछ बोलने ही वाला था कि तभी किचेन से आती हुई प्रतिमा हाॅथ में चाय का ट्रे लिए वहाॅ पर आ गई। उसने दोनो बाप बेटे को एक एक कप चाय पकड़ाई और एक कप खुद लेकर वहीं एक सोफे पर बैठ गई।

"कौन से आदमियों की बात चल रही है अजय?" प्रतिमा ने सोफे पर बैठने के साथ ही पूछा था। उसके पूछने पर अजय सिंह ने उसे भी वही सब बता दिया जो अभी उसने शिवा को बताया था। सारी बात सुनने के बाद प्रतिमा कुछ देर गंभीरता से सोचती रही।

"तो अब तुमने बाहर से आदमी मॅगवाए हैं।" फिर प्रतिमा ने तिरछी नज़र से देखते हुए कहा___"और उन पर भरोसा भी है तुम्हें कि वो तुम्हें इस बार नाकामी का नहीं बल्कि फतह का स्वाद चखाएॅगे?"
"बिलकुल।" अजय सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा___"ये सब ऐसे आदमी हैं जिनका वास्ता अपराध की हक़ीक़त दुनियाॅ से है और ये सब उस अपराध की दुनियाॅ के सफल खिलाड़ी हैं।"

"चलो इनका कारनामा भी देख लेते हैं।" प्रतिमा ने सहसा गहरी साॅस ली___"वैसे इस बात पर भी ध्यान देना कि समय हर वक्त इसी बस के लिए नहीं रहता।"
"क्य मतलब??" अजय सिंह चकराया।
"मतलब ये कि हर बार एक जैसी ही चाल चलना एक सफल खिलाड़ी की पहचान नहीं होती।" प्रतिमा ने समझाने वाले भाव से कहा__"ऐसे में सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग़ में ये मैसेज जाता है कि उसका प्रतिद्वंदी कमज़ोर है जो सिर्फ एक ही तरह की चाल चलना जानता है और उसकी ये बेवकूफी भी कि उसी एक तरह की चाल से वह खेल को जीत लेने की उम्मीद भी करता है। इस लिए एक अच्छे खिलाड़ी को चाहिए कि बीच बीच में अपनी चाल को बदल भी लेना चाहिए।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है डियर।" अजय सिंह ने चाय का खाली कप सामने काॅच की टेबल पर रखते हुए बोला___"लेकिन इसको इस एंगल से भी तो सोच कर देखो ज़रा। मतलब ये कि सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग़ में हम जानबूझ कर ये मैसेज डाल रहे हैं कि हमारे पास सिर्फ एक ही तरह की चाल है। उसे ऐसा समझने दो। जबकि हम सही समय आने पर अपनी चाल को बदल कर उसे ऐसे मात देंगे कि उसे इसकी उम्मीद भी न होगी हमसे। जिसे वो हमारी कमज़ोरी समझेगा वो दरअसल हमारी चाल का ही एक हिस्सा होगा।"

"ओहो क्या बात है डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"क्या तर्क निकाला है। ये भी ठीक है। चल जाएगा। मगर सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात ये है कि हमारे पास समय नहीं है समय बर्बाद करने के लिए भी।

सोचने वाली बात है कि हम अब भी वहीं हैं जहाॅ पर थे जबकि हमारा दुश्मन बहुत कुछ करके यहाॅ निकल भी चुका है। हाॅ अजय, वो रंडी का जना विराज अब यहाॅ नहीं होगा। बल्कि जिस काम से वो यहाॅ आया था उस काम को करके वो वापस मुम्बई चला गया होगा। आख़िर इस बात का एहसास तो उसे भी है कि उसने हमारे इतने सारे आदमियों का क्रियाकर्म करके गायब किया है जिसका अंजाम किसी भी सूरत में उसके हित में नहीं होगा। इस लिए अपना काम पूरा करने के बाद वो यहाॅ पर एक पल भी रुकना गवाॅरा नहीं करेगा।"

"माॅम ठीक कह रही हैं डैड।" सहसा इस बीच शिवा ने भी अपना पक्ष रखा___"वो यकीनन यहाॅ से चला गया होगा। भला ऐसे ख़तरे के बीच रुकने की कहाॅ की समझदारी ।होगी? अब ये भी स्पष्ट हो गया है कि उसके बाद यहाॅ सिर्फ रितू दीदी ही रह गई हैं।"

"रितू ही बस नहीं है बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि उसके साथ तुम्हारी नैना बुआ भी है।"
"क्याऽऽ???" अजय सिंह की इस बात से शिवा और प्रतिमा दोनो ही बुरी तरह चौंके थे, जबकि प्रतिमा ने कहा___"तुम ये कैसे कह सकते हो अजय? नैना तो वापस अपने ससुराल चली गई थी न उस दिन?"

"वो ससुराल नहीं।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि रितू के साथ कहीं और गई थी। नैना ने तो ससुराल जाने का सिर्फ बहाना बनाया था जबकि हक़ीक़त ये थी कि रितू उसे खुद यहाॅ से निकाल कर ले गई थी। ये सब रितू का ही किया धरा था।"

"लेकिन ये सब तुम्हें कैसे पता अजय?" प्रतिमा ने चकित भाव से कहा___"और रितू ने भला ऐसा क्यों किया होगा?"
"उस दिन नैना जब रितू के साथ गई तो ये सच है कि एक भाई होने के नाते मुझे खुशी हुई थी कि चलो अच्छा हुआ कि नैना को उसके ससुराल वालों ने बुलाया है।" अजय सिंह कह रहा था___"मगर जब दो दिन बाद भी नैना का कोई फोन नहीं आया तो मैने सोचा कि मैं ही फोन करके पता कर लूॅ कि वहाॅ सब ठीक तो है न? इस लिए मैने नैना के ससुराल में नैना को फोन लगाया मगर नैना का फोन बंद बता रहा था। कई बार के लगाने पर भी जब नैना का फोन बंद ही बताता रहा तो मैने नैना के हस्बैण्ड को फोन लगाया और उनसे पूछा नैना के बारे में तो उसने साफ साफ कठोरता से मना कर दिया कि उसके यहाॅ नैना नहीं आई और ना ही उसका नैना से कोई लेना देना है अब। नैना के पति की ये बात सुन कर मेरा दिमाग़ घूम गया। मुझे समझते देर न लगी कि नैना को हवेली से निकाल कर रितू ही ले गई है। उसे शायद ये बात कहीं से पता चल गई होगी कि हम दोनो बाप बेटे की गंदी नज़र नैना पर है। इस लिए रितू ने उसे इस हवेली से बड़ी चालाकी से निकाल लिया और अपनी बुआ को किसी ऐसी जगह पर सुरक्षित रखने का सोचा होगा जहाॅ पर हम आसानी से पहुॅच भी न सकें।"

"हे भगवान! इतना बड़ा खेल खेल गई रितू।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा___"अगर ये बात सच है तो यकीनन हमारी बेटी ने हमें उल्लू बना दिया है। उसने बड़ी सफाई और चतुराई से आपके मुह से आपका मन पसंद निवाला छीन लिया है जिसका हमें एहसास तक नहीं हो सका।"

"जब हमारी बेटी ने ही हमें धोखा दे दिया तो कोई क्या कर सकता है?" अजय सिंह ने कहा___"लेकिन अब जो हम उसके साथ करेंगे उसकी उसने कल्पना भी न की होगी। हम उसके माॅ बाप हैं, हमने उसे बचपन से लेकर अब तक क्या कुछ नहीं दिया। उसने जिस चीज़ की आरज़ू की हमने पल भर में उस चीज़ को लाकर उसके क़दमों में डाल दिया। मगर उसने हमारे लाड प्यार का ये सिला दिया हमें। इतने सालों का लाड प्यार उसके लिए कोई मायने नहीं रखता। देख लो प्रतिमा, ये है तुम्हारी बेटी का अपने माॅ बाप के प्रति प्रेम और लगाव। जो अपने बाप के दुश्मन के साथ मिल कर खुद अपने ही पैरेंट्स के लिए मौत का सामान जुटाने पर तुली हुई है। इस हाल में अगर तुम मुझसे ये कहो कि मैं उसकी इस धृष्टता को माफ़ कर दूॅ तो ऐसा हर्गिज़ नहीं हो सकता अब। तुम्हारी बेटी ने अपने ही बाप के हाथों अब ऐसी मौत को चुन लिया है जिसके दर्द का किसी को एहसास नहीं हो सकता।"

"पहले मुझे भी लगता था अजय कि वो आख़िर हमारी बेटी है।" प्रतिमा ने कठोरता से कहा___"मगर उसके इस कृत्य से मुझे भी उस पर अब बेहद गुस्सा आया हुआ है। मैं जानती हूॅ कि वो अब दूध पीती बच्ची नहीं रही है जिसके कारण उसे हर चीज़ का पाठ पढ़ाना पड़ेगा। बल्कि अब वो बड़ी हो गई है। जिसे अपने और अपनों के अच्छे बुरे का बखूबी ख़याल है। इसके बाद भी वो अपने ही पैरेंट्स का बुरा चाहने वाला काम किया है तो अब मैं भी यही कहूॅगी कि उसे उसके इस अपराध की शख्त से शख्त सज़ा मिले। दैट्स आल।"

कुछ देर और तीनो के बीच बातें होती रहीं उसके बाद तीनों ने रात का खाना खाया और सोने के लिए कमरों में चले गए। इस बात से अंजान कि आने वाली सुबह उनके लिए क्या धमाका करने वाली है????
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