non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:51 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
प्रतिमा की ये बातें सुन कर अजय सिंह के समूचे जिस्म में झुरजुरी सी दौड़ गई। बगल से ही सोफे पर बैठे शिवा की ऑखों के सामने उसके बाप के दोनो हाॅथ कानून की हथकड़ी में बॅधे नज़र आए। इस दृष्य के घूमते ही शिवा की धड़कने एकाएक ही बढ़ चली थी। अभी ये सब ये लोग सोच ही रहे थे कि तभी एक बार फिर से अजय सिंह का मोबाइल बज उठा। हड़बड़ा कर अजय सिंह ने मोबाइल की काल को रिसीव कर मोबाइल को कान से लगा लिया।

".........।" उधर से कुछ देर तक कुछ कहा गया। जिसे सुन कर अजय सिंह के चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे। उधर की बातें सुनने के बाद अजय सिंह ने ये कह कर फोन रख दिया कि____"ठीक है, तुम अपने कुछ आदमियों को गुनगुन रेलवे स्टेशन जाने को बोल दो और बाॅकी के लोग आस पास के क्षेत्र की अच्छे से छानबीन करते रहो।"

"क्या कहा तुम्हारे आदमी ने?" अजय सिंह के फोन रखते ही प्रतिमा ने पूछा था।
"उसने जो कुछ भी मुझे बताया है।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"उसे जान कर मुझे यकीन नहीं हो रहा है प्रतिमा।"
"क्या मतलब??" प्रतिमा के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे___"किस बात का यकीन नहीं हो रहा तुम्हें?"

प्रतिमा के पूछने पर अजय सिंह ने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया। बल्कि चेहरे पर गंभीरता लिए उसने एक नया शिगार सुलगाया और दो तीन जल्दी जल्दी कश लेने के बाद उसने नाॅक व मुह से ढेर सारा धुआॅ उगला। प्रतिमा और शिवा दोनो ही उसके मुख से जवाब सुनने के लिए बेचैन से होने लगे थे। किन्तु अजय सिंह ने शिगार पी लेने के बाद भी कोई जवाब नहीं दिया। वो किसी गहरी सोच में डूबा नज़र आया। प्रतिमा उसके चेहरे पर इस तरह सोच के भाव देख कर चौंकी। उसने अजय सिंह को आवाज़ देकर सोच के सागर से निकाला। हक़ीक़त की दुनियाॅ में आकर अजय सिंह ने गहरी साॅस ली और एक झटके से सोफे पर से उठ कर खड़ा हो गया। उसने शिवा और प्रतिमा दोनो को हवेली चलने को कहा और बाहर की तरफ बढ़ता चला गया। दोनो माॅ बेटा भौचक्के से देखते रह गए थे अजय सिंह को।
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उधर रितू दीदी के फार्महाउस पर!
सुबह हुई और एक नये दिन तथा एक नये जीवन की शुरूआत हुई। सबके प्यार ने और सबके समझाने का असर ये हुआ था कि पिछले दिन की अपेक्षा आज मेरी हालत में काफी हद तक सुधार था। कल तो मैं सदमे में ही डूबा हुआ था। किसी से कोई मतलब ही नहीं था और ना ही किसी से कोई बात करने का दिल कर रहा था। मगर आज मैं काफी हद तक नार्मल था।

जब मेरी नींद खुली तो मैने देखा मेरे दोनो तरफ मुझसे छुपकी हुई मेरी दोनो बहनें सुकून से सो रही थी। उन दोनो के खूबसूरत तथा मासूम से चेहरों को देख कर ही मेरा मन खुश सा हो गया। वो दोनो मुझसे ऐसे छुपकी हुई थी मानो उन्हें डर हो कि मैं उन्हें छोंड़ कर कहीं दूर चला जाऊॅगा। मैं काफी देर तक उन दोनो को एकटक देखता रहा। आशा दीदी की तो ख़ैर बात ही अलग थी किन्तु रितू दीदी की बात सबसे जुदा थी। वो इस लिए क्योंकि बचपन से लेकर अब तक मैं उनके मुख से राज या भाई सुनने को तरस गया था। वो मुझे देखना तक गवाॅरा नहीं करती थी बात करने की तो बहुत दूर की बात है। मगर आज मेरी वही रितू दीदी मुझसे छुपकी हुई सो रही थी। उनके दिल में मेरे लिए बेपनाह प्यार व स्नेह था।

उन्हें इस तरह सुकून से सोते देख जाने क्यों मेरी ऑखों में ऑसू भर आए। मेरे दिल में दर्द की एक तेज़ लहर सी दौड़ गई। अभी मैं इस लहर से ब्यथित हुआ ही था कि सहसा रितू दीदी के सम्पूर्ण जिस्म में हरकत हुई और देखते ही देखते उनकी ऑखें खुल गईं। उनकी नज़र सबसे पहले मुझ पर ही पड़ी। मेरी ऑखों में ऑसू देखते ही वो बेचैन सी नज़र आने लगीं। उन्होंने अपना हाॅथ बढ़ा कर मेरे चेहरे को सहलाया और सिर को ना में हिलाते हुए मुझे इशारा किया कि मैं दुखी न होऊॅ।
इधर आशा दीदी की भी ऑखें खुल गई थी। सिर को ऊपर की तरफ उठा कर उन्होंने मुझे देखा और मेरी ऑखों में ऑसू देखते ही उन पर भी वही प्रतिक्रिया हुई जो रितू दीदी पर हुई थी। दोनो ने एक साथ ऊपर की तरफ खिसक कर मेरे माथे पर हल्के से चूमा। मैं अपनी दोनो बहनों का ये प्यार देख कर अंदर ही अंदर गदगद सा हो गया। मुझे एक अलग ही तरह का एहसास हुआ। ऐसा लगा कि अब मैं यहाॅ पर अकेला नहीं हूॅ बल्कि यहाॅ भी मेरे अपने हैं, जो मुझे इस हद तक प्यार करते हैं।

"तू इस तरह अब कभी दुखी मत होना राज।" रितू दीदी ने गंभीरता से कहा___"मैं मानती हूॅ कि अभी जो कुछ भी हुआ उससे तुझे गहरा सदमा लगा है। मगर तुझे खुद को सम्हालना होगा मेरे भाई। तू मुझे भाई के रूप में मिल गया है इस लिए मैं चाहती हूॅ कि मेरा भाई हमेशा खुश रहे। तेरे पास किसी भी प्रकार का दुख दर्द न आए। मैने भी ठान लिया है कि मैं तुझे कभी भी दुखी नहीं होने दूॅगी, और इसके लिए मैं किसी भी हद तक गुज़र जाऊॅगी।"

"रितू सही कह रही है राज।" आशा दीदी ने कहा__"अब से हम दोनो बहनें तुझे कभी भी दुखी नहीं होने देंगे। उसके लिए चाहे हमें जो भी करना पड़े हम करेंगे।"
"इसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी दीदी।" मैने हल्के से मुस्कुरा कर कहा___"क्योंकि जिसके पास आप जैसी इतना प्यार करने वाली दो दो बहनें हों उसको कोई दुख तक़लीफ कैसे हो जाएगी? आप चिन्ता मत कीजिए धीरे धीरे सब ठी हो जाएगा।"

"ये हुई न बात।" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा__"मुझे पता है कि मेरा स्वीट सा भाई कितना समझदार है। ख़ैर, चल अब तू फ्रेश हो ले। हम दोनो भी फ्रेश हो जाते हैं, उसके बाद नास्ता करेंगे साथ में। मुझे भी थाने जाना पड़ेगा न।"
"मुबारक हो दीदी।" मैने कहा___"आप पुलिस ऑफीसर बन गई हैं। मुझे पता है आपका शुरू से ही ये सपना था कि आप एक दिन पुलिस ऑफिसर बनो। इस लिए इसके लिए आपको ढेर सारी बॅधाईयाॅ दीदी।"

"थैंक्स राज।" दीदी ने कहा___"लेकिन मेरे माॅम डैड को मेरा पुलिस ऑफीसर बनना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा है। आए दिन इस बारे में कोई न कोई बात होती रहती है घर में। मैने भी फैंसला कर लिया है कि अब ये पुलिस की नौकरी छोंड़ दूॅगी।"

"अरे ऐसा क्यों दीदी?" मैने चौंकते हुए कहा___"नहीं नहीं आप ऐसा बिलकुल नहीं करेंगी। पुलिस ऑफीसर बनना आपका ख़्वाब था और जब ये ख़्वाब पूरा हो ही गया है तो इसे इस तरह छोड़ कर अंदर ही अंदर हमेशा के लिए दुखी रहने वाला काम मत कीजिए। रही बात बड़े पापा और बड़ी माॅ की तो मुझे पता है वो ऐसा क्यों चाह रहे हैं?"

"अच्छा क्या पता है तुझे?" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर पूछा___"ज़रा मैं भी तो सुनूॅ।"
"जिनके हाॅथ खून से रॅगे हों।" मैने कहा___"और जो जुर्म की दुनियाॅ से ताल्लुक रखता हो, वो तो पुलिस और कानून से डरेगा ही। आप तो वैसे भी एक तेज़ तर्रार पुलिस ऑफीसर हैं। उन्हें भी पता है कि आपको अगर ये पता चल जाए उनके डैड जुर्म की दुनियाॅ से ताल्लुक रखते हैं तो आप सेकण्ड भर का भी समय नहीं लगाएॅगी उन्हें कानून की गिरफ्त में लेने में। इस लिए वो नहीं चाहते हैं कि आप पुलिस की नौकरी करें।"

मेरी ये बातें सुन कर रितू दीदी ही नहीं बल्कि आशा दीदी भी बुरी तरह उछल पड़ी थी। रितू दीदी मुझे इस तरह देख रही थीं जैसे मैं कोई अजूबा हूॅ।

"तू ये बात इतने यकीन से कैसे कह सकता है कि मेरे डैड जुर्म की दुनियाॅ से ताल्लुक रखते हैं?" रितू दीदी ने चकित भाव से पूछा था।
"मुझे उनके बारे में हर चीज़ पता है दीदी।" मैने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और मैं ये भी जानता हूॅ कि आप भी अपने डैड के बारे में बहुत कुछ जान चुकी हैं।"

"क्या मतलब????" रितू दीदी की ऑखें आश्चर्य से फैल गईं___"मैं बहुत कुछ क्या जान चुकी हूॅ?"
"जाने दीजिए दीदी।" मैने पहलू बदलने की गरज़ से कहा___"उन सब बातों को ज़ुबाॅ पर लाने का कोई मतलब नहीं है। आप ये पूछिये कि मुझे कैसे पता कि आप भी हुत कुछ जानती हैं?"

"हाॅ हाॅ बता न राज।" रितू दीदी के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था, बोली___"मैं जानना चाहती हूॅ कि ये सब तुझे कैसे पता है?"
"बड़ी सीधी सी बात है दीदी।" मैने कहा___"सबसे पहले तो यही कि आपका मेरे प्रति इतना प्यार ही ये ज़ाहिर कर देता है कि आपको उनकी असलियत के बारें में कुछ तो ऐसा पता चला ही जिसके तहत आपके दिल में मेरे प्रति प्यार जाग गया। दूसरी बात ये कि आप इस फार्महाउस में नैना बुआ के साथ रह रही हैं। इससे साबित हो जाता है कि आपको अपने माॅम डैड के बारे में कुछ तो ऐसा पता चल ही चुका है। वरना नैना बुआ को साथ लिए यहाॅ रहने का क्या कारण हो सकता है? तीसरी बात, मेरे दोस्त पवन से कह कर मुझे विधी से मिलाने के लिए मुम्बई से बुलाना। पवन और विधि के द्वारा भी आपको कुछ तो ऐसा पता चल ही चुका होगा जिससे आपको ये लगने लगा कि मैं और मेरी माॅ बहन इतने बुरे नहीं हो सकते जितना आपको बताया गया था बचपन से।"

रितू दीदी मेरी ये बातें सुन कर हैरान रह गईं। फिर सहसा उनके चेहरे पर प्रशंसा के भाव उभर आए। होठों पर हल्की सी मुस्कान भी फैल गई।
"यकीनन तूने बड़ी खूबसूरती से इन सब बातों का अंदाज़ा लगाया है राज।" फिर उन्होंने कहा___"और ये सच है कि मुझे अपने माॅम डैड की असलियत के बारे में पता चल चुका है। किन्तु अभी भी कुछ बातें हैं जिनका मुझे शायद पता नहीं है।"

"डोन्ट वरी दीदी।" मैने कहा___"जब इतना कुछ पता चल गया है तो बाॅकी का भी आपको पता चल ही जाएगा।"
"चल ठीक है मेरे प्यारे भाई।" रितू दीदी ने मेरे चेहरे को प्यार से सहलाया___"मैं तो बस इस बात से ही खुश हूॅ कि मुझे मेरा वो भाई मिल गया है जो सच में मुझे अपनी दीदी मानता है और मेरी इज्ज़त करता है। आने वाले समय में क्या होने वाला है ये तो वक्त ही बताएगा। मैं बस ये चाहती हूॅ कि जितने दिन तू यहाॅ है उतने दिन तक तुझ पर किही भी तरह के ख़तरे को न आने दूॅ।"

"आप फिक्र मत कीजिए दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"आपका ये भाई कोई दूध पीता बच्चा नहीं है जिसे कोई भी चोंट पहुॅचा देगा। इतना तो अब मुझमें सामर्थ है कि मैं अपनी सुरक्षा खुद कर सकूॅ।"
"हाॅ मुझे पता है।" रितू दीदी हॅस कर बोली___"मुझे पता है कि मेरे भाई ने दो मिनट के अंदर मेरे डैड के उतने सारे आदमियों का खात्मा कर दिया था।"

"वो तो बस हो गया दीदी।" मैने कहा___"पर आपके सामने तो कुछ भी नहीं हूॅ मैं। आपने भी तो मेरी सुरक्षा के लिए क्या कुछ नहीं किया है। मैं सोच भी नहीं सकता था कि आप मेरे लिए इतना कुछ कर सकती है।"
"तेरे लिए तो अब कुछ भी कर सकती हूॅ मेरे भाई।" दीदी की आवाज़ भारी हो गई___"बचपन से लेकर अब तक मैने तेरे साथ क्या किया है ये सोच कर ही मुझे खुद से घृणा होने लगती है। इस लिए अब मैं तेरे लिए और अपने भाई के लिए कुछ भी करूॅगी।"

मैने देखा कि ये सब कहते हुए दीदी की ऑखों में ऑसू आ गए थे इस लिए मैने उन्हें खुद से छुपका लिया। वो खुद भी मुझसे किसी जोंक की तरह चिपक गई थी।

"तुम दोनो का हो गया हो तो मेरा भी कुछ ख़याल कर लो।" सहसा आशा दीदी ने कहा___"मुझे तो भुला ही दिया तुम दोनो ने।"
"क्या आप सोच सकती हैं दीदी कि हम आपको भुला देंगे?" मैने आशा दीदी को खुद से छुपकाते हुए कहा था।

ऐसे ही कुछ देर तक हम तीनो भाई बहन एक दूसरे से छुपके रहे फिर हम तीनो अलग हुए। रितू दीदी ने मुझे फ्रेश हो जाने का कहा और खुद भी फ्रेश होने के लिए आशा दीदी को लेकर कमरे से बाहर निकल गईं। उन दोनो के जाने के बाद मैं कुछ देर यूॅ ही बेड पर लेटा किसी सोच में डूबा रहा फिर मैं उठ कर बाथरूम में चला गया।

नास्ते की टेबल पर सब कोई साथ में ही बैठ कर नास्ता कर रहा था। किचेन में हरिया काका की बीवी बिंदिया और पवन की माॅ ने नास्ता तैयार किया था। मैं अपनी नैना बुआ से ठीक तरह से मिला। उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा कर बहुत प्यार दिया और हमेशा खुश रहने की दुवाएॅ दी।

रितू दीदी ने बताया कि आज करुणा चाची भी बच्चों के साथ यहीं आ रही हैं। उनको सुरक्षा पूर्वक यहाॅ पर लाने की जिम्मेदारी खुद रितू दीदी ने ही ली। हलाॅकि मैने उन्हें समझाया भी कि आप आराम से ड्यूटी जाइये, मैं और आदित्य करुणा चाची को उनके बच्चों के साथ सुरक्षित यहाॅ ले आएॅगे, मगर दीदी नहीं मानी। इस लिए मैने भी ज्यादा ज़ोर नहीं दिया। दीदी ने मुझे यहीं पर आराम करने की सलाह दी थी। हलाॅकि मैं चाहता था कि मैं एक बार विधी के घर जाऊॅ और उसके माॅम डैड का हाल चाल देख लूॅ मगर रितू दीदी ने कहा कि वो सब देख सुन लेंगी।

नास्ता करने के बाद रितू दीदी अपनी पुलिस जिप्सी में बैठ कर थाने चली गईं। नैना बुआ, आशा दीदी और पवन की माॅ ये तीनो एक साथ ही बातें करने में लग गईं। जबकि मैं पवन और आदित्य फार्महाउस के बाहर की तरफ आ गए। मैने देखा कि फार्महाउस काफी लंबा चौड़ा था। बाहर फ्रंट गेट पर दो बंदूखधारी खड़े थे। गेट के बगल से ही एक छोटी सी चौकी बनी हुई थी। जो शायद उन दोनो बंदूखधारियों के आराम करने के लिए थी।

हम तीनो एक साथ बाॅई तरफ बढ़ गये। उस तरफ एक सुंदर सा पेड़ था जिसके नीचे हरी हरी घास उगी हुई थी तथा पेड़ के पास ही स्टील की बड़ी बड़ी दो तीन बेंच रखी हुई थी बैठने के लिए। हम तीनो जाकर उन बेंचों पर बैठ गए। कल विधी वाले मैटर के बाद से हम तीनो कुछ बुझे बुझे से थे। मुझे रह रह कर विधी के बारे में वो सब याद आ जाता था जिसकी वजह से मेरा दिल दुखने लगता था।

"वैसे विराज।" सहसा आदित्य ने कहा___"हम यहाॅ से कब निकलने वाले हैं? ये जो कुछ भी हुआ वो यकीनन बहुत दुखद हुआ है मगर ये भी सच है दोस्त कि हमें जीवन में आगे बढ़ना ही होता है। ये सब तुम्हीं ने मुझसे कहा था न? इस लिए दोस्त विधी की खूबसूरत यादों को दिल में ही दबा के रखो और आगे बढ़ो।"

"मैं जानता हूॅ आदित्य।" मैने भारी मन से कहा___"मुझे पता है कि इस सबको लेकर बैठ जाने का कोई मतलब नहीं निकलने वाला है। मगर एक दो दिन मैं यहीं रह कर खुद को और अपने दिल को शान्त कर लेना चाहता हूॅ। मैं नहीं चाहता कि मेरे चेहरे पर छाई उदासी या किसी दुख के भाव को देख कर मुम्बई में मेरी माॅ और बहन को कुछ पता चल जाए। वो मुझे किसी भी कीमत पर दुखी नहीं देख सकती हैं।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है दोस्त।" आदित्य ने कहा__"पर ये भी तो सोचो कि यहाॅ पर ज्यादा दिन तुम्हारा रुकना ठीक नहीं है। तुम्हारी जान को हर वक्त ख़तरा बना रहेगा।"
"मैं किसी ख़तरे से नहीं डरता आदित्य।" सहसा मेरे चेहरे पर कठोरता आ गई___"पहले मुझे कुछ पता नहीं था और मैं किसी दूसरे उद्देश्य से यहाॅ आया था इस लिए मैं अजय सिंह या उसके आदमियों से उलझना नहीं चाहता था। मगर अब मुझे किसी की कोई परवाह नहीं है। मैं भी तो देखूॅ कि अजय सिंह कैसे मेरा बाल बाॅका करता है?"

"ये सब तुम आवेश में कह रहे हो दोस्त।" आदित्य ने कहा___"जबकि तुम भूल रहे हो कि इस वक्त तुम्हारी कई कमज़ोरियाॅ तुम्हारे साथ साथ हैं। अगर तुम अकेले होते तो मान सकता था कि तुम धड़ल्ले के साथ उन सबका मुकाबला कर लेते मगर इस वक्त तुम अकेले नहीं हो। पवन और उसकी माॅ बहन भी तुम्हारे साथ हैं और तुम्हारे अभय चाचा के बीवी बच्चे भी तुम्हारे साथ तुम्हारी कमज़ोरी के रूप में जुड़ जाएॅगे। उस सूरत में तुम खुद की सुरक्षा करोगे या उन लोगों की जो इस वक्त तुम्हारे साथ जुड़ गए हैं?"

"आदित्य सही कह रहा है राज।" पवन ने भी हस्ताक्षेप किया___"इस वक्त तुम किसी से उलझने की पोजीशन में नहीं हो। दूसरी बात ये भी है कि मान लो अगर तुम्हारे बड़े पापा को ये पता चल गया कि तुम्हारे हर काम में तुम्हारी मदद रितू दीदी भी कर रही हैं तो सोचो क्या होगा? अरे रितू दीदी के लिए भी उनका ख़तरा हो जाएगा। भला अजय चाचा ये कैसे बरदास्त कर पाएॅगे कि उनकी बेटी उनके सबसे बड़े दुश्मन का साथ दे रही है? जिस तरह का कैरेक्टर तुम्हारे बड़े पापा का है उससे यही बात सामने आती है कि वो ये सब जानने के बाद अपनी बेटी को किसी भी सूरत में माफ़ नहीं करेंगे।"

"मैं पवन की इस बात से पूरी तरह सहमत हूॅ।" आदित्य ने कहा___"तुम अपनी वजह से भला अपनी रितू दीदी की जान को भी संकट में कैसे डाल सकते हो? उनके हित के बारे में सोचना तुम्हारा सबसे बड़ा फर्ज़ होना चाहिए दोस्त। उन्होंने तुम्हारी सुरक्षा के लिए क्या कुछ नहीं किया है?"

"कभी कभी वक्त और हालात के हिसाब से भी कोई फैंसला लेना चाहिए राज।" पवन ने कहा___"विधी के जाने का दुख हम सबको है मगर खुद विधी भी ये नहीं चाहेगी कि तुम पर या तुम्हारी वजह से किसी और पर कोई ऐसा संकट आए। इस लिए मैं यही कहूॅगा कि जितना जल्दी हो सके हमें यहाॅ से निकल जाना चाहिए। मैं तुम्हें जंग के लिए नहीं रोंक रहा भाई, वो तो तसल्ली से और सबको सुरक्षित करने के बाद भी की जा सकती है।"

"ठीक है यार।" मैने उन दोनो की बातों पर विचार करते हुए कहा___"जैसा तुम दोनो कहोगे मैं वैसा ही करूॅगा। हम सब कल ही यहाॅ से मुम्बई के लिए निकलेंगे। सबकी टिकटों का इंतजाम करवाता हूॅ मैं।"
"उसकी ज़रूरत नहीं है दोस्त।" आदित्य ने कहा__"सबकी टिकटों का इंतजाम हो गया है। मैने कल ही सर(जगदीश ओबराय) से बात की थी। उन्हें मैने यहाॅ कुछ बातें संक्षेप में बताई थी, और ये भी कहा था कि वो हम सबकी टिकटों का इंतजाम करवा दें। आज सुबह मेरे मोबाइल पर उन्होंने सबकी टिकट की पिक व्हाट्सएप पर भेज दी हैं।"

"चलो ये अच्छा हुआ।" मैने कहा___"लेकिन एक बात अभी भी सोचने वाली है। वो ये कि देर सवेर अजय सिंह को ये पता चल भी सकता है कि रितू दीदी मेरी हर तरह से मदद कर रही थी। इस लिए अगर ऐसा हुआ तो रिते दीदी के लिए भी ख़तरा हो सकता है।"

"तो तुम अब क्या चाहते हो?" आदित्य ने पूछा।
"मैं तो यही चाहूॅगा यार कि रितू दीदी पर कोई संकट न आए।" मैने कहा___"हलाॅकि वो एक पुलिस ऑफिसर हैं और किसी भी ख़तरे से निपटने के लिए वो खुद ही सक्षम हैं मगर फिर भी उन्हें यहाॅ अकेला छोंड़ देने का मेरा दिल नहीं करता है। दूसरी बात उनके साथ नैना बुआ भी तो हैं। रितू दीदी के साथ वो भी तो अजय सिंह के लपेटे में आ सकती हैं।"

"मेरे ख़याल से इस में इतना सोच विचार करने की ज़रूरत नहीं है राज।" पवन ने कहा___"रितू दीदी के रहते ये सब हो जाने का चान्स बहुत ही कम है। फिर भी अगर उन्हें लगेगा कि उन दोनो पर ख़तरा है तो वो अपनी सुरक्षा के लिए अपने आला अधिकारियों से पुलिस प्रोटेक्शन भी ले सकती हैं। मुझे यकीन है कि अजय चाचा उस सूरत में उनका और नैना बुआ का कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे।"

"यस पवन इज राइट।" आदित्य ने कहा___"इस लिए तुम्हें रितू दीदी और नैना बुआ की फिक्र नहीं करनी चाहिए।"
"ठीक है भाई।" मैने गहरी साॅस ली___"तो फाइनल हो गया कि हम सब कल यहाॅ से मुम्बई के लिए निकल लेंगे।"

मेरी इस बात से पवन और आदित्य मुस्कुरा कर रह गए। मैंने इधर उधर नज़रें घुमाई तो मेरी नज़र फार्महाउस के गेट पर खड़े दोनो बंदूखधारियों पर पड़ी। वो दोनो हॅस हॅस के कुछ बातें कर रहे थे। एक ब्यक्ति दूसरे वाले की पीठ भी ठोंक रहा था। मुझे समझ न आया कि ये दोनो ऐसी कौन सी बात पर हॅस रहे हैं और दूसरा उसकी पीठ ठोंक रहा है।

ख़ैर, कुछ देर तक हम वहीं बेंच पर बैठे रहे। उसके बाद हम तीनो उठे और वापस अंदर की तरफ बढ़ने लगे। अभी मैं दो चार क़दम ही आगे बढ़ा था कि उन दो बंदूखधारियों में से एक उससे कुछ बोला और फिर एक बार हम तीनों की तरफ सरसरी नज़र से देखा। उसके बाद वो मुस्कुराते हुए ही फार्महाउस के बाएॅ साइड बने एक अलग दरवाजे की तरफ बढ़ गया। मेरी नज़र बराबर उसी पर थी, वो आदमी उस दरवाजे के पास पहुॅच कर एक बार पहले वाले आदमी की तरफ मुस्कुरा कर देखा उसके बाद दरवाजे के अंदर दाखिल हो गया। मेरे मन में उसकी इन सब क्रियाओं से संदेह पैदा हो गया।
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