non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:49 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"सोचिये।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"क्या हो सकती है वो चीज़?"
मेरी ये बात सुनकर आशा दीदी सोच में पड़ गईं। मैने देखा कि इस वक्त उनके चेहरे पर वही चंचलता और वही बिंदासपन आ गया था। उनका चेहरा एकदम से अब खिला खिला लग रहा था।

"सोच लिया मैने।" आशा दीदी एकदम से उछलते हुए बोली___"कि तू मेरे लिए कौन सी चीज़ लेकर आया है?"
"अच्छा तो बताइये।" मैने हॅस कर कहा__"ज़रा मैं भी तो जानूॅ कि आपने क्या सोच लिया है?"

"तू न मेरे लिए।" आशा दीदी ने धीरे धीरे और आराम आराम से कहना शुरू किया__"तू न मेरे लिए......एक प्यारी सी, सुंदर सी सोने की घड़ी लेकर आया है। जिसे मैं अपने इस हाॅथ में पहनूॅगी। अब बता बच्चू, मैंने सही कहा न? हाॅ...बोल बोल।"

मैं दीदी की इस बात पर और उनके इस अंदाज़ पर मुस्कुरा उठा। उन्होने जो कहा वो यकीनन सच ही तो था। मैं उनके लिए एक सोने की घड़ी लेकर ही आया था। मुझे याद है जब वो मेरे हाथ की कलाई में एक आम सी घड़ी देखती तो यही कहती कि__"अरे ये तो मामूली सी घड़ी है बेटा, आशा रानी तो अपने हाॅथ में सोने की घड़ी पहनेगी एक दिन। देख लेना। वरना सारी उमर घड़ी ही नहीं पहनेगी। मैं और पवन उनकी इस बात पर अक्सर हॅसने लगते। हमारे हॅसने पर उन्हें लगता कि हम दोनो उनका मज़ाक उड़ा रहे हैं। इस लिए वो मुह फुला कर एक तरफ बैठ जाती। उसके बाद हम दोनो फिर से उन्हें उसी तरीके से मनाने लगते और वो खुश हो जाती। ऐसी थी आशा दीदी। वो हम लोगों से उमर में तीन चार साल बड़ी थी मगर हमारे साथ वो हमसे भी छोटी बन जाती थी।

ये सब सोच कर सहसा मेरी ऑखों से ऑसू छलक पड़े। आशा दीदी ने मेरी ऑखों से छलके ऑसूॅ को देखा तो। उन्होंने मुझे खुद से छुपका लिया।
"ओये ये क्या है अब?" फिर उन्होंने कहा__"अभी तक तो बड़ा मुजसे कह रहा था कि अब से मैं खुद को न रुलाऊॅ और अब तू क्यों रोने लगा? चल रोना नहीं वरना मैं भी रो दूॅगी।"

"ये तो खुशी के ऑसू हैं दीदी।" मैं उनसे अलग होते हुए बोला___"कुछ यादें ऐसी होती हैं जिनके याद आने से बरबस ही ऑखें छलक पड़ती हैं। ख़ैर, ये लीजिए आपकी घड़ी। देख लीजिए सोने की ही है न?"

"मुझे पता है कि मेरा भाई मेरी कलाई में सोने के अलावा कोई और घड़ी नहीं पहनाएगा।" दीदी ने कहा मुस्कुराकर कहा___"उसे पता है कि मैने क्या प्रण किया था?"
"आपने सही कहा दीदी।" मैने कहा__"मैं आपके प्रण को कैसे भुला सकता हूॅ? जब मैं वहाॅ से चलने वाला था तो मुझे आपकी याद आई और फिर सबकुछ याद आया। इस लिए मैं गया और ज्वैलरी की दुकान से आपके लिए ये घड़ी खरीद लाया।"

मेरी बात से दीदी मुस्कुरा दी और फिर उस पैकिट को खोलने लगी जिसमें मैं उनके लिए घड़ी लेकर आया था। कुछ ही देर में पैकेट खोल कर उन्होने उस घड़ी को निकाल कर देखा। वो सचमुच सोने की ही घड़ी थी। घड़ी देख कर दीदी की ऑखें फिर से भर आईं।

"राज, आज मैं बहुत खुश हूॅ।" फिर उन्होने कहा___"इस लिए नहीं कि तू घड़ी लेकर आया है बल्कि इस लिए कि तू यहाॅ आया और तुझे अपनी दीदी के प्रण का ख़याल था। मुझे खुशी है कि तेरे जैसा लड़का मेरा भाई है।"

"मुझे भी तो खुशी है दीदी।" मैने कहा__"कि आप मेरी सबसे प्यारी बहन हो। आपको मैं गुड़िया(निधी) की तरह ही प्यार करता हूॅ।"
"हाॅ ये मैं जानती हूॅ।" दीदी ने मुस्कुरा कर कहा___"अच्छा राज, इस घड़ी को तू ही पहना दे न मुझे।"
"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"जैसी आपकी इच्छा।"

मैने उनके हाॅथ से घड़ी ल। दीदी ने अपने बाएॅ हाथ की कलाई मेरी तरफ बढ़ा दी। मैने उनकी खूबसूरत कलाई पर उस घड़ी को डाल कर पहना दी। ये देख कर आशा दीदी खुश हो गई और एकदम से मुझसे लिपट गई।

"कितनी अच्छी लग रही है न राज?" वो खुशी से मानो चहकती हुई बोली___"अच्छा ये बता कि इसके अंदर पानी तो नहीं जाएगा न?"
"नहीं जाएगा दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"ये फुल वाटरप्रूफ है।"
"फिर ठीक है।" दीदी ने मुझसे अलग होकर कहा___"अब न मैं इसे कभी भी अपनी कलाई से नहीं उतारूॅगी।"

"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"जैसी आपकी मर्ज़ी। अच्छा दीदी अब मैं चलता हूॅ और हाॅ याद है न....अब से आप खुद को उदास या दुखी नहीं रखेंगी।"
"हाॅ हाॅ याद है बाबा।" दीदी ने हॅस कर कहा___"और अब तो मेरे भाई ने मेरी पसंद की चीज़ भी दे दी। फिर किस लिए खुद को उदास या दुखी रखना?"

"ये हुई न बात।" मैने दीदी के माथे पर हल्के से चूमा और फिर पलट कर वापस दरवाजे की तरफ चल दिया। अभी मैं दो ही क़दम दरवाजे की तरफ बढ़ा था कि मेरी नज़र दरवाजे पर खड़े पवन और माॅ पर पड़ी। मैं उन्हें देख कर पहले तो चौंका फिर हौले से मुस्कुरा दिया। दरवाजे बाहर आकर मैने दरवाजे के दोनो पाटों को आपस में सटा कर चल दिया।

मेरे पीछे पीछे पवन और माॅ भी आने लगे। माॅ के कमरे में आकर मैं एक जगह बैठ गया।
"तो बहन को खुश कर दिया उसके भाई ने?" माॅ ने ऑखों से अपने ऑसू पोंछते हुए कहा___"आज काफी समय बाद उसे इतना खुश और चहकते हुए देखा है मैने।"

"अब से वो हमेशा खुश ही रहेंगी माॅ।" मैने कहा___"और हाॅ बहुत जल्द मैं उनके लिए एक अच्छा सा रिश्ता तलाश करूॅगा। उनकी शादी एक ऐसे घर में और एक ऐसे लड़के से करूॅगा जो उन्हें दुनियाॅ की हर खुशी देगा।"
"अब मुझे उसकी शादी की चिंता नहीं है बेटे।" माॅ ने कहा___"उसका भाई आ गया है तो अब सब वहीं सम्हालेगा।"

मैने पवन की तरफ देखा वो अपनी ऑखों में ऑसू लिये एक तरफ खड़ा था। मैं उसके पास जाकर उससे बोला___"तूने मुझे बुला कर बहुत अच्छा किया है भाई। मगर आज जो कुछ भी रास्ते में हुआ है उस सबसे बहुत जल्द एक नई मुसीबत सामने आने वाली है। बड़े पापा को पता लगाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा कि वो सब किसने किया उनके आदमियों के साथ? वो ये भी पता कर लेंगे कि मैं यहाॅ किसके यहाॅ रुका हुआ हूॅ। इस लिए अब तुम ये भी समझ लो कि इस घर में रहते हुए तुममें से कोई भी सुरक्षित नहीं है।"

"ये तुम क्या कह रहे हो बेटा?" माॅ ने चकित भाव से कहा___"क्या हुआ है आज रास्ते में?"
मैने माॅ को संक्षेप में सबकुछ बता दिया। मेरी बात सुन कर माॅ सकते में आ गई। उनके चेहरे पर एकदम से डर व भय के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे।

"ये तो बहुत बड़ा अनर्थ हो गया है बेटा।" माॅ ने सहमे हुए लहजे में कहा___"तुमने अजय सिंह के आदमियों को मार कर अच्छा नहीं किया। अजय सिंह इस सबका बदला ज़रूर लेगा।"
"ये तो होना ही था माॅ।" मैने कहा___"आप खुद सोचिए कि अगर मैं और आदित्य ये सब नहीं करते तो उनके आदमी हमें अपने साथ ले जाकर बड़े पापा के हवाले कर देते। उस सूरत में बड़े पापा हमारे साथ क्या करते इसका अंदाज़ा आप नहीं लगा सकती माॅ। वो मुझे बंधक बना कर मुझसे ज़बरदस्ती मेरी माॅ बहन और अभय चाचा को मुम्बई से यहाॅ बुलवा लेते। उसके बाद क्या होता ये आप सोच कर देखिये।"

"राज सही कह रहा है माॅ।" पवन ने कहा__"रास्ते में इसके बड़े पापा के आदमी इसे पकड़ने के लिए ही आए थे और अगर वो लोग इसे पकड़ कर ले जाते तो सचमुच बहुत बड़ा अनर्थ हो जाता। इस लिए अजय चाचा के आदमियों को मारने के सिवा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं था इसके पास।"

"पर इसने अजय सिंह के उतने सारे आदमियों को कैसे खत्म कर दिया?" माॅ के चेहरे पर हैरत के भाव थे।
"आपको नहीं पता माॅ।" पवन कह रहा था___"इसने और आदित्य ने पाॅच मिनट में उन सबका काम तमाम कर दिया था। मैने वो सब अपनी ऑखों से देखा था। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये वही राज है जो इतना शान्त और भोला भाला हुआ करता था।"

"ये सब छोड़ो।" मैने कहा___"मैं ये कह रहा हूॅ कि बड़े पापा को इस बात का पता बहुत जल्द चल जाएगा कि मैं यहाॅ पवन के घर में रुका हुआ हूॅ। इस लिए वो आप सबको भी अपना दुश्मन समझ लेंगे और आप लोगों के साथ कुछ भी बुरा कर सकते हैं। अतः अब आप लोगों का यहाॅ रहना किसी भी तरह से ठीक नहीं है।"

"बात तो तुम्हारी ठीक ही है भाई।" पवन ने कहा___"लेकिन हम तेरे बड़े पापा के डर से अपना ये घर छोंड़ कर भला कहाॅ जाएॅगे?"
"मुम्बई।" मैने कहा___"हाॅ पवन। अब आप लोगों का यहाॅ रहना खतरे से खाली नहीं है। इस लिए अब आप लोग मेरे साथ मुम्बई चलोगे। तुम्हें पता है, अभय चाचा ने भी मुझे कुरुणा चाची और उनके बच्चों को मुम्बई ले आने को कहा है। क्योंकि उन्हें भी पता है कि करुणा चाची और दिव्या व शगुन सुरक्षित नहीं हैं।"

"लेकिन बेटा।" माॅ ने झिझकते हुए कहा___"हम सब वहाॅ तेरे लिए बोझ बन जाएॅगे। इतने सारे लोग वहाॅ कैसे रह पाएॅगे?"
"ये कह कर आपने मुझे पराया कर दिया माॅ।" मैने दुखी भाव से कहा___"भला आप ऐसा कैसे सोच सकती हैं कि मेरे लिए आप लोग बोझ बन जाएॅगे?"
माॅ को अपनी ग़लती का एहसास हुआ इस लिए उन्होंने मुझे अपने गले से लगा कर कहा___"मेरा वो मतलब नहीं था बेटा। मैं तो बस ये कहना चाहती थी कि वहाॅ पर हम सब इतने सारे लोग कैसे रहेंगे?"
"आप इस बात की फिक्र मत कीजिए माॅ।" मैने कहा___"मुम्बई में जहाॅ मैं रहता हूॅ वो एक बहुत बड़ा बॅगला है। वहाॅ पर सौ आदमी भी रहेंगे न तब भी जगह बच जाएगी।"

"क्या????" माॅ ने हैरानी से कहा___"क्या इतना बड़ा गर है वहाॅ?"
"हाॅ माॅ।" मैने कहा__"इसी लिए तो कह रहा हूॅ कि आप रहने की चिंता मत कीजिए। बस यहाॅ से फौरन चलने की तैयारी कीजिए। आप सब अपना ज़रूरी सामान ले लीजिए, और चलने के लिए तैयार हो जाइये जल्दी।"

"क्या हम आज ही यहाॅ से चल देंगे?" सहसा पवन ने कुछ सोचते हुए कहा था।
"जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी हमें से निकल लेना चाहिए भाई।" मैने कहा__"यहाॅ ज्यादा समय तक रुकना ठीक नहीं है।"

"ठीक है भाई।" पवन ने कहा___"पर हम यहाॅ से इतने सारे सामान को लेकर जाएॅगे कैसे?"
"तू किसी भी तरह से किसी ऐसे वाहन का इंतजाम कर जिसमे सारा सामान भी आ जाए और हम सब उसमें आराम से बैठ भी जाएॅ।" मैने कहा___"और ये काम तुझे बहुत जल्द करना है।"

"ठीक है भाई।" पवन ने कहा___"मैं कोशिश करता हूॅ ऐसे किसी वाहन को लाने की।"
ये कह कर पवन कमरे से बाहर चला गया। उसके जाने के बाद मैने माॅ से कहा कि वो भी अपना सब ज़रूरी सामान इकट्ठा करके उसे पैक कर लें। मेरे कहने पर माॅ ने हाॅ में सिर हिलाया और कमरे से बाहर चली गईं। मैं भी बाहर आकर बैठक की तरफ बढ़ गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर हास्पिटल में एकाएक ही रितू का मोबाइल बजा। उसने मोबाइल को पाकेट से निकाल कर देखा। स्क्रीन पर पवन लिखा आ रहा था। ये देख कर रितू के होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई। वो मोबाइल को लिए विधी के पास से उठ कर बाहर की तरफ आ गई। फिर मोबाइल पर आ रही काल को रिसीव कर कानो से लगा लिया उसने।

"हाॅ भाई बोलो।" फिर उसने कहा__"सब रेडी है न?"
".............।" उधर से पवन ने कुछ कहा।
"ये तुम क्या कह रहे हो पवन?" रितू ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___"तुम सब लोग राज के साथ मुम्बई जाने वाले हो?"

"............।" उधर से पवन फिर कुछ कहा।
"हाॅ मुझे पता चल गया उस बारे में।" रितू ने कहा___"मेरे आदमियों ने फोन पर बताया है सब कुछ। ये भी बताया कि उन लोगों ने डैड के आदमियों को ठिकाने लगा दिया है। राज और उसके दोस्त ने सबको खत्म कर दिया था। अगर उन दोनो के बस का न होता तो मेरे वो पुलिस के आदमी उन सबको गोलियों से भून कर रख देते। मेरा उनके लिए यही आदेश था। ख़ैर, सबसे अच्छी बात यही हुई कि तुम लोग सकुशल घर गए। लेकिन खतरा अभी टला नहीं है पवन। डैड अपने आदमियों की खोज ख़बर लेने ज़रूर इधर उधर जाएॅगे। राज ने सही फैसला लिया है तुम लोगों को अपने साथ ले जाने का। मगर उसका क्या होगा जिसके लिए मैने राज की तुम्हारे द्वारा बुलवाया था?"
"............।" उधर से पवन ने कुछ कहा।
"अरे मैं तो चाहती ही हूॅ भाई।" रितू ने ज़ोर दे कर कहा___"तुम एक काम करो, राज की लेकर यहाॅ आ जाओ। मैं तुम लोगों को यहाॅ से सुरक्षित जाने का बंदोबस्त कर दूॅगी।"
"............।" उधर से पवन ने फिर कुछ कहा।
"हाॅ ठीक है।" रितू ने कहा___"तुम उसे लेकर आओ। मैं अभी किसी वाहन का इंतजाम करती हूॅ। तुम किसी भी प्रकार की चिंता मत करो। बस उसे लेकर आ जाओ। यहाॅ मैने उसकी सुरक्षा का सारा इंतजाम किया हुआ है। रास्तों पर भी पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में मौजूद हैं।"

".........।" उधर से पवन ने कुछ कहा।
"तुम बेफिकर रहो भाई।" रितू ने कहा___"उसे कुछ नहीं होने दूॅगी मैं। अपनी जान पर खेलकर भी मैं उसकी हिफाज़त करूॅगी। यहाॅ आने के बाद जो कुछ भी होगा उसकी देखभाल भी मैं कर लूॅगी। तुम बस उसे लेकर आ जाओ। अब इंतज़ार नहीं होता मेरे भाई। जबसे तुमने बताया है कि राज आ गया है तब से उससे मिलने के पागल हुई जा रही हूॅ मैं। दिल तो करता है कि अभी भाग कर तुम्हारे घर आ जाऊॅ और अपने भाई को अपने सीने से लगा कर खूब रोऊॅ। मगर, उससे मिलने का सबसे पहला हक़ विधी का है मेरे भाई। मैने उसे वचन दिया है कि मैं उसके महबूब से उसे मिलाऊॅगी। इस लिए भाई, जल्दी से उसे लेकर आजा। मेरे वचन की लाज रख ले। विधी को उसके महबूब से मिला दे जल्दी।"

".........।" उधर से पवन ने कुच कहा।
"ठीक है भाई जल्दी आना।" रितू ने कहा और फिर फोन कट कर दिया। उसकी ऑखों में ऑसू भर आए थे। फोन को पाॅकेट में डालने के बाद वह वापस गैलरी की तरफ चल पड़ी। रास्ते मे एक तरफ उसे श्री कृष्ण का छोटा सा मंदिर दिखा तो वह उसी तरफ बढ़ गई। मंदिर के पास पहुॅच कर वह घुटनों के बल बैठ गई।

"हे कृष्णा अब सब कुछ आपके ही हवाले है।" रितू ने ऑखों में ऑसू लिए तथा दोनो हाॅथ जोड़े कहा___"सब कुछ ठीक कर देना कान्हा। मेरा भाई जब विधी से मिले तो उसकी हालत को देख कर वो खुद को सम्हाल सके। उसके दिल को मजबूत बनाए रखना कन्हैया। वो अपनी प्रेयसी से मिलने आ रहा है। उसे हर दुख दर्द सहने की शक्ति देना कृष्णा। मेरा भाई भी इस वक्त कृष्ण ही है जो अपनी राधा से मिलने आ रहा है।"

इतना कहने के बाद रितू उठी और कृष्ण की मूर्ती के पास थाली में रखे फूलों से कुछ फूल उठा कर कृष्ण के चरणों में अर्पण कर दिया।

"सब कुछ तुम ही तो करते हो कन्हैया। इस संसार में सब कुछ तुम्हारे ही इशारे से हो रहा है।" रितू ने कहा___"ये भी कि मेरा भाई जिसे टूट कर प्रेम करता है उस लड़की को ब्लड कैंसर के लास्ट स्टेज पर पहुॅचा दिया आपने। ये कैसी लीला है कृष्णा? लोग कहते हैं कि जो कुछ भी तुम करते हो वो सब अच्छे के लिए ही करते हो, तो बताओ मुझे कि ऐसा करके कौन सा अच्छा कर रहे हो तुम? लेकिन ख़ैर कोई बात नहीं। मैं तुमसे यहाॅ इस सबकी शिकायत नहीं कर रही हूॅ। हाॅ इतनी विनती ज़रूर कर रही हूॅ कि मेरे भाई को कभी कुछ न हो। वो यहाॅ आए तो विधी की हालत देख कर वो खुद को सम्हाल सके। बस यही प्रार्थना करती हूॅ तुमसे।"

इतना कहने के बाद रितू अपने ऑसू पोंछते हुए कृष्णा को प्रणाम कर विधी के कमरे की तरफ बढ़ गई। उसका मन बहुत भारी हो गया था। रह रह कर उसके मन में आने वाले वक्त के प्रति घबराहट सी बढ़ती जा रही थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर घर में पवन मुझे लिए बाहर आया। मैने देखा कि बाहर एक मोटर साइकिल खड़ी थी। पवन ने मुझसे कहा कि मैं अपने चेहरे को रुमाल से ढॅक लूॅ। मैं उसकी बात सुन कर चौंका। उससे पूछा कि कहाॅ जा रहे हैं हम मगर उसने मुझे कुछ न बताया। बल्कि मोटर साइकिल में बैठ कर से स्टार्ट किया और मुझे पीछे बैठने को कहा। मैं उसकी इस आनन फानन वाली क्रिया से हैरान था। बड़ा अजीब सा ब्यौहार कर रहा था वो।

ख़ैर, उसके बार बार ज़ोर देने पर मैं उसके पीछे मोटर साइकिल पर बैठ गया। आदित्य दरवाजे पर खड़ा हैरानी से ये सब देख रहा था। उसने भी कई बार पवन से पूछा कि वो मुझे लेकर कहाॅ जा रहा है मगर पवन ने कुछ न बताया। बल्कि उससे यही कहा कि वो यहीं रहे, हम थोड़ी देर में आते हैं। आदित्य बेचारा हैरानी से देखता रह गया था उसे। माॅ और आशा दीदी अंदर सामान पैक करने में लगी हुईं थी। उन्हें इस सबका कुछ पता ही नहीं था। आशा दीदी को जब पता चला कि वो सब लोग मेरे साथ मुम्बई चल रहे हैं तो वो बड़ा खुश हुई थी।

इधर मेरे बैठते ही पवन ने मोटर साइकिल को आगे बढ़ा दिया। जहाॅ तक मुझे पता था पवन के पास कोई साइकिल तक नहीं थी, इसका मतलब वो ये मोटर साइकिल किसी जान पहचान वाले से माॅग कर ही लाया था।

"अब तो बता दे मेरे बाप कि हम कहाॅ जा रहे हैं?" रास्ते में मैने ये बात पवन से खीझते हुए कही थी, बोला___"साले तूने इस सवाल पर ऐसे अपना मुह बंद कर रखा है जैसे अगर तू बता देगा तो क़यामत आ जाएगी।"

"ऐसा ही समझ ले तू।" पवन ने कहा__"अब चुपचाप बैठा रह। कितना बोलने लगा है तू आजकल?"
"क्या कहा तूने?" मैने हैरत से देखते हुए उसे पीछे से उसकी पीठ पर हल्के से मुक्का मारा, फिर बोला___"मैं बहुत बोलने लगा हूॅ। हाॅ, और तू जैसे मौनी बाबा ही बन गया है न।"

पवन मेरी इस बात पर मुस्कुरा कर रह गया। मगर सिर्फ एक पल के लिए। अगले ही पल उसके चेहरे पर संजीदगी के भाव नुमायाॅ हो गए। जैसे उसे कोई बात याद आ गई हो। मैने एक बात नोट की थी कि वो जब से मुझे मिला था तब से मैने उसे संजीदा ही देखा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इसकी क्या वजह थी। मुझे याद आया कि उसने मुझे सीघ्र मुम्बई से आने के लिए कहा था। इसका मतलब ये मुझे उसी काम से लिए जा रहा है। लेकिन आख़िर किस काम से? साला दिमाग़ का दही हो गया मगर मुझे कोई वजह समझ में नहीं आई।

लगभग दस मिनट बाद पवन ने जिस जगह पर मोटर साइकिल रोंकी उस जगह को देख कर मैं चौंका तो ज़रूर मगर मुझे समझ में न आया कि पवन मुझे हास्पिटल लेकर क्यों आया है? सहसा मेरे ज़हन में एक बार फिर करुणा चाची और उनके बच्चों का चेहरा नाच गया। मन में सवाल उभरा कि क्या करुणा चाची या उनके बच्चों में से किसी को कुछ हो गया था जो वो यहाॅ हास्पिटल में शायद एडमिट हैं? मगर इस बात को मुझसे छिपाने की भला क्या ज़रूरत थी?

मोटर साइकिल के खड़े होते ही मैं उतर गया। मेरे बाद पवन भी उतर गया और मोटर साइकिल को स्टैण्ड पर खड़ा कर वो मेरी तरफ देखा और बोला____"तू यहीं रुक मैं आता हूॅ दो मिनट में।"

"अरे अब कहाॅ जा रहा है तू मुझे यहाॅ पर अकेला छोंड़ कर?" मैंने हैरानी से पूछा।
"मैने कहा न यहीं रुक।" पवन ने शख्ती से कहा___"मैं आता हूॅ अभी।"
ये तो हद ही हो गई। पवन ने मुझे शख्ती से रुकने को कहा था। मेरा दिमाग़ घूम गया। ये साला हो क्या रहा है? मैने देखा कि पवन हास्पिटल की सीढ़ियाॅ चढ़ कर ऊपर वाली सीढ़ी के पास जाकर रुक गया। उसके बाद उसने अपने पैन्ट की जेब से मोबाइल निकाल कर उससे किसी को फोन किया। मोबाइल को कान से लगा कर उसने सामने वाले से जाने क्या बात की। एक मिनट भी नहीं लगे उसे बात खत्म करने में। मोबाइल को पुनः जेब के हवाले कर उसने मेरी तरफ देखा और मुझे अपनी तरफ आने का हाथ से इशारा किया।

उसके इस इशारे पर मैं फिर चौंका। मगर कर भी क्या सकता था? मैं अपने मन में हज़ारों तरह के विचार लिए उसकी तरफ बढ़ने लगा। कुछ ही देर में सीढ़ियाॅ चढ़ कर उसके पास पहुॅच गया।

"साला इतना ज्यादा सस्पेन्स तो किसी जासूसी उपन्यास में भी मैने नहीं देखा जितना तू क्रियेट कर रखा है।" ऊपर उसके पास पहुॅचते ही मैने कहा उससे___"मेरे दिमाग़ का कचूमर निकाल दिया तूने कसम से। अच्छा है तू किसी जासूसी उपन्यास का राइटर नहीं बन गया। वरना पाठकों के दिमाग़ की नसें ही फट जाती।"

"ज्यादा बकवास न कर।" मेरी बात पर पवन ने भावहीन स्वर में कहा___"और अब चल मेरे साथ।"
"जो हुकुम माई बाप।" मैने अदब से सिर को झुकाते हुए कहा और चल दिया उसके पीछे।

पवन के पीछे चलते हुए मैं हास्पिटल के अंदर की तरफ आ गया। मेरा मन अंजानी आशंका के चलते ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था। पता नहीं क्यों पर मैं मन ही मन भगवान से दुवा कर रहा था कि यहा हर कोई ठीक ही हो। ख़ैर, पवन के साथ चलते हुए मैने देखा कि पवन एक कमरे के सामने आकर रुक गया।

कमरे के दरवाजे के पास रुक कर पवन ने कुछ पल कुछ सोचा फिर मेरी तरफ पलट कर कहा___"तू जानना चाहता था न कि मैने तुझे इतना जल्दी यहाॅ आने के लिए क्यों कहा था?"
"वो तो मैं तुझसे कब से पूछ रहा हूॅ?" मैने उससे कहा___"मगर तू बता ही नहीं रहा था।"

"बताने की ज़रूरत नहीं है मेरे यार।" सहसा पवन की आवाज़ भर्रा गई, बोला___"तू इस कमरे में जा और सब कुछ अपनी ऑखों से देख सुन ले। लेकिन उससे पहले तू मुझसे वादा कर कि अंदर सब कुछ देखने सुनने के बाद तू खुद को सम्हाल कर रखेगा।"

"इस बात का क्या मतलब हुआ?" मैंने सहसा चौंकते हुए कहा___"ऐसा क्या है अंदर कि मुझे उसे देख कर खुद को सम्हालना पड़ेगा?"
"अब जा तू।" पवन ने कहने के साथ ही मुह फेर लिया मुझसे, दो चार क़दम चलने के बाद मेरी तरफ पलट कर बोला___"मैं बाहर ही तेरा इन्तज़ार करूॅगा।"

बस इसके बाद वो एक पल के लिए भी नहीं रुका। बल्कि तेज़ तेज़ क़दम बढ़ाते हुए बाहर की तरफ चला गया। मुझे कुछ समझ न आया कि ये सब क्या चल रहा है यहाॅ? पवन जब मेरी नज़रों से ओझल हो गया तो मैं उस कमरे के दरवाजे की तरफ पलटा जिस कमरे के अंदर जाने के लिए पवन ने मुझसे कहा था।

कुछ पल तक मैं उस दरवाजे को घूरता रहा। मेरा दिल अनायास ही बड़ी तेज़ी से धड़कने लगा था। मन में तरह तरह के ख़याल उछल कूद मचाने लगे थे। मैने अपने हाॅथों को दरवाजे की तरफ बढ़ाया। मैने देखा मेरे वो हाॅथ काॅप रहे थे। पता नहीं मगर, इन कुछ ही पलों में मेरी अजीब सी हालत हो गई थी। ख़ैर, मैने दरवाजे पर हाॅथ रख कर उसे अंदर की तरफ आहिस्ता से धकेला तो दरवाजा बेआवाज़ खुलता चला गया।

खुल चुके दरवाजे अंदर की तरफ मेरी नज़र पड़ी तो सामने दीवार के पास एक टेबल रखा दिखा मुझे जिस पर कुछ दवाइयाॅ और कुछ पेपर जैसे रखे हुए थे। बाॅकी कुछ न दिखा मुझे। मेरे मन में सवाल उभरा कि इस कमरे में ऐसा क्या है जिसे देखने के लिए कदाचित पवन ने मुझे अंदर जाने को कहा था?

अपने मन में उठे सवाल की खोज के लिए मैंने दरवाजे के अंदर की तरफ अपने क़दम बढ़ाए। दो ही क़दमों में मैं कमरे के अंदर दाखिल हो गया। अंदर आकर मैने इधर उधर देखा तो दाहिनी तरफ एक बेड दिखा जिस पर कोई पड़ा हुआ था। बेड के बगल से ही दो सोफा सेट रखे हुए थे किन्तु उन पर कोई बैठा हुआ नज़र न आया मुझे। बाॅकी पूरा कमरा खाली था। ये देख कर मेरा दिमाग़ हैंग सा हो गया। कुछ समझ न आया कि यहाॅ मुझे क्या दिखाने के लिए पवन ने भेजा है?

बेड पर पड़े हुए ब्यक्ति पर मेरी नज़र पुनः पड़ी। उसका चेहरा दूसरी तरफ था इस लिए मैं जान न सका बेड पर कौन पड़ा हुआ है? किन्तु इतना ज़रूर अब समझ आ गया था कि शायद बेड पर पड़े हुए इंसान को देखने के लिए ही मुझे पवन ने यहाॅ भेजा है। अतः मैं धड़कते हुए दिल के साथ बेड की तरफ बढ़ा।

कुछ ही क़दमों में मैं बेड के समीप पहुॅच गया। किन्तु बेड पर पड़े हुए ब्यक्ति का चेहरा दूसरी तरफ था इस लिए मैं इस तरफ से चलते हुए उस तरफ उस ब्यक्ति के चेहरे की तरफ बढ़ गया। मैने महसूस किया कि कमरे हीं नहीं बल्कि पूरे हास्पिटल में सन्नाटा छाया हुआ था। ऐसा सन्नाटा कि अगर कहीं सुई भी गिरे तो उसके गिरने की आवाज़ किसी बम के धमाके से कम न सुनाई दे।

बेड पर पड़े ब्यक्ति के चेहरे की तरफ आकर मेरी नज़र जिस चेहरे पर पड़ी उसे देख कर मैं बुरी तरह उछल पड़ा। हैरत और आश्चर्य से मेरी ऑखें फट पड़ीं। किन्तु फिर जैसे एकदम से मुझे होश आया और मेरी ऑखों के सामने मेरा गुज़रा हुआ वो कल घूमने लगा जिसमें मैं था एक विधी नाम की लड़की थी और उस लड़की के साथ शामिल मेरा प्यार था। फिर एकाएक ही तस्वीर बदली और उस तस्वीर में उसी विधी नाम की लड़की का धोखा था, उसकी बेवफाई थी। उसी तस्वीर में मेरा वो रोना था वो चीखना चिल्लाना था और नफ़रत मेरी थी। ये सब चीज़ें मेरी ऑखों के सामने कई बार तेज़ी से घूमती चली गई।

मेरे चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। दुख दर्द और नफ़रत के भाव एक साथ आकर ठहर गए। ऑखों में ऑसूॅ भर आए मगर मैने उन्हें शख्ती से ऑखों में ही जज़्ब कर लिया। दिल में एक तेज़ गुबार सा उठा और उस गुबार के साथ ही मेरी ऑखों में चिंगारियाॅ सी जलने बुझने लगीं।

मेरे दिल की धड़कने और मेरी साॅसें तेज़ तेज़ चलने लगी थी। मेरे मुख से कोई अल्फाज़ नहीं निकल रहे थे। किन्तु ये सच है कि कुछ कहने के लिए मेरे होंठ फड़फड़ा रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा था कि या तो मैं खुद को कुछ कर लूॅ या फिर बेड पर ऑखें बंद किये आराम से पड़ी इस लड़की को खत्म कर दूॅ। किन्तु जाने कैसे मैं कुछ कर नहीं पा रहा था।

अभी मैं अपनी इस हालत से जूझ ही रहा था कि सहसा बेड पर आराम से करवॅट लिए पड़ी उस बला ने अपनी ऑखें खोली जिस बला को मैने टूट टूट कर चाहा था।
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