non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:50 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उसके चेहरे के बदले हुए उन भावों को देख कर भी मेरे अंदर की नफ़रत और आक्रोश में कोई कमी नहीं आई। मेरी ऑखों के सामने कोई और ही मंज़र घूम रहा था। गुज़रे हुए कल की तस्वीरें बार बार ऑखों के सामने घूम रही थीं। अभी मैं इन सब तस्वीरों को देख ही रहा था कि तभी बेजान हो चुके विधी के जिस्म में हल्का सा कंपन हुआ और उसके थरथराते हुए होठों से जो लड़खड़ाता हुआ शब्द निकला उसने मुझे दूसरी दुनियाॅ से लाकर इस हकीक़त की दुनियाॅ में पटक दिया।

"र..राऽऽऽज।" बहुत ही करुण भाव से मगर लरज़ता हुआ विधी का ये स्वर मेरे कानो से टकराया। हकीक़त की दुनियाॅ में आते ही मेरी नज़र विधी के चेहरे पर फिर से पड़ी तो इस बार मेरा समूचा अस्तित्व हिल गया। विधी की ऑखों से ऑसू बह रहे थे, उसके चेहरे पर अथाह पीड़ा के भाव थे। ये सब देख कर मेरा हृदय हाहाकार कर उठा। पल भर में मेरे अंदर मौजूद उसके प्रति मेरी नफ़रत घृणा और गुस्सा सब कुछ साबुन के झाग की तरह बैठता चला गया। मेरे टूटे हुए दिल के किसी टुकड़े में दबा उसके लिए बेपनाह प्यार चीख उठा।

मैने देखा कि करवॅट के बल लेटी विधी का एक हाॅथ धीरे से ऊपर की तरफ ऐसे अंदाज़ में उठा जैसे वो मुझे अपने पास बुला रही हो। मेरा समूचा जिस्म ही नहीं बल्कि अंदर की आत्मा तक में एक झंझावात सा हुआ। मैं किसी सम्मोहन के वशीभूत होकर उसकी तरफ बढ़ चला। इस वक्त जैसे मैं खुद को भूल ही चुका था। कुछ ही पल में मैं विधी के पास उसके उस उठे हुए हाॅथ के पास पहुॅच गया।

"त तुम आ गए राज।" मुझे अपने करीब देखते ही उसने अपने उस उठे हुए हाथ से मेरी बाॅई कलाई को पकड़ते हुए कहा___"मैं तुम्हारे ही आने का यहाॅ इन्तज़ार कर रही थी। मेरी साॅसें सिर्फ तुम्हें ही देखने के लिए बची हुई हैं।"

मेरे मुख से उसकी इन बातों पर कोई लफ्ज़ न निकला। किन्तु मैं उसकी आख़िरी बात सुन कर बुरी तरह चौंका ज़रूर। हैरानी से उसकी तरफ देखा मैने। मगर फिर अचानक ही जाने क्या हुआ मुझे कि मेरे चेहरे पर फिर से वही नफ़रत और गुस्सा उभर आया। मैने एक झटके से उसके हाॅथ से अपनी कलाई को छुड़ा लिया।

"अब ये कौन सा नया नाटक शुरू किया है तुमने?" मेरे मुख से सहसा गुर्राहट निकली___"और क्या कहा तुमने कि तुम मेरा ही इन्तज़ार कर थी? भला क्यों कर रही थी मेरा इन्तज़ार? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें पता चल गया हो कि इस समय मैं फिर से रुपये पैसे वाला हो गया हूॅ? इस लिए पैसों के लिए फिर से मुझे बुला लिया तुमने। वाह क्या बात है जवाब नहीं है तेरा। अब समझ में आई सारी बात मुझे। मुझे मुम्बई से बुलाने के लिए मेरे ही दोस्त का इस्तेमाल किया तूने। क्या दिमाग़ लगाया है तूने लड़की क्या दिमाग़ लगाया है। मगर तेरे इस दिमाग़ लगाने से अब कुछ नहीं होने वाला। मैं तेरे इस नाटक में फॅसने वाला नहीं हूॅ अब।
इतना तो सबक सीख ही लिया है मैने कि तुझ जैसी लड़की से कैसे दूर रहा जाता है। मुश्किल तो था मगर सह लिया है मैने, और अब उस सबसे बहुत दूर निकल गया हूॅ। अब कोई लड़की मुझे अपने रूप जाल में या अपने झूठे प्यार के जाल में नहीं फॅसा सकती। इस लिए लड़की, ये जो तूने नाटक रचा है न उसे यहीं खत्म कर दे। अब कुछ नहीं मिलने वाला यहाॅ। मेरा यार भोला था नासमझ था इस लिए तेरी बातों के जाल में फॅस गया और मुझे यहाॅ बुला लिया। मगर चिंता मत कर मैं अपने यार को सम्हाल लूॅगा।"

मैने ये सब बिना रुके मानो एक ही साॅस में कह दिया था और कहने के बाद उसके पास एक पल भी रुकना गवाॅरा न किया। पलट कर वापस चल दिया, दो क़दम चलने के बाद सहसा मैं रुका और पलट कर बोला___"एक बात कहूॅ। आज भी तुझे उतना ही प्यार करता हूॅ जितना पहले किया करता था मगर बेपनाह प्यार करने के बावजूद अब तुझे पाने की मेरे दिल में ज़रा सी भी हसरत बाॅकी नहीं है।"

ये कह कर मैं तेज़ी से पलट गया। पलट इस लिए गया क्योंकि मैं उस बेवफा को अपनी ऑखों में भर आए ऑसुओं को दिखाना नहीं चाहता था। मेरा दिल अंदर ही अंदर बुरी तरह तड़पने लगा था। मुझे लग रहा था कि मैं हास्पिटल के बाहर दौड़ते हुए जाऊॅ और बीच सड़क पर घुटनों के बल बैठ कर तथा आसमान की तरफ चेहरा करके ज़ोर ज़ोर से चीखूॅ चिल्लाऊॅ और दहाड़ें मार मार कर रोऊॅ। सारी दुनियाॅ मेरा वो रुदन देखे मगर वो न देखे सुने जिसे मैं आज भी टूट कर प्यार करता हूॅ।

"तुम्हारी इन बातों से पता चलता है राज कि तुम आज के समय में मुझसे कितनी नफ़रत करते हो।" सहसा विधी की करुण आवाज़ मेरे कानों पर पड़ी____"और सच कहूॅ तो ऐसा तुम्हें करना भी चाहिए। मुझे इसके लिए तुमसे कोई शिकायत नहीं है। मैने जो कुछ भी तुम्हारे साथ किया था उसके लिए कोई भी यही करता। मगर, मेरा यकीन करो राज मेरे मन में ना तो पहले ये बात थी और ना ही आज है कि मैने पैसों के लिए ये सब किया।"

"बंद करो अपनी ये बकवास।" मैने पलट कर चीखते हुए कहा था, बोला___"तेरी फितरत को अच्छी तरह जानता हूॅ मैं। आज भी तूने मुझे इसी लिए बुलवाया है क्योंकि तुझे पता चल चुका है कि अब मैं फिर से पैसे वाला हो गया हूॅ। पैसों से प्यार है तुझे, पैसों के लिए तू किसी भी लड़के के दिल के साथ खिलवाड़ कर सकती है। मगर, अब तेरी कोई भी चाल मुझ पर चलने वाली नहीं है समझी? मेरा दिल तो करता है कि इसी वक्त तुझे तेरे किये की सज़ा दूॅ मगर नहीं कर सकता मैं ऐसा। क्योंकि मुझसे तेरी तरह किसी को चोंट पहुॅचाना नहीं आता और ना ही मैं अपने मतलब के लिए तेरे साथ कुछ करना चाहता हूॅ। तुझे अगर मैं कोई दुवा नहीं दे सकता तो बद्दुवा भी नहीं दूॅगा।"

मेरी बातें सुन कर विधी के दिल में कदाचित टीस सी उभरी। उसकी ऑखें बंद हो गई और बंद ऑखों से ऑसुओं की धार बह चली। मगर फिर जैसे उसने खुद को सम्हाला और मेरी तरफ कातर भाव से देखने लगी। उसे इस तरह अपनी तरफ देखता पाकर एक बार मैं फिर से हिल गया। मेरे दिल में बड़ी ज़ोर की पीड़ा हुई मगर मैने खुद को सम्हाला। आज भी उसके चेहरे की उदासी और ऑखों में ऑसू देख कर मैं तड़प जाता था किन्तु अंदर से कोई चीख कर मुझसे कहने लगता इसने तेरे प्यार की कदर नहीं की। इसने तुझे धोखा दिया था। तेरी सच्ची चाहत को मज़ाक बना कर रख दिया था। बस इस एहसास के साथ ही उसके लिए मेरे अंदर जो तड़प उठ जाती थी वो कहीं गुम सी हो जाती थी।

"तुमने तो मुझे कोई सज़ा नहीं दी राज।" सहसा विधी ने पुनः करुण भाव से कहा___"मगर मेरी ज़िदगी ने मुझे खुद सज़ी दी है। ऐसी सज़ा कि मेरी साॅसें बस चंद दिनों की या फिर चंद पलों की ही मेहमान हैं। किस्मत बड़ी ख़राब चीज़ भी होती है, एक पल में हमसे वो सब कुछ छीन लेती है जिसे हम किसी भी कीमत पर किसी को देना नहीं चाहते। किस्मत पर किसी का ज़ोर नहीं चलता राज। ये मेरी बदकिस्मती ही तो थी कि मैने तुम्हारे साथ वो सब किया। मगर यकीन मानो उस समय जो मुझे समझ में आया मैने वही किया। क्योंकि मुझे कुछ और सूझ ही नहीं रहा था। भला मैं ये कैसे सह सकती थी कि मेरी छोटी सी ज़िदगी के साथ तुम इस हद तक मुझे प्यार करने लगो कि मेरे मरने के बाद तुम खुद को सम्हाल ही न पाओ? उस समय मैने तुम्हें धोखा दिया मगर उस समय के मेरे धोखे ने तुम्हें इतना भी टूट कर बिखरने नहीं दिया कि बाद में तुम सम्हल ही न पाते। मैं मानती हूॅ कि दिल जब किसी के द्वारा टूटता है तो उसका दर्द हमेशा के लिए दिल के किसी कोने में दबा बैठा रहता है। मगर, उस समय के हालात में तुम टूटे तो ज़रूर मगर इस हद तक नहीं बिखरे। वरना आज मेरे सामने इस तरह खड़े नहीं रहते। आज तुम जिस मुकाम पर हो वहाॅ नहीं पहुॅच पाते।"

विधी की बातें सुन कर मुझे कुछ समझ न आया कि ये क्या अनाप शनाप बके जा रही है? मगर उसके लहजे में और उसके भाव में कुछ तो ऐसा था जिसने मुझे कुछ हद तक शान्त सा कर दिया था।

"तो तुम क्या चाहती थी कि मैं टूट कर बिखर जाता और फिर कभी सम्हलता ही नहीं?" मैने तीके भाव से कहा___"अरे मैं तो आज भी उसी हालत में हूॅ। मगर कहते हैं न कि इंसान के जीवन में सिर्फ उसी बस का हक़ नहीं होता बल्कि उसके परिवार वालों का भी होता है। मेरी माॅ मेरी बहन ने मुझे प्यार ही इतना दिया है कि मैं बिखर कर भी नहीं बिखरा। मैने भी सोच लिया कि ऐसी लड़की के लिए क्या रोना जिसने प्यार को कभी समझा ही नहीं? रोना है तो उनके लिए रोओ जो सच में मुझसे प्यार करते हैं।"

"ये तो खुशी की बात है कि तुमने ऐसा सोचा और खुद को सम्हाल लिया।" विधी ने फीकी मुस्कान के साथ कहा__"मैं भी यही चाहती थी कि तुम उस सबसे खुद को सम्हाल लो और जीवन में आगे बढ़ जाओ। किसी एक के चले जाने से किसी का जीवन रुक नहीं जाता। समझदार इंसान को सबकुछ भूल कर आगे बढ़ जाना चाहिए। वही तुमने किया, इस बात से मैं खुश हूॅ राज। यही तो चाहती थी मैं। यकीन मानो तुम्हें आज इस तरह देख कर मेरे मन का बोझ उतर गया है। मैं तुमसे ये नहीं कहूॅगी कि तुम मुझे उस सबके लिए माफ़ कर दो जो कुछ मैने तुम्हारे साथ किया था। अगर तुम ऐसे ही खुश हो तो भला मैं माफ़ी माॅग कर तुम्हारी उस खुशी को कैसे मिटा सकती हूॅ? अब तुम जाओ राज, जीवन में खूब तरक्की करो और अपनों के साथ साथ खुद को भी खुश रखो। और हाॅ, जीवन में मुझे कभी याद मत करना, क्योंकि मैं याद करने लायक नहीं हूॅ।"

विधी की इन विचित्र बातों ने मुझे उलझा कर रख दिया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आज इसे हो क्या गया है? ये तो ऐसी बातें कह रही थी जैसे कोई उपदेशक हो। मेरे दिलो दिमाग़ में तरह तरह की बातें चलने लगी थीं।

"जाते जाते मेरी एक आरज़ू भी पूरी करते जाओ राज।" विधी का वाक्य मेरे कानों से टकराया___"हलाॅकि तुमसे कोई आरज़ू रखने का मुझे कोई हक़ तो नहीं है मगर मैं जानती हूॅ कि तुम मेरी आरज़ू ज़रूर पूरी करोगे।" कहने के बाद विधी कुछ पल के लिए रुकी फिर बोली___"मेरे पास आओ न राज। मैं तुम्हें और तुम्हारे चेहरे को जी भर के देखना चाहती हूॅ। तुम्हारे चेहरे की इस सुंदर तस्वीर को अपनी ऑखों में फिर से बसा लेना चाहती हूॅ। मेरी ये आरज़ू पूरी कर दो राज। इतना तो कर ही सकते हो न तुम?"

विधी की बात सुन कर मेरे दिलो दिमाग़ में धमाका सा हुआ। मेरे पूरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। पेट में बड़ी तेजी से जैसे कोई गैस का गोला घूमने लगा था। दिमाग़ एकदम सुन्ना सा पड़ता चला गया। कानों में कहीं दूर से सीटियों की अनवरत आवाज़ गूॅजती महसूस हुई मुझे। पल भर में मेरे ज़हन में जाने कितने ही प्रकार के ख़याल आए और जाने कहाॅ गुम हो गए। बस एक ही ख़याल गुम न हुआ और वो ये था कि विधी ऐसा क्यों चाह रही है?

किसी गहरे ख़यालों में खोया हुआ मैं इस तरह विधी की तरफ बढ़ चला जैसे मुझ पर किसी तरह का सम्मोहन हो गया हो। कुछ ही पल में मैं विधी के करीब उसके चेहरे के पास जा कर खड़ा हो गया। मेरे खड़े होते ही विधी ने किसी तरह खुद को उठाया और बेड की पिछली पुश्त से पीठ टिका लिया। अब वो अधलेटी सी अवस्था में थी। चेहरा ऊपर करके उसने मेरे चेहरे की तरफ देखा। उसकी ऑखों में ऑसुओं का गरम जल तैरता हुआ नज़र आया मुझे। मैने पहली बार उसके चेहरे को बड़े ध्यान से देखा और अगले ही पल बुरी तरह चौंक पड़ा मैं। मुझे विधी के चेहरे पर मुकम्मल खिज़ा दिखाई दी। जो चेहरा हर पल ताजे खिले गुलाब की मानिन्द खिला हुआ रहा करता था आज उस चेहरे पर वीरानियों के सिवा कुछ न था। ऐसा लगता था जैसे वो शदियों से बीमार हो।

उसे इस हालत में देख कर एक बार फिर से मेरा दिल तड़प उठा। जी चाहा कि अभी झपट कर उसे अपने सीने से लगा लूॅ मगर ऐन वक्त पर मुझे उसका धोखा याद आ गया। उसका वो दो टूक जवाब देना याद आ गया। मुझे भिखारी कहना याद आ गया। इन सबके याद आते ही मेरे चेहरे पर कठोरता छाती चली गई। एक बार फिर से मेरे अंदर से नफ़रत और गुस्सा उभर कर आया और मेरे चेहरे तथा ऑखों में आकर ठहर गया।

"मैं तुम्हें दुवा में ये भी नहीं कह सकती कि तुम्हें मेरी उमर लग जाए।" तभी विधी ने छलक आए ऑसुओं के साथ कहा___"बस यही दुवा करती हूॅ कि तुम हमेशा खुश रहो। जीवन में हर कोई तुम्हें दिलो जान से प्यार करे। कभी किसी के द्वारा तुम्हारा दिल न दुखे। खुदा मिलेगा तो उससे पूछूॅगी कि मैने ऐसा क्या गुनाह किया था जो उसने मुझे ऐसी ज़िंदगी बक्शी थी? ख़ैर, अब तुम जाओ राज, मैने तुम्हारी तस्वीर को इस तरह अपनी ऑखों में बसा लिया है कि अब हर जन्म में मुझे सिर्फ तुम ही नज़र आओगे।"

विधी की इस बात से एक बार फिर से मेरे चेहरे पर उभर आए नफ़रत व गुस्से में कमी आ गई। मैंने उसे अजीब भाव से देखा। मेरे अंदर कोई ज़ोर ज़ोर से चीखे जा रहा था कि इसे एक बार अपने सीने से लगा ले राज। मगर मैने अपने अंदर के उस शोर को शख्ती से दबा दिया और पलट कर कमरे के बाहर की तरफ चल दिया। मैने महसूस किया कि मेरी कोई अनमोल चीज़ मुझसे हमेशा के लिए दूर हुई जा रही है। मेरे दिल की धड़कने अनायास ही ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगी। मनो मस्तिष्क में बड़ी तेज़ी से कोई तूफान चलने लगा था। अभी मैं दरवाजे के पास ही पहुॅचा था कि.....

"रुक जाओऽऽ।" ये वाक्य एक नई आवाज़ के साथ मेरे कानों से टकराया था। दरवाजे के करीब बढ़ते हुए मेरे क़दम एकाएक ही रुक गए। मैं बिजली की सी तेज़ी से पलटा। कमरे में ही बेड के पास खड़ी जिस शख्सियत पर मेरी नज़र पड़ी उसे देख कर मैं हक्का बक्का रह गया। आश्चर्य और अविश्वास से मेरी ऑखें फटी की फटी रह गईं। मुझे अपनी ऑखों पर यकीन नहीं हुआ कि जिस शख्सियत को मेरी ऑखें देख रही हैं वो सच में वही हैं या फिर ये मेरी ऑखों का कोई भ्रम है।

"मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी राज।" सहसा ये नई आवाज़ फिर से मेरे कानों से टकराई___"तुम इस तरह कैसे यहाॅ से जा सकते हो? इतनी बेरुख़ी तो कोई अपने किसी दुश्मन से भी नहीं जाहिर करता जितनी तुम विधी को देख कर ज़ाहिर कर रहे हो।"

इस बार मैं बुरी तरह चौंका। ये तो सच में वही हैं। यानी रितू दीदी। जी हाॅ दोस्तो, ये वही रितू दीदी हैं जिन्होंने अपने जीवन में कभी भी मुझे भाई नहीं माना और ना ही मुझसे बात करना ज़रूरी समझा। मगर मैं इस बात से हैरान था कि वो यहाॅ कैसे मौजूद हो सकती हैं? जब मैं आया था इस कमरे में तब तो ये यहाॅ नहीं थी, फिर अचानक ये कहाॅ से यहाॅ पर प्रकट हो गईं?

"प्लीज़ दीदी।" तभी बेड पर अधलेटी अवस्था में बैठी विधी ने रितू दीदी से कहा___"कुछ मत कहिए उसे।"
"नहीं विधी।" रितू दीदी ने आवेशयुक्त भाव से कहा__"मुझे बोलने दे अब। माना कि तूने जो किया वो उस समय के हिसाब से ग़लत था मगर इसका मतलब ये नहीं कि बिना किसी बात को जाने समझे ये तुझे इस तरह बोल कर यहाॅ से चला जाए।"

"नहीं दीदी प्लीज़।" विधी ने विनती करते हुए कहा___"ऐसा मत कहिए उसे। मुझे किसी बात की सफाई नहीं देना है उससे। आप जानती हैं कि मैं उसे किसी भी तरह का दुख नहीं देना चाहती अब।"
"क्यों करती है रे ऐसा तू?" रितू दीदी की आवाज़ सहसा भारी हो गई, ऑखों में ऑसू आ गए, बोली___"ऐसा मत कर विधी। वरना ये ज़मीन और वो आसमान फट जाएगा। तू चाहती थी न कि तू अपने आख़िरी समय में अपने इस महबूब की बाहों में ही दम तोड़े? फिर क्यों अब इस सबसे मुकर रही हो तू? अब तक तो तड़प ही रही थी न तो अब अपने अंतिम समय में क्यों इस तड़प को लेकर जाना चाहती है? नहीं नहीं, मैं ऐसा हर्गिज़ नहीं होने दूॅगी।"

रितू दीदी की बातें सुन कर मेरे दिलो दिमाग़ में भयंकर विष्फोट हुआ। ऐसा लगा जैसे आसमान से कोई बिजली सीधा मेरे दिल पर गिर पड़ी हो। पलक झपकते ही मेरी हालत ख़राब हो गई। दिमाग़ में हर बात बड़ी तेज़ी से घूमने लगी। एक एक बात, एक एक दृष्य मेरे ज़हन से टकराने लगे। पवन का मुझे फोन करके यहाॅ अर्जेन्ट बुलाना, मेरे द्वारा वजह पूछने पर उसका अब तक चुप रहना। हास्पिटल के इस कमरे के बाहर से ये कह कर चले जाना कि मैं यहाॅ जो कुछ भी देखूॅ सुनूॅ उसे देख सुन कर खुद को सम्हाले रखूॅ। हास्पिटल के इस कमरे के अंदर विधी का मुझसे मिलना, उसकी वो सब विचित्र बातें और अब रितू दीदी का यहाॅ मौजूद होकर ये सब कहना। ये सब चीज़ें मेरे दिलो दिमाग़ में बड़ी तेज़ी घूमने लगी थी।

मुझे अब समझ आया कि असल माज़रा क्या है। मेरे दिमाग़ ने काम करना शुरू कर दिया और अब मुझे सब कुछ समझ में आने लगा था। दरअसल विधी को कुछ हुआ है जिसके लिए पवन ने मुझे यहाॅ बुलाया था। मगर विधी को ऐसा क्या हो गया है? रितू दीदी ने ये क्या कहा कि____ "तू चाहती थी न कि तू अपने आख़िरी समय में अपने इस महबूब की बाहों में ही दम तोड़े?" हे भगवान! ये क्या कहा रितू दीदी ने?

"नननहींऽऽऽऽ।" अपने ही सोचों में डूबा मैं पूरी शक्ति से चीख पड़ा था, पल भर में मेरी ऑखों से ऑसुओं का जैसे कोई बाॅध टूट पड़ा। मैं भागते हुए विधी के पास आया। इधर मेरी चीख से रितू दीदी और विधी भी चौंक पड़ी थी।

मैं भागते हुए विधी के पास आया था, बेड के किनारे पर बैठ कर मैने विधी को उसके दोनो कंधों से पकड़ कर खुद से छुपका लिया और बुरी तरह रो पड़ा। मैं विधी को अपने सीने से बुरी तरह भींचे हुए था। मेरे मुख से कोई बोल नहीं फूट रहा था। मैं बस रोये जा रहा था। मुझे समझ में आ चुका था कि विधी को कुछ ऐसा हो गया है जिससे वो मरने वाली है। ये बात मेरे लिए मेरी जान ले लेने से कम नहीं थी।

"नहीं राज।" विधी मुझसे छुपकी खुद भी रो रही थी, किन्तु उसने खुद को सम्हालते हुए कहा___"इस तरह मत रोओ। मैं अपनी ऑखों के सामने तुम्हें रोते हुए नहीं देख सकती। प्लीज़ चुप हो जाओ न।"
"नहीं नहीं नहीं।" मैंने तड़पते हुए कहा___"तुम मुझे छोंड़ कर कहीं नहीं जाओगी। तुम नहीं जानती कि तुम्हारे लिए कितना तड़पा हूॅ मैं। पर अब और नहीं विधी। मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूॅगा।"

"पागल मत बनो राज।" विधी ने मेरे सिर को सहलाते हुए कहा___"खुद को सम्हालो और जीवन में आगे बढ़ो।"
"मैं कुछ नहीं जानता विधी।" मैने सिसकते हुए कहा___"मैं फिर से तुम्हें खोना नहीं चाहता। मुझे बताओ कि क्या हुआ है तुम्हें? मैं तुम्हारा इलाज़ करवाऊॅगा। दुनियाॅ भर के डाक्टरों को तुम्हारे इलाज़ के लिए पल भर में ले आऊॅगा।"

"अब कुछ नहीं हो सकता राज।" विधी ने सहसा मुझसे अलग होकर मेरे चेहरे को अपनी दोनो हॅथेलियों में लेते हुए कहा___"मैने कहा न कि मेरा सफर खत्म हो चुका है। मुझे ब्लड कैंसर है वो भी लास्ट स्टेज का। मेरी साॅसें किसी भी पल रुक सकती हैं और मैं भगवान के पास चली जाऊॅगी।"

"ननहींऽऽऽ।" विधी की ये बात सुनकर मुझे ज़बरदस्त झटका लगा। ऑखों के सामने अॅधेरा सा छा गया। हर चीज़ जैसे किसी शून्य में डूबती महसूस हुई मुझे। कानों में कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था मुझे। दिल की धड़कने रुक सी गई और मैं एकदम से अचेत सी अवस्था में आ गया।

"राऽऽऽज।" विधी के हलक से चीख निकल गई, वो मेरे चेहरे को थपथपाते हुए बुरी तरह रोने लगी। पास में ही खड़ी रितू दीदी भी दौड़ कर मेरे पास आ गईं। मुझे पीछे से पकड़ते हुए मुझे ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें लगाने लगीं। सब कुछ एकदम से ग़मगीन सा हो गया था। वक्त को एक जगह ठहर जाने में एक पल का भी समय नहीं लगा।

वो दोनो बुरी तरह रोये जा रही थी। रितू दीदी के दिमाग़ ने काम किया। पास ही टेबल पर रखे पानी के ग्लास को उठा कर उससे मेरे चेहरे पर पानी छिड़का उन्होंने। थोड़ी ही देर में मुझे होश आ गया। होश में आते ही मैं विधी से लिपट कर ज़ार ज़ार रोने लगा।

"क्यों विधी क्यों?" मैने बिलखते हुए उससे कहा___"क्यों छुपाया तुमने मुझसे? क्या इसी लिए तुमने मेरे साथ वो सब किया था, ताकि मैं तुमसे दूर चला जाऊॅ? और मैं मूरख ये समझता रहा कि तुमने मेरे साथ कितना ग़लत किया था। कितना बुरा हूॅ मैं, आज तक मैं तुम्हें भला बुरा कहता रहा। तुम्हारे बारे में कितना कुछ बुरा सोचता रहा। मैने कितना बड़ा अपराध किया है विधी। हाय कितना बड़ा पाप किया मैने। मुझे तो भगवान भी कभी माफ़ नहीं करेगा।"

"नहीं राज नहीं।" विधी ने तड़प कर मुझे अपने से छुपका लिया, बोली___"तुमने कोई अपराध नहीं किया, कोई पाप नहीं किया। तुमने तो बस प्यार ही किया है मुझे, हर रूप में तुमने मुझे प्यार किया है राज। मुझे तुम पर नाज़ है। ईश्वर से यही दुवा करूॅगी कि हर जन्म में मुझे तुम्हारा ही प्यार मिले।"

"अपने आपको सम्हालो राज।" सहसा रितू दीदी ने मुझे पीछे से पकड़े हुए कहा___"ईश्वर इस बात का गवाह है कि तुम दोनो ने कोई पाप नहीं किया है। विधी ने उस समय जो किया उसमें भी उसके मन में सिर्फ यही था कि तुम उससे दूर हो जाओ और एक नये सिरे से जीवन में आगे बढ़ो। तुम खुद सोचो राज कि जो विधी तुम्हें दिलो जान से प्यार करती थी उसने तुम्हें अपने से दूर करने के लिए खुद को कैसे पत्थर दिल बनाया होगा? उसका दिल कितना तड़पा होगा? मगर इसके बाद भी उसने तुम्हें खुद से दूर किया। उस समय का वो दुख आज के इस दुख से भारी नहीं था।"

"लेकिन दीदी इसने मुझसे ये बात छुपाई ही क्यों थी?" मैने रोते हुए कहा___"क्या इसे मेरे प्यार पर भरोसा नहीं था? मैं इसके इलाज़ के लिए धरती आसमान एक कर देता और इसको इस गंभीर बिमारी से बचा लेता।"

"नहीं राज।" दीदी ने कहा___"तुम उस समय भी कुछ न कर पाते क्योंकि तब तक कैंसर इसके खून में पूरी तरह फैल चुका था। पहले इस बात का इसे पता ही नहीं था और जब पता चला तो डाक्टर ने बताया कि इसके इलाज में ढेर सारा पैसा लगेगा और इसका इलाज हमारे देश में हो पाना भी मुश्किल था। उस समय ना तो तुम इतने सक्षम थे और ना ही इसके माता पिता जो इसका इलाज करवा पाते। इस लिए विधी ने फैंसला किया कि वो तुमसे जितना जल्दी हो सके दूर हो जाए। क्योंकि तब तुम्हें इस बात का भी दुख होता कि तुम इसका इलाज नहीं करवा पाए। सब कुछ हमारे हाॅथ में नहीं होता राज। कुछ ईश्वर का भी दखल होता है।"
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