non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:51 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
मुख्य द्वार के पास पहुॅचते ही मैने पवन और आदित्य को अंदर जाने का कह दिया और खुद बाहर ही थोड़ी देर बैठने का बोल कर वहीं खड़ा रह गया। मेरे कहने पर पवन और आदित्य दोनो ने मुझे अजीब भाव से देखा तो मैने अपनी पलकें झपका कर उन्हें तसल्ली रखने का इशारा किया। मेरे इस इशारे से वो दोनो अंदर की तरफ बढ़ गए। उनके जाने के कुछ देर बाद ही मैंने पहले वाले की तरफ देखा तो वो मुझे गेट के पास बनी चौकी की तरफ मुड़ कर हाॅथों में खैनी मलता नज़र आया। मैं बड़ी तेज़ी से उस दरवाजे की तरफ बढ़ गया जिस तरफ वो दूसरा आदमी गया था।

दरवाजे के पास पहुॅच कर मैने आहिस्ता से दरवाजे को अंदर की तरफ धकेला तो वो हल्की सी आवाज़ के साथ खुल गया। दरवाजे के खुलते ही मैं उसके अंदर दाखिल हो गया। अंदर आते ही मैने इधर उधर देखा तो मुझे दाईं तरफ एक गैलरी दिखी तो मैं उस गैलरी में आगे की तरफ बढ़ चला। कुछ ही दूरी पर मुझे एक कमरा नज़र आया जिसका दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था। मैं उस खुले हुए दरवाजे के पास पहुॅच कर उसके खुले हुए भाग से अंदर की तरफ का मुआयना किया और फिर दरवाजे को खोल कर अंदर की तरफ दाखिल हो गया।

इस कमरे में मध्यम सी रोशनी थी। बाईं तरफ एक ऐसा दरवाजा नज़र आया जैसा कि वो किसी ऐसे वोल्ट का हो जिसके अंदर सरकार का बहुत सारा गोल्ड रखा गया हो। ये देख कर मेरे चेहरे पर नासमझने वाले भाव उभरे। उत्सुकतावश मैं उस दरवाजे की तरफ बढ़ गया। दरवाजे के पास पहुॅच कर मैने ध्यान से उस दरवाजे को देखा तो पता चला कि ये दरवाजा किसी मोटे लोहे से बना बहुत ही मजबूत दरवाजा है। किन्तु मैने देखा कि एक ही तरफ खुलने वाले उस दरवाजे पर भी हल्की सी झिरी थी। इसका मतलब वो आदमी जो अंदर आया था वो इसके अंदर ही गया है।

मेरा दिल ने अनायास ही किसी अंजानी आशंकावश ज़रा तेज़ी से धड़कना शुरू कर दिया था। मैने उस झिरी पर अपने कान सटा दिये। मैं अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश कर रहा था मगर मैं उस वक्त चौंका जब अंदर से किसी के ज़ोर से चीखने की आवाज़ आई। अंदर की तरफ किसी चीख़ की आवाज़ से मेरा दिमाग़ घूम गया। मैंने बिना कुछ सोचे समझे दरवाजे को हाथ बढ़ा कर खोल दिया और अंदर की तरफ बढ़ा ही था कि अचानक ही मैं एकदम से रुक गया। कारण दरवाजे के अंदर तीन फुट की दूरी पर ही सीढ़ियाॅ बनी हुई थी जो कि नीचे की तरफ जा रही थी। इसका मतलब ये कोई तहखाना था।

इस फार्महाउस पर किसी तहखाने के मौजूद होने का देख कर ही मैं सोच में पड़ गया। ख़ैर, मैने खुद को सम्हाला और नीचे की तरफ जा रही सीढ़ियों पर उतरता चला गया। नीचे तहखाने में एक अलग ही नज़ारा दिखा मुझे। जिसे देख कर मैं भौचक्का सा रह गया था।
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उस वक्त दोपहर के एक बज रहे थे जब रितू अपनी पुलिस जिप्सी में बैठी हवेली पहुॅची थी। यहाॅ पर वो आना तो नहीं चाहती थी किन्तु वो ये नहीं चाहती थी कि उसके न आने से उसके माॅम डैड उसके बारे में कोई अलग धारणा बना बैठें। वो इस बात को बखूबी समझती थी कि बहुत जल्द ऐसा कुछ होने वाला है जिससे हवेली का हर ब्यक्ति दहल जाएगा। वो आने वाले उस समय के लिए खुद को पूरी तरह तैयार कर चुकी थी।

जिप्सी से उतर कर रितू हाॅथ में पुलिसिया रुल लिए मुख्य द्वार की तरफ बढ़ चली। दरवाजे के पास पहुॅच कर उसने बंद दरवाजे को उसकी कुंडी से पकड़ कर बजाया। कुछ ही देर में दरवाजा खुला तो उसे अपने सामने शिवा खड़ा नज़र आया। शिवा पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे पर अप्रिय भाव उभरे मगर तुरंत ही उसने उन भावों को दबा कर दरवाजे के अंदर की तरफ बढ़ गई।

कुछ ही पलों में वो ड्राइंगरूम में पहुॅच गई। ड्राइंगरूम में इस वक्त अपने डैड अजय सिंह को बैठे देख वो मन ही मन चौंकी। बगल के सोफे पर प्रतिमा भी बैठी थी। रितू ने खुद को एकदम से नार्मल दर्शाते हुए एक अलग सोफे पर बैठ कर अजय सिंह की तरफ देखा, फिर बोली__"कैसे हैं डैड? आज आप फैक्ट्री नहीं गए?"

"हाॅ वो आज ज़रा थोड़ा लेट ही जाना था न।" अजय सिंह ने कहा___"इस लिए सुबह नहीं गया। ख़ैर, छोड़ो ये बताओ तुम्हें भी हमारी कुछ ख़ैर ख़बर रहती है कि नहीं?"
"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं डैड?" रितू ने हैरानी ज़ाहिर करते हुए कहा___"भला आपकी ख़ैर ख़बर क्यों नहीं होगी मुझे?"
"अब ये तो तुम ही जानो बेटा।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"क्योंकि पिछले कुछ समय से हर चीज़ बदली हुई नज़र आ रही है मुझे। पता नहीं पर जाने क्यों ऐसा लगता है मुझे कि मेरे जो अपने हैं वही मुझसे दूर जा रहे हैं।"
"क्या मतलब डैड??" रितू ने मन में एकाएक ही हैरत के भाव उभरे थे___"ये आज आप कैसी बाते कर रहे हैं? कहीं आप उस दिन की बात पर तो ऐसा नहीं कह रहे जब मैने शिवा को दो बातें सुना दी थी?"

"वो सब तो नार्मल बात है बेटा।" अजय सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला___"तुमने अपने भाई से जो कुछ कहा वो बड़ी बहन होने के नाते तुम्हारा हक़ था।"
"तो फिर और क्या बात है डैड?" रितू ने कहा___"मुझे बताइये कि आपकी ऐसा क्यों लग रहा है कि आपके अपने आपसे दूर जा रहे हैं? अगर आपका इशारा मेरी तरफ है तो ये मेरे लिए शर्म की ही बात होगी कि मेरी वजह से आपको ऐसा लगा और आपके मन को ठेस पहुॅची है। प्लीज़ डैड बताइये न कि मुझसे ऐसा क्या हो गया है जिससे आपको मेरे बारे में ऐसा लग रहा है?"

"शायद तुम्हें इस बात का एहसास नहीं है बेटा कि मैं तुम सबसे कितना प्यार और दुलार करता हूॅ।" अजय सिंह ने सहसा भारी आवाज़ में कहा___"बचपन से लेकर अब तक हर वो चीज़ तुम सबके क़दमों में लाकर रखी जिन चीज़ों की तुम लोगों ने मुझसे फरमाईश की थी। इसके बावजूद मेरे प्यार में क्या कमी रह गई कि आज मेरी बेटी अपने ही माॅ बाप और भाई को बेगाना समझने लगी है?"

अजय सिंह की इस बात से रितू तो चौंकी ही मगर अलग अलग सोफों पर बैठे दोनो माॅ बेटा भी चौंक पड़े थे। दोनो कल से पूॅछ रहे थे कि क्या बताया था फोन पर उस आदमी ने मगर अजय सिंह ने उन दोनो के सवाल पर अब तक अपने होंठ सिले हुए थे। कदाचित वो ये सब रितू के आने के बाद ही उससे कहना चाहता था।

"ये आप क्या कह रहे हैं डैड?" रितू ने चकित भाव से कहा___"भला मैं ऐसा क्यों समझने लगूॅगी? मैं तो इस बारे में सोच भी नहीं सकती समझने की तो बात ही दूर है।"
"मुझे भी ऐसा ही लगता था बेटी।" अजय सिंह ने दुखी भाव से कहा___"मैं भी यही सोचा करता था कि मेरे बच्चे ऐसा कभी सोच भी नहीं सकते। मगर...मगर मेरी सारी सोच और सारी उम्मीदों को तोड़ दिया है तुमने।"

"नहीं डैड ऐसा मत कहिए प्लीज़।" रितू की ऑखें भर आईं____"अगर आपको मेरा पुलिस की नौकरी करना अच्छा नहीं लगता है तो मैं इस नौकरी को छोंड़ दूॅगी डैड। आपकी खुशी में ही मेरी खुशी है।"
"बात तुम्हारी नौकरी की नहीं है बैटा।" अजय सिंह ने कहा___"मुझे तुम्हारी पुलिस की नौकरी से कोई परेशानी नहीं है। यहाॅ पर बात हो रही है भरोसे की, विश्वास की। मुझे बहुत भरोसा था कि मेरे बच्चे कभी भी मेरे खिलाफ़ नहीं जा सकते। मगर मेरी ये भरोसा उसी तरह टूट कर बिखर गया जैसे कीई आईना टूट कर बिखर जाता है।"

"आख़िर आप कहना क्या चाहते हैं डैड?" रितू ने गंभीरता से कहा___"मैने ऐसा क्या कर दिया है जिससे आपका भरोसा टूट गया है? मुझे बताइये डैड, अगर मुझसे कहीं कोई ग़लती हुई है तो मैं उसे सुधार लूॅगी।"
"ये बात तो तुम्हें भी पता चल ही गई होगी।" अजय सिंह ने रितू के चेहरे की तरफ ज़रा गहरी नज़र से देखते हुए कहा___"कि हमारा सबसे बड़ा दुश्मन विराज यहाॅ हल्दीपुर आया हुआ था?"

"वि विराज??" रितू ने चौंकने की लाजवाब ऐक्टिंग की, बोली___"विराज यहाॅ आया? ये आप क्या कह रहे है डैड? भला वो कमीना यहाॅ किस लिए आएगा?"
"ओह, हैरत की बात है।" अजय सिंह ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"मतलब कि इस बारे में तुम्हें कुछ पता ही नहीं है। जबकि मेरे आदमी का स्पष्ट रूप से कहना है कि कल शाम जिस एम्बूलेन्स में बैठ कर विराज, उसका दोस्त, पवन और पवन की माॅ बहन अपने घर से निकले थे उस एम्बूलेन्स के आगे आगे एक जीप भी चल रही थी।"
"ये आप क्या कह रहे हैं डैड?" रितू अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गई थी, किन्तु प्रत्यक्ष में खुद को सम्हालते हुए कहा___"मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।"
"मैं जिस जीप की बात कर रहा हूॅ बेटा।" अजय सिंह ने सहसा शख्त भाव से कहा___"वो जीप असल में तुम्हारी पुलिस जिप्सी ही थी। इस गाॅव में हमारे अलावा किसी और के पास ऐसी कोई जीप है ही नहीं। हमारे आदमियों का अपनी जीप में बैठ कर विराज की उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चलने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। फिर वो जीप किसकी हो सकती थी? हल्दीपुर में ऐसी कोई जीप पुलिस थाने में सिर्फ तुम्हें मिली हुई है। अब तुम सच सच बताओ कि तुम्हारा एम्बूलेन्स के आगे आगे चलने का क्या मतलब था?"

"ये तो हद हो गई डैड।" रितू की ऑखों से ऑसू छलक पड़े____"आप सरासर अपनी बेटी पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चल रही जीप में मैं थी। जबकि आप अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा कुछ करने के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती हूॅ। सबसे पहली बात तो मुझे यही पता नहीं था कि वो कमीना विराज यहाॅ आया हुआ है जिसने कुछ समय पहले मेरे भाई शिवा को बुरी तरह मारा था। अगर पता होता तो मैं उसे खोज कर सबसे पहले अपने भाई की मार का बदला लेती उससे। उसके बाद उसे आपके हवाले कर देती। और आप कह रहे हैं कि मैं वो जीप मेरी थी जो उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चल रही थी। इसका मतलब तो ये हुआ डैड कि आप ये समझ रहे हैं कि मैं उस विराज की पुलिस प्रोटेक्शन दे रही थी। ओह माई गाड....ऐसा कैसे सोच सकते हैं आप? आप मुझे अपने उस आदमी से मिलवाइये डैड जिसने आपको ये ख़बर दी है। मैं उससे पूछूॅगी कि उसने ये कैसे समझ लिया उस जीप में थी?"

रितू की इस बात से अजय सिंह का दिमाग़ चकरा गया। उसे समझ न आया कि वो किसकी बात पर यकीन करे? अपने उस आदमी की बात पर या अपनी बेटी की बातों पर? ये तो सच बात थी कि उसके आदमी को भी पक्के तौर पर ये पता नहीं चल पाया था कि उस जीप में कौन बैठा था। उसने भी यही सोच कर अनुमान में ही अजय से बताया था कि उस जीप में शायद उसकी बेटी रितू थी। क्योंकि यहाॅ पर अजय सिंह के अलावा अगर किही और के पास कोई जीप थी तो वो सिर्फ पुलिस इंस्पेक्टर रितू के पास। अजय सिंह के आदमी ने यही सोच कर उसे बताया था। पक्के तौर पर उसे भी पता नहीं था। दूसरी बात वो खुद जानता था कि रितू विराज को प्रोटेक्ट करने जैसा काम कर ही नहीं सकती थी क्योंकि वो विराज से कभी कोई मतलब ही नहीं रखती थी। विराज का ज़िक्र आते ही उसके अंदर गुस्सा भर जाता था।

रितू ने ये सब बातें जिस आत्मविश्वास और भावपूर्ण लहजे में कही थी उससे अजय सिंह को यही लगा कि रितू सच कह रही है। मगर उसके मन में अपने आदमी की भी बातें चल रही थी। इस लिए वो समझ नहीं पा रहा था कि कौन सच बोल रहा है?

"इस बात पर तो मैं भी यकीन नहीं कर सकती अजय कि रितू विराज को प्रटेक्ट करने वाला काम करेगी।" सहसा इस बीच प्रतिमा ने भी कहा___"मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम अपने आदमी की उस बात पर यकीन कैसे कर सकते हो? क्या उसने अपनी ऑखों से देखा था कि उस जीप पर रितू ही बैठी थी या फिर ये बात किसी ने पक्के तौर पर पूछने पर किसी ने उसे बताई थी?"

"माॅम, ऐसा संभव ही नहीं है।" रितू ने अपनी माॅ की तरफ देख कर कहा___"मैं सिर पटक कर मर जाना पसंद करूॅगी मगर उस कमीने को प्रोटेक्ट करने के बारे में सोचूॅगी भी नहीं। पता नहीं कैसे उस आदमी की उन फिज़ूल बातों पर यकीन कर लिया डैड ने? क्या आपने अपनी बेटी को इतना ही जाना समझा है डैड?"

"पर बेटा ग़लत वो भी तो नहीं है न।" अजय सिंह ने बात को सम्हालते हुए कहा___"उसने ये सब सिर्फ इसी लिए कहा क्योंकि इस गाॅव में हमारे अलावा सिर्फ तुम्हारे ही पास पुलिस की जीप है। इस लिए उसने सोचा कि शायद तुम ही थी उस एम्बूलेन्स के आगे।"
"कमाल है डैड।" रितू ने मन ही मन राहत की साॅस लेते हुए कहा___"आप पढ़े लिखे और वकालत कर चुके होने के बावजूद भी इतना नहीं सोच सके कि अगर इस गाॅव में किसी के पास जीप नहीं तो क्या उसे कहीं भी जीप नहीं मिलती? ऐसा भी तो हो सकता है कि उस विराज ने शहर से ही किसी जीप को किराये पर हायर किया रहा होगा।"
"चलो मान लिया बेटा कि वो कमबख्त उस जीप को शहर से किराये पर ले आया होगा।" अजय सिंह ने कहने के साथ ही शिगार सुलगा लिया था, बोला___"मगर उसे लाने की भला क्या ज़रूरत थी? जबकि उसे इस बात का बखूबी अंदाज़ा था कि जीप में वो कहीं हमारे आदमियों द्वारा पकड़ा जा सकता है। एम्बूलेन्स तो उसके लिए सबसे बढ़िया और सुरक्षित वाहन था, जिसमें वो सबको बैठा कर बड़े आराम से हल्दीपुर से निकल जाता। तो फिर अलग से जीप हायर करने का क्या मतलब हो सकता है भला?"

"आपकी ये बात यकीनन काबिले ग़ौर है डैड।" रितू ने सोचने वाले भाव से कहा___"अलग से किसी जीप को हायर करना यकीनन बेवकूफी वाली बात है। मगर मौजूदा हालात में क्या वो ऐसी बेवकूफी कर सकता है?"
"यही तो सोचने वाली बात है बेटा।" अजय सिंह ने शिगार का कश लेने के बाद उसका धुऑ ऊपर छोंड़ते हुए कहा___"उससे ऐसी बेवकूफी की उम्मीद हर्गिज़ भी नहीं की जा सकती। मगर ये तो सच है न कि उसके आगे आगे जीप चल रही थी।"

"हो सकता है कि ऐसा उसने किसी विशेष प्लान के तहत किया हो डैड।" रितू ने अपने चेहरे पर गहन सोच के भाव दर्शाते हुए कहा___"ये तो आप भी जानते हैं डैड कि वो आपसे खुल कर टकराने की हिम्मत नहीं कर सकता। इस लिए उसने सोचा होगा कि वो हमारे बीच किसी प्रकार की दरार या अविश्वास पैदा कर देगा। उससे होगा ये कि हम आपस में ही एक दूसरे से उलझने लगेंगे। जबकि वो अपना काम करके निकल जाएगा।"
"बात कुछ समझ में नहीं आई बेटी।" प्रतिमा के माथे पर सिलवॅटें उभर आई___"हमारे बीच वो भला कैसे दरार या अविश्वास पैदा कर सकता है?"

"ठीक वैसे ही माॅम।" रितू ने कहा___"जैसे अभी कुछ देर पहले डैड के मन में अपनी बेटी के प्रति हो गया था। ज़रा सोचिए माॅम___ये तो उसे भी पता ही था कि अलग से जीप हायर करने का कोई मतलब नहीं है जबकि एम्बूलेन्स में वो सबको लेकर बड़ी आसानी से यहाॅ से निकल ही जाता। मगर इसके बाद भी उसने ऐसा किया। मतलब कि उसने अलग से एक जीप इस लिए हायर की ताकि जब आपको उसके यहाॅ से जाने का पता चले तो आपके आदमी उसका पता करके आपको उसके बारे में विस्तार से बताएॅ। यानी वो आपको बताएॅ कि एम्बूलेन्स में तो वो अपने साथ सबको लिए बैठा ही था किन्तु उसके आगे आगे अलग से एक जीप भी चल रही थी। जीप का सुन कर आप या आपके आदमी यही सोच बैठेंगे कि जीप तो आपके अलावा सिर्फ मेरे ही पास है, इस लिए उस जीप में मैं ही थी जो उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चल रही थी। आप ये जानते हुए भी कि आपकी बेटी ऐसा करने का सोच भी नहीं सकती है, ऐसा सोच बैठेंगे और बाद में आप मुझ पर शक़ करते हुए मुझसे इसके बारे में ऐसा सब कुछ कहने लगेंगे या पूछने लगेंगे। यही उसका प्लान हो सकता था डैड। अब आप ही बताइये क्या ऐसा नहीं हो सकता?"

रितू की बातें सुन कर अजय तो अजय बल्कि खुद को दिमाग़ की सूरमा समझने वाली प्रतिमा भी आश्चर्य चकित रह गई थी। दोनो ही मियाॅ बीवी अपनी इंस्पेक्टर बेटी की तरफ ऐसी नज़रों से देखने लगे थे जैसे रितू के सिर पर अचानक ही आगरा का ताजमहल आकर कत्थक करने लगा हो। काफी देर तक दोनो के मुख से कोई बोल न फूटा था। फिर जैसे उन दोनो को होश आया। वस्तुस्थित का एहसास होते ही दोनो के चेहरों पर अपनी बेटी की बुद्धि पर प्रशंसा के भाव उभर आए।

"अगर वो वैसा ही कर सकता है जैसा कि तुमने अभी बताया मुझे।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"तो फिर यकीनन उसके दिमाग़ की दाद देनी पड़ेगी। हलाॅकि मुझे पहली बार में अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि वो ऐसा सोच सकता है मगर वर्तमान में मैने उसके बारे में जितना विचार किया है उससे यही पता चला है कि यकीनन वो ऐसा सोच भी सकता है और कर भी सकता है।"

"लेकिन डैड वो कमीना यहाॅ आया किस लिए है?" रितू ने जानबूझ कर ऐसा सवाल किया___"और आपको कैसे पता चला कि वो यहाॅ आया है?"
"हमारी हज़ारों ऑखें हैं बेटी।" अजय सिंह ने बड़े गर्व से कहा___"हमें सबकी ख़बर होती है। ख़ैर छोंड़ो ये सब। जाओ तुम भी आराम कर लो। पता नहीं कहाॅ कहाॅ ड्यूटी के चक्कर में घूमती रहती हो तुम? बेटा कुछ अपना भी ख़याल रखा करो। हमे हर वक्त तुम्हारी फिक्र रहती है।"

"जी डैड।" रितू ने कहने के साथ ही सोफे से उठ कर खड़ी हो गई___"पर आप तो जानते हैं न कि पुलिस की नौकरी का कोई टाइम टेबल नहीं होता। इस लिए कहीं न कहीं तो भटकना ही पड़ता है।"

ये कहने के साथ ही रितू लम्बे लम्बे क़दम बढ़ाती हुई अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। जबकि वो तीनो उसे जाते हुए देखते रह गए। उसके जाने के बाद अजय सिंह ने एक नया शिगार सुलगा लिया और उसके दो तीन गहरे गहरे कश लेने के बाद उसका धुऑ ऊपर की तरफ उछाल दिया। चेहरे पर सोचो के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे उसके।

"तुम्हें क्या लगता है अजय?" सहसा प्रतिमा ने उसके चेहरे के भावों को रीड करते हुए कहा___"रितू की बातों में कितनी सच्चाई है?"
"मतलब तुम्हें भी इस बात का शक है कि हमारी बेटी हमसे झूॅठ बोल रही है?" अजय सिंह ने भावहीन स्वर में कहा___"ये भी कि उसने बड़ी सफाई से अपनी बात साबित भी कर दी।"

"ये बात तो मैं तुमसे पूछ रही हूॅ डियर।" प्रतिमा ने पहलू बदला___"तुमने ही तो उससे कहा था कि जीप में वही बैठी थी ऐसा तुम्हारे आदमी ने फोन पर तुमसे कहा था। अब जबकि रितू ने अपनी सफाई दे दी है तो तुम्हें क्या लगता है अब?"
"मुझे यकीन तो नहीं हो रहा प्रतिमा कि रितू ने विराज को प्रोटेक्ट किया होगा।" अजय सिंह ने कहा___"मगर उसके बदले हुए बिहैवियर की वजह से ऐसा सोचने पर मजबूर भी हो गया हूॅ। उसकी बातों में कितनी सच्चाई है इसका पता लगाना भी ज़रूरी है। इस लिए मैने सोच लिया है कि उस पर नज़र रखने के लिए अपने किसी आदमी को उसके पीछे लगा दूॅगा। इससे कोई न कोई सच्चाई तो पता चल ही जाएगी हमे।"

"हाॅ ये सही सोचा है तुमने।" प्रतिमा ने कहा___"इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। ख़ैर, छोंड़ो ये सब। मेरा तो इस सबसे बहुत सिर दर्द कर रहा है अब। इस लिए मैं जा रही हूॅ अपने कमरे में।"
"ठीक है डियर।" अजय सिंह ने सोफे से उठते हुए कहा___"मैं भी फैक्ट्री के लिए निकल रहा हूॅ।"

ये कह कर अजय सिंह बाहर की तरफ बढ़ गया। उसके जाते ही प्रतिमा ने शिवा की तरफ गहरी नज़रों से देखा और मुस्कुरा दी। शिवा उसकी मुस्कुराहट का मतलब समझ कर खुद भी मुस्कुरा उठा। प्रतिमा सोफे से उठ कर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। उसके जाने के कुछ देर बाद शिवा भी उसी कमरे की तरफ बढ़ गया था।
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