non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:47 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
मैने अपना फोन निकाल कर पवन को सब बता दिया। उसके बाद मैं और आदित्य समय गुज़ारने के लिए फिर से किसी न किसी चीज़ के बारे में बातें करने लगे। उधर ट्रेन अपनी रफ्तार से दोड़ी जा रही थी। मुझे नहीं पता था कि आने वाला समय मुझे क्या दिखाने वाला था या फिर किस तरह का झटका देने वाला था?

"आप एक बार फिर से इस बारे में अच्छी तरह सोच लीजिए चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने समझाने वाले अंदाज़ में कह रहा था___"आपका इस मामले में पुलिस को सूचित करना कतई ठीक नहीं रहेगा। संभव है कि आपके द्वारा इस मामले को पुलिस को सूचित कर देने से वो ब्लैकमेलर हमारे लिए कोई गंभीर मुसीबत खड़ी कर दे। ये बात तो वो भी अच्छी तरह जानता और समझता ही होगा कि आप पुलिस को उसके बारे में बताने की सोचेंगे जो कि निहायत ही ग़लत होगा। उस सूरत में वो हमारे खिलाफ़ कुछ भी कर सकता है और हम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएॅगे। क्योंकि अभी तक हम यही नहीं जानते हैं कि हमें ऐसी वीडियोज़ भेजने वाला वो शख्स आख़िर है कौन? उसने अब तक कोई फोन या मैसेज नहीं किया लेकिन उसके न करने से भी वो हमें यही समझा रहा है कि इस मामले में पुलिस को सूचित करने की मूर्खता हम लोग हर्गिज़ भी न करें।"

"तो आख़िर हम क्या करें अवधेश?" चौधरी ने खीझते हुए कहा___"आज दो दिन हो गए मगर उसकी तरफ से हमारे पास कोई मैसेज तक नहीं आया। हम तो चाहते हैं कि वो हमसे संबंध बनाए और बताए कि आख़िर वो ये सब करके हमसे चाहता क्या है? साला दो दिन से हमारे सुख चैन की माॅ बहन करके रखा हुआ है।"

"आप ज़रा धीरज से काम लीजिए चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"आपकी तरह हम सब भी इस बात से बहुत परेशान और बेचैन हैं। हमारी जान भी हलक में अटक पड़ी है। मगर जैसा कि अवधेश भाई ने कहा कि इस बारे में पुलिस को सूचित करना ठीक नहीं है तो बात हमारे हित में ही है। आप तो जानते हैं कि साले पुलिस वाले बाल की खाल निकालने वाले होते हैं। संभव है कि वो हमसे ऐसे सवाल करने लगें जिन सवालों के जवाब देना हमारे लिए ख़तरे से खाली नहीं होगा। ऐसे में हम खुद ही उल्टा फॅस जाएॅगे। रही बात उस ब्लैकमेलर की कि उसने अब तक हमसे कांटैक्ट नहीं किया तो ये कोई समस्या नहीं है। कहने का मतलब ये कि वो देर सवेर ही सही मगर हमसे कांटैक्ट ज़रूर करेगा, क्योंकि इन वीडियोज़ को हमारे पास भेजने का कोई न कोई मकसद उसका ज़रूर होगा। अपने उस मकसद को पूरा करने के लिए वो हमसे कांटैक्ट ज़रूर करेगा। बस आप धैर्य रखें चौधरी साहब।"

"बस एक बार।" दिवाकर चौधरी गुस्से से दाॅत किटकिटाते हुए बोला___"सिर्फ एक वो हरामज़ादा हमारे हाॅथ लग जाए उसके बाद हम बताएॅगे उसे कि हमारे साथ ऐसी वाहियात हरकत करने का क्या अंजाम होता है। उस हराम के पिल्ले को ऐसी मौत मारेंगे कि उसे अपने पैदा होने पर अफसोस होगा।"

"इसका उल्टा भी तो हो सकता है चौधरी साहब।" सहसा इस बीच सहमी सी बैठी सुनीता ने अजीब भाव से कहा___"आप ये क्यों नहीं सोचते हैं कि जिसने भी आपके या हमारे साथ ऐसे दुस्साहस से भरे काम को अंजाम दिया है वो कोई ऐरा गैरा ब्यक्ति नहीं हो सकता? ये बात तो वो भी जानता होगा कि आप क्या चीज़ हैं, इसके बावजूद उसने ऐसा किया। इसका मतलब साफ है कि वो हमसे ज़रा भी ख़ौफ नहीं खाता है बल्कि अपने किसी मकसद को पूरा करने के लिए वो मौत के मुह में ही आ पहुॅचा है। दूसरी बात उसे हमसे डरने की ज़रूरत भी कहाॅ है जबकि उसके पास हमारे ख़िलाफ ऐसा सामान मौजूद है जिसके बल पर वो जब चाहे हमें बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा सकता है। इस लिए ये बात तो आप भूल ही जाइये कि आप उसे ऐसी कोई मौत देंगे जिससे उसे अपने पैदा होने पर अफसोस होगा।"

"साली रंडी की दुम हमें डरा रही है?" चौधरी खिसियानी बिल्ली की तरह सुनीता पर चढ़ दौड़ा था, बोला___"तुझे पता नहीं है कि हम क्या चीज़ हैं। हम चाहें तो यहाॅ बैठे बैठे दिल्ली तक को हिला कर रख दें। वो हराम का जना साला तभी तक सलामत है जब तक वो हमसे दूर कहीं छुपा बैठा है। जिस दिन हमारे हाथ लग गया न उस दिन हम बताएॅगे कि दिवाकर चौधरी के साथ ऐसी हिमाकत करने का हस्र क्या होता है?"

दिवाकर चौधरी का तमतमाया हुआ चेहरा देख कर और उसकी खतरनाक बातें सुनकर सुनीता की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। ड्राइंगरूम पिन ड्राप सन्नाटा छा गया था। किसी की बोलने की हिम्मत न पड़ी। मगर तभी इस सन्नाटे को तोड़ने की हिमाकत खुद दिवाकर चौधरी के मोबाइल फोन की घंटी ने कर दी। दो पल के लिए तो दिवाकर चौधरी हड़बड़ाहट में ही रहा। फिर जल्दी से खादी के कुर्ते की जेब से मोबाइल फोन निकाल कर उसने स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नंबर को देखा। स्क्रीन पर वही नंबर फ्लैश हो रहा था जिस नंबर से चौधरी के इसी फोन पर वो वीडियोज़ भेजा था उस ब्लैकमेलर ने।

"क्या हुआ चौधरी साहब?" अवधेश श्रीवास्तव ने शशंक भाव से कहा___"क्या देख रहे हैं? काल को रिसीव कीजिए।"
"ये तो वही नंबर है अवधेश।" चौधरी ने बड़े उत्साहित भाव से कहा___"जिस नंबर से हमारे फोन पर वो वीडियो भेजे गए थे।"

"तो फिर जल्दी से काल को रिसीव कीजिए चौधरी साहब।" अशोह मेहरा कह उठा__"और फोन का स्पीकर भी ऑन कर दीजिए। हम सब भी सुनेंगे कि वो क्या कहता है?"

चौधरी ने काल रिसीव करके मोबाइल का स्पीकर ऑन कर दिया।
"कहो चौधरी कैसे हो?" उधर से मर्दाना स्वर में आवाज़ उभरी___"काल रिसीव करने में इतना टाइम कैसे लगा दिया तुमने? ओह शायद मेरा काल देख कर तुम्हें समझ में ही न आया होगा कि क्या करें और क्या न करें? होता है चौधरी, ऐसा तो यकीनन होता है। और हाॅ ये बहुत अच्छा किया जो अपने फोन का स्पीकर ऑन कर दिया तुमने। आख़िर तुम्हारे उन साथियों को भी तो मेरी मधुर आवाज़ सुनने का हक़ है।"

"हमसे ऐसे लहजे में बात करने का अंजाम नहीं जानते हो तुम।" चौधरी ने दाॅत पीसते हुए कठोर भाव से कहा___"अगर जानते तो ऐसी हिमाकत नहीं करते। और अब हमारी बात कान खोल कर सुनो तुम। ये जो कुछ तुमने किया है न उसकी सज़ा तो तुम्हें ज़रूर मिलेगी। ये मत समझना कि वोडियो भेज कर तुमने हमे चूहा बना दिया होगा।"

"ये गीदड़ भभकियाॅ किसी और को देना चौधरी।" उधर से ठंडे लहजे में कहा गया___"मैं तुम्हारी किसी बात से बाल बराबर भी डरने वाला नहीं हूॅ। मैं चाहूॅ तो पल भर में तुम्हारी ताकत और तुम्हारी शान को मिट्टी में मिला दूॅ। इस लिए बेहतर होगा कि मुझसे ज्यादा उड़ने की कोशिश मत करना और ना ही मुझ पर अपना रौब झाड़ना।"

"क्या चाहते हो तुम?" चौधरी को समझ आ गया था कि सामने वाला उससे डरने वाला नहीं है इस लिए मुद्दे की बात करना ही चित समझा उसने, बोला___"अगर तुमने ये सब हमसे रुपया पैसा ऐंठने के लिए किया है तो मुह फाड़ो अपना और बताओ कि कितना रुपया चाहिए तुम्हें? मगर ख़बरदार, डील सिर्फ एक ही बार होगी। तुम्हें जितना भी रुपया चाहिए वो बोल दो, हम तुम्हें मुहमागा रुपया दे देंगे मगर बदले में तुम हमें वो सारे वीडियोज़ लौटा दोगे।"

"ये तुमने कैसे सोच लिया चौधरी कि ये सब मैने तुमसे पैसे ऐंठने के लिए किया है?" उधर से हॅस कर कहा गया___"अरे बुड़बक, पैसा तो मेरे पास इतना है कि मैं खड़े खड़े तुम्हें और तुम्हारे पूरे खानदान को ख़रीद लूॅ। ख़ैर, तुम जैसे दो कौड़ी के भड़वों को खरीदेगा भी कौन? मैने तो ये सब सिर्फ इस लिए किया कि तुम्हें बता सकूॅ अब तुम्हारा और तुम्हारे साथियों का खेल खत्म हो चुका है। अब यहाॅ से तुम लोगों के बुरे कर्मों का हिसाब शुरू होगा।"

"हरामज़ादे तू है कौन साले?" चौधरी बुरी तरह गुस्से में चीख पड़ा था___"एक बार हमारे सामने आ फिर हम बताएॅगे कि हमसे ऐसी ज़ुर्रत करने का क्या अंजाम होता है?"
"हरामज़ादा किसे बोलता है रे मादरचोद साले रंडी की औलाद।" उधर से मानो शेर की गुर्राहट उभरी___"चिंता मत कर साले बहुत जल्द तेरी हेकड़ी निकालूॅगा मैं। साले बकरे की तरह मिमियाएगा मेरे सामने।"

"ज़ुबान सम्हाल कर बात कर हमसे।" चौधरी चीखा तो ज़रूर मगर उसने खुद महसूस किया कि उसके स्वर में कोई दम नहीं था, फिर भी बोला___"हम तुम्हारे इस अपराध को माफ़ कर देंगे। बस तुम हमें वो सब वीडियोज़ लौटा दो।"

"भीख माॅगता है क्या रे चौधरी?" उधर से ठहाके की आवाज़ आई___"अच्छा है माॅगना शुरू ही कर दे अब। ख़ैर जाने दे, मैं ये कह रहा हूॅ कि बहुत जल्द तुझे ऐसा मंज़र देखने को मिलेगा कि तू उसे देख नहीं पाएगा और तेरे ही साथ बस क्यों तेरे सभी साथियों के साथ भी वही सब होगा। अपनी बरबादी को रोंक सकता है तो रोंक ले तू।"

अभी चौधरी कुछ कहना ही चाहता था कि उधर से फोन कट गया। चौधरी ने जल्दी से उसी नंबर पर काल किया मगर नंबर स्विच ऑफ बताने लगा था। पल भर में चौधरी की हालत किसी लुटे हुए जुआॅरी जैसी नज़र आने लगी थी। चौधरी जैसा हाल बाॅकी उन सबका भी था जो वहाॅ पर बैठे फोन की हर बात सुन रहे थे। सुनीता की हालत तो ऐसी हो गई थी जैसे उसे लकवा मार गया हो। बड़े से ड्राइंगरूम में गहन सन्नाटे के सिवा कुछ न रह गया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर हवेली में।
गहरी सोच में डूबी हुई नैना रितू के कमरे में पहुॅची। कमरे में पहुॅच कर उसने देखा कि रितू पुलिस की वर्दी पहने आईने के सामने खड़ी होकर सिर पर पीकैप को ठीक से लगाते हुए खुद को देख रही थी।

"क्या बात है रितू तूने मुझे इस तरह रहस्यमय तरीके से किस लिए बुलाया है?" नैना ने रितू की तरफ देखते हुए कहा था। उसकी बात सुन कर रितू आईने की तरफ से पलट कर अपनी नैना बुआ की तरफ देखा।

"क्या आपने अपना सब सामान ले लिया है बुआ जी?" रितू ने पूछा।
"आख़िर बात क्या है मेरी बच्ची?" नैना हैरान परेशान सी बोली___"मुझे अपना सारा सामान लेने के लिए क्यों कह रही है तू? क्या तू मुझे कहीं लेकर जा रही है?"

"हाॅ बुआ।" रितू ने तनिक गंभीरता से कहा___"लेकिन इस वक्त आप मुझसे ये न पूछिए कि ऐसा मैं क्यों कह रही हूॅ। बस आप वो कीजिए जो मैं कह रही हूॅ। यकीन मानिये बुआ मैं आपको आपके सभी सवालों का जवाब दूॅगी मगर अभी नहीं। अभी आप वही कीजिए जो मैने कहा है प्लीज़।"

"ठीक है रितू।" नैना ने बेचैनी से कहा__"पर मैं भइया भाभी से क्या कहूॅगी कि अपना सामान लेकर मैं कहा जा रही हूॅ?"
"उनको बता दीजिएगा कि आप वापस अपने ससुराल जा रही हैं क्योंकि आपके पास आपके ससुराल से फोन आया था जो आपको आने के लिए कह रहे थे।।" रितू ने जैसे तरीका बताया।

"वो तो ठीक है।" नैना ने कहा___"लेकिन अगर भइया ने मेरी ससुराल में फोन करके इस बारे में पूछा तो क्या होगा? उन्हें तो पता चल ही जाएगा कि मैं उनसे झूॅठ बोल रही हूॅ।"
"वो ऐसा कुछ नहीं करेंगे बुआ।" रितू ने कहा___"आप बस जल्दी से सामान लेकर हवेली से बाहर आइये। मैं आपको बाहर ही मिलूॅगी।"

"अरे नास्ता तो कर ले।" नैना ने कहा___"भाभी डायनिंग टेबल में तेरा इन्तज़ार कर रही हैं।"
"नहीं बुआ मुझे ज़रा भी भूॅख नहीं है।" रितू ने कहा___"और आप भी मत खाइयेगा। क्योंकि उससे हमें जाने में देर हो जाएगी।"

"बड़ी हैरानी की बात है रितू।" नैना ने चकित भाव से कहा___"ख़ैर, तू चल मैं आती हूॅ।"
"ठीक है बुआ।" रितू दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए बोली___"जल्दी आइयेगा।"

कहने के साथ ही रितू लम्बे लम्बे डग भरते हुए दरवाजे के बाहर निकल गई। उसके पीछे पीछे ही नैना भी चल दी। ये अलग बात है कि इस वक्त उसके मन में गहन विचारों का आवागमन शुरू था।

"रितू बेटा, बड़ी देर कर दी आने में।" प्रतिमा ने रितू को देखते ही कहा__"चल आजा, नास्ता ठंडा हो रहा है।"
"नहीं माॅम, मुझे अर्जेंट थाने पहुॅचना है।" रितू ने एक एक नज़र वहीं कुर्सियों पर बैठे अपने भाई शिवा और अपने पिता अजय सिंह पर डालते हुए कहा___"मैं बाहर ही नास्ता कर लूॅगी।"

"उफ्फ तेरी ये नौकरी भी न।" प्रतिमा ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"चैन से तुझे नास्ता भी नहीं करने देती है। छोंड़ दे न ये नौकरी बेटा। आख़िर क्या कमी है हमारे पास और क्या कमी की है हमने तेरी इच्छाओं को पूरा करने में?"

"बात किसी भी चीज़ की कमी की नहीं है माॅम।" रितू ने कहा___"बात है शौक की और ये पुलिस की नौकरी मेरा शौक ही है। पाप और ज़ुर्म को खत्म करना मेरा शुरू से सिद्धांत रहा है। ख़ैर, आप नहीं समझेंगी मेरी भावनाओं को।"

"माॅम ठीक ही तो कह रही हैं दीदी।" सहसा शिवा ने कहा___"आपको पुलिस की नौकरी करने की क्या ज़रूरत है? इस तरह का शौक रखना निहायत ही बेकार की बात है।"
"तू अपना मुह बंद ही रख समझे।" रितू ने कठोर भाव से कहा___"मेरा शौक तेरे शौक से कहीं ज्यादा ऊॅचा और पाक़ है। पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो गई हूॅ और खुद कमा कर खा सकती हूॅ। तेरी तरह डैड के पैसों पर ऐश करना मुझे हर्गिज़ पसंद नहीं है।"

"आप ज़रूरत से ज्यादा ही भाषण दे रही हैं दीदी।" शिवा ने कहा___"बेहतर होगा कि आप अपना ये भाषण किसी और को सुनाएॅ।"
"सच कहा तूने।" रितू ने कड़वा ज़हर मानो खुद ही निगलते हुए कहा___"ये भाषण तुझे रास नहीं आ सकता। ये भाषण तो उसे ही रास आएगा जो इसके लायक होगा।"

"ये क्या बेहूदा बातें कर रही हो बेटी?" सहसा अजय सिंह कह उठा___"अपने इकलौते भाई से इस तरह रुखाई से कौन बहन बात करती है? तुमने अपनी मर्ज़ी से पुलिस की नौकरी कर ली हमें कोई प्राब्लेम नहीं हुई। मगर इस बात का भी ख़याल रखना बच्चों का फर्ज़ है कि वो अपने माता पिता के अरमानों के बारे में सोचें।"

"वाह डैड।" रितू की ऑखों में ऑसू आ गए___"इस वक्त कौन सही है कौन ग़लत ये तो आपने बिलकुल ही नज़रअंदाज़ कर दिया। मुझे याद नहीं कि मैने कब अपने माॅम डैड की इज्ज़त या सम्मान को चोंट पहुॅचाई है। बल्कि बचपन से लेकर अब तक वहीं किया जो आपने कहा। आज की दुनियाॅ में अगर बेटियाॅ अपने पैरों पर खड़े होकर कामयाबी का कोई आसमान छूती हैं तो माॅ बाप को अपनी उस बेटी पर गर्व होता है मगर मेरे माॅम डैड को मेरी पुलिस की नौकरी करना ज़रा भी पसंद नहीं आया। ख़ैर, जाने दीजिए डैड। अगर आप नहीं चाहते हैं कि मैं ये पुलिस की नौकरी करूॅ तो ठीक है छोंड़ दूॅगी इसे।"

"तुम बेवजह बातों का पतंगड़ बना रही हो रितू बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"अपने डैड से इस लहजे में बात करना तुम्हें ज़रा भी शोभा नहीं देता।"
"साॅरी माॅम।" रितू ने अपने अंदर के जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से दबाते हुए कहा___"साॅरी डैड, एण्ड साॅरी भाई।"

रितू ने कहा और झटके से बाहर की तरफ निकल गई। दिल एकदम से छलनी सा हो गया था उसका। कहना तो बहुत कुछ चाहती थी वो मगर ये समय सही नहीं था। अपने अंदर के सुलगते हुए जज़्बातों को शख्ती से दबा लिया था उसने। दिल में अपने माॅ बाप और भाई के लिए उसकी नफ़रत में जैसे और भी इज़ाफा हो गया था।

हवेली के बाहर आकर वह एक तरफ खड़ी अपनी पुलिस जिप्सी की तरफ बढ़ती चली गई। जिप्सी में बैठ कर उसने उसे स्टार्ट किया और आगे बढ़ा कर मुख्य दरवाजे तक आ कर रुक गई। कदाचित नैना बुआ के आने का इन्तज़ार करने लगी थी वह। लगभग पन्द्रह मिनट के इन्तज़ार के बाद नैना बाहर आती दिखी उसे। नैना के बाएॅ हाथ में उसका बैग देख कर रितू ने मन ही मन राहत की मीलों लम्बी साॅस ली। जिप्सी के पास आकर नैना ने पिछली सीट पर बैग रखा और फिर घूम कर रितू के बगल वाली सीट पर आकर बैठ गई। नैना के बैठते ही रितू ने जिप्सी को झटके से आगे बढ़ा दिया।

"हवेली से बाहर आने में काफी देर लगा दी आपने।" मेन सड़क पर पहुॅचते ही रितू ने कहा नैना से।
"हाॅ वो भइया भाभी पूछने लगे थे न कि मैं अपना ये सामान लेकर कहाॅ जा रही हूॅ?" नैना ने बताया___"बड़ी मुश्किल से उन्हें कन्विंस किया तब जाकर बाहर आ पाई मैं। लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि तुम मुझे इस तरह कहाॅ लेकर जा रही हो?"

"बस ये समझ लीजिए बुआ कि मैं आपको ऐसी जगह लेकर जा रही हूॅ।" रितू ने अजीब भाव से कहा___"जहाॅ पर आप पूरी तरह सुरक्षित रहेंगी।"
"क्या मतलब??" नैना बुरी तरह चौंकी थी।
"मतलब किसी स्वीमिंग पुल में भरे पानी की तरह साफ है बुआ।" रितू ने कहा___"बस समझने की बात है।"

"देख तू मुझसे ऐसे पुलिसिये लहजे में बात मत किया कर।" नैना ने कहा___"मुझे बिलकुल समझ में नहीं आता कि तू क्या बोल रही है?"
"अच्छा ये बताइये।" रितू ने कहा__"कि डैड ने आपके ससुराल वालों को फोन तो नहीं किया न वो सब पूछने के लिए?"

"नहीं फोन तो नहीं किया।" नैना ने कहा__"बस यही कहा कि ये अच्छी बात है अगर मेरी ससुराल वाले मुझे फिर से बुला रहे हैं तो। मगर, ऐसा भी तो हो सकता है रितू कि वो मेरे यहाॅ आने के बाद मेरी ससुराल में फोन लगाएॅ। ये जानने के लिए कि मैं वहाॅ पर समय पर और ठीक से पहुॅच गई हूॅ कि नहीं और जब उन्हें ये पता चलेगा कि मैं वहाॅ गई ही नहीं तो क्या सोचेंगे वो मेरे बारे में?"

"अब उनके कुछ भी सोचने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला बुआ।" रितू ने कहा__"क्यों कि अब आप हवेली से बाहर आ चुकी हैं। मैं तो बस आपको उस हवेली से बाहर निकालना चाहती थी।"
"क्या मतलब है तेरा?" नैना बुरी तरह उछल पड़ी। हैरत से उसकी ऑखें फैल गईं थी।

"अभी नहीं बुआ।" रितू ने कहा___"बाद में आपको सब कुछ बताऊॅगी और तसल्ली से बताऊॅगी।"
"पता नहीं क्या अनाप शनाप बोले जा रही है तू?" नैना का दिमाग़ मानो चकरघिन्नी बन गया था, बोली___"मुझे तो कुछ पल्ले ही नहीं पड़ रही तेरी बातें।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:47 PM

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