non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:53 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
इधर रितू के फार्महाउस पर!
मैं, आदित्य और पवन आपस में बातें ही कर रहे थे कि सहसा कमरे के दरवाजे पर बाहर से नाॅक हुई। पवन ने उठ कर दरवाजा खोला तो देखा बाहर रितू दीदी खड़ी थी। दीदी को देखते ही पवन एक तरफ हट गया तो दीदी अंदर आ गई। मैने दीदी के चेहरे पर हल्का परेशानी के भाव देखे तो चौंका।

"क्या बात है दीदी?" मैंने उनके पास आकर पूछा__"सब ठीक तो है ना?"
"हाॅ सब ठीक है राज।" रितू दीदी ने कहा___"मैं ये कहने आई हूॅ कि तुम सबको अभी यहाॅ से निकलना होगा गुनगुन के लिए। क्योंकि बाद में संभव है कि डैड अपने किसी अन्य आदमियों को यहाॅ रास्तों पर घेरा बंदी के लिए लगा दें। हलाॅकि उन्हें ये पता नहीं है कि तू अभी यहीं है या यहाॅ से जा चुका है। मगर हालात बदल चुके हैं।"

"ये आप क्या कह रही हैं दीदी?" मैने चौंकते हुए कहा__"हालात तो बदले हुए ही थे उसमें अब क्या हो गया है?"
"बहुत कुछ हुआ है मेरे भाई।" रितू दीदी ने कहा___"डैड को मुझ पर पहले से शक था इस लिए आज उन्होंने मेरे पीछे अपना एक आदमी लगाया हुआ था जिसे मैने बीच रास्ते पर ही धर लिया था और फिर उसे बेहोश करके यहाॅ ले आई थी। अब ज़ाहिर सी बात है कि डैड ने अपने आदमी से फोन पर जानकारी प्राप्त करनी चाही होगी मगर जब वो ये जानेंगे कि उनके आदमी का फोन ही बंद है तो उन्हें समझते देर नहीं लगेगी कि मैने उनके आदमी को गिरफ्तार कर लिया है या फिर उसे ठिकाने लगा दिया है। उस सूरत में वो मुझ पर बेहद गुस्सा होंगे और संभव है कि मेरी तलाश में घर से खुद ही निकल लें। अगर उन्होंने ऐसा किया तो समझ लो उनके साथ और भी आदमी होंगे जो यहाॅ के हर रास्तों पर फैल जाएॅगे। ऐसे में तुम लोगों का यहाॅ से गुनगुन के लिए निकलना मुश्किल हो जाएगा। इसी लिए कह रही हूॅ कि तुम सब जितना जल्दी हो सके यहाॅ से फौरन निकलने की तैयारी करो। बाहर मेरी जिप्सी को मिला कर दो गाड़ियाॅ हैं। उन दोनो गाड़ियों में तुम सब आराम से आ जाओगे। लेकिन सामान कुछ भी नहीं जा पाएगा। इस लिए सामान को यहीं छोंड़ देना। सारा सामान यहाॅ सुरक्षित ही रहेगा।"

"आपने तो कह दिया दीदी।" मैने सहसा दुखी भाव से कहा___"कि मैं इन सबको लेकर यहाॅ से चला जाऊॅ। मगर मैं जानता हूॅ कि आज के वक्त में आप कितने बड़े ख़तरे में हैं। मैं आपको ऐसे अकेले छोंड़ कर कैसे यहाॅ से चला जाऊॅ दीदी? मेरे जाने के बाद अगर आपको कुछ हो गया तो सारी ज़िंदगी मैं अपने आपको माफ़ नहीं कर पाऊॅगा।"

"चुप कर तू।" दीदी ने मुझे ज़बरदस्ती झिड़क दिया, हलाॅकि मैं जानता था कि वो अपने अंदर के जज़्बातों को शख्ती से दबा रही थी, बोली___"जब देखो इमोशनल होता रहता है। अब ज्यादा बोलना नहीं और चुपचाप यहाॅ से सबको लेकर निकल।"

"मैं कहीं नहीं जाऊॅगा आपको अकेला छोंड़ कर।" मेरी ऑखों में ऑसू आ गए।
"तुझे मेरी क़सम है मेरे भाई।" रितू दीदी ने झटके से मेरा हाॅथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया था___"तू यहाॅ से सबको लेकर अभी इसी वक्त जाएगा। मेरी चिन्ता मत कर। तेरी दीदी कोई इतनी भी गैर मामूली नहीं है जिसे कोई भी ऐरा ग़ैरा हजम कर जाएगा। अरे मैं तेरी बहन हूॅ राज। जिसका भाई इतना प्यार करता हो उसका भगवान भी कुछ न कर सकेंगे। और फिर बस दो दिन की ही तो बात है न मेरे भाई। फिर तो तू आ ही जाएगा न मेरे पास। तू चिन्ता मत कर, मैं खुद को ऐसी जगह छुपा लूॅगी कि तेरे आने से पहले मेरा बाप तो क्या कोई भी माई का लाल मुझे ढूॅढ़ नहीं पाएगा। चल अब तू बेफिक्र होकर जा।"

ये कह कर दीदी एक पल के लिए भी नहीं रुकीं। बल्कि कहने के साथ ही कमरे से बाहर चली गईं। उनके जाने के बाद भी कुछ देर तक मैं भौचक्का सा खड़ा रह गया था। होश तब आया जब आदित्य ने मेरे कंधे पर अपना हाॅथ रख कर हल्के से दबाया।

"चलो दोस्त।" आदित्य ने भारी स्वर में कहा___"यहाॅ से चलने की तैयारी करो। अपनी इस महान दीदी की बात मानो। मैं इतने दिनों से देख रहा हूॅ कि रितू सिर्फ अपने भाई के लिए ही जी रही है। हर वक्त उसे सिर्फ तुम्हारी ही फिक्र रहती है। आज भी वो सिर्फ तुम्हारी और इन सबकी फिक्र की वजह से ही तुम्हें यहाॅ से सीघ्र चलने को कह कर गई है। उसे अपने ऊपर मॅडरा रहे भीषण खतरे की कोई फिक्र नहीं है। मैं तुमसे सिर्फ एक ही बात कहूॅगा दोस्त____और वो ये कि इन सबको मुम्बई में सुरक्षित पहुॅचाने के बाद तुम एक पल के लिए भी वहाॅ नहीं रुकना। बल्कि उल्टे पैर वापस सीधा यहीं आओगे। मैं खुद भी तुम्हारे साथ ही आऊॅगा।"

"आदि मेरे दोस्त।" मैने भावना में बह कर आदित्य को गले से लगा लिया। उसने खुद भी मुझे ज़ोर से कस लिया था।
"कितना ग़लत सोचा करता था मैं रितू दीदी के बारे में।" तभी पवन कह उठा___"हर पल शक की नज़र से देखता था उनको। मगर यहाॅ आकर पता चला कि वो कितनी अच्छी हैं और उनके अंदर तेरे लिए कितना प्यार है। उन्होंने सच का साथ देने के लिए अपने ही माॅ बाप और भाई से हर रिश्ता तोड़ लिया। सच में राज, हमारी रितू दीदी बहुत महान हैं।"

मैने पवन को भी खुद से छुपका लिया। कुछ देर ऐसे ही एक दूसरे के गले लगे रहने के बाद हम तीनो अलग हुए और फ्रेश होने के लिए अपने अपने कमरों में चले गए। अपने कमरे में पहुॅच कर मैने जगदीश अंकल को फोन लगाया और उनसे कुछ ज़रूरी बातें की। उनको यहाॅ के हालात के बारे में बताया और ये भी बताया कि मैं इन लोगों को मुम्बई पहुॅचा कर वापस आ जाऊॅगा। इस लिए मेरे और आदित्य दोनो के लौटने की टिकट का इंतजाम वो कर देंगें। जगदीश अंकल से मैने ये भी कहा कि इस सबके बारे में वो माॅ को ज़रूर मना लेंगे वरना वो मुझे वापस आने नहीं देंगी।

जगदीश अंकल से बात करने के बाद मैं बाथरूम में फ्रेश होने के लिए चला गया। कुछ ही देर में हम सब बाहर लान में खड़ी जिप्सी में थे। जिप्सी में रितू दीदी के साथ मैं, करुणा चाची, दिव्या और शगुन थे। जबकि दूसरी जीप में शंकर काका जो कि ड्राइविंग शीट पर थे उनके साथ आदित्य, पवन, आशा दीदी और माॅ आदि बैठे थे। सबसे मिल कर और हरिया काका को फार्महाउस की सुरक्षा का कह कर हम सब फार्म हाउस से बाहर निकल पड़े।

फार्महाउस में इस वक्त हरिया काका, बिंदिया, नैना बुआ और हेमराज मामा थे। हेमराज मामा को आज यहीं पर रुकने का कह दिया था करुणा चाची ने। रास्ते में रितू दीदी ने मोबाइल पर फोन लगा कर अपने महकमे में किसी से बात की और कुछ पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में उनके आस पास ही रहने के लिए कहा।

दोनो गाड़िया ऑधी तूफान बनी गुनगुन के लिए उड़ी जा रही थी। आस पास हर तरफ हमारी नज़रें भी दौड़ रही थीं। ताकि अगर कहीं बड़े पापा या उनके आदमी हमें दिखें तो हम पहले से ही उनसे निपटने के लिए तैयार हो जाएॅ। लगभग दस मिनट बाद ही दो पुलिस की गाड़ियाॅ हमें नज़र आईं। एक हमारी गाड़ी को ओवरटेक करके हमारे आगे आगे चलने लगी और दूसरी गाड़ी हमारे पीछे पीछे चलने लगी।

आधे घंटे बाद हम सब गुनगुन के रेलवे स्टेशन पहुॅच गए। यहाॅ से मुम्बई जाने के लिए शाम को पाॅच बजे ट्रेन थी। इस वक्त साढ़े तीन बजे थे। रेलवे स्टेशन पहुॅच कर रितू दीदी ने हम सबको वेटिंग रूम में बैठाया और वहीं पर पुलिस के कुछ आदमियों को भी बैठाया। मैं दीदी के पास चुपचाप बैठा था। दीदी एकटक मुझे ही देख रही थी।

"नाराज़ है मुझसे???" दीदी ने मेरे सिर पर हाॅथ फेरते हुए कहा___"चल कोई बात नहीं मेरे भाई। तू कहीं भी रहे बस सलामत रहे तो तेरी हर नाराज़गी भी सह लूॅगी मैं। तू जब लौट के आएगा न तब तुझे मना लूॅगी मैं। फिर देखूॅगी कि तू मुझसे कितनी देर तक नाराज़ रह पाता है? बच्चूलाल मुझे ऐसे वैसे मत समझना तू। मुझे भी नाराज़ भाई को मनाना बहुत अच्छे से आता है। समझे न मेरे प्यारे भाई?"

रितू दीदी की बात पर मुझे अंदर ही अंदर हॅसी तो आई मगर मैने अपने चेहरे पर उन भावों को ज़ाहिर न होने दिया। ऐसे ही बैठे बैठे और इधर उधर की बातों से समय ब्यतीत हो गया और पाॅच बज गए। मुम्बई जाने वाली ट्रेन का एनाउंसमेन्ट होने लगा तो हम सब वेटिंगरूम से बाहर आ गए। कुछ ही देर में ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर खड़ी हो गई। हम सब एसी वाले डिब्बों की तरफ बढ़ चले और कुछ ही देर में हम सब एसी के फर्स्ट क्लास डिब्बे में आ गए। हम सब की शीटें पास पास ही थीं। सबके बैठ जाने के बाद मैं रितू दीदी के साथ बाहर आ गया।

"मैं परसों किसी भी हाल में यहाॅ आ जाऊॅगा दीदी।" बाहर आते ही मैने दीदी से कहा___"आप खुद का बहुत अच्छे से ख़याल रखेंगी। कुछ दिनों के लिए ड्यूटी पर जाना भी बंद कर दीजिएगा। हलाॅकि मैंने भी ऐसा कुछ इंतजाम कर दिया है कि बड़े पापा कुछ कर ही नहीं पाएॅगे।"

"क्या मतलब??" रितू दीदी ने चौंक कर मेरी तरफ देखा___"क्या कर दिया है तूने??"
"बहुत जल्द आपको भी पता चल जाएगा दीदी।" मैने अजीब भाव से कहा___"काफी दिन हो गए हैं बड़े पापा को झटका दिये हुए। इस लिए मैने सोचा कि इस मौके पर उन्हें एक झटका देना बिलकुल उचित और फायदेमंद है। आख़िर मुझे भी तो आपकी फिक्र है दीदी। ऐसे ख़तरे में अकेला छोंड़ कर जा रहा हूॅ, तो कुछ तो आपकी सुरक्षा का इंतजाम कर दूॅ।"

"अरे पर तूने किया क्या है राज?" रितू दीदी ने ना समझने वाले भाव से कहा___"क्या तू मुझे नहीं बता सकता?"
"बता तो सकता हूॅ दीदी।" मैने शरारत से उनकी सुर्ख हो चुकी नाॅक पर हल्के से उॅगली मारते हुए कहा___"मगर ये एक सरप्राइज़ है। इस लिए बता नहीं सकता। मगर डोन्ट वरी कल आपको भी पता चल जाएगा।"

"तू न बहुत बदमाश हो गया है।" रितू दीदी ने तो मेरी नाॅक ही पकड़ ली, बोली___"ख़ैर, देखती हूॅ कल कि तूने क्या शरारत की है मेरे डैड के साथ?"
"यस ऑफकोर्स।" मैं मुस्कुराया और फिर एकाएक ही मैने गंभीरता से कहा___"दीदी एक बार विधी के घर भी हो आइयेगा आप। उस दिन के बाद आज तक नहीं जा पाया हूॅ मैं। जबकि ये मेरा फर्ज़ था कि मैं अपनी पत्नी की हर क्रिया को खुद अपने हाॅथों से करता।"

"तू चिंता मत कर मेरे भाई।" रितू दीदी ने कहा___"मैने सब कुछ कर दिया है। बस ये सब एक बार ठीक हो जाए उसके बाद तू खुद अपने हाॅथों से विधी की अस्थियों को पावन गंगा में विसर्जित कर देना।"
"क्या कहा आपने?" मैं खुशी से चौंकते हुए बोला___"आप ने विधी की अस्थियाॅ एकत्रित कर रखी हैं?"

"हाॅ राज।" रितू दीदी ने कहा___"मैं भला कैसे भूल सकती थी उसे? तेरा बाहर निकलना ख़तरे से खाली नहीं था इस लिए तेरे नाम से मैं खुद ही विधी के घर गई थी और फिर विधी के डैड के साथ उसकी अस्थियाॅ लेने गई थी। विधी की अस्थियों को मैने फार्महाउस में सुरक्षित रखा हुआ है।मैने सोचा था कि जब ये सब फसाद खत्म हो जाएगा तब मैं तुझसे कहूॅगी कि जा राज अपनी विधी की अस्थियों को पवित्र गंगा में बहा दे।"

"ओह दीदी, आप सच में बहुत महान हैं।" कहते हुए मेरी ऑखों में ऑसू आ गए___"आपको मेरी हर चीज़ का कितना ख़याल है।"
"विधी अगर तेरी प्रेमिका या पत्नी थी तो वो मेरी भी तो कुछ लगती थी राज।" दीदी ने गंभीर भाव से कहा__"मेरे जीवन में उसकी अहमियत बहुत ज्यादा है मेरे भाई। उसी की वजह से मेरा हृदय परिवर्तन हुआ। उसी की वजह से मुझे पता चला कि सच्चा प्यार क्या होता है। उसी ने मुझे बताया कि जिस भाई को मैने कभी देखना तक गवाॅरा नहीं किया था वो वास्तव में कितना अच्छा है। हाॅ राज, विधी ने सब बताया मुझे। उसके बाद जब उसने मुझसे कहा कि उसे एक बार अपने महबूब से मिलना है और उसी की बाहों में अपने जीवन की अंतिम साॅस लेनी है तो उस वक्त मेरा कलेजा दहल गया। मेरे अंदर से किसी ने चीख चीख कर कहा कि देख ले रितू, एक ये है कि अपने प्यार के लिए इसने कितने दुख सहे और खुद को खाक़ में भी मिला दिया और एक तू है कि एक ऐसे भाई को कभी देखना तक पसंद नहीं किया जिसका कहीं कोई दोष ही नहीं था। जिसने तेरे साथ कभी बुरा ही नहीं किया। बल्कि हमेशा इज्ज़त और सम्मान के साथ तुझे दीदी कहते हुए थकता नहीं था। कसम से भाई, उस वक्त मुझे अपनी ग़लतियों का बड़ी शिद्दत से एहसास हुआ और मैने इस सबके बारे में अलग तरह से सोचना शुरू किया। मैने विधी से वादा किया कि उसके महबूब को उसके पास ज़रूर लाऊॅगी। उसके बाद मैने तेरे दोस्तों के बारे में पता किया तो मुझे तेरे गहरे दोस्त के रूप में पवन का पता चला। मैं पवन से मिली और उससे तेरे बारे में पूछा। मगर वो मुझे तेरे बारे में कुछ भी बताने को तैयार ही नहीं हो रहा था। उसे लगता था कि मैं तेरे बारे में इस लिए पूछ रही हूॅ ताकि तेरा पता करके मैं अपने डैड को बता दूॅ कि तू फला स्थान पर है। जब पवन मुझे कुछ भी बताने से इंकार कर दिया तो मैने उसे सारी बातें बताई और खुद उसे विधी के पास ले आई। ये साबित करने के लिए कि मैं जो कुछ भी उससे कह रही थी वो सब सच है और इसके पीछे मेरे अंदर कोई भी बुरी भावना नहीं है। विधी को देखने बाद ही पवन को एहसास हुआ कि मैं सच कह रही हूॅ और तभी उसने तुझसे बात की थी।"

दीदी की बातें सुन कर मैं फिर से पिछली यादों में खो गया था। तभी दीदी की आवाज़ फिर से मेरे कानों में पड़ी___"इस सबकी वजह से ही मुझे लगा कि तू और गौरी चाची इतने भी ग़लत या बुरे नहीं हैं जितना कि बचपन से माॅम डैड ने हम तीनो भाई बहनों को बताया था या सिखाया था। उसके बाद मैने अपने माॅम डैड और भाई पर नज़र रखना शुरू किया तो जल्द ही मुझे सच्चाई का पता चल गया कि वास्तव में बुरा कौन है। बस उसके बाद तो तेरी ये दीदी सिर्फ तेरी ही बहन बन कर रह गई मेरे भाई। मैने अपने माॅम डैड व भाई सबसे रिश्ता तोड़ दिया। ऐसे रिश्तों से नाता जोड़े रखने का मतलब भी क्या था जिन रिश्तों में वासना और हवस के सिवा कुछ था ही नहीं।"

मैने रितू दीदी को अपने सीने से लगा लिया। वो बुरी तरह भावनाओं और जज़्बातों में बहने लगी थी जिसकी वजह से उनकी ऑखों से ऑसू बहने लगे थे। एसी के उस डिब्बे के पास ही हम दोनो भाई बहन एक दूसरे से गले लगे हुए थे। आस पास से आते जाते लोग हमें अजीब भाव से देखने लगे थे। ये देख कर मैने दीदी को खुद से अलग अलग किया और उन्हें लेकर डिब्बे के अंदर आ गया।

रितू दीदी एक बार फिर सबसे मिली और फिर ट्रेन के चलते ही वो ट्रेन से उतरने के लिए बाहर की तरफ जाने लगीं। मैं भी उनके पीछे पीछे गेट तक आ गया। गेट के पास पहुॅच कर जब दीदी ट्रेन से उतरने लगी तो मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी कोई अनमोल चीज़ मुझसे छूटने वाली है। मैने हौले से दीदी को दीदी कह कर आवाज़ दी तो वो तुरंत मेरी तरफ पलटीं, जैसे उन्हें मेरे पुकारने का ही इन्तज़ार था। जब पलट कर उन्होंने मेरी तरफ देखा तो ये देख कर मेरा दिल बैठ गया कि उनका चेहरा ऑसुओं से तर था। मैने उन्हें खींच कर खुद से छुपका लिया, वो खुद भी मुझसे कस कर लिपट गई। लेकिन तुरंत ही वो मुझसे अलग भी हो गईं।

"अब तू जा राज।" फिर उन्होने खुद को सम्हालते हुए कहा___"सबका ख़याल रखना। मैं तेरे आने का इंतज़ार करूॅगी और हाॅ गुड़िया को मेरा प्यार देना।"
"आप भी अपना ख़याल रखियेगा।" मैने कहा___"और अब आप सीधा फार्महाउस जाएॅगी। दो दिन के लिए ड्यूटी से छुट्टी ले लीजिएगा। मैं जब आऊॅ तो आपको फार्महाउस पर ही हॅसते मुस्कुराते हुए पाऊॅ।"

"मेरी मुस्कुराहट तो तू ही है मेरे भाई।" रितू दीदी ने मेरे चेहरे को सहलाया___"जब तू आ जाएगा न तो मेरा ये चेहरा अपने आप ही खिल उठेगा।"

मैं उनकी इस बात पर हौले से मुस्कुराया और फिर झुक कर उनके माथे पर हल्के से चूम लिया। मेरी इस क्रिया से वो भी मुस्कुरा दी और फिर मेरे गाल पर हलके से चूम कर वो सावधानी से धीरे धीरे चल रही ट्रेन से उतर गईं। मैं गेट पर खड़ा उन्हें तब तक देखता रहा जब तक कि आगे मोड़ आ जाने की वजह से दीदी मेरी नज़रों से ओझल न हो गईं। उनके ओझल होते ही मैं दरवाजे से पीछे की तरफ हटकर वहीं पर ट्रेन के उस डिब्बे की पिछली पुश्त से टेक लगाये हुए ऑखें बंद कर खड़ा हो गया। कुछ देर यूॅ ही खड़े रहने के बाद मैंने एक गहरी साॅस ली और फिर मैं अंदर अपनी शीट की तरफ आ गया।
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विराज के ओझल होते ही रितू प्लेटफार्म से बाहर की तरफ तेज़ तेज़ क़दमों के साथ बढ़ती चली गई। दिलो दिमाग़ में ज़बरदस्त तूफान तारी हो गया था उसके। दिल में भड़कते हुए जज़्बात उसके काबू से बाहर होने लगे थे जिसकी वजह से उसकी रुलाई फूटने को आतुर थी। मगर बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्हाला हुआ था। स्टेशन से बाहर आते ही वो अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ गई। जिप्सी के पास ही एक और जीप थी जिसमें शंकर काका बैठे हुए थे। रितू ने शंकर काका को वापस लौटने का कह दिया। पुलिस के जो आदमी आगे पीछे आए थे उनमें से एक जीप वाले पुलिस वालों को रितू ने शंकर के साथ जाने का कह दिया जबकि दूसरे जीप वालों को अपने आस पास ही रहने को कहा।

शंकर काका के जाने के बाद रितू ने भी जिप्सी को आगे बढ़ा दिया। किन्तु उसकी जिप्सी का रुख हल्दीपुर की तरफ न होकर किसी और ही तरफ था। उसके पीछे कुछ ही फाॅसले पर एक अलग गाड़ी में दूसरे पुलिस वाले भी थे जो सादे कपड़ों में थे। लगभग दस मिनट बाद रितू ने जिस जगह पर जिप्सी को रोंका उसके पास ही एक "जिम" था।

जिम के बाहर कुछ ही दूरी के फाॅसले पर उसने अपनी जिप्सी को खड़ी कर वो नीचे उतरी और पास ही एक दुकान के पास जाकर उसने दुकान से मिनरल वाटर का एक बाटल खरीदा और वापस आकर जिप्सी में बैठ गई। अपनी बाईं कलाई पर बॅधी रिस्टवाच पर उसने एक नज़र डाली। शाम के पाॅच बज कर बीस मिनट हो रहे थे।

जिप्सी में बैठी रितू थोड़ी थोड़ी देर के अंतराल में बाटल से पानी पीती रही। उसकी नज़र जिम के मुख्य दरवाजे पर थी। मतलब साफ था कि वो किसी ऐसे ब्यक्ति का इन्तज़ार कर रही थी जो उस जिम से बाहर आने वाला था। कुछ देर और गुज़रने के बाद एक बार फिर से रितू ने अपनी कलाई पर बॅधी रिस्टवाॅच में नज़र डाली। पाॅच बज कर तीस मिनट हो चुके थे। उसके पीछे कुछ ही दूरी पर दूसरी गाड़ी में बैठे दूसरे पुलिस वाले रितू की तरफ ना समझने वाले भाव से देखे जा रहे थे।

उस वक्त रितू के होठों पर अजीब सी मुस्कान उभरी जिस वक्त जिम के मुख्य द्वार से कुछ लड़के और लड़कियाॅ बाहर निकले। रितू की नज़र एक ऐसी लड़की पर स्थिर हो गई जिसके खूबसूरत बदन पर इस वक्त जिम वाले कपड़े थे। एकदम चुस्त दुरुस्त। उसको देख कर ही लग रहा था कि इसकी ऊम्र अट्ठारह या बीस से ज्यादा नहीं होगी।

रितू ने देखा कि वो लड़की जिम से निकलने के बाद पार्किंग एरिया की तरफ बढ़ गई है। कुछ ही देर में वो लड़की एक नई नवेली स्कूटी में पार्किंग से बाहर आती हुई दिखी और फिर रितू की ऑखों के सामने से ही वो दाहिने तरफ के रास्ते की तरफ सरपट जाती हुई नज़र आई। उसके जाते ही रितू ने जिप्सी को स्टार्ट किया और उस लड़की के पीछे चल पड़ी। उसके पीछे दूसरी गाड़ी में बैठे बाॅकी के पुलिस वाले भी बढ़ चले।

मेन मार्केट से निकलने के बाद रितू ने देखा कि सामने जा रही वो लड़की एक मोड़ पर मुड़ गई है। रितू ने भी जिप्सी को उस मोड़ पर मोड़ दिया। रितू की नज़र बराबर उस लड़की पर थी। सामने एक अधेड़ सा आदमी इस तरफ अचानक ही आता दिखा। शायद किसी दुकान या किसी घर से निकला था वो। उसके दोनो हाॅथों में एक एक ब्लैक कलर की प्वालिथिन थी। वो अधेड़ आदमी अपनी साइड की तरफ आने के लिए पहले पीछे की तरफ देखा और फिर रोड क्राॅस करने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा वैसे ही वो उस लड़की की स्कूटी से टकरा गया।

रितू ने साफ तौर पर देखा था कि अधेड़ ब्यक्ति के पास पहुॅचते पहुॅचते उस लड़की ने स्कूटी की रफ्तार को काफी कम कर लिया था मगर कदाचित उसका ध्यान कहीं और था इस लिए हड़बड़ाहट में उसे समझ ही न आया कि वो अब क्या करे? जितना उससे हो सकता था उतना उसने किया था। किन्तु अब वो इसका क्या करती कि लाख कोशिशों के बाद भी उसकी स्कूटी उस अधेड़ ब्यक्ति के जिस्म से छू ही गई थी। जिसका परिणाम ये हुआ कि वो अधेड़ ब्यक्ति बीच सड़क पर भरभरा कर गिर गया था। उसके दोनो हाॅथों पर मौजूद प्वालीथिन छूट गई थी और पक्की सड़क पर गिरते ही प्वालीथिन के अंदर मौजूद सामान फूट गया था। प्वालीथिन में दवाई की बोतलें थी जो फूट गईं थी और अब सारी दवा सड़क पर फैलती जा रही थी।

अधेड़ के गिरते ही उस लड़की ने पहले स्कूटी को खड़ी किया उसके बाद वो एकदम से पैर पटकते हुए उस अधेड़ के सिर पर आ धमकी।

"देख कर नहीं चल सकते थे तुम?" फिर उसकी करकस आवाज़ वातावरण में गूॅजी___"अभी मर जाते तो क्या करते फिर? सड़क को क्या अपने बाप की जागीर समझ रखा है जो जहाॅ से चाहे चल सकते हो?"

लड़की अनाप शनाप बोलने में लगी ही थी कि आस पास से कई सारे लोग आकर वहाॅ पर इकट्ठा हो गए। सब एक दूसरे से पूछने लगे कि क्या हुआ??? सड़क पर गिरा हुआ वो अधेड़ आदमी किसी तरह उठा और कुछ ही दूरी पर अपनी दवाईयों का हाल देख कर उसके चेहरे पर बेहद पीड़ा के भाव उभर आए। उसने सिर उठा कर अपने चारों तरफ करुण भाव से देखा और फिर उसकी नज़र उस लड़की पर पड़ी जो उसके सिर पर आ धमकी थी।

"लगता है इस लड़की ने इस अधेड़ ब्यक्ति को अपनी स्कूटी से टक्कर मारी है।" आस पास खड़े लोगों के बीच से एक आदमी ने कहा___"देखो तो बेचारे की सारी दवाइयाॅ सड़क पर फूट कर फैल गई हैं।"

"आज कल तो सड़क पर चलना भी दूभर हो गया है भाई।" एक अन्य ब्यक्ति ने तंज कसा___"मोटर साइकिल और गाड़ी वाले आम आदमी को जब देखो तब टक्कर मार देते हैं और उल्टा उसी पर चढ़ दौड़ते हैं। देख रहे हो न इस लड़की को। इसने इस बेचारे बूढ़े आदमी को टक्कर मार दी और अब उल्टा इसे ही डाॅट रही है।"

"ऐ मिस्टर।" लड़की ये सुनते ही उस आदमी की तरफ पलटी___"इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं है समझे। ये बुड्ढा खुद ही मरने के लिए मेरी स्कूटी के सामने आया था। वो तो अच्छा हुआ कि मैने टाइम पर ब्रेक मार दिया वरना इसका तो यहीं पर राम नाम सत्य हो जाना था आज।"

"अरे देखो तो कैसे बात कर रही है ये लड़की?" एक अन्य ने कहा___"एक तो खुद ही टक्कर मारी इसने और ऊपर से इस बूढ़े आदमी का दोष लगा रही है ये।"
"बड़े बाप की लगती है भाई।" एक दूसरे ने कहा__"बड़े बाप की बेटी है तभी इतना तीखा बोलती है। तमीज़ नाम की तो कोई बात ही नहीं है इसमें।"

"हाऊ डेयर यू टाक टु मी लाइक दिस?" लड़की ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा___"तुम्हें पता है कि तुम किससे बात कर रहे हो? अगर जान जाओगे न तो यहीं पर खड़े खड़े पेशाब कर दोगे समझे। मैं इस शहर के मंत्री की बेटी हूॅ। इस शहर के मंत्री को तो तुम सब अच्छी तरह जानते ही होगे न?"

लड़की के इतना कहते ही आस पास खड़े लोगों को साॅप सा सूॅघ गया। पलक झपकते ही वो सब वहाॅ से इस तरह गायब हो गए जैसे गधे के सिर से सींग गायब हो जाते हैं। उन सबके जाते ही लड़की के होठों पर विजयी मुस्कान उभरी और फिर उसने हिकारत के से भाव से उस अधेड़ की तरफ देखा। सड़क पर बैठा वो अधेड़ अपनी उस दवा की तरफ देख रहा था जो सड़क पर फैल गई थी। उसकी तरफ देख कर लड़की ने "हुॅह" कहा और फिर पलट कर अपनी स्कूटी की तरफ आ गई। स्कूटी को स्टार्ट कर वो आगे बढ़ चली।

ये सब तमाशा देख रितू ने मोबाइल पर किसी से कुछ कहा और लड़की की तरफ तेज़ी से जिप्सी को दौड़ा दिया। उसके चेहरे पर बेहद गुस्से के भाव थे। सीघ्र ही उसकी जिप्सी उस लड़की की स्कूटी के पास आ गई और फिर रितू ने पीछे से टक्कर मार दी उसे। परिणामस्वरूप लड़की और उसकी स्कूटी उछलते हुए सड़क पर गिरे और कुछ दूर तक घिसटते हुए चले गए। फिज़ा में लड़की की चीख़ गूॅज गई थी। यहाॅ पर आस पास कोई दुकान या घर नहीं था। मार्केट एरिया पीछे ही था। हलाॅकि कुछ ही दूरी पर बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स दिख रही थी। ज़ाहिर था उन्हीं बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स में से किसी एक बिल्डिंग पर इस लड़की का अलीशान घर होगा।

रितू ने जिप्सी को आगे बढ़ा कर लड़की के पास रोंका और उतर कर लड़की के पास गई। लड़की सड़क के बाएॅ साइड उल्टी पड़ी दर्द से कराह रही थी। बड़ी मुश्किल से वो उठ कर बैठी और फिर अपने बदन पर लगी चोटों को देखने लगी।

"देख कर नहीं चल सकती थी क्या?" रितू ने उसी का वाक्य उसी के लहजे में दोहराया____"अभी मर जाती तो क्या करती तुम? सड़क को क्या अपने बाप की जागीर समझ रखा है जो जहाॅ से चाहे चल सकती हो?"

रितू की बात सुनकर उस लड़की ने दर्द से कराहते हुए रितू की तरफ देखा और फिर एकाएक ही उसके चेहरे पर गुस्सा उतर आया। इस हालत में भी वो सड़क पर से किसी स्प्रिंग लगे खिलौने की तरह उछल कर खड़ी हो गई और फिर बिना कुछ बोले ही घूम कर एक फ्लाइंग किक का वार रितू पर कर दिया। मगर उसका ये वार उसे खुद ही भारी पड़ गया। क्योंकि जैसे ही उसने फ्लाइंग किक चलाई वैसे ही झुक कर रितू ने उसकी उस टाॅग पर अपनी टाॅग चला दी थी जो नीचे सड़क पर जमी थी। नतीजा ये हुआ कि जमीन से लड़की का पैर हटते ही उस लड़की का बैलेंस बिगड़ा और वो गुड़ीमुड़ी होकर सड़क पर औंधे मुह गिरी। उसके मुख से दर्द में डूबी चीख़ निकल गई।

"तेरे जैसी दो कौड़ी की फाइटर लड़कियाॅ मेरे पास ट्यूशन लेने आती हैं मूर्ख लड़की।" रितू ने उसके सिर के बाल अपनी मुट्ठियों में कस कर ऊपर उठाते हुए कहा___"तेरे अंदर अपने हरामी बाप का गंदा खून भरा है न। चल तुझे भी वहीं ले चलती हूॅ जहाॅ तेरा वो हरामी भाई और उसके हरामी दोस्त हैं।"

"मुझे छोंड़ दो वरना इसका अंजाम बहुत बुरा होगा तुम्हारे लिए।" लड़की ने छटपटाते हुए कहा___"तुम्हें पता नहीं है कि तुमने किसकी बेटी पर हाॅथ उठाने की ज़ुर्रत की है?"
"यही, बस यही अकड़ तो निकालनी है तेरी और तेरे बाप की भी।" रितू ने घुटने का वार ज़ोर से लड़की के पेट पर किया तो हिचक कर रह गई वो, जबकि रितू ने उसके बालों को और ज़ोर से खींचते हुए कहा___"बहुत जल्द तुम सबकी ऐसी हालत होने वाली है जिसकी तुम लोगों ने कभी कल्पना भी न की होगी।"

"बहुत पछताओगी तुम?" लड़की ने चीखते हुए कहा___"मेरा बाप तुम्हारा वो हाल करेगा कि तुम अपना चेहरा दुनियाॅ को दिखाने के काबिल नहीं रहोगी।"
"ये तो वक्त ही बताएगा मेरी जान।" रितू ने लड़की की कनपटी के एक खास हिस्से पर अचानक ही कराट मारी थी, जिसका नतीजा ये हुआ कि लड़की बेहोश होती चली गई। जबकि रितू ने कहा___"कि मुह दिखाने के काबिल कौन नहीं रहता।"

रितू ने लड़की के बेहोश जिस्म को उठा कर अपनी जिप्सी में डाला और पिछली शीट के नीचे से एक ब्लैक कलर की बड़ी सी प्लास्टिक की पन्नी निकाल कर उसके ऊपर ऐसे तरीके से डाल दिया कि कोई ये न सोच सके कि उसके नीचे कोई इंसानी जिस्म भी हो सकता है। ये सब करने के बाद रितू पलटी और आस पास का बारीकी से मुआयना किया तो कुछ ही दूरी पर उसे लड़की का मोबाइल पड़ा दिखा। सड़क पर गिरने से मोबाइल की स्क्रीन चटक गई थी। रितू ने किनारे साइड की एक बटन को दबाया तो तुरंत ही स्क्रीन फ्लैश कर उठी। इसका मतलब वो चालू हालत में था अभी। ये देख कर रितू ने मोबाईल का कवर निकाल कर मोबाइल के ढक्कन को खोला और बैटरी निकाल ली। उसके बाद सारी चीज़ें पाॅकेट में डालने के बाद उसने अपने दूसरे पाॅकेट से अपना आई फोन निकाला। उसे याद आया कि उसने आई फोन फार्महाउस पर ही स्विच ऑफ कर दिया था। ये ध्यान आते ही उसके होठों पर एक जानदार मुस्कान उभरी। उसने अपने आईफोन को वापस पाॅकेट में रखा और आकर जिप्सी में बैठ गई। जिप्सी को स्टार्ट कर उसने यूटर्न लिया और वापस चल दी।

मार्केट के पास आते ही उसे दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले दिखे। उनमें से एक पुलिस वाले ने रितू को बताया कि उसने उस अधेड़ आदमी को दूसरी दवाइयाॅ खरीद कर दे दी हैं। उसकी बात सुन कर रितू आगे बढ़ गई। उसके पीछे दूसरे पुलिस वाले भी अपनी गाड़ी में चल पड़े। उनकी नज़र रितू की जिप्सी पर थोड़ा सा फैली हुई उस ब्लैक कलर की प्लास्टिक की पन्नी पर पड़ी जिसके नीचे रितू ने उस लड़की को छुपा दिया था। किन्तु उन लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान न दिया। उनको अपने आला अफसर का आदेश था कि इंस्पेक्टर रितू के आस पास ही रहना है और उसकी किसी भी गतिविधी पर कोई सवाल जवाब नहीं करना है।

रितू की जिप्सी ऑधी तूफान बनी हल्दीपुर की तरफ बढ़ी चली जा रही थी। उसके पीछे ही दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले भी थे। रितू को अंदेशा था कि हल्दीपुर के पास वाले रास्तों पर कहीं उसका बाप या उसके आदमी मिल न जाएॅ मगर हल्दीपुर के उस पुल तक तो कोई नहीं मिला था। पुल से दाहिने साइड जिप्सी को मोड़ कर रितू फार्महाउस की तरफ बढ़ चली। कुछ दूरी पर आकर रितू ने जिप्सी को रोंक दिया। कुछ ही पलों में उसके पीछे वाली गाड़ी भी उसके पास आकर रुक गई।

"अब आप सब यहाॅ से वापस लौट जाइये।" रितू ने एक पुलिस वाले की तरफ देख कर कहा___"आज का काम इतना ही था। अगर ज़रूरत पड़ी तो वायरलेस या फोन द्वारा सूचित कर दिया जाएगा।"
"ओके मैडम।" एक पुलिस वाले ने कहा___"जैसा आप कहें। जय हिन्द।"

उन सबने रितू को सैल्यूट किया और फिर अपनी गाड़ी को वापस मोड़ कर वहाॅ से चले गए। उनके जाते ही रितू ने भी अपनी जिप्सी को फार्महाउस की तरफ बढ़ा दिया। आने वाला समय अपनी आस्तीन में क्या छुपा कर लाने वाला था ये किसी को पता न था।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:53 PM

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