non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:49 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
♡ एक नया संसार ♡

अपडेट........《 44 》

अब तक,,,,,,,

टैक्सी ड्राइवर हम लोगों से इतना डरा हुआ था कि वो हमसे पैसा भी नहीं ले रहा था। एक ही बात बोल रहा था कि हम उसे जाने दें। वो हमारी कोई भी बात कभी भी किसी से नहीं कहेगा। मगर मैने उसे समझाया कि डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। ख़ैर, हम लोगों को उतार कर उसने टैक्सी को वहीं पर किसी तरह बैक करके वापसी के लिए मोड़ा और वहाॅ से चंपत हो गया। मुझे यकीन था कि वो रास्ते में कहीं भी रुकने वाला नहीं था।

पवन के घर के अंदर जैसे ही हम तीनो आए तो पवन ने जल्दी से घर का मुख्य दरवाजा बंद कर उसमें कुण्डी लगा दी थी। पवन सिंह मेरे बचपन का दोस्त था। ग़रीब था और बिना बाप का था। उससे बड़ी उसकी एक बहन थी। जो मेरी भी मुहबोली बहन थी। वो मुझे अपने सगे भाई से भी ज्यादा मानती थी। अभी तक उसकी शादी नहीं हो सकी थी। इसकी वजह ये थी कि पवन के पास रुपये पैसे की तंगी थी। आजकल लोग दहेज की माॅग बहुत ज्यादा करते हैं। पवन की माॅ बयालिस साल की विधवा औरत थी। किन्तु स्वभाव से बहुत अच्छी थी। वो मुझे अपने बेटे की तरह ही प्यार करती थी।

हम लोग चलते हुए बैठक में पहुॅचे और वहाॅ एक तरफ किनारे पर रखी एक चारपाई पर बैठ गए। जबकि पवन अंदर की तरफ चला गया था। आदित्य इधर उधर बड़े ग़ौर से देख रहा था। कदाचित ये देख रहा था कि यहाॅ गाॅव में कच्चे खपरैलों वाले मकान बने हुए थे। जबकि उसने आज तक ऐसे मकान सिर्फ फिल्मों में ही देखे होंगे कभी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,,

उधर अजय सिंह, प्रतिमा और शिवा अपने नये फार्महाउस में पहुॅच चुके थे। तीनों के चेहरे खिले हुए थे। ये सोच कर कि बहुत दिनों बाद कुछ अच्छा सुनने को मिला था उन्हें। जिनकी तलाश में खुद अजय सिंह और उसके आदमी जाने कहाॅ कहाॅ भटक रहे थे वो खुद ही चल कर यहाॅ आया और उसके आदमियों के द्वारा बहुत जल्द उसे पकड़ कर उसके सामने उसे हाज़िर कर दिया जाएगा। उसके बाद वो जैसे चाहेगा वैसे विराज के साथ सुलूक कर सकेगा।

"डैड मैने तो सोच लिया है कि मैं क्या क्या करूॅगा?" फार्महाउस के अंदर ड्राइंगरूम में रखे सोफे पर बैठे शिवा ने कहा___"उस विराज के हाथ लगते ही बाॅकी के जब सब भी हमारे पास आ जाएॅगे तब मैं अपनी मनपसंद चीज़ों का जी भर के मज़ा लूटूॅगा। सबसे पहले तो उस हरामज़ादी करुणा को पेलूॅगा वो भी उसके पति के सामने। उसी की वजह से चाचा ने मुझे कुत्ते की तरह धोया था। इस फार्महाउस पर सब औरतों और उनकी लड़कियों को नंगा करूॅगा मैं।"

"चिंता मत करो बेटे।" अजय सिंह ने शिगार को सुलगाते हुए कहा___"जो कुछ तू सोचे बैठा है न वही सब मैने भी सोचा हुआ है। बहुत तरसाया है इन लोगों ने मुझे। सबसे ज्यादा उस कमीनी गौरी ने। पता नहीं क्यों पर उससे दिल लग गया था बेटा। मैं चाहता था कि वो अपने मन से अपना सब कुछ मुझे सौंप दे, इसी लिए तो कभी उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं की थी मैने। मगर अब नहीं। अब तो बलात्कार होगा बेटे। ऐसा बलात्कार कि दुनियाॅ में उसके बारे में किसी ने ना तो सोचा होगा और ना ही सुना होगा कहीं। इस फार्महाउस में उन दोनो औरतों को और उन दोनो लड़कियों को जन्मजात नंगी करके दौड़ाऊॅगा।"

"अभी दो लड़कियों को आप भूल रहे हैं डैड।" शिवा ने कमीनी मुस्कान के साथ कहा___"आपकी दोनो लड़कियाॅ और मेरी प्यारी प्यारी मगर मदमस्त बहनें।"
"उनका नंबर भी आएगा बेटे।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"मगर इन लोगों के बाद। पहले इन लोगों के साथ तो मज़े कर लें। इन सबको इतना बजाएॅगे कि सब की सब साली पनाह माॅग जाएॅगी। उसके बाद इन सबको रंडियों के बाज़ार में ले जाकर मुफ़्त में बेंच देंगे।"

"ये सही सोचा है डैड।" शिवा ने ठहाका लगाते हुए कहा___"रंडियों के बाज़ार में बेंचने से ये सब जीवन भर लोगों को मज़ा देती रहेंगी। लेकिन डैड मेरी बहनों को मत बेंच देना। वो सिर्फ हमारी रंडियाॅ बन कर रहेंगी जीवन भर। हम दोनो ही उनके सब कुछ रहेंगे।"

"सही कहा बेटे।" अजय सिंह ने कहा__"हम अपनी बेटियों को नहीं बेचेंगे। वो तो हमारी ही रंडियाॅ बन कर रहेंगी अपनी माॅ के साथ। क्या कहती हो डार्लिंग?"

अंतिम वाक्य अजय सिंह ने चुपचाप बैठी प्रतिमा को देख कर कहा था। प्रतिमा जो इतनी देर से बाप बेटे की बातें सुन कर मन ही मन हैरान और चकित हो रही थी वो अचानक ही अजय सिंह के इस प्रकार कहने पर चौंक पड़ी थी। तुरंत उससे कुछ कहते न बन पड़ा था। बल्कि अजीब भाव से वो दोनो बाप बेटों को देखती रह गई थी। ये देख कर अजय सिंह और शिवा दोनो ही ठहाका लगा कर हॅस पड़े थे।

"क्या हुआ प्रतिमा?" अजय सिंह हॅसने के बाद बोला___"किन ख़यालों में गुम हो भई? हमारी बातों पर ध्यान नहीं है क्या तुम्हारा?"
"मैं तुम दोनो की तरह ख़याली पुलाव नहीं बनाती अजय।" प्रतिमा ने खुद को सम्हालते हुए कहा___"मुझे इस सबमें खुशी तब होगी जब ऐसा सचमुच में होता हुआ अपनी ऑखों से देखूॅगी।"

"अरे ज़रूर देखोगी मेरी जान।" अजय सिंह ने हॅसते हुए कहा___"और बहुत जल्द देखोगी। बस कुछ ही देर की बात है। मेरे आदमी उस हराम के पिल्ले को घसीटते हुए लाते ही होंगे। उसके आने के बाद उसके बाॅकी चाहने वालों को भी बहुत जल्द आना पड़ेगा मेरे पास।"

"इसी लिए तो चुपचाप उसके आने के इन्तज़ार में बैठी हूॅ मैं।" प्रतिमा ने कहा___"ज़रा फोन करके पता तो करो कि तुम्हारे आदमी उसे लिये कहाॅ तक पहुॅचे हैं अभी? अपने आदमियों से कहो कि ज़रा जल्दी आएॅ यहाॅ।"

"जो हुकुम डार्लिंग।" अजय सिंह ने शिगार को ऐश ट्रे में मसलते हुए कहा___"मैं अभी भीमा को फोन करता हूॅ और उसे बोलता हूॅ कि भाई जल्दी लेकर आ उस हरामज़ादे को।"

कहने के साथ ही अजय सिंह ने अपने कोट की जेब से मोबाइल निकाला और उस पर भीमा का नंबर डायल कर मोबाइल को कान से लगा लिया। मगर उसे अपने कान में ये वाक्य सुनाई दिया कि___"आपने जिस एयरटेल नंबर पर फोन लगाया है वो इस वक्त उपलब्ध नहीं है या अभी बंद है।"

ये वाक्य सुनते ही अजय सिंह का दिमाग़ घूम गया। उसने काल को कट करके फिर रिडायल कर दिया मगर फिर से उसे कानो में वही वाक्य सुनाई दिया। अजय सिंह कई बार भीमा के नंबर पर फोन लगाया मगर हर बार वही वाक्य सुनने को मिला उसे।

"क्या हुआ डैड?" शिवा जो अजय सिंह की ही तरफ देख रहा था बोल उठा___"क्या भीमा का नंबर नहीं लग रहा?"
"हाॅ बेटे।" अजय सिंह ने सहसा कठोर भाव से कहा___"इन सालों को कभी अकल नहीं आएगी। ऐसे समय में भी साले ने फोन बंद करके रखा हुआ है।"

"तो किसी दूसरे आदमी को फोन लगा कर पता कीजिए डैड।" शिवा ने मानो ज्ञान दिया।
"हाॅ वही कर रहा हूॅ।" अजय सिंह ने नंबरों की लिस्ट में मंगल का नंबर खोज कर उसे डायल करते हुए कहा।

मंगल का नंबर डायल करने के बाद उसने मोबाइल को कान से लगा लिया। मगर इस नंबर पर भी वही वाक्य सुनने को मिला उसे। अब अजय सिंह का भेजा गरम हो गया। फिर जैसे उसने खुद के गुस्से को सम्हाला और अपने किसी अन्य आदमी का नंबर डायल किया। मगर परिणाम वही ढाक के तीन पात वाला। कहने का मतलब ये कि अजय सिंह ने एक एक करके अपने सभी आदमियों का नंबर डायल किया मगर सबक सब नंबर या तो उपलब्ध नहीं थे या फिर बंद थे।

अजय सिंह को इस बात ने हैरान कर दिया और वह सोचने पर मजबूर हो गया कि ऐसा कैसे हो सकता है? ये तो उसे भी पता था कि उसके आदमी इतने लापरवाह हो ही नहीं सकते क्योंकि सब उससे बेहद डरते भी थे। किन्तु इस वक्त सभी के नंबर बंद होने की वजह से उसका माथा ठनका। मन में एक ही विचार आया कि कुछ तो गड़बड़ है। किसी गड़बड़ी के अंदेशे ने अजय सिंह को एकाएक ही चिंता और परेशानी में डाल दिया।

"क्या बात है अजय?" सहसा प्रतिमा उसके चेहरे के बदलते भावों को देखते हुए बोल पड़ी___"ये अचानक तुम्हारे चेहरे पर चिन्ता व परेशानी के भाव कैसे उभर आए?"
"बड़ी हैरत की बात है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"मैने एक एक करके अपने सभी आदमियों को फोन लगा कर देख लिया, मगर उनमें से किसी का भी फोन नहीं लग रहा। सबके सब बंद बता रहे हैं। इसका क्या मतलब हो सकता है?"

"ऐसा कैसे हो सकता है डैड?" शिवा ने भी हैरानी से कहा___"एक साथ सबके फोन कैसे बंद हो सकते हैं? कुछ तो बात ज़रूर है। हमें जल्द से जल्द इस सबका पता लगाना चाहिए डैड।"

"शिवा सही कह रहा है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"हमारे आदमी इतने लापरवाह नहीं हो सकते कि ऐसे माहौल में वो सब अपना फोन ही बंद कर लें। ज़रूर कोई बात हुई है।वरना अब तक तो उनमें से किसी ने तुम्हें फोन करके ये ज़रूर बताया होता कि उन लोगों ने विराज को अपने कब्जे में ले लिया है और अब वो सीधा यहीं आ रहे हैं। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ अब तक। इसका मतलब साफ है कि कोई गंभीर बात हो गई है।"

"मुझे भी ऐसा ही लगता है।" अजय सिंह ने चिंतित भाव से कहा___"कोई तो बात हुई है। मगर सवाल ये है कि ऐसी क्या बात हो सकती है भला? उन पर किसी प्रकार के संकट के आने का सवाल ही नहीं है क्योंकि वो खुद भी कई सारे एक साथ थे और खुद दूसरों के लिए संकट ही थे।"

"असलियत का पता तो तभी चलेगा अजय जब तुम इस सबका पता करने यहाॅ से जाओगे।" प्रतिमा ने कहा___"यहाॅ पर बातों में समय गवाॅने का कोई मतलब नहीं है।"
"माॅम ठीक कह रही हैं डैड।" शिवा ने कहा__"हमें तुरंत ही इस सबका पता लगाने के लिए यहाॅ से निकलना चाहिए। वरना कहीं ऐसा न हो कि हम जिस सुनहरे मौके की बात कर रहे थे वो हमारे हाॅथ से निकल जाए।"

"यू आर अब्सोल्यूटली राइट।" अजय सिंह ने कहा__"चलो चल कर देखते हैं कि क्या बात हो गई है?"
"तुम दोनो जाओ।" प्रतिमा ने कहा__"मैं यहीं पर तुम दोनो का इंतज़ार करूॅगी।"

प्रतिमा की बात खत्म होते ही दोनो बाप बेटे सोफों से उठ कर बाहर की तरफ चल दिये। बाहर आकर अजय सिंह अपनी कार का ड्राइविंग डोर खोल कर उसमें बैठ गया, जबकि शिवा उसके बगल वाली शीट पर बैठ गया। कार को स्टार्ट कर अजय सिंह ने कार को झटके से आगे बढ़ा दिया। उसकी कार ऑधी तूफान बनी सड़कों पर घूमने लगी थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

इधर पवन के घर में मैं और आदित्य नहा धो कर फ्रेश हो गए थे और अब हम सब खाना खाने के लिए बैठे हुए थे। पवन ने अपनी माॅ और बहन दोनो की मेरे आने का पहले ही बता दिया था। बस ये नहीं बताया था कि उसने मुझे यहाॅ किस लिए बुलाया था? उनसे यही कहा था कि मैं बस घूमने आया हूॅ।

पवन की माॅ को मैं भी माॅ ही बोलता था शुरू से ही। मेरी नज़र में माॅ से बड़ा और पवित्र रिश्ता कोई नहीं हो सकता था। वो मुझे शुरू से ही बहुत चाहती थी और प्यार व स्नेह देती थीं। पवन की बहन आशा दीदी मुझसे और पवन से उमर में बड़ी थी। उनका स्वभाव पिछले कुछ सालों तक हॅस मुख और चंचल था किन्तु अब वो ज्यादा किसी से बात नहीं करती थी। उनके चेहरे पर हर वक्त गंभीरता विद्यमान रहती थी। इसकी वजह समझना कोई बड़ी बात नहीं थी। हर कोई समझ सकता था कि उनके स्वभाव में ये तब्दीली किस वजह से आई हुई थी।

खाना पीना से फुर्सत होकर हम सब बाहर बैठक में आ गए। मेरे मन में इस वक्त कुछ और ही चल रहा था। इस लिए मैं बैठक से उठ कर अंदर माॅ के पास चला गया। मैने देखा माॅ और आशा दीदी हम लोगों की खाई हुई थालियाॅ ऑगन में एक जगह रख रही थी।

मुझे ऑगन में आया देख माॅ के होठों पर मुस्कान आ गई। आशा दीदी भी मुझे देख कर हल्का सा मुस्कुराई। फिर वो वहीं पर बैठ कर थालियाॅ धोने लगी। जबकि माॅ मेरे पास आ गईं।

"चल आजा मेरे साथ।" माॅ एक तरफ को बढ़ती हुई बोली___"मुझे पता है तुझे मेरी गोंद में सिर रख कर सोना है। कितना समय हो गया मैने भी तुझे वैसा प्यार और स्नेह नहीं दिया। वक्त और हालात ऐसे बदल जाएॅगे ऐसा कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था। बुरे लोगों का एक दिन ज़रूर नाश होता है बेटा। बस थोड़ा समय लग जाता है। अजय सिंह को उसके बुरे कर्मों की सज़ा ईश्वर ज़रूर देगा।"

माॅ ये सब बड़बड़ाती हुई अंदर कमरे मे आ गईं। मैं भी उनके पीछे पीछे आ गया था। कमरे में रखी चारपाई पर माॅ पालथी मार कर बैठ गईं और फिर मेरी तरफ देख कर मुझे अपने पास आने का इशारा किया। मैं खुशी से उनके पास गया और चारपाई के नीचे ही उकड़ू बैठ कर अपना सिर उनकी गोंद में रख दिया।

"अरे नीचे क्यों बैठ गया बेटे?" माॅ ने मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा___"ऊपर आजा और फिर ठीक से वैसे ही लेट जा जैसे पहले लेट जाया करता था मेरी गोंद में।"
"नहीं माॅ, मैं ऐसे ही ठीक हूॅ।" मैने सिर उठाकर उनकी तरफ देखते हुए बोला__"मुझे आपसे कुछ बात करनी है माॅ।"

"हाॅ तो कह ना।" माॅ ने मेरे चेहरे को एक हाथ से सहलाया___"तुझे कोई भी बात करने के लिए मुझसे पूछने की क्या ज़रूरत है? ख़ैर, बता क्या बात करना है तुझे?"
"सबसे पहले ये बताइये कि मैं आपका बेटा हूॅ कि नहीं?" मैने माॅ के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा।

"ये कैसा सवाल है बेटा?" माॅ के चेहरे पर ना समझने वाले भाव उभरे___"तू तो मेरा ही बेटा है। जैसे पवन मेरा बेटा है वैसे ही तू भी मेरा बेटा है।"
"अगर मैं आपका बेटा हूॅ तो मुझे भी आपका बेटा होने का हर फर्ज़ निभाना चाहिए न?" मैने भोलेपन से कहा था।

"ये तो बेटों की सोच और समझदारी पर निर्भर करता है बेटा।" माॅ ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा___"कि वो अपने माता पिता व परिवार के लिए कैसा विचार रखते हैं? पर हाॅ नियम और संस्कार तो यही कहते हैं कि हर ब्यक्ति को अपना कर्तब्य व फर्ज़ सच्चे दिल से निभाना चाहिए। जैसे माता पिता अपने बच्चों के लिए हर फर्ज़ सच्चे दिल से निभाते हैं।"

"मैं और तो कुछ नहीं जानता माॅ।" मैने कहा___"लेकिन इतना ज़रूर समझता हूॅ कि एक बेटे को हमेशा ऐसा काम करना चाहिए जिससे कि उसके माता पिता को अपने उस बेटे पर गर्व हो। वो अपने बेटे के हर काम से खुश हो जाएॅ। इस लिए माॅ, मैं भी अब वो फर्ज़ निभाना चाहता हूॅ।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है बेटा।" माॅ ने खुश होते हुए कहा___"तुम्हें ऐसा करना भी चाहिए। मुझे खुशी है कि तूने इतनी मुश्किलों और परेशानियों में भी अपने अच्छे संस्कारों का हनन नहीं होने दिया। तू अब बड़ा हो गया है, इस लिए तुझे अब अपने कर्तब्यों और फर्ज़ों की तरफ ध्यान देना चाहिए। तेरी माॅ और बहन ने बहुत दुख दर्द झेला है बेटा। मैं चाहती हूॅ कि तू उन्हें हमेशा खुश रखे।"

"वो दोनो अब खुश ही हैं माॅ।" मैने कहा__"लेकिन मैं अब अपनी दूसरी माॅ का बेटा होने का भी फर्ज़ निभाना चाहता हूॅ।"
"क्या मतलब?" माॅ ने मेरी इस बात से हैरान होकर मेरी तरफ देखा___"ये तू क्या कह रहा है बेटा?"

"हाॅ माॅ।" मैने कहा___"आप मेरी दूसरी माॅ ही तो हैं और मैं आपका बेटा हूॅ। इस लिए मैं आपका बेटा होने का फर्ज़ निभाना चाहता हूॅ। आशा दीदी की शादी बड़े धूमधाम से किसी बड़े घर में किसी अच्छे लड़के के साथ करना चाहता हूॅ। आज आशा दीदी के मुरझाए हुए चेहरे को देख कर मुझे कितनी तक़लीफ़ हुई ये मैं ही जानता हूॅ माॅ। कितनी बदल गई हैं वो, हर समय बिंदास और चंचल रहने वाली मेरी आशा दीदी ने आज खुद को गहन उदासी और गंभीरता की चादर में ढॅक कर रख लिया है। मैं उन्हें इस तरह नहीं देख सकता माॅ। वो मेरी सबसे प्यारी बहन हैं। मैं चाहता हूॅ कि उनके चेहरे पर फिर से पहले जैसी चंचलता और खुशियाॅ हों। इस लिए माॅ, मैने फैंसला कर लिया है कि अब मैं वही करूॅगा जो मुझे करना चाहिए।"
"पर बेटा ये सब....।" माॅ ने कुछ कहना चाहा मगर मैने उनकी बात काट कर कहा__"मैं आपकी कोई भी बात नहीं सुनूॅगा माॅ। अगर आप मुझे सच में अपना बेटा मानती हैं तो मुझे मेरा फर्ज़ निभाने से नहीं रोकेंगी।"

मेरी इस बात से माॅ मुझे देखती रह गईं। उनकी ऑखों में ऑसूॅ भर आए थे। मैने उठ कर माॅ को अपने से छुपका लिया और फिर बोला___"आप खुद को दुखी मत कीजिए माॅ। देख लेना, आपका ये बेटा सब कुछ ठीक कर देगा।"

"मुझे खुशी है कि तू मेरा बेटा है।" माॅ ने मुझसे अलग होकर मेरे माथे पर हल्के से चूमते हुए कहा___"लेकिन बेटा तुझे अंदाज़ा नहीं है कि शादी ब्याह में कितना रूपया पैसा खर्च करना पड़ता है। तेरे पास भला इतना रुपया पैसा कहाॅ से आएगा कि तू अपनी दीदी की शादी कर सके?"

"आपके इस बेटे के पास इतना पैसा है माॅ कि वो चाहे तो पूरे हल्दीपुर को खड़े खड़े खरीद ले।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"जिस मिल्कियत को पाने के लिए मेरे बड़े पापा ने हमारे साथ ये सब किया है न उससे कहीं ज्यादा मेरे पास आज के समय में मिल्कियत है।"

"क्या????" माॅ की ऑखें आश्चर्य से फट पड़ी थी, फिर सहसा अविश्वास भरे भाव से बोली___"पर बेटा तेरे पास इतना पैसा कहाॅ से आ गया?"
"सब कुदरत के करिश्मे हैं माॅ।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"भगवान अगर किसी को दुख तक़लीफ़ें देता है तो एक दिन उसे उस दुख तक़लीफ़ से मुक्त भी कर देता है। मेरे अपनों ने मेरे साथ क्या किया ये तो आप जानती हैं माॅ मगर किसी ग़ैर ने अपना बन कर मेरे लिए क्या किया ये आप नहीं जानती हैं। वो ग़ैर मेरे लिए फरिश्ता क्या बल्कि भगवान बन कर आया और आज मुझे हर दुख दर्द से मुक्त कर दिया।"

"ये तू क्या कह रहा है बेटा?" माॅ ने गहन आश्चर्य के साथ कहा___"मेरी समझ में तेरी ये बातें नहीं आ रही।"

मैने माॅ को संक्षेप में सारी कहानी बताई। उन्हें बताया कि मुम्बई में मैं जिस मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था उस कंपनी के मालिक जगदीश ओबराय मुझसे प्रभावित होकर मुझे क्या क्या काम दिया और फिर कैसे उनके दिल में मेरे लिए प्यार और स्नेह जागा। कैसे उन्होंने मुझे अपना बेटा बना लिया और फिर कैसे उन्होंने अपनी सारी प्रापर्टी जो करोड़ों अरबों में थी उसे मेरे नाम कर दिया और आज मैं अपनी माॅ और बहन के साथ उनके ही अलीशान बॅगले में रहता हूॅ। मैने माॅ को ये भी बताया कि कुछ दिन पहले अभय चाचा भी मुझे ढूॅढ़ते हुए वहाॅ पहुॅचे थे। पवन के बताने पर मैं उनको रेलवे स्टेशन से अपने बॅगले में ले गया और अब वो भी मेरे साथ ही वहाॅ पर हैं। सारी बातें सुनने के बाद माॅ मुझे इस तरह देखने लगी थी जैसे मेरे सिर पर अचानक ही उन्हें दिल्ली का कुतुब मीनार खड़ा हुआ नज़र आने लगा हो।

"अब आपका ये बेटा करोड़ क्या बल्कि अरबपति है माॅ।" मैने माॅ को उनके कंधों से पकड़ते हुए कहा___"इस लिए आप इस बात की बिलकुल भी चिंता मत कीजिए कि आशा दीदी की शादी मैं कैसे क पाऊॅगा?"
"भगवान का लाख लाख शुकर है बेटा कि उसने तुझ पर इतनी अनमोल कृपा की।" माॅ ने खुशी से छलक आई अपनी ऑखों को पोंछते हुए कहा___"दिन रात मैं यही सोचती रहती थी कि किस हाल में होगा तू वहाॅ पर और किस तरह तू अपनी माॅ बहन को अपने साथ रखा हुआ होगा? मगर तेरी ये बातें सुन कर मेरे मन का बोझ हल्का हो गया है। मेरा बेटा इतना बड़ा आदमी बन गया है इससे ज्यादा खुशी की बात एक माॅ के लिए क्या हो सकती है?"

"सब आपकी दुवाओं और आशीर्वाद का फल है माॅ।" मैने कहा___"माॅ की दुवाओं में बहुत असर होता है। भगवान माॅ की दुवाओं को कभी विफल नहीं होने दे सकता।"

मेरी ये बात सुनकर माॅ ने मुझे अपने गले से लगा लिया। मेरे सिर पर प्यार से हाॅथ फेरती रहीं वो। फिर मैं उनसे अलग हुआ और बोला___"माॅ मैं दीदी से भी मिल लूॅ। उनके चेहरे पर फिर से मुझे पहले वाली खुशियाॅ देखना देखना है।"

"ठीक है जा मिल ले उससे।" माॅ ने कहा__"तेरे समझाने से शायद वो खुश रहने लगे।"
"वो ज़रूर खुश रहेंगी माॅ।" मैने कहा__"मैं उनके चेहरे पर वही खुशी लाऊॅगा। उनका ये भाई उनकी दामन में हर तरह की खुशियाॅ लाकर डाल देगा।"

मेरी बात सुन कर माॅ की ऑखें भर आईं जिन्हें उन्होंने अपनी सफेद सारी के ऑचल से पोंछ लिया। मैं उनके पास से चल कर कमरे से बाहर आया और आशा दीदी के कमरे की तरफ बढ़ गया। दीदी के कमरे का दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था। मैने दरवाजे पर लगी साॅकल को पकड़ कर बजाया। किन्तु अंदर से कोई प्रतिक्रिया न हुई। मैने बाहर से ही आवाज़ लगाई उन्हें तब जाकर अंदर से दीदी की आवाज़ आई। वो कह रही थी कि आजा राज दरवाजा तो खुला ही है।

मैं अंदर गया तो देखा दीदी चारपाई के किनारे पर बैठी हुई थी। उनका सिर नीचे झुका हुआ था। मैं उनके पास जाकर उनके बगल से बैठ गया और उनके कंधे पर हाॅथ रखा। दीदी ने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा तो मैं चौंक गया। उनका चेहरा ऑसुओं से तर था। उनकी इस हालत को देख कर मेरा दिल तड़प उठा।

"ये क्या दीदी?" मैने कहा___"मेरी इतनी प्यारी दीदी की ऑखों में इतने सारे ऑसू?"
मेरी बात पूरी भी न हुई थी कि आशा दीदी झपट कर मुझसे लिपट गई और फूट फूट कर रोने लगी।

मुझे उनके इस तरह फूट फूट कर रोने से बड़ा दुख हुआ। लेकिन मैने उन्हें रोने दिया। शायद ये उनके अंदर का गुबार था। जिसका बाहर निकल जाना बेहद ज़रूरी था। मैं उनके सिर पर बड़े प्यार व स्नेह भाव से हाॅथ फेरता रहा।

सहसा मुझे उनके साथ बिताए हुए कुछ खुशियों भरे पल याद आ गए। मैं,पवन और आशा दीदी हमेशा ऊधम मचाते थे इस घर में। माॅ हमारी शैतानियाॅ देख कर खुस्सा करती, हलाॅकि हम तीनों जानते थे कि हम तीनों का ये प्यार देख कर माॅ खुद भी अंदर ही अंदर खुश हुआ करती थी। मगर प्रत्यक्ष में माॅ हमेशा दीदी को डाॅटने लगती। कहती कि वो तो हम दोनो से बड़ी है फिर क्यों हमारे साथ बच्ची बन जाती है। माॅ के डाॅटने से दीदी मुह फुला कर बैठ जाती। उसके बाद मैं और पवन उन्हें मनाने लगते। हम दोनो के पास उन्हें मनाने का बड़ा ही साधारण और खूबसूरत सा तरीका होता था। इस वक्त वही तरीका मेरे ज़हन में आया तो बरबस ही मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई।

"दुनियाॅ में सबसे सुंदर कौन?" मैने दीदी को अपने से छुपकाए हुए ही प्यार से कहा।
"सिर्फ मैं।" मेरी बात सुनते ही दीदी को पहले तो झटका सा लगा फिर उसी हालत में बोल पड़ी थी।
"दुनियाॅ में सबसे प्यारी कौन?" मैने फिर से कहा।
"सिर्फ मैं।" दीदी ने लरजते स्वर में कहा।
"दुनियाॅ में सबसे चंचल कौन?" मैने पूछा।
"सिर्फ मैं।" दीदी ने भारी स्वर में कहा।
"दुनियाॅ में सबसे नटखट कौन?" मैने पूछा।
"सिर्फ मैं?" दीदी की आवाज़ लड़खड़ा गई।
"और दुनियाॅ में सबसे शैतान कौन?" मैने सहसा मुस्कुरा कर पूछा।
"सिर्फ मैं।" दीदी ने कहा तो मैं चौंक पड़ा। उन्हें खुद से अलग कर उनके चेहरे की तरफ बड़े ध्यान से देखा मैने।

आशा दीदी का दूध सा गोरा चेहरा ऑसुओं से तर था। नज़रें झुकी हुई थी उनकी। मैं हैरान इस बात पर हुआ था कि मेरे पूछने पर कि "दुनियाॅ में सबसे शैतान कौन" का जवाब भी उन्होंने यही दिया कि "सिर्फ मैं"। जबकि अक्सर यही होता था कि इस सवाल पर वो यही कहती कि शैतना तुम दोनो ही हो। मैं तो मासूम हूॅ। लेकिन आज उन्होंने खुद को ही शैतान कह दिया था।

"ये तो कमाल हो गया दीदी।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"आज आपने खुद को ही कह दिया कि आप ही सबसे शैतान हो। आज आपने ये नहीं कहा कि मैं और पवन ही सबसे ज्यादा शैतान हैं। आप तो मासूम ही हैं।"
"हाॅ तो क्या हुआ?" दीदी ने सहसा तुनक कर कहा___"आज मैं शैतान बन जाती हूॅ। तुम दोनो मासूम बन जाओ।"

मैं उनकी इस बात को सुन कर मुस्कुराया। दीदी ने ये बात बिलकुल वैसे ही अंदाज़ में कही थी जैसा अंदाज़ उनका आज से पहले हुआ करता था। दीदी को भी इस बात का एहसास हुआ और फिर एकाएक ही उनकी रुलाई फूट गई।

"अरे अब क्या हुआ दीदी?" मैने उनको अपने से छुपका कर कहा___"देखो अब रोना नहीं। मुझे बिलकुल पसंद नहीं कि आप मेरी इतनी प्यारी सी दीदी को बात बात पर इस तरह रुला दो। चलो अब जल्दी से रोना बंद करो और अपनी वही मनमोहक मुस्कान और नटखटपना दिखाओ मुझे ताकि मेरे मन को सुकून मिल जाए।"

"अब तू आ गया है न तो अब मैं नहीं रोऊॅगी राज।" आशा दीदी ने कहा___"तुझे पता है मैं तुझे कितना मिस करती थी। हम तीनो का वो बचपन जाने कहाॅ गुम हो गया था? तुम दोनो मेरे खिलौने थे जिनके साथ मैं हॅसती खेलती रहती थी।"

"मैं जानता हूॅ दीदी।" मैने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा___"मगर आप तो जानती हैं कि समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। समय के साथ साथ सब कुछ बदल जाता है। ख़ैर, छोंड़िये ये सब और मुझसे वादा कीजिए कि अब से आप हमेशा खुश रहेंगी। अपने चेहरे पर वो उदासी और किसी भी तरह के दुख के भाव नहीं आने देंगी।"

"हम्म।" दीदी ने हाॅ में सिर हिलाया।
"अब बताइये आपको अपने इस भाई से क्या तोहफ़ा चाहिए?" मैने मुस्कुराते हुए पूछा।
"तू आ गया है मेरे पास।" दीदी ने मेरे चेहरे को अपने हाथ से सहला कर कहा___"इससे बड़ा तोहफ़ा मेरे लिए और क्या होगा?"

"पर मैं तो आपके लिए आपकी मनपसंद चीज़ लेकर ही आया हूॅ।" मैने कहा__"अब अगर आपको नहीं चाहिए तो ठीक है मैं उसे किसी और को दे दूॅगा।"
"ख़बरदार अगर किसी और को दिया तो।" दीदी ने ऑखें दिखाते हुए कहा___"ला दे मेरी चीज़ मुझे। वैसे क्या लेकर आया है राज?"
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