non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:46 PM, (This post was last modified: 11-24-2019, 12:47 PM by sexstories.)
RE: non veg kahani एक नया संसार
पार्टीशन की दीवार पर लगे दरवाजे को इस तरह खुला देख कर रितू के पुलिसिया मन में सवाल उभरा कि आज ये दरवाजा इस वक्त खुला क्यों है? आम तौर पर वह बंद ही रहता था। उस तरफ का हिस्सा विजय चाचा का था। पुलिसिया दिमाग़ में जब कोई सवाल उभरता है तो वह उस सवाल का जवाब तुरंत ही खोजने लग जाता है।

रिते सीढ़ियों की तरफ से पलट कर पार्टीशन के उस खुले हुए दरवाजे की तरफ बढ़ चली। कुछ ही पल में वह दरवाजे के पास पहुॅच गई। कुछ पल दरवाजे के पास खड़े होकर उसने उस जगह का मुआयना किया फिर अपना हाॅथ बढ़ा कर उसने दरवाजे का दाहिने साइड वाला पल्ला पकड़ कर आगे की तरफ पुश किया। दरवाजे का वो पल्ला बेआवाज़ खुलता चला गया। अब एक पल्ले में ही इतना स्पेस बन गया था कि एक आदमी आराम से इधर से उस तरफ जा सकता था। रितू ने वही किया। वो उस स्पेस से उस तरफ दाखिल हो गई।

उस तरफ जाकर उसने बारीकी से हर तरफ का मुआयना किया और फिर आगे की तरफ बढ़ गई। मेरे पाठकों को पता है कि ये हवेली किस तरह बनाई गई थी। दो मंजिला इमारत के अलग अलग तीन हिस्सों को आपस में जोड़ दिया गया था। तीनों हिस्सों में एक जैसा ही डिजाइन था।

आगे बढ़ते हुए रितू ड्राइंगरूम की तरफ आ गई। यहाॅ पर भी नाइट बल्ब का प्रकाश था। यहाॅ पर भी सन्नाटा फैला हुआ था। ड्राइंगरूम में आकर रितू खड़ी हो गई। उसे समझ नहीं आ रहा था यहाॅ पर कौन आया होगा इस वक्त और किस लिए? जबकि इस तरफ आने का कोई सवाल ही नहीं था। ड्राइंगरूम के उस तरफ ऊपर जाने के लिए वैसी ही सीढ़ियाॅ बनी हुई थी जैसी इस तरफ बनी हुई थी। ड्राइंगरूम के के पीछे साइड एक तरफ किचेन था और एक साइड की तरफ वो कमरा था जिसमें दादा दादी रहते थे। रितू की निगाह जब किचेन से होते हुए जब दूसरी साइड दादा दादी के कमरे की तरफ गई तो वह चौंक गई।

दादा दादी के कमरे में इस वक्त बल्ब की पर्याप्त रोशनी हो रखी थी जोकि ऊपर छत के पास ही बने रोशनदान से समझ में आ रही थी। कमरे के दरवाजा बंद था। रितू ये देख कर हैरान थी कि इतनी रात को वहाॅ उस कमरे के अंदर कौन हो सकता है? जबकि उसे जहाॅ तक पता था इस तरफ के हिस्से पर कोई नहीं आता था। विजय सिंह के बीवी बच्चों को हवेली से निकालने के बाद ये हिस्सा पूरी तरह बंद ही रहता था। फिर आज इस वक्त यहाॅ पर कौन हो सकता है? ये सवाल ऐसा था जो रितू के मस्तिष्क में कत्थक सा करने लगा था।

अपने मन उठे इस सवाल और खुद की उत्सुकता को मिटाने के लिए रितू उस कमरे की तरफ बहुत ही संतुलित कदमों से बढ़ गई। कुछ ही पलों में वह उस कमरे के दरवाजे के पास पहुॅच गई। उसका दिल अनायास ही ज़ोरों से धड़कने लगा था। तभी उसके कानों में कमरे के अंदर मौजूद ब्यक्ति की आवाज़ पड़ी। उस आवाज़ को सुन कर रितू बुरी तरह चौंकी। ये आवाज़ उसकी अपनी माॅ प्रतिमा की थी। रितू ने दरवाजे से अपने कान लगा दिये।

"आहहहहह ऐसे ही मेरे बेटे।" अंदर से प्रतिमा की मादकता से भरी हुई आवाज़ उभरी____"ऐसे ही आहहहह हचक हचक के चोद मुझे। आज बहुत दिनों बाद दो दो लंड का मज़ा मिला है मुझे। ओहे भड़वे हरामी साले नीचे से पेल न मेरी गाॅड में अपना लौड़ा। आहहहहह हाय बड़ा मज़ा आ रहा है रे।"

"ये लो माॅम आज डैड के साथ साथ अपने इस बेटे का भी लंड लो अपनी चूत में।" शिवा की आवाज़ आई___"आज मेरी वर्षों की वो ख्वाहिश पूरी हो रही है। थैंक्स डैड जो आपने मुझे शहर से बुला लिया और आज मुझे अपनी माॅम को चोदने का सौभाग्य दिया।"

"थैंक्स की कोई बात नहीं है बेटे।" अजय सिंह की आवाज़ उभरी___"ये तो तेरे माॅम की ही इच्छा थी कि तू भी इसे रगड़ कर चोदे।"
"अब बातें मत करो तुम दोनो।" प्रतिमा की आवाज़ आई___"मुझे रगड़ रगड़ कर चोदना शुरू करो वरना तुम दोनो के लंड को काट कर फैंक दूॅगी।"

"ओके माॅम।" शिवा ने कहा___"तो फिर ये लो।"
"आहहहहहह शशशशशश हाय ऐसे ही चोदो मुझे।" प्रतिमा की आहें और सिसकारियाॅ गूजने लगी अंदर___"पूरी रात मुझे आगे पीछे से चोदो। फाड़ कर रख दो मेरी चूत और गाॅड को। हाय रे कितना मज़ा आ रहा है। काश! एक और लंड होता तो उसे अपने मुह में भर लेती मैं।"

दरवाजे पर कान लगाए खड़ी रितू के पैरों तले दूर दूर तक ज़मीन का नामो निशान न था। दिलो दिमाग़ में जैसे सारा आसमान भर भरा कर गिर पड़ा था। मनो मस्तिष्क सुन्न सा पड़ता चला गया। उसे लगा कि उसके पैरों में कोई जान ही न बची हो। उसे चक्कर सा आने लगा था। बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्हाला। ऑखों ने ऑसुओं की बाढ़ सी कर दी। कमरे के अंदर इतना बड़ा पाप हो रहा था। एक माॅ अपने ही बेटे से नाजायज संबंध बना रही थी वो भी अपने पति की सहमति से। रितू को यकीन नहीं हो रहा था कि ये उसके माॅ बाप और भाई थे।

अंदर से आती मादक सिसकारियों की आवाज़ें उसके कानों को छलनी करती जा रही थीं। हवस और वासना का इतना भयावह चेहरा उसने आज अपने ही पैदा करने वालों के द्वारा देखा था। सहसा उसके मन में ये विचार उठा कि नहीं नहीं ये मेरे माॅम डैड और भाई नहीं हो सकते बल्कि ये कोई और ही हैं। कोई छलावा है या फिर कोई ख्वाब है।

पल भर में पगलाई सी रितू ने अपने हाथ से बहुत ही धीमे और संतुलित अंदाज़ से दरवाजे को अंदर की तरफ धकेला। दरवाजा बेआवाज़ कुलता चला गया। दरवाजे पर बस थोड़ी सी ही झिरी बनाकर रितू ने अंदर की तरफ देखा। मगर उस झिरी में उसे कुछ नज़र न आया बल्कि ये ज़रूर हुआ कि अंदर से आती हुई आवाजें ज़रा तेज़ हो गई थी।

रितू ने दरवाजे को थोड़ा और अंदर की तरफ धकेला। अपने सिर को दरवाजे के अंदर की तरफ ले जाकर उसने अंदर आवाज़ की दिशा में देखा तो उसके होश उड़ गए। आश्चर्य और अविश्वास से उसकी ऑखें फटी की फटी रह गई थी। अंदर बेड पर उसके माॅम डैड व भाई पूरी तरह नंगी हालत में थे। सबसे नीचे उसके डैड थे फिर उसकी माॅम उनके ऊपर पीठ के बल लेटी हुई थी। उसकी दोनो टाॅगें शिवा के दोनो हाॅथों के सहारे ऊपर उठी हुई थी। शिवा उसके ऊपर था जो कि माॅम की दोनो टाॅगों को पकड़े तेज़ तेज़ धक्के लगा रहा था। नीचे से उसके डैड अपने दोनो हाथों से प्रतिमा की कमर को थामे धक्का लगे रहे थे। ये हैरतअंगेज नज़ारा देख कर रितू पत्थर बन गई थी। होश तब आया जब उसकी माॅम की ज़ोरदार आह की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। रितू ने तुरंत ही अपना सिर अंदर से बाहर कर लिया। दरवाजे को उसी तरह बंद कर वह पलटी और ऑसुओं से तर चेहरा लिए वह दरवाजे से हट गई।

कुछ ही देर में वह अपने कमरे मे पहुॅच गई। वह यहाॅ तक कैसे आई थी ये वही जानती थी। उसके पैर इतने भारी हो गए थे कि उससे उठाए नहीं जा रहे थे। बेड पर औंधे मुह गिर कर वह ज़ार ज़ार रोये जा रही थी। उसे लग रहा था कि वो क्या कर डाले। उसके दिलो दिमाग़ में अपने माता पिता और भाई के लिए नफ़रत व घृणा भर गई थी। वह एक बहादुर लड़की थी। उसने अपने आपको सम्हाला और तुरंत बेड से उठ बैठी। चेहरा पत्थर की तरह कठोर हो गया उसका। बेड से उतर कर वह आलमारी की तरफ बढ़ी। आलमारी खोल कर उसने अपना सर्विस रिवाल्वर निकाला। लाॅक खोल कर उसने चैम्बर को देखा तो खाली था। उसने तुरंत ही अंदर लाॅकर से गोलियाॅ निकाली और उसमें पूरी छहो गोलियाॅ भर दी। उसके बाद वह चेहरे पर ज़लज़ला लिए दरवाजे की तरफ बढ़ी ही थी कि किसी की आवाज़ सुन कर चौंक पड़ी।

आवाज़ की दिशा में रितू ने पलट कर देखा तो बगल से दीवार से सट कर रखे ड्रेसिंग टेबल के आदमकद आईने में खुद को एक अलग ही रूप में खड़े पाया। ये देख कर रितू के चेहरे पर हैरत व अविश्वास के मिले जुले भाव उभरे। आदमकद आईने में रितू का अक्श एक अलग ही रूप और अंदाज़ में खड़ा था।

"ये तुम क्या करने जा रही हो रितू?" आदम कद आईने में दिख रहे रितू के अक्श ने रितू से कहा___"क्या तुम इस रिवाल्वर से अपने माॅ बाप और भाई का खून करने जा रही हो?"
"हाॅ हाॅ मैं उन हवस के पुजारियों का खून करने ही जा रही हूॅ।" रितू के मुख से मानो दहकते अंगारे निकले___"ऐसे नीच और घृणित कर्म करने वालों को जीने का कोई अधिकार नहीं है। आज मैं उन सबको अपने हाॅथों से मौत के घाट उतारूॅगी। मगर तुम कौन हो? और मुझे रोंका क्यों?"

"मैं तुम्हारा अक्श हूॅ। मुझे तुम अपना ज़मीर भी समझ सकती हो। और हाॅ, मौत के घाट उतरना तो अब उन सबकी नियति बन चुकी है रितू।" अक्श ने कहा___"मगर ये नेक काम तुम्हारे हाॅथों नहीं होगा।"
"क्यों नहीं होगा?" रितू गुर्राई___"मैं अभी जाकर उन तीनों को गोलियों से भून कर रख दूॅगी। आज मेरे हाॅथों उन्हें मरने से कोई नहीं बचा सकता। खुद भगवान भी नहीं।"

"क्या तुम भी अपने बाप की तरह दूसरों का हक़ छीनोगी रितू?" अक्श ने कहा___"अगर ऐसा है तो तुममें और तुम्हारे बाप में क्या अंतर रह गया?"
"ये तुम क्या बकवास कर रही हो?" रितू के गले से गुस्से मे डूबा स्वर निकला___"मैं कहाॅ किसी का हक़ छीन रही हूॅ?"

"तुम जिन्हें जान से मारने जा रही हो न उन सबको जान से मारने का अधिकार तुम्हारा नहीं है रितू।" अक्श ने कहा___"बल्कि उसका है जिसके साथ तुम्हारे बाप ने हद से कहीं ज्यादा अत्याचार किया है। हाॅ रितू, ये सब विराज और उसकी माॅ बहन के दोषी हैं। इस लिए इन लोगों सज़ा या मौत देने का अधिकार उनको ही है तुम्हें नहीं। अब ये तुम पर है कि तुम उनका ये हक़ छीनती हो या फिर उनका अधिकार उन्हें देती हो।"

आदमकद आईने में दिख रहे अपने अक्श की बातें सुन कर रितू के मनो मस्तिष्क में झनाका सा हुआ। उसे अपने अक्श की कही हर बात समझ में आ गई और समझ में आते ही उसका क्रोध और गुस्सा साबुन के झाग की तरह बैठता चला गया।

"तुम यकीनन सच कह रही हो।" रितू ने गहरी साॅसे लेते हुए कहा___"ऐसे पापियों को सज़ा या मौत देने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ मेरे भाई विराज को है। मैं दुवा करती हूॅ कि बहुत जल्द इन पापियों को इनके पापों की सज़ा दे मेरा भाई। जिन माॅ बाप को मैं इतना अच्छा समझती थी आज उन लोगों का इतना गंदा चेहरा देख कर मुझे नफ़रत हो गई है उनसे। मुझे शर्म आती है कि मैं ऐसे पाप कर्म करने वाले माॅ बाप की औलाद हूॅ। लेकिन अब मैं क्या करूॅ?"

"समय का इन्तज़ार करो रितू।" अक्श ने कहा___"और इस वक्त तुम फिर से उन लोगों के पास जाओ। दरवाजे के पास कान लगा कर सुनो। हो सकता है कि कुछ ऐसा जानने को मिल जाए तुम्हें जिन चीज़ों से आज भी बेख़बर होगी तुम।"

"हर्गिज़ नहीं।" रितू के जबड़े शख्ती से कस गए___"मैं उन लोगों के पास उनकी गंदी रासलीला देखने सुनने नहीं जाऊॅगी।"
"मैं तुम्हें उनकी रासलीला देखने सुनने को नहीं कह रही रितू।" अक्श ने कहा__"मैं तो बस ये कह रही हूॅ कि ऐसे माहौल में इंसान के मुख से कभी कभी ऐसा कुछ निकल जाता है जिससे उसका कोई रहस्य या राज़ पता चल जाता है। ऐसा राज़ जिसे आम हालत में कोई भी इंसान अपने मुख से नहीं निकालता।"

"यकीनन, तुम्हारी बात में सच्चाई है।" रितू ने कहा___"ऐसा हो भी सकता है। इस लिए मैं जा रही हूॅ फिर से उन लोगों के पास।"
"ये हुई न बात।" अक्श ने मुस्कुराते हुए कहा___"चलो अब मैं भी वापस तुम्हारे अंदर चली जाती हूॅ। तुम्हें सही रास्ता दिखा रही थी सो दिखा दिया और अब तुम भी ज़रा सतर्क रहना।"

रितू के देखते ही देखते आदमकद आईने में दिख रहा उसका अक्श आईने पर से गायब हो गया। अक्श के गायब होते ही रितू ने पहले एक गहरी साॅस ली फिर पलट करवापस आलमारी की तरफ बढ़ी। रिवाल्बर से गोलियाॅ निकाल कर उसने रिवाल्वर और रिवाल्वर की गोलियाॅ अंदर लाॅकर में रख कर आलमारी बंद कर दी।

इसके बाद पलट कर वह कमरे से बाहर निकल कर थोड़ी देर में फिर वहीं पहुॅच गई जहाॅ पर उसके माॅ बाप और भाई तीनो एक साथ संभोग क्रिया कर रहे थे। रितू दबे पाॅव कमरे के दरवाजे के पास पहुॅच गई थी। अंदर से अभी भी सिसकारियों की आवाज़ें आ रही थी। रितू ने दरवाजे को हल्का सा खोल दिया था ताकि उसके कानों में उन लोगों के बोलने की आवाज़ स्पष्ट सुनाई दे सके।

"एक बात तो है डैड कि न आप और ना ही मैं परिवार की किसी भी औरत या लड़की को अपने नीचे लिटा नहीं सके अब तक।" शिवा की आवाज़ आई____"इसे हमारा दुर्भाग्य कहें या उन लोगों की अच्छी किस्मत?"

"ये उन रंडियों की किस्मत ही है बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"जो अब तक हम बाप बेटों के लंड की सवारी न कर सकी हैं। दूसरी बात तुम्हारी इस रंडी माॅ ने भी अपना काम सही से नहीं किया। वरना हम दोनो बाप बेटे गौरी और करुणा की जवानी का मज़ा ज़रूर लूटते।"

"ओये भड़वे की औलाद साले कुत्ते।" प्रतिमा बीच में सैण्डविच बनी बोल उठी___"मैने क्या नहीं किया इन सबको जाल में फाॅसने के लिए। आआआहहहह मादरचोद धीरे से मसल न मेरी चूची को दर्द भी होता है मुझे। हाॅ तो मैं ये कह रही थी कि क्या नहीं किया मैने। तुम्हारे ही कहने पर उस रंडी के जने विजय को अपने हुस्न के जाल में फाॅसने की कोशिश की, यहाॅ तक कि एक दिन सोते समय उसके घोड़े जैसे लंड को अपने मुह में भी भर लिया था। मगर वो कुत्ता तो हरिश्चन्द्र था। कलियुग का हरिश्चन्द्र। उसने मुझे उस सबके लिए कितना बुरा भला कहा और जलील किया था ये मैं ही जानती हूॅ। उसने मुझ जैसी हूर की परी औरत को उस कुलमुही गौरी के लिए ठुकरा दिया था। तभी तो अपने उस अपमान का बदला लेने के लिए मैने तुमसे कहा था कि अब इसको जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है।"

"ओह माई गाड ये तुम क्या कह रही हो माॅम?" धक्के लगाता हुआ शिवा हैरान होकर बोल पड़ा था____"इसका मतलब विजय चाचा की वो मौत नेचुरल नहीं थी?"
"हाॅ बेटे ये सच है।" नीचे से ज़ोर का शाॅट मारते हुए अजय ने कहा___"उस हादसे के बाद हम डर गए थे कि विजय वो सब कही माॅ बाबूजी से न बता दे। इस लिए दूसरे दिन ही हम सब शहर चले गए थे। शहर आ तो गए थे मगर एक पल के लिए सुकून की साॅस नहीं ले पा रहे थे। हर पल यही डर सता रहा था कि विजय वो सब माॅ बाबूजी से बता देगा। उस सूरत में हमारी इज्ज़त का कचरा हो जाता। माॅ बाबूजी के सामने खड़ा होने की भी हम में हिम्मत न रहती। इस लिए हमने तय किया कि इस मुसीबत से जल्द से जल्द छुटकारा पा लेना चाहिए। ये सोच कर मैं दूसरे दिन ही गुप्त तरीके से शहर से वापस गाॅव आ गया। प्रतिमा को तुम बच्चे लोगों के पास ही रहने दिया। लेकिन अपने साथ में यहाॅ से एक ज़हरीला सर्प भी ले गया मैं। मुझे पता था कि आजकल खेतों में फलों का सीजन था इस लिए मंडी ले जाने के लिए फलों की तुड़ाई चालू थी। विजय सिंह रात में वहीं रुकता था। मैं जब गाॅव पहुॅचा तो हवेली न जाकर सीधा खेतों पर ही पहुॅच गया। खेतों पर विजय के साथ एक दो मजदूर रह रहे थे उस समय। उस रात जब मैं वहाॅ पहुॅचा तो रात काफी हो चुकी थी। विजय और दोनो मजदूर सो रहे थे। मैं सीधा विजय के कमरे में गया और उसे पहले बेहोशी की दवा सुॅघाई। वो सोते हुए ही बेहोश हो गया। उसके बाद मैने अपने थैले से वो बंद पुॅगड़ी निकाली जिसमें मैं शहर से ज़हरीले सर्प को भर कर लाया था। विजय के पैरों के पास जाकर मैने पुॅगड़ी का ढक्कन खोल दिया। ढक्कन खुलते ही उसमे से जीभ लपलपाता हुआ उस ज़हरीले सर्प ने अपना सिर निकाला फिर वो विजय के पैरों और टाॅगों की तरफ देखने लगा। मैने पुॅगड़ी को विजय के पैरों के और पास कर दी। मगर हैरानी की बात थी कि वो ज़हरीला विजय के पैरों को देखने के सिवा कुछ कर ही नहीं रहा था। ये देख कर मैने पुॅगड़ी को हल्का झटका दिया तो वो सर्प डर गया और डर की वजह से ही उसने विजय के घुटने के नीचे दाहिनी टाॅग पर काट लिया। सर्प के काटते ही मैने जल्दी से पुॅगड़ी का ढक्कन बंद कर दिया। उधर विजय की टाॅग में जिस जगह सर्प ने काटा था उस जगह दो बिंदू बन गए थे जो कि विजय के लाल सुर्ख खून में डूबे नज़र आने लगे थे। देखते ही देखते विजय का बेहोश जिस्म हिलने लगा। उसका पूरा जिस्म नीला पड़ने लगा। मुझ से सफेद झाग निकलना शुरू हो गया और कुछ ही देर में विजय का जिस्म शान्त पड़ गया। मैं समझ गया कि मेरे छोटे भाई की जीवन लीला समाप्त हो चुकी है। उसके बाद मैने मृत विजय के जिस्म को किसी तरह उठाया और कमरे से बाहर ले आया। बाहर आकर मैं विछय को उठाये उस तरफ बढ़ता चला गया जिस जगह पर खेतों पर उस समय पानी लगाया जा रहा था। मैं विजय को लिए उस पानी लगे खेत के अंदर दाखिल हो गया और एक जगह विजय के मृत जिस्म को उतार कर उसी पानी लगे खेत में ऐसी पोजीशन में चित्त लेटाया कि उसके मुख पर दिख रहा झाग साफ नज़र आए। खेत के कीचड़ में लेटाने के बाद मैने विजय के दोनो हाॅथों और पैरों में खेत का वही कीचड़ लगा दिया। ताकि लोगों को यही लगे कि विजय खेत में पानी लगा रहा था और उसी दौरान किसी ज़हरीले सर्प ने उसे काट लिया था जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई है। ये सब करने के बाद मैं जिस तरह गुप्त तरीके से शहर से आया था उसी तरह वापस शहर लौट भी गया। किसी को इस सबकी भनक तक नहीं लगी थी।"

दरवाजे से कान लगाए खड़ी रितू का चेहरा ऑसुओं से तर था। उसके चेहरे पर दुख और पीड़ा के बहुत ही गहरे भाव थे। आज उसे पता चला कि उसके माॅ बाप कितने बड़े पापी हैं। अपनी खुशी और अपने पाप को छुपाने के लिए उसके बाप ने अपने सीधे सादे और देवता समान भाई को सर्प से कटवा कर उसकी जान ले ली थी। इतना बड़ा कुकर्म और इतना बड़ा घृणित काम किया था उसके माॅ बाप ने। रितू को लग रहा था कि वो क्या कर डाले अपने माॅ बाप के साथ। उसे लग रहा था कि ये ज़मीन फटे और वह उसमे समा जाए। आज अपने माॅ बाप की वजह से वो अपने भाई विराज और उसकी माॅ बहन की नज़रों में बहुत ही छोटा और तुच्छ समझ रही थी। अभी वो ये सोच ही रही थी कि उसके कानों में फिर से आवाज़ पड़ी।

"ओह तो ये बात है डैड।" शिवा के चकित भाव से कहा___"उसके बाद क्या हुआ?"
"होना क्या था?" अजय सिंह ने कहा__"वही हुआ जिसकी मुझे उम्मीद थी। अपने इतने प्यारे और इतने अच्छे बेटे की मौत पर माॅ बाबू जी की हालत बहुत ही ज्यादा खराब हो गई थी। अभय ने शहर में हमे भी विजय की मौत की सूचना भेजवाई। उसकी सूचना पाकर हम सब तुरंत ही गाव आ गए और फिर वैसा ही आचरण और ब्यौहार करने लगे जैसा उस सिचुएशन पर होना चाहिए था। ख़ैर, जाने वाला चला गया था। किसी के जाने के दुख में जीवन भर भला कौन शोग़ मनाता है? कहने का मतलब ये कि धीरे धीरे ये हादसा भी पुराना हो गया और सबका जीवन फिर से सामान्य हो गया। मगर माॅ बाबूॅ जी सामान्य नहीं थे। बेटे की मौत ने उन दोनो को गहरे सदमें डाल दिया था।"

"तुम लोगों की ये महाभारत अगर खत्म हो गई हो तो आगे का काम भी करें अब?" तभी प्रतिमा ने खीझते हुए कहा___"सारे मज़े का सत्यानाश कर दिया तुम दोनो बाप बेटों ने।"
"अरे मेरी जान सारी रात अपनी है।" अजय सिंह ने नीचे से अपने दोनो हाथ बढ़ा कर प्रतिमा की भारी चूचियों को धर दबोचा था, फिर बोला___"बेटे को सच्चाई जानना है तो जान लेने दो न। आख़िर हर चीज़ जानने का हक़ है उसे। मेरे बाद इस हवेली का अकेला वही तो वारिश है। इस घर की सभी औरतों और लड़कियों को हमारा बेटा भोगेगा प्यार से या फिर ज़बरदस्ती।"

"डैड मुझे सबसे पहले उस रंडी करुणा को पेलना है।" शिवा ने कहा___"उसकी वजह से ही उस मादरचोद अभय ने मुझे कुत्ते की तरह मारा था। इस लिए जब तक मैं उसकी उस राॅड बीवी और बेटी को आगे पीछे से ठोंक नहीं लेता तब तक मुझे चैन नहीं आएगा।"

"तेरी ये ख्वाहिश ज़रूर पूरी होगी मेरे जिगर के टुकड़े।" अजय सिंह ने कहा___"और तेरे साथ साथ मेरी भी ख्वाहिश पूरी होगी। तेरी माॅ ने तो कोई जुगाड़ नहीं किया लेकिन अब मैं खुद अपने तरीके से वो सब करूॅगा। हाय मेरी बड़ी बेटी रितू की वो फूली हुई मदमस्त गाॅड और उसकी बड़ी बड़ी चूचियाॅ। कसम से बेटे जब भी उसे देखता हूॅ तो ऐसा लगता है कि साली को वहीं पर पटक कर उसे उसके आगे पीछे से पेलाई शुरू कर दूॅ।"

"यस डैड यू आर राइट।" शिवा ने मुस्कुराते हुए कहा___"रितू दीदी को पेलने में बहुत मज़ा आएगा। आप जल्दी से कुछ कीजिए न डैड।"
"करूॅगा बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"मगर सोच रहा हूॅ कि उससे पहले अपनी बहन नैना को पेल दूॅ। बेचारी लंड के लिए तड़प रही होगी। उसके पति और उसके ससुराल वालों ने उसे बाॅझ समझकर घर से निकाल दिया है। इस लिए मैं सोच रहा हूॅ कि उसे अपने बच्चे की माॅ बना दूॅ और फिर से उसे उसके ससुराल भिजवा दूॅ।"

"ये तो आपने बहुत अच्छा सोचा है डैड। लेकिन आप अपने इस बेटे को भूल मत जाइयेगा।" शिवा ने कहा___"बुआ को पेलने का सुख मुझे भी मिलना चाहिए।"
"अरे तेरे लिए तो इस घर की हर लड़की और औरत हैं बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"सबकी चूतों पर सिर्फ तेरे ही लंड की मुहर लगेगी।"

"ओह डैड थैक्यू सो मच।" शिवा खुशी से झूम उठा___"यू आर रियली दि ग्रेट पर्सन।"
"उफ्फ अब बस भी करो तुम लोग।" प्रतिमा ने कुढ़ते हुए कहा___"इस तरह बीच में लटके लटके मेरा बदन दुखने लगा है अब।"
"चल बेटा अब ज़रा इस राॅड का भी ख़याल कर लिया जाए।" अजय सिंह ने कहा__"तू ऊपर से हट तो ज़रा मुझे भी पोजीशन चेंज करना है।"

अजय सिंह से कहने पर शिवा प्रतिमा के ऊपर से हट गया। अजय सिंह ने प्रतिमा को पलट कर अपनी तरफ मुह करके अपने ऊपर ही लेटने को कहा। प्रतिमा ने वैसा ही किया। नीचे से अजय ने अपने लंड को पकड़ कर प्रतिमा की चूत में डाल दिया।

"बेटे अब तू भी आजा और अपनी राॅड माॅ की गाॅड में लंड डाल दे।" अजय सिंह ने कहा तो शिवा फौरन अपना लंड पकड़ कर अपनी माॅ की गोरी चिट्टी गाॅड के गुलाबी छेंद पर डाल दिया। शिवा ने हाॅथ बढ़ा कर अपनी माॅ के बालों को मुट्ठी में पकड़ लिया था। अब दोनो बाप बेटे ऊपर नीचे से प्रतिमा की पेलाई शुरू कर दिये थे। कमरे में प्रतिमा की आहें और मदमस्त करने वाली सिसकारियाॅ फिर से गूॅजने लगी थी।

दरवाजे से अंदर सिर करके रितू ने एक नज़र उन तीनों को देखा फिर अपना चेहरा वापस बाहर खींच लिया। उसकी ऑखों में आग थी और आग के शोले थे जो धधकने लगे थे। चेहरे पर गुस्सा और नफ़रत के भाव ताण्डव सा करने लगे थे।

"तुम लोग अपने मंसूबों पर कभी कामयाब नहीं होगे कुत्तो।" रितू ने मन ही मन उन लोगों को गालियाॅ देते हुए कहा___"बल्कि अब मैं दिखाऊॅगी कि प्यार और नफ़रत का अंजाम किस तरह से होता है?"

रितू मन ही मन कहते हुए उस जगह से पलट कर वापस चल दी। कुछ ही देर में वह अपने कमरे में पहुॅच चुकी थी। दरवाजे की कुण्डी लगा कर वह बेड पर लेट गई। दिलो दिमाग़ में एक ऐसा तूफान उठ चुका था जो हर चीज़ उड़ा कर ले जाने वाला था।

काफी देर तक रितू बेड पर पड़ी इस सबके बारे में सोच सोच कर कभी रो पड़ती तो कभी उसका चेहरा गुस्से से भभकने लगता। फिर सहसा उसके अंदर से आवाज़ आई कि इस सबसे बाहर निकलो और शान्ती से किसी चीज़ के बारे में सोच कर फैंसला लो।

रितू ने ऑखें बंद करके दो तीन बार गहरी गहरी साॅसें ली तब कहीं जाकर उसे कुछ सुकून मिला और उसका मन शान्त हुआ। उसे ख़याल आया कि कल उसका सबसे अच्छा भाई विराज आ रहा है। विराज का ख़याल ज़हन में आते ही रितू का मन एक बार फिर दुखी हो गया।

"मेरे भाई, जितने भी दुख मैने तुझे दिये हैं न उससे कहीं ज्यादा अब प्यार दूॅगी तुझे।" रितू ने छलक आए ऑसुओं के साथ कहा__"मैं जानती हूॅ कि तू इतने बड़े दिल का है कि तू एक पल में अपनी इस दीदी को माफ़ कर देगा और मेरी सारी ख़ताएॅ भुला देगा। तेरे हिस्से के दुख दर्द बहुत जल्द तुझसे दूर चले जाएॅगे भाई। बस विधि को देख कर तू अपना आपा मत खो बैठना। अपने आपको सम्हाल लेना मेरे भाई। वैसे मैं तुझे फिर से बिखरने नहीं दूॅगी। तेरा हर तरह से ख़याल रखूॅगी मैं।"

बेड पर पड़ी रितू अपने मन में ये सब कहे जा रही थी। उसकी ऑखों के सामने बार बार विराज का वो मासूम और सुंदर चेहरा घूम जाता था। जिसकी वजह से पता नहीं क्यों मगर रितू के होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आती थी।

"तू जल्दी से आजा मेरे भाई।" रितू ने मन में ही कहा___"तुझे देखने के लिए मेरी ये ऑखें तरस रही हैं। वैसे कैसा होगा तू? मेरा मतलब कि आज भी वैसा ही मासूम व सुंदर है या फिर बेरहम वक्त ने तुझे इसके विपरीत कठोर व बेरहम बना दिया है? नहीं नहीं मेरे भाई, तू ऐसा मत होना। तू पहले की तरह ही मासूम व सुंदर रहना। तू वैसा ही अच्छा लगता है मेरे भाई। मैं तुझे उसी रूप में देखना चाहती हूॅ। तुझे अपने सीने से लगा कर फूट फूट कर रोना चाहती हूॅ। अब मुझे इन पापियों के साथ नहीं रहना है भाई। ये तो अपनी ही बहन बेटी को लूटना चाहते हैं। मुझे इनके पास नहीं रहना अब। मुझे भी अपने साथ ले चल मुम्बई। मैं ये नौकरी छोंड़ दूॅगी और तेरे साथ ही हर वक्त रहूॅगी। अपने प्यारे से भाई के साथ। बस तू जल्दी से आजा यहाॅ।"

जाने क्या क्या मन में कहती हुई रितू आख़िर कुछ देर में अपने आप ही सो गई। वक्त और हालात बड़ी तेज़ी से बदल रहे थे। आने वाला समय किसकी झोली में कौन सी सौगात डालने वाला था ये भला किसे पता हो सकता था।

ख़ैर, रात गुज़र गई और सुबह का आगाज़ हुआ। बेड पर गहरी नींद में सोई हुई रितू को ऐसा लगा जैसे कुछ बज रहा है। नींद के साथ ही स्थिर और सोया हुआ मन मस्तिष्क फौरन ही सक्रिय अवस्था में आ गया। जिसकी वजह से रितू की ऑख खुल गई। ऑख खुलते ही उसके कानों में उसके आई फोन की रिंग टोन उसे स्पष्ट सुनाई दी। रितू ने बाई तरफ करवॅट लेकर मोबाईल को उठाया और जब तक उस पर आ रही किसी की काल को पिक करने के लिए अपने अॅगूठे को हरकत दी तब तक काल अपने निश्चित समय सीमा के चलते कट गई।

रितू ने रिसीव काल की लिस्ट को ओपेन किया तो उसमें उसे पवन सिंह लिखा नज़र आया। ये देख कर रितू के दिमाग़ की बत्ती जली। उसे ध्यान आया कि आज उसका भाई विराज मुम्बई से यहाॅ आ रहा है। ये बात दिमाग़ मे आते ही रितू ने फौरन पवन सिंह को फोन लगा दिया। पहली ही घंटी पर पवन ने काल पिक कर ली।

"ओफ्फो दी, आप फोन क्यों नहीं उठा रही थी?" उधर से पवन ने कहा___"चार बार आपको काल कर चुका हूॅ मैं।"
"ओह आई एम सो स्वारी भाई।" रितू ने खेद भरे भाव से कहा___"वो मैं गहरी नींद में सो रही थी न। कल रात नीद ही नहीं आ रही थी। इस लिए देर से सोई थी मैं। ख़ैर छोड़ो, तुम बताओ किस लिए फोन कर रहे थे मुझे?"

"वो मेरी विराज से फोन पर बात हुई है वो बता रहा था कि वो सही समय पर गुनगुन रेलवेस्टेशन पहुॅच जाएगा।" उधर से पवन कह रहा था___"मैने सोचा आपको इस बारे में बता दूॅ। मगर,....।"
"मगर क्या भाई?" रितू के माथे पर बल पड़ा।

"मगर यही कि मैने आपके कहने पर अपने जां से भी ज्यादा अज़ीज़ दोस्त को यहाॅ बुला तो लिया है।" पवन की आवाज़ में गंभीरता और अधीरता दोनो थी, बोला____"मगर, यदि उसकी जान को या उस पर लेश मात्र का भी संकट आया तो सोच लीजिएगा। उस सूरत में मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। आप मेरी बात समझ रही हैं न?"

"मुझे बेहद खुशी है कि मेरे भाई को तुम जैसा चाहने वाला दोस्त मिला है।" रितू की ऑखों में ऑसू आ गए, बोली___"मैं तुम्हारी बातों का मतलब समझ गई हूॅ भाई। तुमको कदाचित अभी भी अपनी इस बहन पर यकीन नहीं है, और सच कहूॅ तो होना भी नहीं चाहिए। आख़िर यकीन करने लायक मैने अब तक कीई काम किया ही कहाॅ है? मगर इतना ज़रूर कहूॅगी मेरे भाई कि तेरी ये बहन पहले से बहुत ज्यादा बदल गई है। तेरी इस बहन को समझ आ गया है कि कौन सही है और कौन ग़लत? आज मेरे दिल में अगर किसी के लिए बेपनाह प्यार है तो सिर्फ और सिर्फ अपने उस भाई के लिए जिसको मैने कभी अपना भाई नहीं माना था।"

"अगर ऐसी बात है तो मुझे खुशी है दीदी कि अब मेरे यार को आप के रहते कोई ख़तरा नहीं हो सकता।" पवन ने उधर से खुश हो कर कहा___"अच्छा अब फोन रखता हूॅ दीदी। विराज जब हल्दीपुर पहुॅचेगा तो मैं उसे लेने बस स्टैण्ड पर पहुॅच जाऊॅगा। आप तो जानती ही हैं कि मेरी दुकान बस स्टैण्ड पर ही है। विराज को लेकर मैं अपने घर चला जाऊॅगा। फिर जब आपका फोन आएगा तब मैं उसे लेकर विधी के पास हास्पिटल आ जाऊॅगा।"

"ठीक है भाई।" रितू ने कहा___"तब तक मैं भी उसकी सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम करती हूॅ।" ये कहने के बाद रितू ने काल कट कर दी। इस वक्त उसके चेहरे पर बहुत ही ज्यादा खुशी झलक रही थी। उसके गोरे और खूबसूरत से चेहरे पर ग़जब का नूर उतर आया था। कुछ देर बेड पर वह जाने क्या क्या सोच कर मुस्कुराती रही फिर बेड से उठ कर बाथरूम की तरफ बढ़ गई।
_____________________________

उधर मुम्बई से ट्रेन में बैठने के बाद मैं और मेरे साथ जगदीश अंकल के द्वारा भेजे हुए बाॅडीगार्ड आदित्य चोपड़ा दोनो चल दिये थे। कुछ दूर तक का सफ़र तो हम दोनो के बीच की ख़ामोशी के साथ ही कटता रहा। उसके बाद हम दोनो के बीच बातें शुरू हो गई थी। ये अलग बात है कि बात करने की पहल मैने ही की थी। आदित्य चोपड़ा कुछ ख़ामोश तबीयत का इंसान था। वो ज्यादा किसी से बोलता नहीं था। अब ये ख़ामोशी उसकी फितरत का हिस्सा थी या फिर उसके ख़ामोश रहने की कोई ऐसी वजह जिसके बारे में फिलहाल मुझे कुछ पता नहीं था।

लेकिन जब हमारे बीच कान्टीन्यू बातें होती रही तो आदित्य का स्वभाव थोड़ा बदल गया था। हलाॅकि शुरू शुरू में वह मेरी किसी भी बात का जवाब हाॅ या ना में संक्षिप्त रूप से ही देता था। किसी किसी पल वह मेरी बातों से परेशान भी नज़र आया मगर मैने उसे बड़े प्यार व इज्ज़त से समझाया कि ख़ामोश रहने से किसी भी समस्या से छुटकारा नहीं मिलता। फिर मैने उसे संक्षेप में अपनी और अपने परिवार की कहानी सुनाई। मेरी कहानी सुन कर आदित्य चोपड़ा बेहद संजीदा सा हो गया था। उसने मुझसे कहा कि अभी तक तो वो मेरे बाॅडीगार्ड की हैंसियत से साथ था लेकिन अब वो मेरे साथ मेरा सच्चा दोस्त बन कर रहेगा और मुझे हर संकट से बचाएगा।

उसके बाद हम दोनो हॅसी खुशी ट्रेन में बातें करते रहे। मेरे पूछने पर ही उसने अपने बारे में बताया। आदित्य चौपड़ा के पास किसी चीज़ की कोई कमीं नहीं थी। जब वो पच्चीस साल का था तब उसे किसी लड़की से प्यार हो गया था। लेकिन बाद में पता चला कि वो लड़की हर पल सिर्फ उसका स्तेमाल कर रही थी। दरअसल उस लड़की का पहले से ही किसी विदेशी लड़के से चक्कर था। लड़की का बाप अपनी बेटी को बग़ैर किसी सिक्योरिटी के कहीं जाने नहीं देता था। आदित्य चोपड़ा उस लड़की का ब्वाडीगार्ड था। उस चक्कर में वो लड़की अपने उस विदेशी ब्वायफ्रैण्ड से मिल नहीं पाती थी। लड़की ने किसी योजना के तहत आदित्य को अपने प्यार के जाल में फॅसाया। और फिर उस लड़की ने आदित्य को अपने प्यार में इस हद तक पागल कर दिया कि उसके कहने पर आदित्य उसे लेकर विदेश तक जाने को तैयार हो गया। विदेश जाने के लिए सारी तैयारियाॅ करने के बाद एक दिन आदित्य और वो लड़की जिसका नाम कोमल सिंहानिया था दोनो ही सिंहानिया विला से फुर्र हो गए। एयरपोर्ट के रास्ते पर ही एक जगह कोमल ने टैक्सी रुकवाई। आदित्य को समझ न या कि कोमल ने टैक्सी क्यों रुकवाई थी। टैक्सी के उतरते ही कोमल टैक्सी से उतर गई और टैक्सी ड्राइवर से अपना सामान भी टेक्सी से निकालने को कह दिया। हैरान परेशान आदित्य ने उससे पूछा कि ये सब क्या है? हम बीच रास्ते में टैक्सी से इस तरह क्यों उतर रहे हैं?

[size=large]आदित्य के सवाल का जवाब देने से पहले ही उस जगह पर एक और टैक्सी आकर रुकी। उस टैक्सी का दरवाजा खोल कर कोमल का विदेशी ब्वायफ्रैण्ड बाहर आ गया। कोमल के पास आकर उस विदेशी ने कोमल को अपने गले से ल?
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