non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:46 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अब आगे,,,,,,,,

"हम कुछ भी नहीं सुनना जानते कमिश्नर हमारे बच्चे जहाॅ भी हों उन्हें ढूॅढ़ कर हमारे सामने तुरंत हाज़िर करो।" दिवाकर चौधरी फोन पर गुस्से में कह रहा था___"वरना तुम सोच भी नहीं सकते कि हम क्या कर सकते हैं? हमें पता चला है कि बच्चों ने किसी लड़की के साथ रेप किया है। मगर ये सब तो चलता ही रहता है इस उमर में। अगर हमें पता चला कि इस रेप की वजह से ही हमारे बच्चे गायब हैं तो समझ लेना कमिश्नर इस शहर में कोई इंसान ज़िदा नहीं बचेगा।"

".................."उधर से कुछ कहा गया।
"तो अगर पुलिस ने उस लड़की के रेप पर कोई केस नहीं बनाया तो कहाॅ गए हमारे बच्चे?" दिवाकर चौधरी गर्जा___"आज दो दिन हो गए कमिश्नर। अभी तक बच्चों का कहीं कोई अता पता नहीं है।"

"............." उधर से फिर कुछ कहा गया।
"तुम्हारे पास चौबीस घंटे का टाइम है कमिश्नर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"अगर चौबीस घंटे के अंदर हमारे बच्चे हमारी ऑखों के सामने न दिखे तो समझ लेना कि हम क्या करते हैं फिर।"

कहने के साथ ही दिवाकर चौधरी ने फोन के रिसीवर को केड्रिल पर पटक दिया। गुस्से से तमतमाया हुआ आया और वहीं सोफे पर बैठ गया। इस वक्त वहाॅ रखे बाॅकी सोफों पर उसके सभी मित्र यार बैठे हुए थे। सबके चेहरों पर चिंता व परेशानी साफ दिखाई दे रही थी।

"क्या कहा कमिश्नर ने?" अशोक मेहरा ने उत्सुकता से पूछा था।
"क्या उस रेप की वजह से हमारे बच्चे गायब हैं?" सुनीता वर्मा ने कहा___"ज़रूर पुलिस वालों ने ही उन सबको गिरफ्तार किया होगा।"

"पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं है सुनीता कि वो हमारे बच्चों को छू भी सके।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"मुझे लगता है कि हमारे बच्चे खुद ही अंडरग्राउण्ड हो गए हैं। उन्होंने सोचा होगा कि इस हादसे से कहीं उनको पुलिस न पकड़ ले। इस लिए वो कहीं छुप गए होंगे। उन बेवकूफों का इतना भी दिमाग़ नहीं चला कि उनको किसी से डरने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी। ख़ैर, तुम लोग चिन्ता मत करो। हमारे बच्चे जहाॅ भी होंगे सही सलामत ही होंगे।"

"पर चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"उन लोगों को हमें एक बार फोन तो कर ही देना चाहिये था। मगर दो दिन से फोन ही बंद हैं उन सबका। समझ में नहीं आ रहा कि कहाॅ गए होंगे वो। आपके फार्महाउस पर भी नहीं हैं। हमारे आदमी देख आए हैं वहाॅ। लेकिन हैरानी की बात है कि आपके फार्महाउस के वो दोनो गार्ड्स भी वहाॅ नहीं हैं। इसका क्या मतलब हो सकता है?"

"भाग गए होंगे साले कामचोर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"उस समय जब उनके हाॅथ में बंदूखें थमाई थी तभी समझ आ गया था कि ये इस काम के लिए बेहद कमज़ोर हैं। ख़ैर छोड़ो। कमिश्नर को हमने डोज दे दी है। वो ज़रूर पता करेगा बच्चों का।"

"आप तो ऐसे बेफिक्र हैं चौधरी साहब जैसे आपको अपने बच्चों की कोई चिंता ही नहीं है।" सुनीता वर्मा ने कहा___"पर मुझे चिंता है। क्योंकि मुझ विधवा का एक वही तो सहारा है। अगर उसे कुछ हो गया तो किसके लिए जियूॅगी मैं?"

"ओफ्फो सुनीता।" दिवाकर चौधरी ने सहसा उसे अपनी तरफ खींच लिया। एक हाॅथ से उसकी ठुड्डी पकड़ कर बोला___"वैसे तो उसे कुछ नहीं होगा। और अगर थोड़े पल के लिए मान भी लिया जाए तो चिंता क्यों करती हो? हम हैं न तुम्हारे सहारे के लिए। अब तक भी तो सहारा ही बने हुए थे हम और आगे भी बने ही रहेंगे।"

"आपको तो बस हर वक्त मस्ती ही सूझती रहती है चौधरी साहब।" सुनीता ने कहा__"जबकि इस वक्त हालात किस क़दर गंभीर हैं इसका आपको अंदाज़ा भी नहीं है।"
"तुम भूल रही हो सुनीता डार्लिंग कि हम कौन हैं?" दिवाकर चौधरी ने कहा__"हम इस शहर की वो हस्ती हैं जिसकी इजाज़त के बिना एक पत्त भी नहीं हिल सकता। इस लिए तुम इस बात की चिंता करना छोंड़ दो कि बच्चों के साथ कोई बुरा करेगा।"

"चौधरी साहब बिलकुल ठीक कह रहे हैं सुनीता।" अशोक मेहरा ने कहा___"हमारे बच्चे ज़रूर किसी दूसरे शहर में मौज मस्ती कर रहे होंगे।"
"मौज मस्ती हमें भी तो करनी चाहिए न अशोक?" दिवाकर ने कहा___"बहुत दिन हो गए सुनीता के साथ भरपूर मस्ती नहीं की हमने।"

"आपने तो मेरे मन की बात कह दी चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने मुस्कुराते हुए कहा___"आज हो ही जाए मस्ती।"
"क्या कहती हो डार्लिंग?" दिवाकर चौधरी ने सुनीता के एक भारी बोबे को ज़ोर से मसलते हुए कहा___"हो जाए वन टू का फोर?"

"अरे मैं तो चाहती ही हूॅ कि आप सब मुझे मसल कर रख दो।" सुनीता ने अपने होठों को दाॅतों तले दबाते हुए कहा___"मेरे जिस्म में तो हर वक्त आग लगी रहती है। अलोक का बाप तो कमीना मुझे भरी जवानी में छोंड़ कर मर गया। वो तो भगवान का शुकर था कि आप लोग मेरे जीवन में आ गए वरना जाने क्या होता मेरा?"

"भगवान सब अच्छे के लिए ही करता है मेरी राॅड सुनीता।" दिवाकर चौधरी ने सुनीता के ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा___"और आज तो हम सब तेरी आगे पीछे दोनो साइड से अच्छे से लेंगे।"

"हाॅ तो ठीक है न।" सुनीता ने अपना हाथ बढ़ा कर दिवाकर के पजामें के ऊपर से ही उसके लौड़े को पकड़ लिया___"मेरा कोई भी छेंद खाली न रखना।"
"आज तो साली तेरी चीखें निकालेंगे हम तीनों।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"चलो भाई लोग अंदर कमरे में चलो। आज इस राॅड को तबीयत से पेलते हैं।"

दिवाकर चौधरी की बात सुन कर बाॅकी तीनो भी मुस्कुराते हुए सोफों से उठ खड़े हुए।
"चौधरी साहब आपकी बेटी तो नहीं है न बॅगले में?" अशोक मेहरा ने पूछा__"वरना उसे पता चल जाएगा कि हम सब क्या कर रहे हैं।"
"नहीं है यार।" दिवाकर ने कहा___"शायद कहीं बाहर गई हुई है।"

अभी वे सब कमरे की तरफ बढ़े ही थे कि सहसा पीछे से दिवाकर के पीए ने आवाज़ दी।
"चौधरी साहब, चौधरी साहब।" पीए ने बदहवास से लहजे में कहा था।

"क्या बात है मनोहर लाल?" दिवाकर चौधरी के लहजे में कठोरता थी__"क्यों गला फाड़ रहे तुम? देख नहीं रहे, हम ज़रूरी काम से कमरे में जा रहे हैं?"
"ज़रूर जाइये चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने अजीब भाव से कहा___"लेकिन उससे पहले इसे तो देख लीजिए।"

"क्या है ये?" दिवाकर चौधरी की भृकुटी तन गई, बोला___"तुम हमें मोबाइल देखने का कह रहे हो इस वक्त? दिमाग़ तो ठीक है न तुम्हारा?"
"आप एक बार देख लीजिए न चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने विनती भरे भाव से कहा___"उसके बाद आपको जो करना है करते रहिएगा।"

"दिखाओ क्या है ये?" दिवाकर चौधरी ने मनोहर लाल के हाथ से मोबाइल छींन लिया था। मोबाइल की स्क्रीन पर कोई वीडियो पुश मोड पर नज़र आ रहा था।
"तुमने हमें ये दिखाने के लिए रोंका है मनोहर लाल?" दिवाकर चौधरी ने गुस्से से कहा।
"गुस्सा मत कीजिए चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने कहा___"एक बार उस वीडिओ को प्ले तो कीजिए।"

दिवाकर चौधरी ने पहले तो खा जाने वाली नज़रों से मनोहर लाल को देखा फिर मोबाइल की स्क्रीन पर देखते हुए उस वीडिओ को प्ले कर दिया। बड़े से स्क्रीन टच मोबाइल में वीडिओ के प्ले होते ही जो कुछ नज़र आया उसे देख कर दिवाकर चौधरी के होश उड़ गए। दिलो दिमाग़ सुन्न सा पड़ता चला गया। ये सच है कि उसके हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। सिर पर एकाएक ही जैसे पूरा आसमान ही भरभरा कर गिर पड़ा था उसके।

चौधरी की हालत एक पल में ऐसी हो गई जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो। चेहरा फक्क पड़ गया था उसका। बाॅकी दोनो और सुनीता भी चौधरी की ये दशा देख कर बुरी तरह चौंके। उन्हें समझ न आया कि अचानक चौधरी साहब को क्या हो गया है।

"क्या हुआ चौधरी साहब?" अवधेश श्रीवास्तव ने हैरानी से कहा__"आप इस तरह बुत से क्यों बन गए? क्या है उस मोबाइल में?"
"आं हा, लो तुम भी देख लो।" दिवाकर चौधरी ने मोबाइल पकड़ा दिया उसे।

अवधेश के साथ साथ अशोक व सुनीता ने भी मोबाइल में चालू वीडियो को देखा। और अगले ही पल उनकी भी हालत खराब हो गई।
"ये सब क्या है मनोहर लाल?" अशोक वर्मा ने गुस्से से कहा___"चौधरी साहब का ऐसा वीडियो इस मोबाइल में कहा से आया?"

"ये वीडियो किसी अंजान नंबर से भेजा गया है सर।" मनोहर ने कहा___"अभी पाॅच मिनट पहले ही आया है। इतना ही नहीं अलग अलग चार वीडियो और भी हैं। बाॅकियों को भी प्ले करके देख लीजिए।"

अशोक ने वैसा ही किया। कहने का मतलब ये कि चारो वीडियो अलग अलग ब्यक्तियों के थे। पहला दिवाकर चौधरी का, दूसरा अशोक मेहरा का, तीसरा सुनीता वर्मा का और चौथा अवधेश श्रीवास्तव का।

चारो वीडियो देखने के बाद उन चारों की हालत बेहद खराब हो गई। सबके पैरों तले से ज़मीन कोसों दूर निकल गई थी।

"चौधरी साहब ये सब वीडियो हम लोगों के कैसे बन गए?" अशोक मेहरा ने कहा__"और इन वीडियोज में जो जगह है वो तो आपके फार्महाउस की ही है। मतलब साफ है कि वहीं पर हमारे ऐसे वीडियो बनाए गए। मगर सवाल है कि किसने बनाए ऐसे वीडियो? क्या हमारे बच्चों ने? यकीनन चौधरी साहब, ये उन लोगों ने ही बनाया है।"

"अशोक सही कह रहे हैं चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"हमारे बच्चों ने ही ये वीडियो बनाया। क्योंकि बाहरी कोई वहाॅ जा ही नहीं सकता।"
"ये सब छोंड़ो और ये सोचो कि ये वीडियो किसने भेजा हमारे फोन पर?" दिवाकर चौधरी ने कहा___"हमारे बच्चे तो ऐसा करेंगे नहीं। क्योंकि ऐसा करने की उनके पास कोई वजह ही नहीं है। उन्होंने ये सोच कर वीडियो बनाया कि हम अपने बाप वोगों की मौज मस्ती अपनी ऑखों से देखेंगे। उनके दिमाग़ में ऐसे वीडियोज हमारे पास भेजने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि उनकी हर इच्छाओं की पूर्ति हम बखूबी करते हैं। ये किसी और का ही काम है अवधेश। हमारे फोन में वीडियो भेजने का मतलब है कि सामने वाला हमें बताना चाहता है कि उसके पास हमारी इस करतूत का सबूत है और वो हमें जब चाहे एक्सपोज कर सकता है। अब सवाल ये है कि वो कौन है जिसने ये वीडियो भेजा और किस मकसद के तहत भेजा?"

"मामला बेहद गंभीर हो गया है चौधरी साहब।" सुनीता ने कहा___"हमारे बच्चों ने तो हमें बड़ी भारी मुसीबत में डाल दिया है।"
"मुसीबत तो अब हो ही गई है मगर इससे निपटने का रास्ता तो अब ढूढ़ना ही पड़ेगा न?" दिवाकर चौधरी ने कहा__"सबसे पहले ये पता करना होगा कि ये वीडियो उसके पास कैसे आए और उसने हमें किस मकसद से भेजा है?

"वीडियो आपके फार्महाउस के उसी कमरे में बनाया गया है चौधरी साहब जिस कमरे में हम लोग अक्सर शबाब का मज़ा लूटा करते हैं।" अशोक ने कहा___"मतलब साफ है वीडियो भेजने वाले को ये वीडियो वहीं से मिले होंगे। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आपके फार्महाउस पर ऐसा कौन ब्यक्ति गया और ये सब वीडियोज वहाॅ से उठा कर चंपत हो गया? आपके फार्महाउस के वो गार्ड्स कहाॅ थे उस वक्त जब कोई बाहरी वहाॅ आकर ये सब काण्ड कर गया?"

अशोक मेहरा की इन बातों से सन्नाटा छा गया हाल में। सबका दिमाग़ मानो चकरघिन्नी बन कय रह गया था। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब अचानक कौन सी आफत आ गई थी। जिसने उन सब महारथियों को अपंग सा बना दिया था।

"मनोहर लाल पता करो किसने ये हिमाकत की है?" दिवाकर चौधरी ने कहा___"जिस नंबर से ये वीडियोज आईं हैं उस नंबर पर फोन करो।"
"मैने बहुतों बार फोन लगाया चौधरी साहब लेकिन नंबर बंद बता रहा है।" मनोहर लाल ने कहा___"आप कहें तो पुलिस को ये नंबर दे दूॅ वो जल्द ही पता कर लेंगे कि ये नंबर किसका है और किस जगह से इस नंबर के द्वारा ये वीडियोज भेजी गई हैं?"

"तुम्हारा दिमाग़ तो नहीं ख़राब हो गया मनोहर लाल।" दिवाकर गुस्से से बोला__"ये घटिया ख़याल आया कैसे तुम्हारे ज़हन में? सोचो अगर हमने पुलिस को नंबर दिया तो उसका अंजाम क्या हो सकता है? जिसने भी ये दुस्साहस किया है वो कोई मामूली ब्यक्ति नहीं हो सकता। उसे भी ये पता होगा कि हम उसका पता लगाने के लिए उसका नंबर पुलिस को दे सकते हैं। उसने पुलिस को नंबर न देने की कोई चेतावनी भले ही हमें नहीं दी है मगर हमें तो सोचना समझना चाहिए न? अगर हमने ऐसा किया तो संभव है कि वो हमारे ये वीडियो पुलिस को दे दे या सार्वजनिक कर दे। उस सूरत में हमारा सारा किस्सा ही खत्म हो जाएगा। शहर की जनता और ये पुलिस प्रशासन सब हमारे खिलाफ़ हो जाएॅगे। इस लिए हमें ठंडे दिमाग़ से इसके बारे में सोचना होगा। बिना मतलब के या बिना मकसद के कोई किसी के साथ ऐसा नहीं करता। उसने ऐसा किया है तो देर सवेर ज़रूर उसका कोई मैसेज या फोन भी आएगा। तब हम उससे पूछेंगे कि वह क्या चाहता है हमसे?"

"इसका मतलब अब हम उस ब्यक्ति के किसी फोन या मैसेज का इंतज़ार करें जिसने ये वीडियोज हमें भेजा है?" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा।
"इसके अलावा हमारे पास दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है।" दिवाकर ने कहा___"हमें एक बार उससे बात तो करनी पड़ेगी। आख़िर पता तो चले कि उसने ऐसा किस मकसद से किया है? उसके बाद ही हम कोई अगला क़दम उठा सकते हैं।"

"ठीक है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"जैसा आप उचित समझें वैसा कीजिए। मगर ये मैटर ऐसा है कि हम सबके होश उड़ा देगा। सब कुछ बरबाद कर देगा।"
"बस एक बार उसका कोई फोन या मैसेज तो आने दो।" दिवाकर ने कहा___"उसके बाद हम बताएॅगे उसे कि हमारे साथ ऐसी हरकत करने का अंजाम कितना भयावह होता है।"

दिवाकर चौधरी की इस बात से एक बार फिर हाल में सन्नाटा छा गया। किन्तु सबके मन में जो तूफान उठ चुका था उसे रोंकना उनके बस में न था।
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"चौधरी आज से तेरे बुरे दिन शुरू हो गए हैं। मासूम और मजलूमों पर तूने, तेरे साथियों ने और तेरे हराम के पिल्लों ने जो भी ज़ुल्म ढाए हैं उनका हिसाब देने का समय आ गया है।" रितू की कार ऑधी तूफान बनी फार्महाउस की तरफ दौड़ी जा रही थी। साथ ही मन ही मन वह ये सब कहती भी जा रही थी।

रितू ने ऐसी जगह से अपने नये मोबाइल फोन द्वारा वो वीडियोज चौधरी के मोबाइल पर भेजे थे जिस जगह पर एक नई बिल्डिंग का निर्माण कार्य चल रहा था। किन्तु इस वक्त वहाॅ पर कोई न था। यहीं से उसने चौधरी को वोडियोज भेजे थे। वीडियो भेजने के बाद उसने फोन को स्विचऑफ कर दिया था। उसका खुद का जो आईफोन था वो पहले से ही स्विचऑफ था। उसके दिमाग़ में हर चीज़ से बचने की भी सोच थी।

ऑधी तूफान बनी उसकी जिप्सी उसके फार्महाउस पर रुकी। जिप्सी से उतर कर वह तेज़ी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। बाहर मेन गेट पर शंकर काका नज़र आया था उसे किन्तु हरिया काका नज़र नहीं आया था। कमरे में जाकर उसने नया वाला फोन आलमारी में रखा और उसे लाॅक कर तुरंत पलटी।

जिप्सी में बैठी रितू का रुख अब अपने हवेली की तरफ था। उसके दिमाग़ में बड़ी तेज़ी से कई सारी चीज़ें चल रही थी। उसके ज़हन में ये बात हर पल बनी हुई थी कि उसने विधी से वादा किया था कि विराज को उसके पास ज़रूर लाएगी।

रितू के पास विराज का कोई काॅन्टैक्ट करने का ज़रिया न था। इस लिए उसने ये पता लगाने के लिए किसी आदमी को लगाया हुआ था कि उसके किसी दोस्तों के पास विराज का कोई अता पता हो। दूसरे दिन सुबह ही उसके आदमी ने उसे बताया था कि विराज के दो ही लड़के खास दोस्त हुआ करते थे। एक का नाम दिनेश सिंह था जो कि आजकल देश के किसी दूसरे राज्य में नौकरी कर रहा है। दूसरे दोस्त का नाम है पवन सिंह चंदेल। ये विराज का स्कूल के समय से ही दोस्त था। ग़रीब है, आज कल हल्दीपुर में ही बस स्टैण्ड के पास पान की दुकान खोल रखा है। घर में विधवा माॅ के अलावा एक बहन है जो ऊम्र में उससे बड़ी है। मगर आर्थिक परेशानी की वजह से वह अपनी बड़ी बहन की शादी नहीं करा पा रहा है।

रितू के खबरी ने उसे पवन सिंह का नंबर लाकर दिया था। रितू ने पवन को फोन लगा कर उसे अपना परिचय दिया और मिलने का कहा था। खैर, रातू जब पवन से मिली तो उससे विराज के बारे में पूछा तो पवन ने बड़ा अजीब सा जवाब दिया था उसे।

"आप मेरे दोस्त राज की बड़ी बहन हैं इस लिए आप मेरी भी बड़ी बहन के समान ही हैं।" पवन ने कहा था___"आप मेरे घर पर आई हैं, आपका तहे दिल से स्वागत है। लेकिन अगर आप मुझसे मेरे जिगरी यार का पता या फोन नंबर पूछने आई हैं तो माफ़ कीजिएगा दीदी। मैं आपको ना तो उसका पता बताऊॅगा और ना ही उसका फोन नंबर दूॅगा।"

"लेकिन क्यों पवन क्यों?" रितू ने चकित भाव से कहा था___"तुम एक बहन को उसके भाई का अता पता क्यों नहीं बताओगे?"
"बहन.....भाई???" पवन सिंह बड़े अजीब भाव से हॅसा था, उसकी उस हॅसी में रितू ने साफ साफ दर्द महसूस किया____"कौन बहन भाई दीदी? अरे मेरे यार ने तो सबको हमेशा अपना ही माना था मगर उसके खुद के माॅ बाप और बहन के अलावा किसी भी परिवार वाले ने उसे अपना नहीं माना। और और आप???? आप भी बताइये दीदी, आप ने राज को कब अपना भाई माना था? अरे उसे तो आपने बचपन से लेकर आज तक सिर्फ दुत्कारा है दीदी। ख़ैर, जाने दीजिए। आपसे ये सब कहने का मुझे कोई हक़ नहीं है। माफ़ करना दीदी, आपको देख कर जाने कैसे गुस्सा सा आ गया था और दिल का गुबार मुख से निकल गया। मगर, जिस काम के लिए आप यहाॅ आई हैं वो हर्गिज़ नहीं होगा। मुझे सब पता है दीदी, मेरे दोस्त राज और उसकी माॅ बहन को खोजने के लिए आपके डैड ने अपने आदमियों को जाने कब से लगाया हुआ है। मगर कोई भी उनका आदमी उसे ढूॅढ़ नहीं पाएगा।"

"तुम ग़लत समझ रहे हो पवन।" रितू ने बेचैनी भरे भाव से कहा था___"मैं ये मानती हूॅ कि मैने अपने उस भाई को कभी अपना नहीं माना था लेकिन आज ऐसा नहीं है भाई। आज तुम्हारी ये दीदी बहुत प्यार करने लगी है अपने उस भाई से। इस वक्त अगर राज मेरे सामने आ जाए तो मैं उसके पैरों में पड़ कर उससे अपने किये की मुआफ़ी माॅग लूॅगी। ये सब समय समय की बातें हैं पवन। हम जब बच्चे होते हैं तो बिलकुल कुम्हार के पास रखी हुई उस गीली और कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं। हमारे माता पिता कुम्हार की तरह ही होते हैं। वो जैसे चाहें अपने बच्चों को किसी मिट्टी के घड़े की तरह ढाल देते हैं। कहने का मतलब ये कि, मेरे माॅम डैड ने हम बहन भाइयों को बचपन से जो सिखाया पढ़ाया हम उसी को करते चले गए। लेकिन वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता पवन। हर सच्चाई को एक दिन पर्दे से निकल कर बाहर आना ही पड़ता है। यही उसकी नियति होती है। और सच्चाई क्या है क्या नहीं ये मुझे समझ आ गया है। मुझे पता है पवन कि मेरा भाई राज वो कोहिनूर है जिसका कोई मोल हो ही नहीं सकता।"

"वाह दीदी वाह।" पवन कह उठा___"आज आपके मुख से ये अमृत वाणी कैसे निकल रही है? हैरत की बात है, खैर मुझे क्या है। मगर इतना जान लीजिए कि मैं आपकी इन मीठी बातों के जाल में फॅसने वाला नहीं हूॅ। मेरी वजह से मेरे दोस्त को कोई नुकसान नहीं पहुॅचा सकता। अब आप जाइये दीदी। मुझे आपसे और कोई बात नहीं करनी है।"

"कैसे यकीन दिलाऊॅ पवन?" रितू की ऑखों में ऑसू आ गए___"आखिर कैसे तुम्हें यकीन दिलाऊॅ कि मैं अब वैसी नहीं रही? मैं हनुमान जी की तरह अपना सीना चीर कर नहीं दिखा सकती मगर भगवान जानता है कि मेरे सीने में मेरा भाई ज़रूर मौजूद हो गया है। तुम मुझे उसका गुनहगार समझते हो तो चलो ठीक है पवन। तुम मुझे राज का अता पता भी न दो मगर इतना तो उसे बता ही सकते हो न वो कुछ देर के लिए अपनी उस विधी के पास आ जाए जिससे वह आज भी उतना ही प्यार करता होगा जितना पहले करता था।"

"नाम मत लीजिए उस बेवफ़ा का।" पवन ने सहसा आवेशयुक्त लहजे में कहा___"उसी की बेवफ़ाई की वजह से मेरा दोस्त रात रात भर मेरे पास रोता रहता था। कितना चाहता था वो उसे। मगर उस दिन पता चला कि दुनियाॅ भर की कसमें और दलीलें देने वाली वो लड़की कितनी झूठी और मक्कार थी जिस दिन आप लोगों ने मेरे दोस्त को और उसके माॅ बहन को हवेली से बाहर धकेल दिया था। उधर आप लोगों ने हवेली से धकेला और इधर उस कम्बख्त ने मेरे दोस्त को अपने दिल से धकेल दिया। एक पल में गिरगिट की तरह रंग बदल लिया था उस लड़की ने। रुपये पैसे से मोहब्बत थी उसे ना कि मेरे दोस्त से।"

"सच्चाई क्या है इसका तुम्हें पता नहीं है पवन।" रितू ने दुखी भाव से कहा__"तुम और विराज ही क्या बल्कि नहीं समझ सकता कि उसने ऐसा क्यों किया था?"
"अरे दौलत के लिए दीदी दौलत के लिए।" पवन ने झट से कहा___"उसने मेरे दोस्त की सच्ची मोहब्बत को अपने पैरों तले रौंदा था।"

"ये सच नहीं है पवन।" रितू ने कहा__"अगर सच्चाई जान लोगे न तो पैरों तले से ज़मीन गायब हो जाएगी तुम्हारे। उसने ये सब इस लिए किया था ताकि विराज उससे नफ़रत करने लगे और किसी दूसरी लड़की के साथ प्यार मोहब्बत करने का सोचे। माना कि ये आसान नहीं था मगर वक्त और हालात हर ज़ख्म भर देता और एक नया मोड़ भी जीवन में ले आता है।"

"आप कहना क्या चाहती हैं दीदी?" पवन ने कहा___"और इन सब बातों का आज कहने का क्या मतलब है?"
"विधी को ब्लड कैंसर था पवन।" रितू ने मानो धमाका किया___"और वो भी लास्ट स्टेज का। इसी लिए उसने ये सब किया था राज के साथ। ताकि वह उसे भूल जाए और दूर हो जाए उससे।"

"क क्या?????" पवन बुरी तरह चौंका था___"ये ये आप क्या कह रही हैं दीदी? विधी को कैंसर?? नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। ये सब झूठ है।"
"अगर तुम्हें मेरी बात का यकीन नहीं है तो मेरे साथ चल कर खुद अपनी ऑखों से देख लो तुम।" रितू ने कहा___"इस वक्त भी वह हास्पिटल में ही है। तुमने शायद सुना नहीं होगा उस रेप के बारे में जो अभी कुछ दिनों पहले ही हुआ था। विधी के साथ ये हादसा हुआ था जिससे उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी। हास्पिटल में जब उसे भर्ती किया गया तभी उसके चेकअप से डाक्टर को ये पता चला कि विधी को लास्ट स्टेज का ब्लड कैंसर है। जबकि कैंसर वाली बात विधी को पहले से ही पता थी।"

पवन सिंह रितू को अजीब भाव से इस तरह देखने लगा था जैसे रितू का सिर धड़ से अलग होकर ऊपर हवा में अचानक ही कत्थक करने लग गया हो। अविश्वास से फटी हुई उसकी ऑखों में एकाएक ही ऑसू आ गए।

"हे भगवान! ये क्या हो गया?" पवन ने ऊपर की तरफ देख कर दुखी भाव से कहा__"एक और सच्चे प्रेम की ये दशा कर दी तूने। बहुत बेरहम और बेदर्द है तू। दीदी, मुझे उस महान लड़की को देखना है। उससे मुआफ़ी माॅगना है। हे भगवान कितना बुरा भला कहा मैने उसे और आज तक बुरा भला सोचता भी रहा हूॅ।"

रितू पवन को लेकर हास्पिटल पहुॅची तो पवन ने देखा विधी को। विधी की कुरुण हालत देख कर पवन का कलेजा मुह को आ गया। वह विधी के पैरों में अपना सिर रख दिया और माफ़ी माॅगने लगा। पवन बहुत ही भावुक किस्म का लड़का था, इस लिए ज्यादा देर तक वह विधी के पास न रह सका था। उसे रह रह कर रोना आने लगता था।

हास्पिटल से बाहर आकर उसने खुद को और अपने अंदर के जज़्बातों को शान्त किया। तभी पीछे से रितू ने उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने पलट कर देखा उसे।

"क्या अब भी तुम्हें लगता है पवन कि मैं तुमसे झूॅठ बोल रही हूॅ?" रितू ने कहा था।
"नहीं दीदी, प्लीज माफ़ कर दीजिए।" पवन ने अपने हाथ जोड़ कर कहा था।
"इसी विधी ने मुझे एहसास कराया कि मैं कितना ग़लत सोचती थी अब तक अपने भाई विराज के लिए।" रितू ने कहा___"विधी की कहानी ने मुझे ये एहसास कराया भाई कि मेरा अपने भाई के लिए आज तक अनुचित ब्यौहार करना कितना ग़लत था। इसको मैने वचन दिया है पवन कि इसके महबूब को इसके पास ज़रूर लाऊॅगी। मैं इसी लिए तुम्हारे पास आई थी पवन। मैंने अपने भाई के साथ क्या किया है अबतक उसका फल मुझे ज़रूर मिलेगा और मिलना भी चाहिए।"

"ऐसा मत कहिए दीदी।" पवन ने कहा__"ये सब समय समय की बातें हैं। जो बीत गया उसे भूल जाइये और एक नया संसार बनाने की सोचिये। मैं अभी विराज को फोन करता हूॅ और उसे विधी के बारे में सब बताता हूॅ।"

"नहीं नहीं पवन।" रितू ने झट से कहा__"उसे ये मत बताना कि विधी को क्या हुआ है। बल्कि कुछ और बोलो। कुछ ऐसा कि वो दूसरे दिन मुंबई से यहाॅ आने के लिए चल दे।"
"ठीक है दीदी।" पवन ने कहा था__"मैं ऐसा ही करता हूॅ।"

कहने के साथ ही पवन ने विराज को फोन को फोन लगा दिया था। उसका दिल बुरी तरह धड़के जा रहा था। रिंग जाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। और तभी,

"हाॅ भाई बोल कैसे याद किया?" उधर से विराज ने कहा था।
"भाई अगर तेरे पास टाइम हो तो तू जल्दी से गाॅव आ जा।" पवन ने कहा था।
"अरे क्या हुआ भाई?" विराज के चौंकने जैसी आवाज़ आई___"सब ठीक तो है ना?"

"बस भाई तू कल ही आजा यहाॅ।" पवन ने गंभीरता से कहा___"तुझे मेरी क़सम है भाई। तू कल यहाॅ आएगा।"
"पर बात क्या है पवन?" विराज का चिंतित स्वर उभरा___"देख तू मुझसे कुछ भी मत छुपा ओके। चाची(पवन की माॅ) की तबीयत तो ठीक है ना? पूजा दीदी ठीक तो हैं ना मेरे भाई? सच सच बता न क्या बात है?"

"भाई परेशान न हो।" पवन ने कहा__"बस तू कल आजा भाई। बाॅकी सब कुछ तुझे यहाॅ आने पर ही पता चलेगा। तू आएगा न कल?"
"मैं आज ही रात की ट्रेन से निकल लूॅगा यहाॅ से।" विराज ने कहा___"कल दोपहर तक पहुॅच जाऊॅगा।"

"ठीक है भाई मैं तुझे बस स्टैण्ड पर ही मिलूॅगा।" पवन ने कहा___"मुझे पहुॅचते ही फोन कर देना।"
"आखिर बात क्या है यार?" विराज की आवाज़ आई___"तू बता क्यों नहीं रहा है?"
"तू आजा बस।" पवन ने कहा___"चल रखता हूॅ फोन।"

पवन ने फोन काट दिया। एक गहरी साॅस ली उसने और फिर रितू की तरफ देखते हुए कहा___"लीजिए दीदी। मेरा यार कल दोपहर को आ जाएगा यहाॅ।"

"तुमने मेरे वचन को झूठा होने से बचा लिया मेरे भाई।" रितू ने की ऑखें भर आई। उसने झपट कर पवन को अपने गले से लगा लिया।
"आपने भी तो मुझे पाप करने से बचाया दीदी।" पवन ने कहा___"आज तक मैं अपने मन में उस विधी को जाने कितना बुरा भला कहता था जिस विधी को मुझे प्रणाम करना चाहिए था।"

"ऐसी बातें मेरे भाई विराज का एक अच्छा दोस्त ही कह सकता है।" रितू ने पवन से अलग होकर कहा___"इतने ऊॅचे संस्कार उसके ही दोस्तों में हो सकते हैं। मुझे अपने भाई और उसके ऐसे दोस्तों पर नाज़ है। चलो अब मैं चलती हूॅ भाई। लेकिन एक विनती है तुमसे, विराज से ये मत कहना कि ये सब मैने कहा था तुमसे।"

"अरे मगर क्यों दीदी?" पवन चौंका था__"आप ऐसा क्यों चाहती हैं? अब तो आप उसे अपने गले से लगा लीजिए दीदी। क्यों अपनी बेरुखी और बेदर्दी से उसका दिल दुखाना चाहती हैं? या फिर मैं ये समझूॅ कि आपने वो सब जो कहा था वो सब एक झूठ था?"

"नहीं मेरे भाई।" रितू ने कहा___"मैं तो चाहती हूॅ कि अपने भाई को मैं अपने कलेजे से लगा लूॅ मगर मुझे ये भी पता है कि उसकी जान को खतरा भी है। अगर मेरे डैड को पता चल जाए कि विराज गाॅव आया हुआ है तो सोचो क्या होगा? इस लिए मैं सबसे पहले उसकी सेफ्टी का ख़याल रखूॅगी।"

"ओह दीदी सचमुच।" पवन ने कहा__"ये तो मैं भूल ही गया था। तो आप उसकी सेफ्टी के लिए क्या करेंगी दीदी?"
"वो तुम मुझ पर छोंड़ दो भाई।" रितू ने कहा___"मेरे रहते मेरे भाई को कोई छू भी नहीं सकेगा।"

रितू के चेहरे पर एकाएक ही कठोरता आ गई थी। पलक झपकते ही शेरनी की भाॅति ज़लज़ला नज़र आने लगा था उसके चेहरे पर। पवन सिंह एक बार को तो काॅप ही गया था उसे इस रूप में देख कर।

रितू के मन में यही सब फिल्म की तरह चल रहा था। उसकी जिप्सी ऑधी तूफान बनी हवेली की तरफ दौड़ी जा रही थी। उसे पता था कि उसका बाप विराज को खोजने के लिए अपने आदमियों को लगाया हुआ है। संभव है कि अजय सिंह ने अपने आदमियों को गाॅव हल्दीपुर और शहर गुनगुन में भी फैला रखा हो। रितू के मन में सिर्फ एक ही विचार था कि विराज को किसी भी हालत में अपने बाप और उसके आदमियों की नज़र में नहीं आने देना है। ये उसकी जिम्मेदारी थी कि विराज पर किसी तरह का कोई संकट न आ पाए। क्योंकि वास्तविकता तो यही थी न कि विराज को उसने ही पवन सिंह के द्वारा बुलवाया है।

रितू की जिप्सी हवेली के गेट से अंदर दाखिल होते हुए पोर्च में जाकर रुकी। जिप्सी से उतर कर वह अंदर की तरफ बढ़ गई।
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:46 PM

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