non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:48 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
नैना की इस बात पर रितू कुछ न बोली। बल्कि जिप्सी को टाॅप गियर में डाल कर उसे तूफान की तरह भगाती हुई वह नियत समय से बहुत कम समय में अपने फार्महाउस पहुॅच गई। फार्महाउस के अंदर दाखिल होकर रितू ने पोर्च के नीचे जाकर जिप्सी को रोंक दिया।

"ये कौन सी जगह है रितू?" नैना ने हैरानी से इधर उधर देखते हुए कहा___"ये तू कहाॅ ले आई है मुझे?"
"अपने एक अलग घर में बुआ।" रितू ने कहा___"जहाॅ पर अपना अलग एक नया संसार बसता है।"

"एक नया संसार?" नैना चकरा सी गई, बोली___"इसका क्या मतलब हुआ भला?"
"आईये अंदर चलते हैं।" जिप्सी से उतरते हुए रितू ने कहा___"अब से आप यहीं रहेंगी।"
"ये तुम क्या कह रही हो बेटा?" नैना चकित स्वर में बोली___"मैं यहीं रहूॅगी? मगर क्यों रितू? ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से तुम मुझे यहाॅ लेकर आई हो। आख़िर बात क्या है? क्या छुपा रही है तू मुझसे? देख रितू मुझे सारी बात सच सच बता, मेरा दिल बहुत घबरा रहा है।"

"अब आपको किसी भी बात के लिए घबराने की ज़रूरत नहीं है बुआ।" रितू ने पिछली सीट से नैना का बैग निकालते हुए कहा__"ये अपना ही घर है। यहाॅ पर आपको किसी बात का कोई ख़तरा नहीं है।"

"खतरा???" नैना का दिमाग़ मानो कुंद सा पड़ता चला गया, बोली___"आख़िर तू किस खतरे की बात कर रही है रितू? मुझे भला किससे खतरा है और किस बात का खतरा है? मुझे बता बेटा, वरना तेरी इन बातों से मैं पागल हो जाऊॅगी।"

"सब बताऊॅगी बुआ।" रितू ने कहा__"अंदर तो चलिए।"
रितू की इस बात से हैरान परेशान नैना किसी यंत्र चालित सी होकर रितू के पीछे पीछे अंदर की तरफ चल पड़ी।

अंदर पहुॅचते ही उन्हें हरिया काका की बीवी बिंदिया मिल गई।
"अरे बिटिया आ गई तुम?" बिंदिया ने बड़े प्यार और सम्मान से कहा___"और ये तुम्हारे साथ में बीवी जी कौन हैं?"

"काकी ये मेरी छोटी बुआ हैं।" रितू ने कहा___"और आज से ये यहीं रहेंगी। इनका हर तरह से ख़याल रखना।"
"इसमें कहने वाली कौन सी बात है बिटिया?" बिंदिया ने कहा___"मेरे लिए तो ये भी तुम्हारी तरह ही हैं।"

"इनके लिए मेरे बगल वाले कमरे को अच्छी तरह साफ कर दीजिए।" रितू ने कहा__"तब तक मैं इन्हें अपने कमरे में लिये जा रही हूॅ। और हाॅ जल्दी से गरमा गरम नास्ता भी तैयार कर दीजिए।"
"सब हो जाएगा बिटिया।" बिंदिया ने कहा___"तुम बस कुछ देर का समय दो मुझे।"
"ठीक है काकी।" रितू ने कहने के साथ ही नैना की तरफ देख कर कहा___"आइये बुआ ऊपर कमरे में चलते हैं।"

रितू ने कहा तो नैना उसके पीछे चुपचाप चल दी। उसके मन में हज़ारों सवाल और हज़ारों ख़याल पैदा हो चुके थे। कमरे में पहुॅच कर रितू ने नैना को बेड पर बैठाया और खुद भी उसके बगल में बैठ गई।

"अब तो बता बेटा कि बात क्या है?" नैना ने ब्याकुलता से पूछा___"इस तरह तू मुझे यहाॅ लेकर क्यों आई है?"
"मुझे समझ नहीं आ रहा बुआ।" रितू ने सहसा गंभीर होकर कहा___"कि आपको वो सब बातें कैसे बताऊॅ और कहाॅ से बताऊॅ?"

"देख रितू तू अब कोई बच्ची नहीं रही।" नैना ने कहा___"बल्कि तू अब बड़ी हो गई है। जो भी बात है तू मुझे बेझिझक बता सकती है। मुझे तू अपनी दोस्त या राज़दार समझ सकती है। मैं जातनी हूॅ कि तू कभी कोई ग़लत काम नहीं कर सकती है। मुझे तुझ पर हमेशा से गर्व रहा है। ख़ैर, तू बेझिझक बता कि ऐसी क्या बात है जिसकी वजह से तू मुझे इस तरह यहाॅ लेकर आई है?"

"मुझे किसी बात की भूमिका बनाना नहीं आता बुआ।" रितू ने गंभीरता से कहा__"मैं तो साफ साफ कहना जानती हूॅ। आप जानना चाहती हैं न कि मैं आपको इस तरह यहाॅ क्यों लेकर आई हूॅ यो सुनिए___हवेली में रहने वाले आपके भइया भाभी और आपका भतीजा ये तीनो ही वासना और हवस के चलते इस क़दर अंधे हो चुके हैं कि इन्हें अब ये भी नहीं दिखता कि ये लोग जिनके साथ कुकर्म करने का मंसूबा बनाए हुए हैं वो रिश्ते में इनके क्या लगते हैं।"

"ये तू क्या कह रही है रितू?" नैना की ऑखें हैरत से फैल गईं, बोली___"तुझे कुछ होश भी है कि तू किनके बारे में क्या बोल रही है?"
"होश तो अब आया है बुआ।" रितू ने भारी लहजे में कहा___"बचपन से लेकर अब तक तो मैं बेहोश ही थी। अपने उन माता पिता को देवता समझती रही जिनके हाॅथ अपने ही घर के लोगों के खून से सने हुए हैं। आपको नहीं पता बुआ, आपका भाई और मेरा बाप अपने ही भाई विजय सिंह का क़ातिल है। आज तक हम सब यही जानते रहे हैं कि विजय चाचा की मौत सर्प के काटने से हुई थी जब वो खेत में पानी लगा रहे थे। जबकि ये बात सरासर झूॅठ है बुआ। सच्चाई ये है कि मेरे बाप ने उनकी जानबूझ कर जान ली थी।"

"ये ये क्या कह रही है तू?" नैना के पैरों तले से ज़मीन गायब हो गई___"नहीं नहीं अजय भइया ऐसा नहीं कर सकते हैं। ये सब झूठ है रितू, कह दे कि ये सब झूठ है।"
"कैसे कह दूॅ बुआ?" रितू की ऑखें छलक पड़ी____"मैंने अपनी ऑखों से देखा है और कानों से सुना है।"

"कब देखा सुना तुमने?" नैना कह उठी।
"कल रात को।" रितू ने कहा___"और ये अच्छा ही हुआ बुआ कि मुझे अपने माता पिता की ये सच्चाई खुद उनके ही मुख से सुनने को मिल गई। कल रात मुझे नींद नहीं आ रही थी। अपने बेड पर पड़ी मैं करवॅटें बदल रही थी। फिर मुझे प्यास लगी तो मैं अपने कमरे से निकल कर नीचे किचेन में पानी पीने के लिए आई। पानी पीकर जब मैं वापस अपने कमरे की तरफ जाने लगी तो देखा कि गौरी चाची की तरफ जाने वाला पार्टीशन का दरवाजा खुला हुआ था। मैने सोचा ये खुला हुआ क्यों है आज। बस यही पता करने के लिए मैं उस तरफ चली गई। मगर मुझे क्या पता था कि उस तरफ मुझे कुछ ऐसा देखने सुनने को मिलेगा जिसे देख सुन कर मेरे पैरों तले से धरती गायब हो जाएगी।"

"ऐसा क्या देखा सुना तुमने?" नैना बेयकीनी भरे भाव से पूछा था। उसकी बात सुन कर रितू उसे वो सब कुछ बताती चली गई जो कुछ उसने उस तरफ कमरे के अंदर देखा और सुना था। उसने एक एक बात नैना को बताई। सारी बातें सुनने के बाद नैना की हालत काटो तो खून नहीं जैसी हो गई थी। फिर जैसे उसे खुद ही होश आया। उसका चेहरा पलक झपकते ही दुख और पीड़ा में डूबता चला गया। ऑखों से झर झर करके ऑसू बहने लगे।

"इतना बड़ा पाप।" फिर वह बिलखते हुए बोली___"और इतना बड़ा गुनाह किया इन लोगों ने मेरे देवता जैसे भाई के साथ। अरे उसके साथ ही क्यों रे, इन लोगों ने तो किसी को भी नहीं बक्शा। अपने पाप और गुनाह को छुपाने के लिए मेरे भाई की सर्प से कटवा कर जान ले ली। मेरी देवी समान भाभी गौरी पर इतने संगीन इल्ज़ाम लगाए और उन्हें हवेली से निकाल दिया। इन लोगों ने तो हवेली को नर्क बना कर रख दिया है रितू। अच्छा हुआ तू मुझे यहाॅ ले आई। वरना इन लोगों का कोई भरोसा नहीं था कि ये लोग कब मेरी या तुम्हारी इज्ज़त के साथ अपनी हवस की भूख को शान्त करते।"

"मुझे नफ़रत हो गई है बुआ अपने माॅ बाप और भाई से।" रितू ने कहा___"मैं तो कल ही अपने रिवाल्वर से इन तीनो को जान से मार देना चाहती थी मगर मेरे ज़मीर ने रोंक दिया मुझे। ये कह कर कि इनको जान से मारने का अधिकार मुझको नहीं बल्कि उसे है जिनके साथ इन लोगों ने ग़लत किया है। कसम से बुआ, मुझे ऐसे माॅ बाप और भाई के मर जाने का लेश मात्र भी दुख नहीं होगा।"

"मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा रितू कि ये सब इन लोगों ने किया है।" नैना ने दुखी भाव से कहा___"पता नहीं मेरी देवी समान गौरी भाभी और उनके दोनो बच्चे किस हाल में होंगे? जिस तरह से इन लोगों उन पर अत्याचार किया है न उसकी इन्हें सज़ा ज़रूर मिलेगी। ईश्वर के पास सबका हिसाब है। उसका क़हर जब इन पर बरपेगा न तो इनके जिस्मों पर कीड़े पड़ जाएॅगे।"

"वो लोग मुम्बई में जहाॅ भी होंगे यहाॅ से बहुत अच्छे होंगे बुआ।" रितू ने कहा___"और आपको पता है आज मेरा वो भाई आ रहा है जिसे मैने कभी अपना भाई नहीं समझा था। लेकिन वो पगला हमेशा मुझे इज्ज़त से दीदी ही कहा करता था। मेरा सच्चा भाई आ रहा है बुआ। मेरा राज आ रहा है मुम्बई से।"

"क्या?????" नैना उछल पड़ी___"मगर तुझे कैसे पता?"
"पता तो होगा ही बुआ।" रितू ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"आख़िर बुलवाया तो मैने ही है उसे।"
"ये क्या कह रही है तू?" नैना ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___"तूने उसे बुलवाया है? ये जानते हुए भी कि तुम्हारे बाप से उसकी जान को खतरा है?"

"उसे कुछ नहीं होगा बुआ।" रितू ने दृढ़ता से कहा___"उसकी तरफ आने वाली हर बाधा हर मौत को सबसे पहले मुझसे मिलना होगा। कसम से बुआ अगर खुद मेरा बाप उसकी मौत बन उसके पास आया तो मौत रूपी उस बाप को भी मैं जीवित नहीं छोंड़ूॅगी।"

"लेकिन तूने उसे बुलवाया किस लिए है रितू?" नैना ने कहा___"आख़िर बात क्या है?"
"उसकी भी अजब कहानी है बुआ।" रितू ने अजीब भाव से कहा___"पगले का नसीब तो देखो। कहीं पर भी उसे प्यार और खुशियाॅ नसीब नहीं हुईं। दुख दर्द ने तो जैसे उसका दामन ही थाम रखा है।"

"क्या कह रही तू?" नैना ने ना समझने वाले भाव से कहा___"साफ साफ बता कि बात क्या है?"
"बुआ, मेरा भाई विराज एक खूबसूरत लड़की से प्यार करता था।" रितू दुखी लहजे में बोली___"मगर बाद में उस लड़की ने उसे छोंड़ दिया। और अब वहीं लड़की उसे अंतिम बार देखना चाहती है।"

"अंतिम बार???" नैना का दिमाग़ चकरा गया___"इसका क्या मतलब हुआ?"
रितू ने नैना को सारी बातें बताई। ये भी बताया कि उस लड़की का कुछ दिनों पहले गैंग रेप हो चुका है। रितू ने बताया कि कैसे उस लड़की ने विराज को छोंड़ा था और अब लास्ट स्टेज के कैंसर से अंतिम साॅसें ले रही है। वो चाहती है कि अंत समय में वो अपने महबूब को देख ले और उसी की बाहों में उसका दम निकले। सारी बातें सुनने के बाद नैना एकदम अवाक् रह गई। उसकी ऑखों में फिर से ऑसुओं का सैलाब सा आ गया।

"हे भगवान ये सब क्या कर रहा है तू?" नैना ने ऊपर की तरफ देख कर दुखी भाव से कहा___"मेरे बच्चे को कितना दुख संताप देगा तू। रितू, वो विधी को उस हाल में देख नहीं पाएगा। भगवान ही जाने क्या गुज़रेगी उस वक्त उसके दिल पर। ये प्यार मोहब्बत होती ही ऐसी चीज़ है बेटा कि इंसान को कमज़ोर दिल का बना देती है। खुद पर चाहे हज़ार चोंट खा ले इंसान मगर अपने प्रियतम के लिए वो छोटी से छोटी चोंट भी बरदास्त नहीं कर पाता। तू उसके पास ही रहना बेटा। नहीं तो तू मुझे ले चल उसके पास। मैं अपने भतीजे को उस वक्त सम्हालूॅगी। मैं उसे किसी भी कीमत पर बिखरने नहीं दूॅगी रे।"

"बस ईश्वर से दुवा कीजिए बुआ कि सब ठीक ही रहे।" रितू ने भारी स्वर में कहा__"मैं अपने भाई के पास ही रहूॅगी। मैं उसे अपने सीने से लगा लूॅगी बुआ लेकिन उसे बिखरने नहीं दूॅगी।"
"मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है रितू।" नैना ने रितू के चेहरे को अपनी दोनो हथेलियों के बीच लेकर कहा____"आज तुझे अपने उस भाई के लिए इतना प्यार और इतनी तड़प देख कर मुझे खुशी हुई, जिस भाई को तूने कभी अपना नहीं समझा था।"

"वो मेरी सबसे बड़ी भूल थी और नादानी थी बुआ।" रितू की ऑखों में ऑसू भर आए, बोली___"जो मैने अपने पारस जैसे भाई को कभी अपना नहीं समझा था। लेकिन इसमें भी मेरा कोई कसूर नहीं है बुआ। ये सब तो मेरे उन्हीं माॅ बाप की वजह से हुआ है जिन्होंने बचपन से हम बहन भाई को यही सिखाते रहे कि ये हमारे अपने नहीं हैं बल्कि ये बुरे लोग हैं। मगर कहते हैं न बुआ कि सच्चाई हमेशा के लिए पर्दे के पीछे छुपी नहीं रह सकती। वो एक दिन उस पर्दे से निकल कर हमारे सामने आ ही जाती है। आज मुझे पता चल चुका है कि अच्छा कौन है और बुरा कौन है? जीवन भर दूसरों को बुरा बताने वाला आज खुद मेरे सामने कितना बुरा और पापी निकला जिसकी कोई सीमा नहीं है। जो बाप अपनी ही बेटी बहू और बहन को अपने नीचे सुलाने की बात करे वो अच्छा कैसे हो सकता है बुआ। वो तो सबसे ऊॅचे दर्ज़े का पापी है, कुकर्मी है। ऐसे लोगों को इस धरती पर जीने का कोई अधिकार नहीं है।"

"बड़े बड़े पापी और कुकर्मियों का इस धरती से सर्वनाश हुआ है बेटी।" नैना ने कहा__"फिर ये कैसे जीवित बच जाएॅगे। इनका भी वही हस्र होगा जो कंस और रावण का हुआ था। ख़ैर, तू ये बता कि विराज कब पहुॅच रहा है यहाॅ? और तूने उसकी सुरक्षा के लिए क्या इंतजाम किया है?"

"मैने उसकी सुरक्षा के लिए इंतजाम कर दिया है बुआ।" रितू ने कहा___"रेलवे स्टेशन पर सिविल वेश में पुलिस के आदमी मौजूद हैं। मुझे पवन ने फोन पर बताया था कि वो ट्रेन से उतरने के बाद किसी टैक्सी में हल्दीपुर आएगा।उसने ऐसा शायद इस लिए किया है कि डैड के आदमी अगर वहाॅ कहीं हों भी तो वो सब उसे बस में ढूॅढ़ेंगे, जबकि उसके टैक्सी से आने की वो लोग उम्मीद भी न करेंगे।"

"मेरा भतीजा होशियार है।" नैना ने खुश होकर कहा___"बहुत अच्छा सोचा है उसने। ख़ैर, अब तू क्या करने वाली है?"
"मैं पवन के फोन का इन्तज़ार करूॅगी।" रितू ने कहा___"क्योंकि विराज सीधा पवन के घर ही जाएगा। इधर मैं हास्पिटल विधी के पास जाऊॅगी। उधर से सब कुछ ठीक करने बाद मैं पवन को फोन कर दूॅगी कि अब वो विराज को लेकर हास्पिटल आ जाए। मैने हास्पिटल के चारो तरफ भी सिविल ड्रेस में पुलिस वालों को मौजूद रहने के लिए कह दिया है।"

"ये बहुत अच्छा किया तुमने।" नैना ने कहा___"और मुझे यकीन है कि तेरे रहते विराज को कुछ नहीं होगा।"
"मैं अपनी जान दे दूॅगी बुआ।" रितू ने दृढ़ता से कहा___"मगर अपने भाई को खरोंच तक आने नहीं दूॅगी।"

"क्या इतना प्यार करती है तू अपने उस भाई से?" नैना की ऑखें भर आईं थी।
"ऐसे भाई को तो सिर्फ प्यार ही किया जाता है न बुआ?" रितू के जज़्बात बेकाबू से हो गए, खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाल कर कहा उसने___"अगर कहीं भगवान मिले मुझे तो उससे यही कहूॅगी कि मुझे हर जन्म में विराज जैसा ही भाई दे और शिवा के जैसा भाई किसी बैरी को भी न दे।"

नैना ने तड़प कर रितू को अपने सीने से लगा लिया। दोनो की ऑखों से ऑसुओं के वो बाॅध फूट पड़े जो भावनाओं और जज़्बातों के मचल उठने से बेकाबू से हो गए थे। अभी ये दोनो एक दूसरे के गले ही लगे थे कि तभी कमरे में बिंदिया ने प्रवेश किया।

"बिटिया, नास्ता तैयार कर दिया है मैने चलो नास्ता कर लो।" बिंदिया ने कहा___"और हाॅ इनका कमरा भी साफ कर दिया है मैने।"

बिंदिया की बात सुन कर दोनो अलग हुईं और बड़ी सफाई से अपनी अपनी ऑखों से दोनो ने ऑसुओं को साफ कर लिया।
"आप चलिए काकी।" रितू ने कहा___"हम बस दो मिनट में आते हैं।"
"ठीक है बिटिया।" बिंदिया ने कहा और दरवाजे से वापस पलट गई।

बिंदिया के जाने के बाद नैना और रितू दोनो ही बाथरूम की तरफ बढ़ गईं। बाथरूम में पानी से अपने अपने चेहरों को धोने के बाद वो दोनो वापस कमरे में आईं और हुलिया सही करने के बाद नास्ते के लिए कमरे से बाहर चली गईं।

"काकी, आज काका कहीं दिखाई नहीं दिये अब तक।" नास्ते की टेबल पर बैठी रितू ने बिंदिया से कहा___"बाहर गेट पर सिर्फ शंकर काका ही दिखे थे।"
"अरे बिटिया अब क्या बताऊॅ तुमसे।" बिंदिया ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा__"वो तो जब देखो उन चारों की खातिरदारी में ही लगा रहता है। तुमने काम जो सौंपा हुआ है उसे।"

"कौन चारो?" नैना को समझ न आया था इस लिए पूछ बैठी थी, बोली___"और किनकी खातिरदारी?"
"उन्हीं चारों की बुआ जिन्होंने विधी के साथ कुकर्म किया था।" रितू ने कहा___"वो सब बड़े बाप की बिगड़ी हुई औलादें हैं। जैसे कुकर्मी बाप वैसे ही कुकर्मी बेटे हैं। विधी के साथ इन लोगों जो कुकर्म किया उसके लिए उन चारों को कानूनी तौर पर मैं कोई सज़ा नहीं दिला सकती थी, क्योंकि वो सब अपने बाप की ऊॅची पहुॅच और ताकत के बल पर बड़ी आसानी से कानून की गिरफ्त से निकल जाते। ऐसे में विधी के साथ इंसाफ नहीं हो पाता बुआ इस लिए कानून की रखवाली करने वाली आपकी इस बेटी ने कानून को अपने हाॅथ में लेकर खुद उन चारों को सज़ा देने का फैंसला किया। ये इसी फैंसले का नतीजा है कि वो चारो आज यहाॅ पिछले कई दिनों से रोज़ाना सज़ा के रूप में यातनाएॅ झेल रहे हैं। और मज़े की बात ये है बुआ कि किसी को इस बात की भनक तक नहीं है कि यहाॅ पर किसी को ऐसी सज़ा दी जा रही है। इनके बाप लोगों को यही लगता है कि उनके बेटे कहीं बाहर गए हुए हैं और मज़े में होंगे।"

"ये तो तुमने बहुत अच्छा काम किया है रितू।" नैना ने कहा___"लेकिन अगर इन लोगों के बापों को पता चल गया कि उनके बेटों के साथ तुम यहाॅ क्या कर रही हो तब क्या होगा?"
"उसका भी पुख्ता इंतजाम कर रखा है मैने।" रितू ने कहा___"बहुत जल्द इन लोगों के बापों को भी ऐसी ही सज़ा देने वाली हूॅ मैं। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि इन नामों के लोगों के साथ किसने क्या किया है।"

नैना, रितू के चेहरे को देखती रह गई अचरज भरी नज़रों से। से यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी फूल जैसी नाज़ुक सी भतीजी ऐसे खतरनाक काम भी करती है। ख़ैर, नास्ता करने के बाद रितू ने नैना से जाने की इजाज़त ली और बाहर की तरफ निकल गई जबकि नैना मन ही मन ईश्वर को याद कर रितू और विराज की सलामती की दुवाएं करने लगी थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर ट्रेन अपने निर्धारित समय पर ही गुनगुन स्टेशन पर पहुॅची थी। ट्रेन से उतरने से पहले मैने अपने चेहरे को रुमाल से ढॅक लिया था। मेरे साथ मेरा नया दोस्त आदित्य था। उसको अपना चेहरा ढॅकने की कोई ज़रूरत नहीं थी। क्योंकि उसे यहाॅ पर कोई पहचानता ही नहीं था। हम दोनो ट्रेन से उतर कर स्टेशन से बाहर की तरफ बढ़ चले।

प्लेटफार्म पर इधर उधर मैने सरसरी तौर पर अपनी नज़रें दौड़ाई तो सहसा एक ऐसे चेहरे पर मेरी नज़र पड़ी जो यकीनन बड़े पापा का आदमी था। वो एग्जिट गेट के दाएॅ तरफ खड़ा हर आने वालों को बड़े ध्यान से देख रहा था। मैने उसकी तरफ से अपनी निगाह हटा ली और बेफिक्र होकर एग्जिट गेट की तरफ बढ़ चला। एग्जिट गेट के पास जब मैं और आदित्य पहुॅचे तो सहसा टीटी ने हमें रोंक लिया और हमसे टिकट दिखाने को कहने लगा। मैने जल्दी से अपने पाॅकेट से अपना पर्स निकाला और उससे टिकट निकाल कर टीटी को पकड़ा दिया। मैने पल भर के लिए दाएॅ तरफ कुछ ही दूरी पर खड़े बड़े पापा के उस आदमी की तरफ देखा। वो आने वाले आदमियों की तरफ बड़े ध्यान से देख रहा था। मैं ये नहीं जानता कि उसने मेरी तरफ देखा था या नहीं मगर इस वक्त उसकी नज़र सामने से आने वाले अन्य यात्रियों की तरफ ही थी। इधर टीटी ने मेरी टिकट चेक करने बाद मुझे वापस लौटा दी तो मेरे पीछे आदित्य ने भी टीटी को अपनी टिकट थमा दी। टीटी आदित्य की टिकट देखने बाद आदित्य को वापस कर दिया। मैने इशारे से आदित्य को चलने का इशारा किया। तभी उस ब्यक्ति की नज़र मुझ पर पड़ी। वो मुझे ध्यान से देखने लगा। मैं उसके देखने पर एकदम से घबरा सा गया मगर फिर जल्द ही मैने खुद को सम्हाला और आदित्य को लेकर बाहर की तरफ बढ़ गया। मैं पीछे नहीं देखना चाहता क्योंकि मुझे अंदेशा था कि वो शायद मुझे ही देख रहा होगा और गर मैने पलट कर उसकी तरफ देखा तो उसे ज़रूर मुझ पर शक हो सकता है।

बाहर आकर मैं और आदित्य टैक्सी की तरफ तेज़ी से बढ़ चले। हलाॅकि वहाॅ पर बहुत से लोगों की भीड़ थी इस लिए मुझे यकीन था कि वो आदमी इतना जल्दी मुझे ढूॅढ़ नहीं पाएगा। टैक्सी के पास पहुॅचा ही था एक आदमी हमारे पास आया और हमसे टैक्सी का पूॅछा तो हमने तुरंत उस आदमी को हाॅ कह दिया। आदमी हमारी हाॅ सुनते ही हमे लेकर अपनी टैक्सी के पास पहुॅचा और टैक्सी का गेट खोल कर हमें अंदर बैठने का इशारा किया। हम दोनो उसमे बैठ गए तो वो टैक्सी ड्राइवर भी स्टेयरिंग सीट पर बैठ गया।

"कहाॅ चलना है साहब?" ड्राइवर ने टैक्सी को स्टार्ट करते हुए पूछा।
"हल्दीपुर।" मैने कहा तो ड्राइवर ने टैक्सी को आगे बढ़ा दिया। मैने पलट कर स्टेशन की तरफ देखा तो मुझे बड़े पापा का वो आदमी कहीं नज़र न आया। अभी मैं ये सब देख ही रहा था कि तभी मेरा मोबाइल फोन बज उठा। मैने हड़बड़ा कर मोबाइल को निकाल कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देखा। पवन का फोन था। मैने काल रिसीव की तो वो मुझसे पूछने लगा कि मैं इस वक्त कहाॅ हूॅ तो मैने उसे बता दिया कि टैक्सी में बैठ कर हल्दीपुर के लिए निकल लिया हूॅ। मेरी बात सुन कर उसने कहा कि ठीक है वो मुझे हल्दीपुर के बस स्टैण्ड पर मिलेगा जहाॅ पर उसकी दुकान है। उसके बाद मैने काल कट कर दी।

"यहाॅ से कितना समय लगेगा तुम्हारे गाॅव पहुॅचने में?" आदित्य ने मुझसे पूछा।
"ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे का समय लगेगा।" मैने कहा___"हल्दीपुर के बस स्टैण्ड से पवन को साथ में लेकर ही उसके घर चलेंगे।"

मेरी बात सुन कर आदित्य कुछ न बोला। मैने एक बार पीछे मुड़ कर टैक्सी के पिछले शीशे के उस पार देखा। एक जीप हमारी इस टैक्सी के पीछे आ रही थी। मैने सोचा होगा कोई। मगर मुझे कोई उम्मीद नहीं थी कि इस तरह कोई जीप वाला एक रिदम पर टैक्सी के पीछे चल रहा था। मैने कई बार नोट की वो जीप हमादे पीछे उतनी ही रफ्तार से चलती हुई आ रही थी। मुझे समझ न आया कि ऐसा कौन हो सकता है उस जीप में जो हमारे पीछे पीछे उतनी ही गति से आ रहा था जितनी गति से हमारी टेक्सी सड़क पर दौड़ी जा रही थी। मेरा माथा ठनका कि कौन हो सकता है उस जीप में?????
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:48 PM

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