non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:48 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
उधर अजय सिंह हवेली से फैक्ट्री जाने के लिए निकल ही रहा था कि तभी उसका मोबाइल फोन बज उठा। अजय सिंह ने कोट की पाॅकेट से मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे भीमा नाम को देख कर तनिक चौंका। उसने तुरंत ही काल को रिसीव कर मोबाइल को कानों से लगा लिया।

"हाँ भीमा बोलो क्या ख़बर है?" कान से लगाते ही अजय सिंह ने ज़रा उत्सुक भाव से बोला था।
"............. ।" उधर से कुछ कहा भीमा ने।
"ये तुम क्या कह रहे हो भीमा?" अजय सिंह ने तनिक चौंकते हुए कहा था___"वो भला यहाँ क्यों आएगा अब? तुमने अच्छी तरह से उसे देखा है न?"

".............।" उधर से भीमा ने कुछ कहा।
"तो ख़ाक़ देखा तुमने।" अजय सिंह का लहजा एकाएक कठोर हो गया___"तुमको खुद ठीक तरह से यकीन नहीं है उसका। पहले तुम उसे अच्छी तरह से देखो और जब तुम उसे पहचान जाओ तब हमे बताओ।"

".............।" उधर से भीमा ने फिर कुछ कहा।
"ऐसे नहीं भीमा।" अजय सिंह परेशान से लहजे में बोला___"हमें पक्के तौर पर ख़बर चाहिए। हवा में लाठियाॅ मत घुमाओ समझे। तुम्हें उसके आने का सिर्फ अंदेशा है। जबकि हम ये अच्छी तरह जानते हैं कि उस कायर और डरपोंक में अब इतनी हिम्मत नहीं है कि वो इस गाँव में क़दम भी रख सके। उसे भी पता है कि यहाँ क़दम रखते ही उसकी जान उसके जिस्म से जुदा हो जाएगी। दूसरी बात ये है कि यहाँ वो आएगा ही क्यों? अपनी माँ और बहन की वजह से आता था वो, मगर अब तो वो दोनो उसके पास ही हैं। इस लिए अब उसके यहाँ आने का कोई सवाल ही नहीं उठता।"

"..........।" उधर से भीमा ने फिर कुछ कहा।
"सिर्फ शक के आधार पर तुम हमें ये बता रहे हो भीमा।" अजय सिंह ने कुछ सोचते हुए कहा___"पर अगर तुम्हें लगता है कि वो वही था तो ठीक है तुम उसका पीछा करो। पता करो वो कहाँ जाता है और किससे मिलता है?"

"...........।" भीमा ने कुछ कहा।
"तुम सब के सब निकम्मे हो।" अजय सिंह एकाएक बेहद गुस्से में बोला___"जब तुम्हें उस पर शक हो ही गया था तो उसका पीछा करते तुम।"
"...........।" उधर से भीमा ने फिर कुछ कहा।
"अरे तो कैसे गायब हो गया वो?" अजय सिंह चीखा___"वो ज़रूर किसी बस में या ऑटो में बैठ कर वहाँ से निकल गया होगा। इतना जल्दी कोई गायब नहीं होता भीमा। वो यकीनन वही था। उसने तुम्हें पहचान लिया होगा और इसी लिए वो तुम्हारी नज़रों से इतना जल्दी ओझल हुआ है। मगर उसके साथ दूसरा वो आदमी कौन हो सकता है?"

"..............।" भीमा ने कुछ कहा।
"हाँ शायद यही बात है।" अजय सिंह ने थोड़ा नरमी से कहा___"तुमने उसके साथ किसी अजनबी को देखा इसी लिए तुम्हारे मन में दो तरह के विचार पैदा हुए। तुमने सोचा होगा कि किसी अजनबी के साथ उसका क्या काम? इसी में तुम चूक गए भीमा। ख़ैर, कोई बात नहीं। अगर वो मुम्बई से यहाँ आया है तो यकीनन वो गाँव की ही तरफ आएगा। इस लिए अपने आदमियों से कहो कि फटाफट सारे रास्तों पर फैल जाएॅ और गाँव के रास्तों पर भी घेराबंदी कर लें। वो ज़रूर किसी बस या ऑटो में ही होगा। हर वाहन की अच्छी तरह से तलाशी लो। साला जाएगा कहाँ हमसे बच कर?"

"..........।" भीमा ने कुछ कहा।
"चलो अच्छी बात है।" अजय सिंह ने कहा___"जैसे ही वो मिले हमें ख़बर कर देना और हाँ उसे पकड़ कर सीधा हमारे पास हवेली लेकर आना। हम भी फैक्ट्री ही जा रहे थे मगर अब नहीं जाएॅगे। यहीं तुम लोगों का इन्तज़ार करेंगे हम।"

ये कह कर अजय सिंह ने मोबाइल से काल कट कर दी और फिर अपने नथुने फुलाते हुए खुद ही बड़बड़ाया___"आ बेटा आ। तेरा स्वागत हम ऐसा करेंगे कि सारी दुनियाॅ हमारे स्वागत कार्यक्रम की कायल हो जाएगी। हाहाहाहाहा आ सपोले जल्दी आ।"

अभी अजय सिंह अपनी ही बातों से हॅस ही रहा था कि तभी वहाँ पर प्रतिमा आ गई। उसके साथ में शिवा भी था।
"क्या बात है अजय?" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"अकेले अकेले ही मज़े ले रहे हो। मगर किस बात पर? हमे भी तो बताओ आख़िर माज़रा क्या है?"

"अभी हमारे एक आदमी का फोन आया था डार्लिंग।" अजय सिंह ने शिवा की मौजूदगी में भी उसे डार्लिंग कहा___"उसने हमें बताया कि विराज यहाँ आ रहा है।"
"क्याऽऽऽ???" प्रतिमा सोफे पर बैठी इस तरह उछल पड़ी थी जैसे अचानक ही उसके पिछवाड़े पर किसी ने गर्म तवा रख दिया हो, बोली___"ये क्या कह रहे हो तुम? वो रंडी का जना यहाँ किस लिए आ रहा है?"

"उसे उसकी मौत यहाँ ला रही है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"किसी ने सच ही कहा है कि जब गीदड़ की मौत आती है तो वो शहर की तरफ भागता है। वही हाल उस हरामज़ादे का है। उसकी भी मौत आई हुई है इसी लिए वो भागता हुआ यहाँ आ रहा है।"

"अच्छा ही तो है डैड।" सहसा शिवा भी गर्मजोशी से कह उठा___"आने दीजिए उस हराम के पिल्ले को। उससे गिन गिन के हिसाब लूॅगा मैं। उस दिन उसने मुझे बहुत मारा था न, आज उस सबका हिसाब मैं लूॅगा। वो मेरा शिकार है डैड, आप उसे मेरे हवाले करेंगे। मुझसे प्राॅमिस कीजिए डैड।"

"तुम्हारे हवाले उसे ज़रूर करूॅगा बेटे लेकिन उसे अधमरा करने के बाद।" अजय सिंह ने कहा___"क्योंकि अधमरी हालत में वो तुमसे जीत नहीं पाएगा। वरना बेहतर हालत में तो तुम उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे।"
"डैड आप मुझे उससे कमज़ोर समझते हैं क्या?" शिवा की भृकुटी तन गई___"वो तो उस दिन मेरा दिन ही ख़राब था डैड इस लिए वो मुझे मार सका था। वरना तो वो मेरे सामने कुछ भी नहीं है।"

"दिन ख़राब नहीं होते बेटे।" अजय सिंह ने खिसियाते हुए कहा___"वो तो सब एक जैसे ही होते हैं। रही बात उसकी कि तुम्हारे सामने वो कुछ भी नहीं है तो ये बात तुम खुद को उससे ऊॅचा दर्शाने के लिए कह रहे हो। जबकि सच्चाई तुम भी जानते हो कि अकेले तुम उसका बाल भी बाॅका नहीं कर पाओगे। ख़ैर जाने दो।"

अजय सिंह की इन बातों पर शिवा बगले झाॅकने लगा था। कदाचित उसे समझ आ गया था कि उसकी डींगें महज बकवास के सिवा कुछ भी नहीं है। सच्चाई यही है कि विराज का अकेले वो बाल भी बाॅका नहीं कर सकता था। ये बात उसका बाप भी बखूबी समझ चुका था।

"लेकिन अजय वो यहाँ आ किस लिए रहा है?" प्रतिमा ने कहा___"उसके यहाँ आने की कोई ठोस वजह मुझे तो दूर दूर तक समझ में नहीं आ रही।"
"कोई तो वजह होगी ही प्रतिमा।" अजय सिंह ने सोचते हुए कहा___"मत भूलो कि अभय भी मुम्बई गया हुआ है। हम ये नहीं जानते कि इतने दिनों से वो वहाँ क्या कर रहा है? उसे विराज मिला भी है कि नहीं। पर आज की सिचुएशन को देखा जाए तो यही लगता है कि अभय को विराज और विराज की माँ बहन मिल चुकी हैं। उन लोगों ने अभय को और अभय ने उन लोगों को आपस में सारी बातें बताई होंगी।"

"पर उनकी उन बातों से विराज के यहाँ आने का क्या कनेक्शन हो सकता है?" प्रतिमा ने तर्क दिया।
"ये तो अभय को भी पता चल चुका होगा कि हमारी असलियत क्या है?" अजय सिंह ने समझाने वाले अंदाज़ में कहा___"गौरी से सारी बातें जानने के बाद अभय को लगा होगा कि वो तो यहाँ से मुम्बई चला आया है लेकिन उसके बीवी बच्चे तो अभी भी गाँव में ही हैं। अभय समझता होगा कि उसके बीवी बच्चों को मुझसे बड़ा भारी खतरा है, इस लिए उसका पहला काम यही होगा कि वो अपने बीवी बच्चों को या तो भरपूर तरीके से सुरक्षित करे या फिर किसी तरह वो उन्हें भी अपने पास मुम्बई बुला ले। लेकिन सवाल ये पैदा हुआ होगा कि उसके बीवी बच्चों को यहाँ से लेकर कौन जाएगा वहाँ? इस लिए उसने विचार विमर्ष करके विराज को उन्हें लाने के लिए भेजा होगा।"

"तुम्हारी बातें और तुम्हारी सोच अपनी जगह यकीनन सही हैं अजय।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा___"मगर, अगर तुम्हारी बातों के अनुसार सोचा जाए तो इन बातों में भी एक पेंच है। वो ये कि उस सूरत में अभय ये कभी नहीं चाहेगा कि विराज की जान को कोई खतरा हो जाए। ये तो वो भी समझ ही गया होगा कि विराज की जान को हमसे खतरा है। इस लिए अपने बीवी बच्चों को यहाँ से ले जाने के लिए वो विराज को वहाँ से हर्गिज़ नहीं भेजेगा, और अगर भेजना चाहेगा भी तो गौरी विराज को यहाँ आने ही नहीं देगी। इस सिचुएशन में जान को खतरे में डालने का काम खुद अभय ही करेगा। वो खुद यहाँ आकर अपने बीवी बच्चों को यहाँ से ले जाना उचित समझेगा ना कि विराज को भेजना।"

"ये बात भी सही है।" अजय सिंह को मानना पड़ा कि प्रतिमा का तर्क भी अपनी जगह बेहद पुख्ता है, बोला___"लेकिन ये भी सच है कि विराज के यहाँ आने की कोई न कोई ठोस वजह तो ज़रूर है। बेवजह अपनी जान को जोखिम में डालने की मूर्खता ना तो वो खुद करेगा और ना ही उसकी माँ या उसका चाचा उसे करने की इजाज़त देंगे।"

"बिलकुल सही कहा।" प्रतिमा ने कहा__"तो सवाल ये है कि वो आख़िर यहाँ आ किस वजह से रहा है?"
"वजह कोई भी हो उसके आने की।" अजय सिंह ने कहा___"हमारे लिए अच्छी बात यही है कि जिसे हम महीनों से खोज रहे थे वो खुद ही चल कर हमारे पास आ रहा है। वो हमारे हाँथ लग जाएगा तो बाॅकी के उसके चाहने वाले भी हमारे पास सिर के बल दौड़ते हुए आ जाएॅगे। अब तो मज़ा आएगा प्रतिमा। हर कोई हमारे हाथ में खुद ही चला आएगा। फिर हम अपने तरीके से उनके साथ कुछ भी कर सकेंगे। बस एक ही बात की चिंता है कि रितू इन सबके बीच टपक न पड़े। वो पुलिस वाली है और ईमानदार पुलिस अफसर भी है वो। इस लिए उसके रहते हमारे लिए समस्या भी हो सकती है।"

"अब कोई भी समस्या आए डैड।" शिवा कह उठा___"ऐसा सुनहरा मौका अपने हाँथ से जाने नहीं देंगे हम। अगर हमारे इस अच्छे काम के बीच समस्या बन कर रितू दीदी आएॅगी तो उनका भी हिसाब किताब कर दिया जाएगा।"

"पहली बार अकल वाली बात की है तुमने बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"ये यकीनन हमारे लिए सुनहरा मौका ही है। अगर विराज हमारे हाँथ लग जाएगा तो उसके सभी चाहने वाले अपने आप ही चल कर हमारे पास आ जाएॅगे। इस लिए इस सुनहरे मौके पर हम किसी भी समस्या को तुरंत खत्म कर देने से पीछे नहीं हटेंगे।"

"तो क्या तुम अपनी बेटी को जान से मार दोगे अजय?" प्रतिमा अंदर ही अंदर काॅप गई थी।
"ऐसा तो सिर्फ तब होगा डियर।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"जब हमारे पास ऐसा करने के सिवा दूसरा कोई रास्ता ही न बचेगा।"

प्रतिमा देखती रह गई अजय सिंह को। उसकी बातों से उसके जिस्म का रोयाॅ रोयाॅ खड़ा हो गया था। उसकी ऑखों के सामने उसकी सुंदर सी बेटी रितू का खूबसूरत चेहरा कई बार फ्लैश कर उठा। इस एहसास ने ही उसे अंदर तक हिला कर रख दिया कि उसकी बेटी को उसका ही बाप जान से मार भी सकता है। एक पल के लिए उसकी ऑखों के सामने रितू का मृत शरीर खून से लथपथ ज़मीन में पड़ा हुआ दिख गया उसे। ये दृष्य ऑखों के सामने चकराते ही प्रतिमा का जिस्म एकदम से ठंडा पड़ता चला गया।

"अब आगे का क्या प्रोग्राम है डैड?" तभी शिवा की आवाज़ प्रतिमा के कानों से टकराई तो जैसे उसे होश आया।
"हमने अपने आदमियों को निर्देश दे दिया है बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"वो हर रास्तों पर घेराबंदी कर देंगे। विराज उनसे बच कर किसी भी हालत में कहीं जा नहीं सकेगा और उनके पकड़ में आ ही जाएगा। उसके बाद हमारे आदमी उसे लेकर सीधा हवेली हमारे पास आएॅगे।"

"दैट्स ग्रेट डैड।" शिवा ने खुश होकर कहा___"अब आएगा मज़ा। लेकिन डैड विराज के आने की ख़बर रितू दीदी को नहीं लगनी चाहिए। हम उसे कहीं छुपा कर रखेंगे। इस हवेली में उसे रखना मेरे ख़याल से ठीक नहीं है।"
"ये भी सही कहा तुमने बेटे।" अजय सिंह ने कहा__"आज तुम्हारा दिमाग़ भी सही तरह से काम कर रहा है। मुझे इस बात से बेहद खुशी महसूस हो रही है। ख़ैर, तुम फिकर मत करो बेटे, रितू के आने से पहले ही हम विराज को ऐसी जगह छुपा देंगे जहाँ से किसी को कभी कुछ पता ही नहीं चल पाएगा। एक काम करते हैं, हम अपने आदमियों को बोल देते हैं कि वो विराज को लेकर हवेली न आएॅ बल्कि हमारे नये फार्महाउस पर लेकर पहुँचें। ऐसा इस लिए बेटे कि रितू का कोई भरोसा नहीं है कि वो कब हवेली में टपक पड़े। उस सूरत में उसे अंदेशा भी हो सकता है इन सब बातों का। पुलिस वाली है न इस लिए अगर एक बार उसके मन में शक का कीड़ा आ गया तो वो उस शक के कीड़े की कुलबुलाहट हो ज़रूर शान्त करने की कोशिश करेगी। इस लिए बेहतर यही रहेगा कि हम विराज को अपने नये फार्महाउस पर ही रखें।"

"हाँ ये ठीक रहेगा डैड।" शिवा ने कहा__"तो फिर हमें भी अब सीधा फार्महाउस ही चलना चाहिए।"
"यस ऑफकोर्स माई डियर सन।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, फिर उसने प्रतिमा की तरफ देखते हुए कहा___"चलो डियर तैयार हो जाओ। हमें जल्द ही अपने नये फार्महाउस के लिए निकलना है।"

अजय सिंह की बात पर प्रतिमा ने हाँ में सिर हिलाया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। जबकि अजय सिंह और शिवा वहीं ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर बैठ कर प्रतिमा के आने का इन्तज़ार करने लगे। दोनो के चेहरे इस वक्त हज़ार वाॅट के बल्ब की तरह चमक रहे थे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर टैक्सी में बैठे हुए मैं और आदित्य आराम से बस स्टैण्ड की तरफ आए, जहाँ पर मैने पवन को भी अपने साथ टैक्सी में बैठा लिया। पवन मेरे साथ आदित्य को देख कर थोड़ा परेशान सा दिखा तो मैने उसे आदित्य के बारे में बता दिया। मेरी बात सुन कर पवन के ज़हन से परेशानी व चिंता चली गई।

मैने पवन से बहुत पूछा कि उसने मुझे इतना अर्जेन्टली क्यों बुलाया था मगर पवन ने यही कहा कि मैं खुद अपनी ऑखों से ही देख लूॅगा। बस स्टैण्ड से पवन को लेने के बाद हम अपने गाँव हल्दीपुर के लिए निकल चुके थे। इधर का रास्ता ऐसा था कि दूर दूर तक खाली ही रहता था। यहाँ रास्ते के दोनो तरफ पहाड़ थे। ऐसे पहाड़ जिनमें पेड़ पौधे या झाड़ झंखाड़ नाम मात्र के ही थे। बस स्टैण्ड से जब गाँव की तरफ आओ तो लगभग दस किलोमीटर के बाद बीच रास्ते में एक बड़ी सी नहर पड़ती थी। जिसके बीच में एक पक्का पुल बना हुआ था जो कि काफी पुराना था।

आस पास का सारा इलाका पथरीला था। बड़ी बड़ी चट्टाने थी। सड़क के दोनो तरफ की सारी ज़मीनें पथरीली और बंजर थी। एक तरफ के पहाड़ पर बाक्साइड था जिसमें पहले के समय में यहाँ से काफी सारा बाक्साइड ट्रकों में जाता था। एक बार कुछ मजदूर पहाड़ के धसने से उसी में दब कर मर गए थे जिससे बड़ा बवाल हो गया था। ठेकेदार तो अपनी जान बचा कर वहाँ से चंपत हो गया था। इसके बाद से वहाँ पर से बाक्साइड ले जाने का काम बंद करवा दिया गया था।

पहाड़ की दूसरी साइड पर एक अन्य सड़क थी जो दूसरे गाँव के लिए जाती थी। उस पुल को पार करने के बाद एक चौराहा मिलता था जिसमे से अलग अलग दिशा में अलग अलग गाँव की तरफ जाने के लिए कच्ची सड़क बनी हुई थी। हल्दीपुर जाने के लिए सीधा ही जाना होता था। किसी भी मोड़ से मुड़ने की ज़रूरत नहीं थी। लेकिन अगर आप मुड़ भी गए हैं तो दूसरे गाँव से भी आप एक अन्य कच्चे रास्ते से हल्दीपुर जा सकते हैं। हल्दीपुर गाँव आस पास के सभी गावों की मुख्य पंचायत था। अन्य गाॅवों की अपेक्षा हल्दीपुर गाँव में सुख सुविधा ज्यादा थी और इस सब में सबसे बड़ी बात ये थी कि आस पास के सभी गाॅवों का पुलिस थाना हल्दीपुर में ही था। हल्दीपुर कहने के लिए गाँव था वरना तो वो किसी कस्बे जैसा ही था। बस कस्बे की तरह थोड़ा शहरी ढाॅचे में ढला हुआ नहीं था।

बस स्टैण्ड से लगभग बीस किलोमीटर चलने के बाद टैक्सी से हम जैसे ही पुल के पास पहुँचने वाले थे कि दूर से ही हमें सामने की तरफ धूल उड़ाती हुई कुछ जीपें हमारी तरफ ही आती हुई दिखीं। वो सब सीधे वाले रास्ते से ही आ रही थीं। मुझे समझते देर न लगी कि ये सब जीपें असल में किसकी हो सकती हैं। मेरी नज़र पवन पर पड़ी तो वो भी सामने ही देख रहा था। उसकी हालत डर और भय से ख़राब होने लगी थी।

"राज ये ये तो।" पवन ने सहमे हुए लहजे में कहा___"ये तो तेरे बड़े पापा की ही जीपें लगती हैं। लगता है उन्हें तेरे आने का पता चल गया है। मगर मगर कैसे? कैसे पता चल गया उन्हें?"
"अब जो हो गया उसे छोड़ भाई।" मैने सामने की तरफ देख कर कहा___"मुझे पता है कि मेरे आने का कैसे पता चल गया होगा उस अजय सिंह को? पर कोई बात नहीं पवन। घबराने की कोई बात नहीं है। आने दे उन सबको। मैं भी तो देखूॅ कि अजय सिंह और उसके आदमियों में कितना दम है?"

"क्या हुआ भाई?" आदित्य जो कि टैक्सी की खिड़की से उस तरफ के पहाड़ों को देख रहा था, वो मेरी तरफ पलट कर बोल पड़ा था___"किसमे कितना दम है?"
"सामने देखो दोस्त।" मैने आदित्य से कहा___"जिसका मुझे अंदेशा था वही हुआ।"

"क्या मतलब?" आदित्य ने चौंकते हुए पूछा।
"ये जो सामने से कई सारी जीपें हमारी तरफ आती हुई नज़र आ रही हैं न।" मैने कठोर भाव से कहा___"ये सब मेरे बड़े पापा की ही हैं। इन सब में उनके आदमी हैं और वो खुद भी हो सकते हैं। ये सब मुझे पकड़ने के लिए आ रहे हैं।"

"ओह इसका मतलब कि ऐक्शन का समय आ गया है।" आदित्य एकदम से सतर्क भाव से कह उठा__"चिन्ता मत करना दोस्त। मेरे रहते इनमें से कोई तुम्हें छू भी नहीं सकेगा।"
"मैं जानता हूॅ दोस्त।" मैने कहा__"मगर मैं ये भी नहीं चाहता कि तुम्हें ज़रा सी खरोंच भी आए। आख़िर तुम मेरे दोस्त हो अब।"

"मैं तुम जैसा दोस्त पा कर खुश हूॅ मेरे दोस्त।" आदित्य ने सहसा भावपूर्ण लहजे में कहा___"इस लिए मुझे अब किसी भी चीज़ के लिए रोंकना मत। बहुत दिनों बाद किसी अपने के लिए दिल से कुछ करने का मौका मिला है।"
"फिर भी दोस्त।" मैने आदित्य के कंधे पर हाँथ रखते हुए कहा___"मैं तुम्हें अकेले कुछ नहीं करने दूॅगा। बल्कि मैं भी तुम्हारे साथ ही इन सबका मुकाबला करूॅगा।"

"नहीं विराज।" आदित्य बोला___"ये सब तुम्हारे बस का काम नहीं है। अगर तुम्हें मेरे रहते कुछ हो गया तो मैं कभी भी अपने आपको मुआफ़ नहीं कर पाऊॅगा।"
"अपने इस दोस्त को इतना कमज़ोर भी मत समझो भाई।" मैने मुस्कुरा कर कहा__"अगर तुमसे ज्यादा नहीं हूॅ तो कम भी नहीं हूॅ।"

"क्या मतलब??" आदित्य ने नासमझने वाले भाव से पूछा था।
"यही कि थोड़ा बहुत मार्शल आर्ट्स मैं भी जानता हूॅ।" मैने कहा__"और मुझे खुद पर यकीन है कि मैं तुम्हारे साथ इन लोगों का डॅट कर मुकाबला कर सकता हूॅ।"

"अगर ऐसी बात है तो ठीक है दोस्त।" मेरी बात सुन कर आदित्य ने कहा।
हम दोनो बात कर रहे थे जबकि मेरे बगल में बैठा पवन सामने की तरफ एकटक देखे जा रहा था। आदित्य टैक्सी ड्राइवर के बगल वाली शीट पर बैठा हुआ था। तभी वो मेरे पीछे की तरफ देख कर चौंका।

"अरे हमारे पीछे भी दो गाड़ियाॅ लगी हुई हैं विराज।" आदित्य ने कहा___"क्या ये भी तुम्हारे ही बड़े पापा के आदमी हैं?"
"क्याऽऽ???" मैने बुरी तरह चौंकते हुए पीछे पलट कर देखा, और पीछे आ रही दोनो गाड़ियों को ध्यान से देखते हुए कहा__"ये तो कोई और ही हैं यार। पर हो सकता है कि इसमे भी बड़े पापा के ही आदमी हों।"

मेरे साथ साथ पवन ने भी पीछे मुड़ कर देखा था। पीछे देखने के बाद उसके चेहरे पर तनिक राहत के भाव उभरे। ये बात मैने भी नोट की। मेरा माथा ठनका। इसका मतलब पवन जानता है कि हमारे पीछे आ रही दोनो गाड़ियाॅ किसकी हैं। मेरे मन में पवन से ये बात पूछने का ख़याल तो आया मगर फिर मैने तुरंत ही उससे पूछने का अपना ख़याल ज़हन से निकाल दिया। मुझे पवन पर भरोसा था। वो मेरा बचपन का सच्चा दोस्त था। मगर इस वक्त वो हमारे पीछे आ रही गाड़ियों के बारे में जानते हुए भी मुझे कुछ न बताया था। बल्कि राहत की साॅस लेकर वह आराम से बैठ गया था। मुझे समझ न आया कि एकदम से उसमें ऐसा बदलाव कैसे आ गया?

उधर पुल को पार कर वो जीपें हमारे काफी नज़दीक पहुँच चुकी थी। मेरी नज़र अचानक ही सामने बैठे आदित्य पर पड़ी। उसने अपने बैग से एक रिवाल्वर निकाला था। मतलब साफ था कि आदित्य हर तरह से चौकन्ना और चाकचौबंद ही था। देखते ही देखते सामने से आ रही वो जीपें टैक्सी के बीस मीटर के फाॅसले पर आकर रुक गईं। बीच सड़क पर और सड़क की पूरी चौड़ाई पर दो जीपे इस तरह आकर खड़ी हो गई थी कि अब सामने से टैक्सी निकल नहीं सकती थी। उसके लिए ड्राइवर को सड़क के नीचे हल्के से ढलान पर टैक्सी को उतारना पड़ता।

हमारे पीछे आ रही दोनो गाड़ियाॅ भी टैक्सी के पीछे दस मीटर के फाॅसले पर खड़ी हो गई थी। इधर सामने खड़ी जीपों के दरवाजे एक साथ एक झटके से खुले और उसमें से मेरे बड़े पापा के चिरपरिचित आदमी बाहर निकले। सबके हाँथों में लट्ठ थे। जीपों से उतर कर वो सब टैक्सी की तरफ आने लगे। मैने देखा कि बड़े पापा वहाँ कहीं नज़र नहीं आए मुझे। इसका मतलब उन्होंने इन लोगों को मुझे लाने के लिए भेजा था।

"पवन, तुम इस टैक्सी में आराम से बैठे रहना।" मैने पवन से कहा__"और हाँ चिन्ता की कोई बात नहीं है। मैं और आदित्य अभी इन लोगों से निपट कर आते हैं। चलो दोस्त।"
"चलो मैं तो एकदम से तैयार ही हूॅ।" आदित्य ने कहा___"लेकिन एक समस्या है यार।"

"समस्या?" मैने पूछा__"कैसी समस्या?"
"हमारे पीछे खड़ी गाड़ियों में कौन हो सकता है?" आदित्य ने कहा__"क्या उसमें भी दुश्मन ही हैं? ये जानना ज़रूरी है भाई। क्योंकि वो पीछे से हम पर हमला करके हमें नुकसान भी पहुँचा सकते हैं।"

"वो हम पर हमला नहीं करेंगे दोस्त।" मैने एक नज़र पवन पर डालने के बाद कहा__"बल्कि मुझे लगता है कि वो लोग हमारी सुरक्षा के लिए हैं।"
"हमारी सुरक्षा के लिए?" आदित्य के साथ साथ पवन भी चौंका था मेरी बात से।
"हाँ भाई।" मैने कहा___"पवन ने तो यही बोला है मुझसे।"

"क्या????" पवन बुरी तरह हड़बड़ा गया, बोला___"मैने ऐसा कब कहा तुझसे?"
"यही तो ग़लत बात है न भाई।" मैने अजीब भाव से कहा___"कि तुमने कुछ कहा ही नहीं। मगर मैं तेरे चेहरे से सब समझ गया हूॅ। तू बताना नहीं चाहता तो कोई बात नहीं। चलो आदित्य, वो टैक्सी के करीब ही आ गए हैं।"

मेरे कहते ही आदित्य अपनी तरफ का दरवाजा खोल कर टैक्सी से बाहर आ गया और इधर मैं भी। पवन मूर्खों की तरह मुझे देखता रह गया था। जब मैं उतरने लगा तो उसने मुझे पकड़ने के लिए हाँथ बढ़ाया ज़रूर मगर मैं उसे बेफिक्र रहने का कह कर टैक्सी से बाहर आ गया। टैक्सी से उतर कर मैं और आदित्य सामने की तरफ बढ़ चले।
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