non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:52 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
विराज के कमरे से जाते ही रितू ने अपने जिस्म से पुलिस की वर्दी निकाली और एक टाॅवेल लेकर बाॅथरूम में घुस गई। उसके सिर पर जो चोंट लगी थी वो बहुत ज्यादा दर्द कर रही थी। किन्तु उसने अपने उस दर्द को बड़ी मुश्किल से जज़्ब किया हुआ था। खून तो रिसा था किन्तु उसने पाॅकेट से रुमाल निकाल कर उसे पहले ही साफ कर लिया था। चोंट इतनी भी गहरी नहीं थी जिससे बात गंभीर होती। जीप के किनारे पर लगा लोहे का पाइप उसके सिर के किनारे वाले भाग के थोड़ा सा ऊपर लगा था। उस आदमी को जीप में डालने के बाद ही उसने सिर से रिस रहे खून को रुमाल से साफ किया था। उसके बाद उसने सिर पर वापस पीकैप पहन ली थी जिससे चोंट से रिसा हुआ खून और चोंट दिखनी बंद हो गई थी। वो नहीं चाहती थी कि उसको लगी किसी भी प्रकार की चोंट फार्महाउस में किसी को भी नज़र आए या पता चले।

बाथरूम में रितू ने खुद को फ्रेश किया और फिर बाहर आ गई। कमरे में उसने एक नई वर्दी पहनी और फिर पीकैप लगा कर खुद को पूरी तरह तैयार किया। आलमारी से उसने एक दर्द की टैबलेट ली और वहीं एक साइड रखे पानी के बाटल से उसने उस टैबलेट को खाया। उसके बाद वो कमरे से बाहर आ गई।

नीचे डायनिंग हाल में इस वक्त खाना खाने के लिए सिर्फ तीन ही लोग थे। विराज, आशा, और रितू। रितू के आने के बाद पवन की माॅ ने उन तीनों को खाना परोसा। तीनों ने बड़े आराम से खाना खाया। बाॅकि सब अपने अपने कमरे में थे। कुछ ही देर में तीनों ने खाना खा लिया।

"तू क्या फिर से ड्यूटी पर जा रही है रितू?" आशा दीदी ने पूछा___"मैने तो सोचा था कि हम सब यहाॅ गप्पें लड़ाएंगे। मगर अब जबकि तू जा रही है तो फिर मैं क्या करूॅगी इसके सिवा कि कमरे में जाकर लम्बी तान कर सो जाऊॅगी।"

"लम्बी तान कर सोने की ज़रूरत नहीं है आशा।" रितू दीदी ने कहा___"शाम को तुम सबको राज के साथ मुम्बई के लिए निकलना है। इस लिए सामान की पैकिंग करके रेडी रहना।"
"क्याऽऽ???" आशा दीदी बुरी तरह चौंकी___"हम आज ही शाम को यहाॅ से जाएॅगे???"

रितू दीदी की बात सुनकर मैं भी बुरी तरह चौंक पड़ा था। मैं तो कुछ और ही सोचे हुए था। रितू दीदी के साथ जाकर रास्ते में उनसे गुनगुन जाने के लिए कहने वाला था ताकि अपनी सभी टिकटें कैंसिल करवा सकूॅ। मगर दीदी की इस बात ने मुझे हिला कर रख दिया था।

"हाॅ आशा।" उधर दीदी कह रही थीं___"तुम लोगों का यहाॅ से सुरक्षित मुम्बई निकलना ज़रूरी है। क्योंकि आने वाला हर पल एक नये ख़तरे को अपने साथ लेकर आ रहा है। तुम सबके यहाॅ रहते हुए किसी भी प्रकार की अनहोनी हो सकती है। इस लिए मैं चाहती हूॅ कि तुम सब यहाॅ से मुम्बई चले जाओ।"

"अच्छा ठीक है रितू।" आशा दीदी ने कहा___"मैं माॅ को भी बता देती हूॅ इस बारे में।"
"ठीक है ।" रितू दीदी ने कहा___"पवन और राज के उस दोस्त को भी बता देना। चल राज।"

अंतिम वाक्य मुझे देख कर कहने के साथ ही रितू दीदी कुर्सी से उठ कर बाहर की तरफ चल दी। उनके पीछे पीछे मैं भी बुझे मन से चल दिया। बाहर आकर दीदी अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ गईं। जिप्सी की ड्राइविंग शीट पर बैठ कर दीदी ने मुझे भी साथ में बैठने को कहा तो मैं भी चुपचाप बैठ गया। मेरे बैठते ही दीदी ने जिप्सी मेन गेट की तरफ दौड़ा दिया।

"काका, यहाॅ सबका ख़याल रखना।" लोहे वाले गेट के पास रुक कर दीदी ने हरिया काका से कहा___"हम आते है कुछ देर में।"
"फिकर ना करो बिटिया।" हरिया काका ने कहा__"हमरे रहते यहाॅ काहू का कुछू न होई।"

हरिया काका की बात सुन कर दीदी मुस्कुराई और फिर जिप्सी को आगे बढ़ा दिया। मैं उतरा हुआ चेहरा लिये दूसरी तरफ देख रहा था। सच कहूॅ तो मुझे दीदी का आशा दीदी से ये कहना कि वो सब लोग मेरे साथ आज शाम ही मुम्बई जाएॅगी बिलकुल अच्छा नहीं लगा था।

"क्या हुआ मेरा भाई नाराज़ है मुझसे?" सहसा रितू दीदी ने मेरी तरफ देख कर कहा था। उनकी ये बात सुन कर मैने उनकी तरफ एक नज़र देखा और फिर बिना कुछ बोले फिर से दूसरी तरफ देखने लगा।

"अपने से दूर तो मैं भी तुझे नहीं जाने देना चाहती मेरे भाई।" दीदी ने गहरी साॅस ली___"मगर मौजूदा हालात कुछ ऐसे हैं कि मुझे ये सब करना पड़ रहा है। मगर मैं ये नहीं कह रही राज कि इस जंग में मैं या तू अकेले हैं...नहीं नहीं बल्कि हम दोनो साथ साथ ही हैं।"

उनकी इस बात से मैने चौंक कर उनकी तरफ एक झटके से देखा। वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। उनकी इस मुस्कान को देख कर मेरी सारी नाराज़गी दूर हो गई।

"हाॅ राज।" उन्होंने फिर कहा___"हम दोनो साथ साथ ही इस खेल में काम करेंगे। मगर....
"मगर क्या दीदी???" मैं चकराया।
"मगर ये कि तू अभी इन सबको लेकर मुम्बई सुरक्षित पहुॅच जा।" दीदी ने कहा___"जब ये सब वहाॅ पहुॅच जाएॅगे तो इनकी सुरक्षा की चिंता से हम दोनो ही मुक्त हो जाएॅगे। उसके बाद तुम वहाॅ से वापस आ जाना यहाॅ। हम दोनो तसल्ली से फिर इस खेल को अंजाम तक पहुॅचाएॅगे।"

"आपने ठीक कहा दीदी।" मैने कहा___"हम स्वतंत्रतापूर्वक ये जंग तभी लड़ सकेंगे जब हमारी ये सारी कमज़ोरियाॅ हमारे दुश्मन की नज़र से या पहुॅच से बहुत दूर हो जाएॅगी। क्योंकि हमारे दुश्मन ने अगर हमारी एक भी कमज़ोरी को नुकसान पहुॅचा दिया तो वो नुकसान हम हर्गिज़ भी सह नहीं सकेंगे।"

"बिलकुल ठीक समझे मेरे भाई।" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा___"मैं यही कर रही हूॅ। मैं चाहती हूॅ कि तू हमारी इन सारी कमज़ोरियों को यहाॅ से मुम्बई ले जाकर उन्हें सुरक्षित कर दे। उसके बाद तू वापस यहाॅ आ जाना, उस सूरत में हम दोनो बहन भाई खुल कर और तसल्ली से अपनी जंग लड़ सकेंगे।"

"मैं समझता था कि ये जंग सिर्फ मेरी है दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"और इस जंग को अकेले ही मुझे इसके अंजाम तक पहुॅचाना है। मगर आपसे मिल कर ये पता चला कि इस जंग में मैं अकेला नहीं हूॅ बल्कि मेरे साथ मेरे हर क़दम में मेरा साथ देने के लिए मेरी सबसे अज़ीज़ दीदी भी तैयार बैठी हैं। ये मेरे लिए ऐसी खुशी है दीदी जिसका मैं बयान नहीं कर सकता।"

"चल अब तू फिर से न मुझे इमोश्नल कर देना।" रितू दीदी ने हौले से हॅसते हुए कहा___"वरना मैं फिर रोने लग जाऊॅगी।"
"नहीं दीदी।" मैने तपाक से कहा___"आप रोना नहीं। आपकी ऑखों में ऑसू देखते ही मेरे अंदर कुछ टूटने सा लगता है। जिससे मुझे तक़लीफ़ होने लगती है।"

"अच्छा ये सब छोंड़ भाई।" रितू दीदी मेरी बात पर पहले तो मुस्कुराईं फिर सहसा बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"राज तुझसे कुछ पूछूॅ?"
"ये क्या बात हुई दीदी?" मैने दीदी की तरफ देखा__"कोई बात पूछने के लिए भला आपको मुझसे इजाज़त माॅगने की क्या ज़रूरत है?"

"अच्छा नहीं माॅगती इजाज़त।" दीदी फिर मुस्कुराई, बोली___"मैं तुझसे जो कुछ भी पूछना चाहती हूॅ उसका तू सच सच जवाब देगा न?"
"हाॅ बिलकुल दीदी।" मैने कहा___"मैं आपके हर सवाल का सच सच जवाब दूॅगा। पूछिए क्या पूछना चाहती हैं आप?"

"मेरे मन में कई सारी बातें है राज।" रितू दीदी ने सामने रास्ते की तरफ देखते हुए कहा___"और उन्हीं कई सारी बातों में कई सारे सवाल भी हैं जिनके बारे में मुझे जानना है। तू तो जानता है कि मैं एक पुलिस ऑफिसर भी हूॅ इस लिए हर सवालों का सही सही जवाब पाना मेरी इस पुलिसिया फितरत में भी शामिल है।"

"कोई बात नहीं दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"आपको जो कुछ भी जानना है मुझसे आप बेझिझक पूॅछ सकती हैं। अगर आपके सवालों के जवाब मेरे पास होंगे तो ज़रूर मैं आपके हर सवाल का जवाब दूॅगा।"
"सबसे पहला सवाल तो यही है कि तू मुम्बई में कहाॅ और किस हाल में गौरी चाची और गुड़िया को साथ लिए रहता है?" रितू दीदी ने कहा___"और अब तो तू इन सबको भी अपने साथ ही लिए जा रहा है तो मेरा ये सोचना जायज़ ही है कि इतने सारे लोगों को तू कहाॅ ठहराएगा और कैसे सुरक्षित रखेगा?"

"बड़े पापा तो मेरे बारे में यही सोचते हैं दीदी।" मैने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"कि मैं मुम्बई में कहीं किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोने वाला काम करता होऊॅगा। जबकि मेरी सच्चाई का अगर आज उन्हें पता चल जाए तो उनके पैरों तले से ये ज़मीन गायब हो जाएगी।"

"क्या मतलब???" रितू दीदी बुरी तरह चौंक कर मेरी तरफ देखने लगी थी।
"मतलब साफ है दीदी।" मैने गहरी साॅस ली___"ईश्वर से बड़ा कोई नहीं होता दुनियाॅ में। ये ईश्वर की ही रहमत है दीदी कि मैं चाहूॅ तो यहाॅ पर खड़े खड़े ही पूरा हल्दीपुर गाॅव ख़रीद लूॅ। जिस मामूली सी प्रापर्टी को पाने के लिए बड़े पापा ने ये सब किया था न उस प्रापर्टी की लाखों गुनी दौलत आज मेरे पास है।"

"ये तू क्या कह रहा है राज?" रितू दीदी बुरी तरह उछल पड़ी थी। ब्रेक पैडल पर लगभग वो खड़ी ही हो गई थी। जिसके चलते जिप्सी के टायर ज़ोर से चीखते हुए सड़क पर स्थिर हो गए थे। मेरी तरफ आश्चर्यचकित नज़रों से देखते हुए बोलीं___"तेरे पास इतनी सारी दौलत कहाॅ से आ गई? तू....तूने कहीं कोई ग़लत काम करके तो नहीं ये दौलत अर्जित की है??"

"हाहाहाहा अरे नहीं दीदी।" मैने हॅसते हुए कहा___"क्या आपको लगता है कि आपका ये भाई दौलत पाने के लिए कोई ग़लत काम करेगा?"
"लगता तो नहीं है राज।" दीदी की ऑखें अभी भी फैली हुई थी, बोली___"मगर सवाल तो खड़ा होता ही है कि इतनी सारी दौलत अचानक एक साथ मिल जाना कैसे संभव हो सकता है?"

"इस दुनियाॅ में सब कुछ संभव है दीदी।" मैने कहा___"और इसका जीता जागता प्रमाण मैं खुद हूॅ।"
"लेकिन कैसे मेरे भाई??" रितू दीदी चकित भाव से बोल पड़ीं____"ये असंभव संभव कैसे हो गया? और अगर ऐसा ही है तो यकीनन राज ये बहुत ख़ुशी की बात है।"

मैने दीदी को संक्षेप में सारी कहानी बता दी। उन्हें बताया कि कैसे एक अरबपति इंसान ने मुझे अपना बेटा बना लिया और अपनी सारी संपत्ति मेरे नाम कर दी। मैने उन्हें बताया कि मैं उसी अरबपति आदमी की मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था। मेरे काम और मेरे नेचर से प्रभावित होकर वो आदमी एक दिन मेरा मसीहा बन गया।
मैने उन्हें बताया कि आज मैं अपने पूरे परिवार के साथ उसी आदमी के अलीशान बॅगले में शान से रहता हूॅ। मेरी ये कहानी सुन कर दीदी आश्चर्यचकित रह गईं थी। काफी देर तक उनके मुख से कोई बोल न फूटा।

"ये...ये तो कमाल हो गया राज।" फिर दीदी ने खुशी से फूली न समाते हुए कहा___"मैं समझ सकती हूॅ मेरे भाई। हाॅ भाई, मैं सब समझ गई। ईश्वर ने तुझे तेरे अच्छे कर्मों का फल दिया है। उससे तेरी दुख तक़लीफ़ें नहीं देखी गई और इसी लिए उसने उस आदमी को तेरा मसीहा बना कर भेज दिया तेरे पास। हाॅ भाई, यही सच है। मैं बहुत खुश हूॅ तेरे लिए राज।"

"अब तो आप इस बात से बेफिक्र हैं न कि इन सबको मैं मुम्बई में कैसे रखूॅगा?" मैने मुस्कुरा कर कहा था।
"हाॅ राज।" दीदी ने जिप्सी को आगे बढ़ाते हुए कहा__"अब मुझे इन लोगों की कोई चिन्ता नहीं है।"
"हम्म, अब बताइये और क्या जानना है आपको?" मैने बात को आगे बढ़ाया।

"मैं नहीं जानती राज कि जो मैं तुझसे कहने वाली हूॅ या जानने वाली हूॅ उसका तुझे पता है भी या उसका तुझसे कोई ताल्लुक है भी कि नहीं।" दीदी ने कहा___"मगर फिर भी इस लिए कह रही हूॅ कि तू मेरा भाई है और तुझे भी जानने का हक़ है कि घर परिवार के बीच या तेरी बहन के साथ क्या क्या हुआ?"

"जी कहिए न दीदी।" मैने कहा___"आप बेझिझक अपनी बात मुझसे शेयर कर सकती हैं।"
"मैने पुलिस की नौकरी अपने शौक के लिए तो की ही थी राज।" रितू दीदी ने जैसे कहना शुरू किया___"मगर दिल में ये भी हसरत थी कि मैं ये नौकरी पूरी ईमानदारी के साथ करूॅगी। ख़ैर, ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले ही मेरे मन में ये बात थी कि मैं चार्ज़ सम्हालते ही सबसे पहले दादा दादी के केस पर काम करूॅगी। यानी मैं पता लगाऊॅगी कि उनका एक्सीडेन्ट वास्तव में एक हादसा ही था या फिर किसी की सोची समझी चाल थी? चार्ज़ सम्हालते ही मैने ऐसा किया भी, मगर पुलिस रिकार्ड में मुझे कहीं कोई ऐसा सुराग़ या क्लू तक नहीं मिला जिससे मुझे संदेह भी हो सके कि उनका एक्सीडेन्ट सोची समझी चाल का नतीजा हो सकता है। कहने का मतलब ये कि मैने दादा दादी वाले केस में बहुत छानबीन की मगर कुछ भी हाॅथ न लगा। थक हार कर मैने उस केस से अपना ध्यान हटा लिया। ये अलग बात थी कि दिल में ये मलाल अब भी है कि मैं दादा दादी के केस में कुछ भी न कर सकी।"

इतना सब कहने के बाद रितू दीदी कुछ पल के लिए रुकी और एक नज़र मेरे चेहरे की तरफ देखने के बाद फिर से सामने की तरफ देखने लगीं।

"उसके बाद फिर डैड के साथ अजीब सी घटनाएॅ होने लगीं।" रितू दीदी ने गहरी साॅस लेने के बाद फिर से कहना शुरू किया___"सबसे पहले जो उनके साथ अजीब घटना हुई वो ये थी कि कोई विदेशी ब्यक्ति उन्हें करोंड़ो का चूना लगा कर कहीं गायब हो गया। अख़बार में इस बात की ख़बर भी छपी थी। जिसके चलते डैड की इज्ज़त पर भी असर हुआ। मैं जानती हूॅ कि डैड ने उस विदेशी की खोज में धरती आसमान एक कर दिया होगा मगर उनके हाॅथ कुछ न लगा। ख़ैर, इस अजीब घटना के बाद डैड के साथ फिर से एक घटना घटी। उनकी फैक्ट्री में आग लग गई। फैक्ट्री में लगी आग की जाॅच उन्होंने अपने तरीके से करवाई थी और रिपोर्ट भी अपने तरीके से ही बनवाई थी। ऐसा शायद उन्होंने इस लिए किया था ताकि उनकी रेपुटेशन पर फिर से कोई धब्बा न लग जाए। हलाॅकि धब्बा लगने से वो तब भी नहीं रोंक पाए थे। मैने जब देखा कि कोई नतीजा ही नहीं निकला है तो मैने फैक्ट्री की जाॅच करने का खुद ही बीड़ा उठाने का सोचा। मेरे मन में ऐसा करने की सिर्फ दो ही वजहें थी। पहला ये जानना कि ऐसा कौन है जिसने डैड की फैक्ट्री में आग लगाई? दूसरा ये कि डैड के हुए उस भारी नुकसान की भरपाई करना। ज़ाहिर सी बात है कि अगर मुजरिम का पता चल जाता तो उससे इस नुकसान की भरपाई कर ली जाती। मगर ऐसा भी न हो पाया था। इसमें सबसे ज्यादा चौंकानी वाली बात ये हुई थी कि जब मैने खुद जाॅच करने के लिए केस रिओपन करवाया तब गुनगुन शहर का सारा पुलिस महकमा ही बदल दिया गया था। हर कोई इस बात से हैरान था। मगर समझ में किसी को कुछ न आया था। दूसरी हैरानी की बात ये कि लाख कोशिशों के बाद भी उस केस में ये नहीं पता चल सका कि फैक्ट्री में आग आख़िर किसने लगाई थी? हलाॅकि इसमें एक कमज़ोरी ये थी कि डैड ने पूरी ईमानदारी से कोऑपरेट नहीं किया था।"

इतना कुछ बोलने के बाद रितू दीदी चुप हो गईं। मैने सोचा शायद वो कुछ और बोलेंगी मगर ऐसा न हुआ। उनकी नज़रें सामने रास्ते पर ही लगी हुई थी।

"ये तो थी घटनाओं की बातें।" तभी उन्होंने फिर से कहना शुरू किया___"और ये सब मैने तुझसे इस लिए शेयर किया राज ताकि तू भी जान सके कि ये केस मेरी नाकामी का भी हिस्सा हैं। जिन्हें मैं सुलझा नहीं पाई। मगर जबसे ये सब हालात शुरू हुए तब से मैने हवेली के अंदर भी कान लगाना शुरू कर दिया था। उससे ज्यादा तो नहीं मगर इतना ज़रूर सुना मैने कि तेरा ज़िक्र बार बार हवेली के अंदर मेरे माॅम डैड के बीच हुआ। एक बार तो मैने ये भी सुना कि ये सब तुमने किया है। मैं ये सुन कर हैरान तो हुई मगर ज्यादा ध्यान नहीं दिया कभी। क्योंकि तब मेरे दिमाग़ में भी यही बातें थी कि तू ये सब कर ही नहीं सकता। मगर ज्यादा दिनों तक मैं तुझे भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाई। क्योंकि कहीं न कहीं मेरे भी दिमाग़ में ये बात आ ही गई थी कि मेरे डैड का अगर कोई सबसे ज्यादा बुरा करना चाहेगा तो वो सिर्फ तू ही था। इस लिए मैंने उन सभी घटनाओं में तुझे जोड़ना शुरू किया और फिर मुझे भी ये लगने लगा कि तेरा इन सभी घटनाओं में ताल्लुक यकीनन हो सकता है।"विराज के कमरे से जाते ही रितू ने अपने जिस्म से पुलिस की वर्दी निकाली और एक टाॅवेल लेकर बाॅथरूम में घुस गई। उसके सिर पर जो चोंट लगी थी वो बहुत ज्यादा दर्द कर रही थी। किन्तु उसने अपने उस दर्द को बड़ी मुश्किल से जज़्ब किया हुआ था। खून तो रिसा था किन्तु उसने पाॅकेट से रुमाल निकाल कर उसे पहले ही साफ कर लिया था। चोंट इतनी भी गहरी नहीं थी जिससे बात गंभीर होती। जीप के किनारे पर लगा लोहे का पाइप उसके सिर के किनारे वाले भाग के थोड़ा सा ऊपर लगा था। उस आदमी को जीप में डालने के बाद ही उसने सिर से रिस रहे खून को रुमाल से साफ किया था। उसके बाद उसने सिर पर वापस पीकैप पहन ली थी जिससे चोंट से रिसा हुआ खून और चोंट दिखनी बंद हो गई थी। वो नहीं चाहती थी कि उसको लगी किसी भी प्रकार की चोंट फार्महाउस में किसी को भी नज़र आए या पता चले।

बाथरूम में रितू ने खुद को फ्रेश किया और फिर बाहर आ गई। कमरे में उसने एक नई वर्दी पहनी और फिर पीकैप लगा कर खुद को पूरी तरह तैयार किया। आलमारी से उसने एक दर्द की टैबलेट ली और वहीं एक साइड रखे पानी के बाटल से उसने उस टैबलेट को खाया। उसके बाद वो कमरे से बाहर आ गई।

नीचे डायनिंग हाल में इस वक्त खाना खाने के लिए सिर्फ तीन ही लोग थे। विराज, आशा, और रितू। रितू के आने के बाद पवन की माॅ ने उन तीनों को खाना परोसा। तीनों ने बड़े आराम से खाना खाया। बाॅकि सब अपने अपने कमरे में थे। कुछ ही देर में तीनों ने खाना खा लिया।

"तू क्या फिर से ड्यूटी पर जा रही है रितू?" आशा दीदी ने पूछा___"मैने तो सोचा था कि हम सब यहाॅ गप्पें लड़ाएंगे। मगर अब जबकि तू जा रही है तो फिर मैं क्या करूॅगी इसके सिवा कि कमरे में जाकर लम्बी तान कर सो जाऊॅगी।"

"लम्बी तान कर सोने की ज़रूरत नहीं है आशा।" रितू दीदी ने कहा___"शाम को तुम सबको राज के साथ मुम्बई के लिए निकलना है। इस लिए सामान की पैकिंग करके रेडी रहना।"
"क्याऽऽ???" आशा दीदी बुरी तरह चौंकी___"हम आज ही शाम को यहाॅ से जाएॅगे???"

रितू दीदी की बात सुनकर मैं भी बुरी तरह चौंक पड़ा था। मैं तो कुछ और ही सोचे हुए था। रितू दीदी के साथ जाकर रास्ते में उनसे गुनगुन जाने के लिए कहने वाला था ताकि अपनी सभी टिकटें कैंसिल करवा सकूॅ। मगर दीदी की इस बात ने मुझे हिला कर रख दिया था।

"हाॅ आशा।" उधर दीदी कह रही थीं___"तुम लोगों का यहाॅ से सुरक्षित मुम्बई निकलना ज़रूरी है। क्योंकि आने वाला हर पल एक नये ख़तरे को अपने साथ लेकर आ रहा है। तुम सबके यहाॅ रहते हुए किसी भी प्रकार की अनहोनी हो सकती है। इस लिए मैं चाहती हूॅ कि तुम सब यहाॅ से मुम्बई चले जाओ।"

"अच्छा ठीक है रितू।" आशा दीदी ने कहा___"मैं माॅ को भी बता देती हूॅ इस बारे में।"
"ठीक है ।" रितू दीदी ने कहा___"पवन और राज के उस दोस्त को भी बता देना। चल राज।"

अंतिम वाक्य मुझे देख कर कहने के साथ ही रितू दीदी कुर्सी से उठ कर बाहर की तरफ चल दी। उनके पीछे पीछे मैं भी बुझे मन से चल दिया। बाहर आकर दीदी अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ गईं। जिप्सी की ड्राइविंग शीट पर बैठ कर दीदी ने मुझे भी साथ में बैठने को कहा तो मैं भी चुपचाप बैठ गया। मेरे बैठते ही दीदी ने जिप्सी मेन गेट की तरफ दौड़ा दिया।

"काका, यहाॅ सबका ख़याल रखना।" लोहे वाले गेट के पास रुक कर दीदी ने हरिया काका से कहा___"हम आते है कुछ देर में।"
"फिकर ना करो बिटिया।" हरिया काका ने कहा__"हमरे रहते यहाॅ काहू का कुछू न होई।"

हरिया काका की बात सुन कर दीदी मुस्कुराई और फिर जिप्सी को आगे बढ़ा दिया। मैं उतरा हुआ चेहरा लिये दूसरी तरफ देख रहा था। सच कहूॅ तो मुझे दीदी का आशा दीदी से ये कहना कि वो सब लोग मेरे साथ आज शाम ही मुम्बई जाएॅगी बिलकुल अच्छा नहीं लगा था।

"क्या हुआ मेरा भाई नाराज़ है मुझसे?" सहसा रितू दीदी ने मेरी तरफ देख कर कहा था। उनकी ये बात सुन कर मैने उनकी तरफ एक नज़र देखा और फिर बिना कुछ बोले फिर से दूसरी तरफ देखने लगा।

"अपने से दूर तो मैं भी तुझे नहीं जाने देना चाहती मेरे भाई।" दीदी ने गहरी साॅस ली___"मगर मौजूदा हालात कुछ ऐसे हैं कि मुझे ये सब करना पड़ रहा है। मगर मैं ये नहीं कह रही राज कि इस जंग में मैं या तू अकेले हैं...नहीं नहीं बल्कि हम दोनो साथ साथ ही हैं।"

उनकी इस बात से मैने चौंक कर उनकी तरफ एक झटके से देखा। वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। उनकी इस मुस्कान को देख कर मेरी सारी नाराज़गी दूर हो गई।

"हाॅ राज।" उन्होंने फिर कहा___"हम दोनो साथ साथ ही इस खेल में काम करेंगे। मगर....
"मगर क्या दीदी???" मैं चकराया।
"मगर ये कि तू अभी इन सबको लेकर मुम्बई सुरक्षित पहुॅच जा।" दीदी ने कहा___"जब ये सब वहाॅ पहुॅच जाएॅगे तो इनकी सुरक्षा की चिंता से हम दोनो ही मुक्त हो जाएॅगे। उसके बाद तुम वहाॅ से वापस आ जाना यहाॅ। हम दोनो तसल्ली से फिर इस खेल को अंजाम तक पहुॅचाएॅगे।"

"आपने ठीक कहा दीदी।" मैने कहा___"हम स्वतंत्रतापूर्वक ये जंग तभी लड़ सकेंगे जब हमारी ये सारी कमज़ोरियाॅ हमारे दुश्मन की नज़र से या पहुॅच से बहुत दूर हो जाएॅगी। क्योंकि हमारे दुश्मन ने अगर हमारी एक भी कमज़ोरी को नुकसान पहुॅचा दिया तो वो नुकसान हम हर्गिज़ भी सह नहीं सकेंगे।"

"बिलकुल ठीक समझे मेरे भाई।" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा___"मैं यही कर रही हूॅ। मैं चाहती हूॅ कि तू हमारी इन सारी कमज़ोरियों को यहाॅ से मुम्बई ले जाकर उन्हें सुरक्षित कर दे। उसके बाद तू वापस यहाॅ आ जाना, उस सूरत में हम दोनो बहन भाई खुल कर और तसल्ली से अपनी जंग लड़ सकेंगे।"

"मैं समझता था कि ये जंग सिर्फ मेरी है दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"और इस जंग को अकेले ही मुझे इसके अंजाम तक पहुॅचाना है। मगर आपसे मिल कर ये पता चला कि इस जंग में मैं अकेला नहीं हूॅ बल्कि मेरे साथ मेरे हर क़दम में मेरा साथ देने के लिए मेरी सबसे अज़ीज़ दीदी भी तैयार बैठी हैं। ये मेरे लिए ऐसी खुशी है दीदी जिसका मैं बयान नहीं कर सकता।"

"चल अब तू फिर से न मुझे इमोश्नल कर देना।" रितू दीदी ने हौले से हॅसते हुए कहा___"वरना मैं फिर रोने लग जाऊॅगी।"
"नहीं दीदी।" मैने तपाक से कहा___"आप रोना नहीं। आपकी ऑखों में ऑसू देखते ही मेरे अंदर कुछ टूटने सा लगता है। जिससे मुझे तक़लीफ़ होने लगती है।"

"अच्छा ये सब छोंड़ भाई।" रितू दीदी मेरी बात पर पहले तो मुस्कुराईं फिर सहसा बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"राज तुझसे कुछ पूछूॅ?"
"ये क्या बात हुई दीदी?" मैने दीदी की तरफ देखा__"कोई बात पूछने के लिए भला आपको मुझसे इजाज़त माॅगने की क्या ज़रूरत है?"

"अच्छा नहीं माॅगती इजाज़त।" दीदी फिर मुस्कुराई, बोली___"मैं तुझसे जो कुछ भी पूछना चाहती हूॅ उसका तू सच सच जवाब देगा न?"
"हाॅ बिलकुल दीदी।" मैने कहा___"मैं आपके हर सवाल का सच सच जवाब दूॅगा। पूछिए क्या पूछना चाहती हैं आप?"

"मेरे मन में कई सारी बातें है राज।" रितू दीदी ने सामने रास्ते की तरफ देखते हुए कहा___"और उन्हीं कई सारी बातों में कई सारे सवाल भी हैं जिनके बारे में मुझे जानना है। तू तो जानता है कि मैं एक पुलिस ऑफिसर भी हूॅ इस लिए हर सवालों का सही सही जवाब पाना मेरी इस पुलिसिया फितरत में भी शामिल है।"

"कोई बात नहीं दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"आपको जो कुछ भी जानना है मुझसे आप बेझिझक पूॅछ सकती हैं। अगर आपके सवालों के जवाब मेरे पास होंगे तो ज़रूर मैं आपके हर सवाल का जवाब दूॅगा।"
"सबसे पहला सवाल तो यही है कि तू मुम्बई में कहाॅ और किस हाल में गौरी चाची और गुड़िया को साथ लिए रहता है?" रितू दीदी ने कहा___"और अब तो तू इन सबको भी अपने साथ ही लिए जा रहा है तो मेरा ये सोचना जायज़ ही है कि इतने सारे लोगों को तू कहाॅ ठहराएगा और कैसे सुरक्षित रखेगा?"

"बड़े पापा तो मेरे बारे में यही सोचते हैं दीदी।" मैने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"कि मैं मुम्बई में कहीं किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोने वाला काम करता होऊॅगा। जबकि मेरी सच्चाई का अगर आज उन्हें पता चल जाए तो उनके पैरों तले से ये ज़मीन गायब हो जाएगी।"

"क्या मतलब???" रितू दीदी बुरी तरह चौंक कर मेरी तरफ देखने लगी थी।
"मतलब साफ है दीदी।" मैने गहरी साॅस ली___"ईश्वर से बड़ा कोई नहीं होता दुनियाॅ में। ये ईश्वर की ही रहमत है दीदी कि मैं चाहूॅ तो यहाॅ पर खड़े खड़े ही पूरा हल्दीपुर गाॅव ख़रीद लूॅ। जिस मामूली सी प्रापर्टी को पाने के लिए बड़े पापा ने ये सब किया था न उस प्रापर्टी की लाखों गुनी दौलत आज मेरे पास है।"

"ये तू क्या कह रहा है राज?" रितू दीदी बुरी तरह उछल पड़ी थी। ब्रेक पैडल पर लगभग वो खड़ी ही हो गई थी। जिसके चलते जिप्सी के टायर ज़ोर से चीखते हुए सड़क पर स्थिर हो गए थे। मेरी तरफ आश्चर्यचकित नज़रों से देखते हुए बोलीं___"तेरे पास इतनी सारी दौलत कहाॅ से आ गई? तू....तूने कहीं कोई ग़लत काम करके तो नहीं ये दौलत अर्जित की है??"

"हाहाहाहा अरे नहीं दीदी।" मैने हॅसते हुए कहा___"क्या आपको लगता है कि आपका ये भाई दौलत पाने के लिए कोई ग़लत काम करेगा?"
"लगता तो नहीं है राज।" दीदी की ऑखें अभी भी फैली हुई थी, बोली___"मगर सवाल तो खड़ा होता ही है कि इतनी सारी दौलत अचानक एक साथ मिल जाना कैसे संभव हो सकता है?"

"इस दुनियाॅ में सब कुछ संभव है दीदी।" मैने कहा___"और इसका जीता जागता प्रमाण मैं खुद हूॅ।"
"लेकिन कैसे मेरे भाई??" रितू दीदी चकित भाव से बोल पड़ीं____"ये असंभव संभव कैसे हो गया? और अगर ऐसा ही है तो यकीनन राज ये बहुत ख़ुशी की बात है।"

मैने दीदी को संक्षेप में सारी कहानी बता दी। उन्हें बताया कि कैसे एक अरबपति इंसान ने मुझे अपना बेटा बना लिया और अपनी सारी संपत्ति मेरे नाम कर दी। मैने उन्हें बताया कि मैं उसी अरबपति आदमी की मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था। मेरे काम और मेरे नेचर से प्रभावित होकर वो आदमी एक दिन मेरा मसीहा बन गया।
मैने उन्हें बताया कि आज मैं अपने पूरे परिवार के साथ उसी आदमी के अलीशान बॅगले में शान से रहता हूॅ। मेरी ये कहानी सुन कर दीदी आश्चर्यचकित रह गईं थी। काफी देर तक उनके मुख से कोई बोल न फूटा।

"ये...ये तो कमाल हो गया राज।" फिर दीदी ने खुशी से फूली न समाते हुए कहा___"मैं समझ सकती हूॅ मेरे भाई। हाॅ भाई, मैं सब समझ गई। ईश्वर ने तुझे तेरे अच्छे कर्मों का फल दिया है। उससे तेरी दुख तक़लीफ़ें नहीं देखी गई और इसी लिए उसने उस आदमी को तेरा मसीहा बना कर भेज दिया तेरे पास। हाॅ भाई, यही सच है। मैं बहुत खुश हूॅ तेरे लिए राज।"

"अब तो आप इस बात से बेफिक्र हैं न कि इन सबको मैं मुम्बई में कैसे रखूॅगा?" मैने मुस्कुरा कर कहा था।
"हाॅ राज।" दीदी ने जिप्सी को आगे बढ़ाते हुए कहा__"अब मुझे इन लोगों की कोई चिन्ता नहीं है।"
"हम्म, अब बताइये और क्या जानना है आपको?" मैने बात को आगे बढ़ाया।

"मैं नहीं जानती राज कि जो मैं तुझसे कहने वाली हूॅ या जानने वाली हूॅ उसका तुझे पता है भी या उसका तुझसे कोई ताल्लुक है भी कि नहीं।" दीदी ने कहा___"मगर फिर भी इस लिए कह रही हूॅ कि तू मेरा भाई है और तुझे भी जानने का हक़ है कि घर परिवार के बीच या तेरी बहन के साथ क्या क्या हुआ?"

"जी कहिए न दीदी।" मैने कहा___"आप बेझिझक अपनी बात मुझसे शेयर कर सकती हैं।"
"मैने पुलिस की नौकरी अपने शौक के लिए तो की ही थी राज।" रितू दीदी ने जैसे कहना शुरू किया___"मगर दिल में ये भी हसरत थी कि मैं ये नौकरी पूरी ईमानदारी के साथ करूॅगी। ख़ैर, ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले ही मेरे मन में ये बात थी कि मैं चार्ज़ सम्हालते ही सबसे पहले दादा दादी के केस पर काम करूॅगी। यानी मैं पता लगाऊॅगी कि उनका एक्सीडेन्ट वास्तव में एक हादसा ही था या फिर किसी की सोची समझी चाल थी? चार्ज़ सम्हालते ही मैने ऐसा किया भी, मगर पुलिस रिकार्ड में मुझे कहीं कोई ऐसा सुराग़ या क्लू तक नहीं मिला जिससे मुझे संदेह भी हो सके कि उनका एक्सीडेन्ट सोची समझी चाल का नतीजा हो सकता है। कहने का मतलब ये कि मैने दादा दादी वाले केस में बहुत छानबीन की मगर कुछ भी हाॅथ न लगा। थक हार कर मैने उस केस से अपना ध्यान हटा लिया। ये अलग बात थी कि दिल में ये मलाल अब भी है कि मैं दादा दादी के केस में कुछ भी न कर सकी।"

इतना सब कहने के बाद रितू दीदी कुछ पल के लिए रुकी और एक नज़र मेरे चेहरे की तरफ देखने के बाद फिर से सामने की तरफ देखने लगीं।

"उसके बाद फिर डैड के साथ अजीब सी घटनाएॅ होने लगीं।" रितू दीदी ने गहरी साॅस लेने के बाद फिर से कहना शुरू किया___"सबसे पहले जो उनके साथ अजीब घटना हुई वो ये थी कि कोई विदेशी ब्यक्ति उन्हें करोंड़ो का चूना लगा कर कहीं गायब हो गया। अख़बार में इस बात की ख़बर भी छपी थी। जिसके चलते डैड की इज्ज़त पर भी असर हुआ। मैं जानती हूॅ कि डैड ने उस विदेशी की खोज में धरती आसमान एक कर दिया होगा मगर उनके हाॅथ कुछ न लगा। ख़ैर, इस अजीब घटना के बाद डैड के साथ फिर से एक घटना घटी। उनकी फैक्ट्री में आग लग गई। फैक्ट्री में लगी आग की जाॅच उन्होंने अपने तरीके से करवाई थी और रिपोर्ट भी अपने तरीके से ही बनवाई थी। ऐसा शायद उन्होंने इस लिए किया था ताकि उनकी रेपुटेशन पर फिर से कोई धब्बा न लग जाए। हलाॅकि धब्बा लगने से वो तब भी नहीं रोंक पाए थे। मैने जब देखा कि कोई नतीजा ही नहीं निकला है तो मैने फैक्ट्री की जाॅच करने का खुद ही बीड़ा उठाने का सोचा। मेरे मन में ऐसा करने की सिर्फ दो ही वजहें थी। पहला ये जानना कि ऐसा कौन है जिसने डैड की फैक्ट्री में आग लगाई? दूसरा ये कि डैड के हुए उस भारी नुकसान की भरपाई करना। ज़ाहिर सी बात है कि अगर मुजरिम का पता चल जाता तो उससे इस नुकसान की भरपाई कर ली जाती। मगर ऐसा भी न हो पाया था। इसमें सबसे ज्यादा चौंकानी वाली बात ये हुई थी कि जब मैने खुद जाॅच करने के लिए केस रिओपन करवाया तब गुनगुन शहर का सारा पुलिस महकमा ही बदल दिया गया था। हर कोई इस बात से हैरान था। मगर समझ में किसी को कुछ न आया था। दूसरी हैरानी की बात ये कि लाख कोशिशों के बाद भी उस केस में ये नहीं पता चल सका कि फैक्ट्री में आग आख़िर किसने लगाई थी? हलाॅकि इसमें एक कमज़ोरी ये थी कि डैड ने पूरी ईमानदारी से कोऑपरेट नहीं किया था।"

इतना कुछ बोलने के बाद रितू दीदी चुप हो गईं। मैने सोचा शायद वो कुछ और बोलेंगी मगर ऐसा न हुआ। उनकी नज़रें सामने रास्ते पर ही लगी हुई थी।

"ये तो थी घटनाओं की बातें।" तभी उन्होंने फिर से कहना शुरू किया___"और ये सब मैने तुझसे इस लिए शेयर किया राज ताकि तू भी जान सके कि ये केस मेरी नाकामी का भी हिस्सा हैं। जिन्हें मैं सुलझा नहीं पाई। मगर जबसे ये सब हालात शुरू हुए तब से मैने हवेली के अंदर भी कान लगाना शुरू कर दिया था। उससे ज्यादा तो नहीं मगर इतना ज़रूर सुना मैने कि तेरा ज़िक्र बार बार हवेली के अंदर मेरे माॅम डैड के बीच हुआ। एक बार तो मैने ये भी सुना कि ये सब तुमने किया है। मैं ये सुन कर हैरान तो हुई मगर ज्यादा ध्यान नहीं दिया कभी। क्योंकि तब मेरे दिमाग़ में भी यही बातें थी कि तू ये सब कर ही नहीं सकता। मगर ज्यादा दिनों तक मैं तुझे भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाई। क्योंकि कहीं न कहीं मेरे भी दिमाग़ में ये बात आ ही गई थी कि मेरे डैड का अगर कोई सबसे ज्यादा बुरा करना चाहेगा तो वो सिर्फ तू ही था। इस लिए मैंने उन सभी घटनाओं में तुझे जोड़ना शुरू किया और फिर मुझे भी ये लगने लगा कि तेरा इन सभी घटनाओं में ताल्लुक यकीनन हो सकता है।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:52 PM

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