non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:53 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
ये सब कहने के बाद रितू दीदी एकदम से चुप हो गईं। जिप्सी पुल के पास पहुॅच चुकी थी। इस लिए जिप्सी रोंक कर रितू दीदी मेरी तरफ अजीब भाव से देखने लगी थीं। जैसे मेरे चेहरे से ही समझ जाना चाहती हों कि सच्चाई क्या है।

"मेरा ही तो इन सभी घटनाओं में ताल्लुक था दीदी।" मैने गहरी साॅस लेते हुए जैसे उनके ऊपर बम फोड़ा__"हाॅ दीदी। आपने जिन घटनाओं का ज़िक्र किया उन सबका कर्ता धर्ता मैं ही तो था। वो विदेशी डीलर भी मैं ही था जिसने बड़े पापा से वो डील की और फिर बिना कुछ बताए गायब हो गया था। उसके बाद उनकी फैक्ट्री में आग भी मैने ही लगाई थी। कहने का मतलब ये कि बड़े पापा के साथ जो कुछ भी अभी तक बुरा हुआ है उसका जिम्मेदार सिर्फ मैं ही रहा हूॅ और आगे भी जो कुछ उनके साथ बुरा होगा उसका भी जिम्मेदार मैं ही होऊॅगा।"

"क्याऽऽऽ????" रितू दीदी मेरी बात सुन कर बुरी तरह उछल पड़ी थीं, बोली___"नहीं नहीं मैं नहीं मान सकती राज। भला तू ये सब कैसे कर सकता था? तू तो यहाॅ था ही नहीं।"

"आपके मानने या न मानने से सच्चाई बदल नहीं जाएगी दीदी।" मैने कहा___"और हाॅ, आपको तो अभी ये भी नहीं पता कि फैक्ट्री के तहखाने में कुछ था भी या नहीं?"
"क्या मतलब??" रितू दीदी की ऑखें फैली___"फैक्ट्री के तहखाने में भला क्या था जिसकी बात कर रहा है तू?"

"आपको क्या लगता है दीदी?" मैने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"आपके डैड इतने कम कमीने इंसान हैं? अरे नहीं दीदी, वो तो ऊॅचे दर्ज़े के पापी हैं। कपड़ा मील का ब्यापार व फैक्ट्री तो महज दिखावा मात्र थी जबकि उनका असल कारोबार तो ड्रग्स अफीम चरस आदि का था। किन्तु ये कारोबार चूॅकि कानून की नज़र में ग़ैर कानूनी होता है इस लिए बड़े पापा इस कारोबार को सबकी नज़रों से छुपा कर करते थे। फैक्ट्री के अंदर मौजूद उस तहखाने में उनकी वही काली दुनियाॅ का काला चिट्ठा मौजूद था जिसे मैने फैक्ट्री में टाइम बम लगाने से पहले ही गायब कर दिया था। मैं नहीं चाहता था कि उनका ये कारनामा कानून की नज़र में आए। मैं तो अपने हाॅथों से उन्हें हर सज़ा देना चाहता हूॅ। कानून की चपेट में आने से भला मैं कैसे उन्हें अपने तरीके से सज़ा दे सकता था? इस लिए मैने तहखाने से उनका वो सारा ज़खीरा गायब कर दिया जो ग़ैर कानूनी था।"

मेरी ये बातें सुन कर रितू दीदी की ऑखें हैरत से फटी की फटी रह गई थी। उनके चेहरे पर हैरत और अविश्वास का सागर मानो हिलोरें ले रहा था।

"क्या सच में इस सबमें तेरा ही हाॅथ था राज?" रितू दीदी ने अविश्वास भरे लहजे से कहा___"मगर ये सब कैसे मुमकिन हो सकता है मेरे भाई? ये सब कैसे कर लिया तूने? बंद फैक्ट्री के अंदर और वो भी तहखाने के अंदर पहुॅचना इतनी आसान बात तो न थी। उस सूरत में तो बिलकुल भी नहीं जबकि तू कभी फैक्ट्री गया ही नही था। फिर कैसे ये सब कर लिया तूने?"

"मन में सच्ची लगन हो तो सब कुछ मुमकिन हो जाता है दीदी।" मैने कहा___"ऊपर वाला भी फिर आपके लिए राहें आसान कर देता है। ये तो मुझे पता ही था कि बड़े पापा की शहर में कहीं पर कपड़ा मील की फैक्ट्री है। पर चूॅकि मैं कभी फैक्ट्री गया नहीं था इस लिए मैने फैक्ट्री के संबंध में जानकारी हाॅसिल करने के लिए अपने दोस्त पवन को लगाया। उसने मुझे फैक्ट्री के संबंध में सारी बातें बताई। उसके बाद मैने प्लान बनाया और इस प्लान में गुड़िया(निधी) ने भी मेरा साथ देने के लिए ज़बरदस्ती मेरी वाइफ का रोल किया। उसके बाद मुझे पवन ने बताया कि बड़े पापा का एक बिजनेस पार्टनर है जिसका नाम अरविंद सक्सेना है, इतना ही नहीं इन दोनो पार्टनर्स के बीच बहुत ही गहरे संबंध हैं। पवन ने जब गहरे संबंधों की बात की तो मैं समझ न पाया था कि ये कैसे संबंधों की बात कर रहा है। मेरे पूछने पर उसने बताया कि बड़े पापा और सक्सेना आपस में एक दूसरे की बीवियों के साथ सब कुछ कर लेते हैं। ये बात जान कर मेरे पैरों तले से ज़मीन निकल गई। मैने सोचा कि बड़े पापा भला ऐसा कैसे कर सकते हैं?? मगर मैं जानता था कि ऐसे ब्यक्ति से भला अच्छे कर्म की उम्मीद कैसे की जा सकती है? ख़ैर, पवन से अरविंद सक्सेना के बारे में सुनकर मैने पवन से कहा कि सक्सेना के खिलाफ़ कोई ऐसा सबूत हाॅसिल करे जिसके आधार पर वो कुछ भी करने को तैयार हो जाए। मेरे कहने पर पवन ने वैसा ही किया और फिर एक दिन पवन ने मुझे बताया कि उसने सक्सेना के घर से कुछ फोटोग्राफ्स और वीडियोज़ हाॅसिल किये हैं। जिनमें सक्सेना बेहद आपत्तिजनक स्थित में है। मैने पवन से उन फोटुओं को कुरियर द्वारा मॅगवा लिया। इसके बाद मैने सक्सेना को तेल की धार पर लेने में ज़रा भी देरी न की। कहने का मतलब ये कि मैने उन फोटोग्राफ्स के आधार पर सक्सेना को इतना मजबूर कर दिया कि वो कुछ भी कर सकता था। सबसे पहले मैने उससे बड़े पापा के कारोबार की सारी जानकारी ली उसके बाद मैने उससे बड़े पापा की और भी बहुत सारी जानकारी हाॅसिल की। सक्सेना दरअसल थोड़ा फट्टू किस्म का आदमी था। उसे इस बात का पता चल गया था कि उसका पार्टनर उसकी ग़ैर जानकारी में ग़ैर कानूनी धंधा भी करता है और उसके कई ऐसे खतरनाॅक लोगों से भी संबंध हैं जिनका रिकार्ड कानून की फाइलों में वर्षों से दबा पड़ा है।"

मैं इतना कुछ कहने के बाद कुछ पल के लिए रुका और फिर कहना शुरू किया___"सक्सेना को डर था कि कहीं वो किसी दिन कानून की चपेट में न आ जाए। इस लिए वो बड़े पापा से पार्टनरशिप तोड़ना चाहता था मगर वो ऐसा कर नहीं पा रहा था। उसे ये भी डर था कि कहीं उसके पार्टनर को उस पर शक न हो जाए और उसे भी इस धंधे में न लपेट लें। ये बात मुझे तब पता चली थी जब मैं खुद सक्सेना से मिला था। सक्सेना से मैने एक सौदा किया। वो सौदा यही था कि मैं उसे और उसकी फैमिली को सुरक्षित विदेश भेजने का बंदोबस्त कर दूॅगा, इसके बदले उसे वो करना पड़ेगा जो मैं कहूॅगा। मैने उसे अपना सारा प्लान समझाया। सारी बात सुन कर पहले तो वो मेरी बात मानने से इंकार करने लगा। उसे डर था कि कहीं इस सबमें उसकी जान पर न बन आए। पर मैने उसे अच्छी तरह समझाया और उसे इसके लिए राज़ी किया।"

"इसका मतलब फैक्ट्री में लगी आग तूने सक्सेना के द्वारा लगवाई थी?" सहसा रितू दीदी मेरी बात के बीच में ही बोल पड़ी___"मगर जैसा कि तूने बताया कि तहखाने में डैड का ग़ैर कानूनी ज़खीरा मौजूद था तो उसे कैसे गायब करवाया तूने? क्या उसे भी सक्सेना के द्वारा ही गायब किया?"

"सक्सेना के साथ पवन था।" मैने बताया___"सक्सेना को तहखाने के लाॅक का पासवर्ड पता था। उसका काम था तहखाने का लाॅक खोल कर तहखाने में टाइम बम लगाना। पवन का काम सिर्फ यही था कि तहखाने में मौजूद उस ग़ैर कानूनी ज़खीरे को तहखाने से निकाल कर अपने कब्जे में ले ले। प्लान के अनुसार पवन उस सारे सामान को पुलिस हेडक्वार्टर में कमिश्नर के हवाले कर देगा। पुलिस कमिश्नर को ऊपर से आदेश था कि उस सामान को ब्यक्तिगत तौर पर रखे और जब उस सामान की ज़रूरत पड़े तो उसे उसी तरह मेरे हवाले कर दें जैसे वो सामान पवन के द्वारा उन्हें सौंपा गया था।"

"ये तू क्या कह रहा है राज?" रितू ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___"भला पुलिस का कमिश्नर ऐसा कैसे कर सकता है? दूसरी बात ऊपर से उसे ऐसा करने का आदेश कैसे मिल सकता है? ये तो बड़ी ही अविश्वसनीय बात है?"

"यही तो मज़ेदार बात है दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"जिस शख्स ने मुझे अपना बेटा मान कर अपनी अरबों की संपत्ति मेरे नाम की उसका नाम जगदीश ओबराय है। जगदीश ओबराय एक बहुत बड़ा बिजनेस टाइकून है और उसका संबंध ऐसे ऐसे लोगों से है जिसके बारे में आदमी सोच भी नहीं सकता। उसी के कहने पर ऊपर से यहाॅ कमिश्नर के पास वो आदेश आया था और इसके पहले भी सारा पुलिस महकमा भी बदला गया था। सारा पुलिस महकमा बदलने का सिर्फ यही मकसद था कि बड़े पापा इतनी आसानी से पुलिस महकमें में कोई सेंध न लगा सकें। पहले वाले उनके सारे पुलिस के कनेक्शन खत्म करना भी ज़रूरी था। इसी लिए ऐसा किया गया था। ये अलग बात है कि आज भी बड़े पापा और आपके लिए ये सारी बातें रहस्य बनी हुई थी।"

"ओह माई गाड।" रितू दीदी की ऑखें आश्चर्य से फटी पड़ी थी, बोली___"कोई सोच भी नहीं सकता कि तूने इतना बड़ा कारनामा अंजाम दिया होगा। मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि ये सब तूने किया है। ख़ैर, जैसा कि तूने बताया कि डैड का सारा ग़ैर कानूनी सामान आज भी पुलिस कमिश्नर के पास सुरक्षित मौजूद है, और वो उस सामान को तेरे हवाले तभी करेंगे जब तुझे उस सामान की ज़रूरत होगी। मेरा सवाल ये है कि उस सामान के द्वारा आने वाले समय में क्या करने वाला है तू?"

"आपके इस सवाल का जवाब बहुत ही सीधा और साफ है दीदी।" मैने सपाट भाव से कहा___"मैं चाहूॅ तो आज यहीं पर खड़े खड़े बड़े पापा को कानून की ऐसी चपेट में ला सकता हूॅ जहाॅ से वो सात जन्मों में भी उबर नहीं पाएॅगे। मगर मैं ये काम इतना जल्दी करूॅगा नहीं। क्योंकि एक ही बार में मैं उन्हें ऐसा झटका नहीं देना चाहता कि वो उस झटके से एक ही बार में खाक़ में मिल जाएॅ। बल्कि मैं तो उन्हें थोड़ा थोड़ा करके झटका देना चाहता हूॅ और उन्हें ये मौका भी देना चाहता हूॅ कि वो अपनी तरफ से जितनी भी कोशिश करनी हो कर लें अपने बचाव के लिए।"

"ओह तो ये बात है।" रितू दीदी को जैसे सब कुछ समझ आ गया था, बोली___"डैड का वो सारा ग़ैर कानूनी सामान तेरे लिए किसी तुरुप के इक्के से कम नहीं है। ख़ैर, तो अब आगे का क्या प्लान है तेरा?"
"अभी का तो यही प्लान है दीदी कि पहले इन सब लोगों को मुम्बई पहुॅचा कर इन सबको सुरक्षित कर दूॅ।" मैने गहरी साॅस ली___"उसके बाद मैं यहाॅ वापस आऊॅगा और आपके साथ मिल कर कुछ अलग और अनोखा करने की कोशिश करूॅगा।"

अभी हम बात ही कर रहे थे कि तभी वहाॅ पर एक टैक्सी आकर रुकी। हम दोनो का ध्यान उस तरफ गया। कुछ ही पलों में टैक्सी से करुणा चाची, दिव्या, शगुन और हेमराज मामा उतरे। मैं और दीदी भी जिप्सी से उतर कर उनके पास गए। टैक्सी वाले को उसका पैसा देने के बाद वो सब हमारी तरफ मुड़े। करुणा चाची की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी तो उनकी ऑखों में ऑसू तैरते दिखाई देने लगे। वो तेज़ी से मेरी तरफ बढ़ीं और फिर मुझे अपने सीने से लगा लिया। मैं भी अपनी चाची से मिल कर थोड़ा भावुक सा हो गया किन्तु फिर मैने अपने जज़्बातों को काबू किया और फिर उनसे अलग हो गया। मेरी नज़र दिव्या पर पड़ी तो वो मुझे ही देख रही थी। मैने अपनी बाहें फैला दी तो वो एकदम से मेरी तरफ दौड़ पड़ी और मुझसे लिपट गई। उससे मिलने के बाद मैने शगुन को प्यार दिया।

थोड़ी देर सबसे मिलने के बाद मैने उन्हें जिप्सी में बैठने को कहा तो वो सब जिप्सी में बैठ गए। सबके बैठते ही दीदी ने जिप्सी को वापस मोड़ कर आगे बढ़ा दिया। मैं दीदी के साथ आगे ही बैठा था बाॅकी सब पिछली शीट्स पर बैठे थे। कुछ ही समय में हम सब फार्महाउस पहुॅच गए। फार्महाउस के अंदर जाकर करुणा चाची नैना बुआ से मिली और पवन की माॅ बहन आदि से। उसके बाद नैना बुआ ने चाची और मामा जी से खाने का पूॅछा तो वो बोलीं कि वो घर से खा पी कर ही चले थे। ख़ैर, लेडीज पार्टी एक जगह बैठ कर बातों में लग गईं जबकि मैं अपने दोस्त पवन और आदित्य के पास आ गया। शाम को हमे मुम्बई के लिए निकलना भी था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

प्रतिमा अपने कमरे के अटैच बाथरूम से बाहर निकली। सामने बेड पर पूरी तरह से निर्वस्त्र पड़े शिवा की नज़र जैसे ही अपनी माॅ पर पड़ी तो उसके मुझ से आह निकल गई। प्रतिमा के गोरे सफ्फाक बदन पर इस वक्त मात्र एक पिंक कलर का टावेल था। जिसे वह अपनी भारी भरकम छातियों को आधे से ढॅके थी तथा नीचे उसकी मोटी चिकनी और गोरी जाघों तक को ढॅका हुआ था। जब से रितू हवेली से गई थी तब से दोनो माॅ बेटा कमरे में वासना और हवस के खेल में डूबे हुए थे। प्रतिमा खुश थी कि उसे बेटे के रूप में एक जवान मर्द मिल गया था जो उसके जिस्म की गर्मी को शान्त करने में कोई कसर नहीं छोंड़ेगा। अजय सिंह अब जवानी के दौर से बाहर निकल चुका था। उसके साथ सेक्स करने में प्रतिमा को मज़ा तो आता था किन्तु पूर्ण संतुष्टि नहीं मिलती थी।

शिवा, जो कि अजय सिंह की ही कार्बन काॅपी था। गुण और शक्ल से वो अपने बाप पर ही गया था। जब से उसने जवानी की देहलीज़ पर क़दम रखा था तब से उसकी नज़रें घर की लड़कियों और औरतों पर ही जमी रहती थी। वो उन सभी के जिस्मों को भोगने की लालसा में रात दिन लगा रहता था। मगर डर व भय की वजह से वो कभी ज्यादा आगे बढ़ नहीं पाया था। अपनी माॅ पर उसका सबसे ज्यादा क्रश था। अक्सर वो अपने बाप को प्रतिमा को पेलते हुए देखा करता था। प्रतिमा के भारी भरकम बूब्स और गदराया हुआ जिस्म उसके अंदर बुरी तरह वासना की आग भड़का देता था।

किन्तु उसकी चाहत आज वर्षों बाद पूरी हो चुकी थी। जिस औरत पर उसका सबसे ज्यादा क्रश था उस औरत के जिस्म को वह भोग रहा था। वो अपने बाप का शुक्र गुज़ार था कि उसने उसे ये अनमोल तोहफा दिया था। रितू जैसे ही हवेली से निकली थी वैसे ही शिवा और प्रतिमा एक दूसरे की बाहों में समा गए थे। हवेली में उन दोनो के अलावा दूसरा कोई न था। नौकर चाकर दोपहर में अपने अपने कमरों में चले जाते थे। इस लिए इस तन्हाई का भरपूर फायदा उठाया था इन दोनो ने।

शिवा को याद नहीं कि पहले दिन से अब तक वो कितनी बार अपनी माॅ को भोग चुका था। उसे तो बस इतना समझ आ रहा था कि उसका अभी दिल नहीं भरा है। ये सोच कर वो फिर से अपनी माॅ पर चढ़ जाता और अलग अलग पोजीशन में अपनी माॅ को रौंदता रहता। प्रतिमा को भी जवान मर्द का ये जोश बहुत मज़ा दे रहा था। इस लिए वो खुद भी उसी जोश से अपने बेटे का पूरी तरह से साथ देती थी।

"ऐसे क्या देख रहे हो शिव?" अपने सामने प्रतिमा अपने बेटे को ऐसे ही संबोधित करने लगी थी, बोली___"क्या दिल नहीं भरा अभी?"
"हाॅ मेरी रंडी माॅ।" शिवा ने अपने लंड को ज़ोर से मसलते हुए कहा___"तुमको जितना भी पेलूॅ उतना ही लगता है कि अभी और पेलूॅ। कसम से आज तक जितनी लड़कियों को अपने नीचे सुलाया है उन सभी में से तुम सबसे ऊपर हो। तुम्हारे जैसा जिस्म और तुम्हारे जैसी अदा किसी और में नहीं देखी मैने।"

"कैसे देखते मेरे शिव।" प्रतिमा ने बड़ी अदा से शिवा के पास आते हुए कहा___"वो सब लड़कियाॅ तुम्हारी माॅ तो नहीं थी न? वो सब तुम्हें एक माॅ जितना प्यार और समर्पण भाव कैसे कर सकती थीं?"
"हाॅ ये बात तो सच कही तुमने।" शिवा ने प्रतिमा के टावेल के छोर को पकड़ कर अपनी तरफ ज़ोर से खींचा तो टावेल प्रतिमा के बदन से अलग होता चला गया और प्रतिमा भी उसी झोंक में शिवा के ऊपर आ गई। जबकि अपने ऊपर प्रतिमा के आते ही शिवा ने कहा___"तुम एक औरत के साथ साथ मेरी माॅ भी तो हो। इसी लिए इतना प्यार और समर्पण है तुममें। तभी तो मेरा दिल बार बार यही कहता है कि एक बार और हो जाए।"

"तो करो न शिव।" प्रतिमा ने कहने के साथ ही झुक कर शिवा के होठों को चूम लिया___"रोंका किसने है तुम्हें? मैं तो खुद भी यही चाहती हूॅ कि तुम मुझे इस हवेली के हर ज़र्रे पर ले जाकर बुरी तरह से प्यार करो। मुझे ऐसे ऐसे तरीके से पेलो कि पूरी हवेली में मेरी चीखें गूॅजने लगें।"

"उफ्फ कितना विल्ड पसंद है तुम्हें?" शिवा ने प्रतिमा की एक छाती को बुरी तरह मसल दिया, बोला___"तुम तो वो चीज़ हो डियर मदर कि तुम्हें एक अकेला मर्द संतुष्ट नहीं कर सकता। तभी तो डैड तुम्हारे लिए अपने साथ साथ एक और मर्द को लेकर आते थे। क्या नाम था उसका? अरे हाॅ सक्सेना.... हाय रे वो साला कैसे कैसे मेरी इस राॅड माॅम को पेलता रहा होगा।"

"क्यों जलन हो रही है तुम्हें??" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुरा कर पूछा।
"जलन किस बात की डियर मदर?" शिवा ने कहा__"ये तो तुम्हारी ख्वाहिशों की बात है। सबको अपनी ख्वाहिशें पूरा करना चाहिए। तुमने भी वही किया, सो मुझे इसमें जलने की क्या ज़रूरत है?"

"मतलब मुझे अगर बाहर का कोई भी आदमी पेले तो तुम्हें कोई परेशानी नहीं है??" प्रतिमा ने कहा।
"जब डैड को ही कोई परेशानी नहीं हुई तो मुझे क्यों होगी भला?" शिवा ने कहा___"ख़ैर छोंड़ो इन बातों को और आओ एक बार और घमासान पेलाई हो जाए।"
"क्यों नहीं शिव।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा__"मुझे भी एक बार और करने की इच्छा है।"

कहने के साथ ही प्रतिमा ने अपने एक हाॅथ को सरका कर नीचे शिवा के मुरझाए हुए लंड को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी। इधर शिवा ने भी प्रतिमा की छातियों को हाथों से पकड़ कर मसलने लगा। अभी ये सब ये दोनो कर ही रहे थे कि बगल से एक स्टूल पर रखे फोन की घंटी बज उठी। फोन के बज उठने से दोनो के ही चेहरे पर अप्रिय भाव उभरे।

"हैलो।" फोन उठाते ही शिवा ने कहा।
".........।" उधर से कुछ कहा गया।
"क्याऽऽऽ???" शिवा अपने डैड की बात सुन कर बुरी तरह चौंका था।
".........।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"ऐसा कैसे हो सकता है डैड?" शिवा के चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आए, बोला___"कहीं ऐसा तो नहीं कि दीदी को उसका पता चल गया हो और फिर उन्होंने उसे अपने रास्ते से हटा दिया हो? अगर ऐसा कर भी दिया होगा तो हम उन पर शक तो कर सकते हैं मगर उनके सामने उन पर इस बात का इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।"

"..........।" उधर से कुछ देर तक कहा गया।
"ऐसा कब तक चलेगा डैड?" शिवा के चेहरे पर सहसा गुस्से के भाव आए___"हर बार हमारे हाथ नाकामी ही लगती है। हमें अब खुद मैदान में उतरना पड़ेगा। इस तरह तो हमारा एक एक आदमी लापता होता रहेगा और हम कुछ कर ही नहीं पाएॅगे। इस लिए हमें सीरियसली ये सब खुद ही करना पड़ेगा। रितू दीदी की गतिविधियाॅ स्पष्ट समझ में आ रही हैं कि वो हमारे खिलाफ़ हैं। अगर विराज से वो मिल चुकी हैं तो साफ है कि उन्हें हमारे बारे में सब कुछ पता चल गया होगा और अब वो उस कमीने विराज का साथ दे रही हैं। हाॅ डैड, दीदी भले ही आपकी बेटी हैं मगर बात जब अन्याय और जुर्म की आएगी तो वो हमारा साथ नहीं देंगी। ये उनके कैरेक्टर से साफ पता चलता है।"

"......।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"यस डैड।" शिवा कह उठा___"अब तो साफ साफ और खुल कर खेल होना चाहिए।"
".........।" उधर से अजय सिंह ने कुछ कहा।
"ओके डैड।" शिवा ने कहा___"आप आ जाइये। मैं और माॅम हवेली में ही हैं।"

इसके साथ ही संबंध विच्छेद हो गया। शिवा ने रिसीवर को केड्रिल पर रखा और धम्म से बेड पर चित्त लेट गया। प्रतिमा उसी को एकटक देखे जा रही थी।

"क्या बात हुई डैड से?" प्रतिमा ने पूछा।
"डैड बता रहे थे कि उन्होंने जिस आदमी को दीदी के पीछे लगाया था।" शिवा ने कहा___"उस आदमी का फोन काफी देर से बंद बता रहा है।"
"क्याऽऽ???" प्रतिमा हैरान____"इसका मतलब हमारा ये आदमी भी बली का बकरा साबित हो गया।"

"ये सब आपकी बेटी की वजह से हो रहा है माॅम।" शिवा ने कठोर भाव से कहा___"उसी ने हमारे उस आदमी का गेम बजाया होगा। उसे पता है कि अगर वो ऐसा करेगी तो हम उस पर बेवजह और बिना सबूत के कोई इल्ज़ाम नहीं लगा सकेंगे। मगर अब हम भी बताएॅगे उसे कि हमसे गद्दारी करने का क्या अंजाम होता है? डैड ने भी यही कहा है कि ये काम रितू दीदी का ही है और अब डैड ने भी फैंसला कर लिया है कि वो खुद इस सब का पता करेंगे और दीदी को उनके किये की सज़ा देंगे।"

"उफ्फ क्या करूॅ इस लड़की का?" प्रतिमा ने कसमसाते हुए अपने माॅथे पर हथेली मारी___"अपने ही माॅ बाप को गर्त में डुबाने पर तुली हुई है ये।"
"अब आपकी उस बेटी के साथ कोई रियायत नहीं होगी माॅम।" शिवा ने गुस्से से कहा___"अभी तक यही सोच कर हमने उस पर कोई कठोर क़दम नहीं उठाया था कि चलो कोई बात नहीं हमारी अपनी है वो, मगर अब नहीं। उसने हमसे बगावत की है माॅम। अपने ही माॅ बाप का सर्वनाश करने पर तुली हुई है वो। इस लिए अब उसे उसके इस जघन्य अपराध की शख्त सज़ा मिलेगी।"

प्रतिमा कुछ कह न सकी। अंदर ही अंदर काॅप कर रह गई वो। उसे अपनी बेटी के लिए दुख तो हुआ था किन्तु उसे भी इस बात का एहसास था कि उसकी बेटी ने अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ जा कर ग़लत किया है। वो अपने पति और बेटे को अच्छी तरह जानती थी। वो अब किसी भी सूरत में रितू को मुआफ़ करने वाले नहीं थे। उसे खुद भी रितू के इस कृत्य पर गुस्सा आया हुआ था। मगर वो कर भी क्या सकती थी? अब तो बस वो मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर सकती थी कि सब कुछ ठीक हो जाए।
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