non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:40 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अब तक,,,,,,,,

"सबर कर बछुवा।" हरिया ने कहा___"गला फाड़ने से का होई? ऊ ता हिम्मत रखै से होई। अउर ई ता अबे शुरूआतै हुआ है। अबे ता मंजिल बहुत बाॅकी है बछुवा।"
"आआहहहहहह मममममम्मी रेरेएएएएएए।" हरिया ने ज़ोर का झटका दिया। सूरज की गाॅड को चीरता हुआ हरिया का लौड़ा लगभग आधा घुस गया था। सूरज के मुख से बड़ी भयंकर चीख निकली थी। उसकी ऑखों के सामने अॅधेरा छा गया। सूरज बेहोश हो चुका था। उसकी हालत देख कर बाकी सब के होश उड़ गए। सूरज के दोस्त थर थर काॅपने लगे। वो अनायास ही ज़ोर ज़ोर से पागलों की तरह रोने चिल्लाने लगे।

"अबे चुप करा मादरचोदो वरना ई लौड़ा इसकी गाॅड से निकाल के तुम्हरी गाॅड में घुसेड़ दूॅगा हम।" हरिया गुर्राया तो वो डर के मारे एक दम से चुप हो गए। उनके चुप हो जाने के बाद हरिया ने सूरज की गाॅड में थप्पड़ मारते हुए बोला___"का बे मादरचोद। ससुरे इतने से ही टाॅय बोल गया रे। अभी ता हम पूरा लौड़ा डाला भी नहीं हूॅ।"

हरिया सूरज की गाॅड में धक्के लगाना शुरू कर दिया। हर धक्के के साथ वह थोड़ा बहुत लौड़े को सूरज की गाॅड में घुसेड़ता ही रहा था। सूरज बेहोशी की हालत में भी कराह रहा था। हरिया एक बार तेज़े से धक्का लगाया तो एच ज़ोरदार चीख के साथ सूरज होश में आ गया। होश में आते ही वह बुरी तरह रोने बिलखने लगा। रहम की भीख माॅगने लगा वह। मगर हरिया को तो अब जैसे न रुकना था और नाही रुका वह। तहखाने में सूरज का रोना और चिल्लाना ज़ारी रहा।
_____________________________

अब आगे,,,,,,,,,

उधर मुम्बई में भी सुुुुबह हुई।
गौरी ने सुबह पाॅच बजे ही विराज को उठा दिया था। सुबह उठ कर उसने थोड़ी बहुत एक्सरसाइज की और फिर बाथरूम में फ्रेश होने के लिए चला गया। फ्रेश होने के बाद वह कमरे में आया तो देखा कि उसकी बहन निधि बेड पर बैठी हुई है।

"अरे तुझे स्कूल नहीं जाना क्या?" मैने तौलिये से अपने सिर के बालों को पोंछते हुए कहा।
"जाना है।" निधि ने गौर से मेरे शरीर को देखते हुए कहा___"मैं तो बस आपको बेस्ट ऑफ लक कहने आई थी।"

"अच्छा तो ये बात है।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"मेरी गुड़िया मेरी जान मुझे बेस्ट ऑफ लक कहने रूम में आई है?"
"हाॅ लेकिन अपने तरीके से।" निधि ने मुस्कुरा कर कहा।
"अपने तरीके से?" मैं उसकी बात से नासमझने वाले अंदाज़ से बोला___"किस तरीके की बात कर रही है तू?"

"वो मैं कर के बताऊॅगी भइया।" निधि ने कहा___"बस आपको अपनी दोनो ऑखें बंद करना पड़ेगा। और खबरदार ग़लती से भी अपनी ऑखें मत खोलियेगा। वरना मैं आपसे बात नहीं करूॅगी। हाॅ नहीं तो।"

"अरे ये क्या कह रही है गुड़िया?" मैं उसकी बात से हैरान हुआ___"आख़िर क्या चल रहा है तेरे मन में?"
"कुछ नहीं चल रहा भइया।" निधि एकाएक ही हड़बड़ा गई थी, बोली___"बस आप अपनी ऑखें बंद कीजिए न।"

मैं उसे ग़ौर से देखता रहा। उसके चेहरे पर इस वक्त संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी। खूबसूरती में वह बिलकुल मेरी माॅ की कार्बन काॅपी ही थी। हलाॅकि उसका चेहरा और उसका पूरा रंगरूप मेरी माॅ गौरी की तरह ही था। वो माॅ की हमशक्ल टाइप की थी।

"क्या हुआ भइया?" निधि कह उठी___"क्या सोचने लगे आप? बंद कीजिए न अपनी ऑखें।"
"अच्छा ठीक है बंद करता हूॅ।" मैने कहा__"पर कोई उटपटाॅग हरकत मत करना।"
"मैं ऐसा वैसा कुछ नहीं करूॅगी भइया।" निधि ने कहा___"और अगर कर भी दूॅ तो मेरी भूल समझ कर मुझे माफ़ कर देना। हाॅ नहीं तो।"

मैं उसकी नटखट बातों पर मुस्कुरा उठा और अपनी ऑखें बंद कर ली। कुछ पल बाद ही मुझे अपने होठों पर कोई बहुत ही कोमल चीज़ महसूस हुई। अभी मैं कुछ समझ भी न पाया था कि उस कोमल चीज़ ने मेरे होठों को जोर से दबोच कर दो सेकण्ड तक अपने अंदर रख कर उस पर कुछ किया उसके बाद छोंड़ दिया। मेरे दिमाग़ में विस्फोट सा हुआ। एकाएक ही मेरे दिमाग़ की बत्ती जली। मैने झट से अपनी ऑखें खोल दी। सामने देखा तो निधि भागते हुए कमरे के दरवाजे पर नज़र आई मुझे। दरवाजे के पास पहुॅच कर वह रुकी और फिर पलटी। उसके बाद मुस्कुराते हुए कहा__"बेस्ट ऑफ लक भइया।" इतना कह कर वह दरवाछे के बाहर की तरफ हवा की तरह निकल गई। जबकि मैं बुत बना खड़ा रह गया।

मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरी बहन ने इन कुछ पलों के भीतर मेरे साथ क्या कर दिया था। वह मेरे होठों को बड़ी चतुराई से चूम कर मुझे बेस्ट ऑफ लक कहा और भाग भी गई। मुझे उससे इस सबकी उम्मीद नहीं थी। फिर मुझे ध्यान आया कि वो मुझसे प्यार करती है जिसका उसने इज़हार भी किया था।

मैं काफी देर तक बुत बना खड़ा रहा। मेरी तंद्रा तब टूटी जब माॅ कमरे में आकर बोली___"तू अभी तक तैयार नहीं हुआ काॅलेज जाने के लिए? चल तैयार होकर आ जल्दी। मैने नास्ता तैयार करके लगा दिया है।"

मैं माॅ की आवाज़ सुन कर चौंक पड़ा था। उसके बाद मैंने माॅ से कहा कि आप चलिए मैं आता हूॅ। मेरे दिमाग़ में अभी तक यही चल रहा था कि गुड़िया ने ऐसा क्यों किया? मुझे अपने होठों पर अभी भी उसके नाज़ुक होठों का एहसास हो रहा था। मैने अपने होठों पर जीभ फिराई तो मुझे मीठा सा लगा। उफ्फ ये क्या है? मेरी गुड़िया के मुख और होठों का लार इतना मीठा था। मुझे अपने अंदर बड़ा अजीब सा रोमाॅच होता महसूस हुआ। मेरा रोम रोम गनगना उठा था।

ख़ैर मैं काॅलेज की यूनीफार्म पहन कर कमरे से बाहर आया और फिर नीचे डायनिंग हाल की तरफ बढ़ गया। डायनिंग टेबल पर इस वक्त सब लोग बैठे हुए थे। जगदीश अंकल, अभय चाचा, गुड़िया और माॅ। मैं भी एक कुर्सी खींचकर बैठ गया। मेरी नज़र निधि पर पड़ी तो उसने जल्दी से अपना चेहरा झुका लिया। उसके गोरे गोरे और फूले हुए गाल कश्मीरी सेब की तरह सुर्ख हो गए थे लाज और शर्म की वजह से।

"ये बहुत अच्छा किया राज जो तुमने अपनी पढ़ाई जारी कर दी।" सहसा सामने कुर्सी पर बैठे अभय चाचा ने कहा___"मुझे खुशी है कि इतना कुछ होने के बाद भी तुम अपने रास्ते से नहीं भटके। मुझे तुम पर फक्र है राज और मेरा आशीर्वाद है कि तुम हमेशा कामयाबी और सफलता के नये और ऊॅची बुलंदियों को प्राप्त करो।"

"शुक्रिया चाचा जी।" मैने कहा___"भले ही चाहे जो हुआ हो लेकिन मैं जानता था कि आपके दिल में हमारे लिए इतनी भी नफ़रत नहीं होगी जितनी कि बड़े पापा और बड़ी माॅ के दिलों में है हमारे लिए।"

"समय बहुत बलवान होता है राज।" अभय चाचा ने कहा___"और बहुत बेरहम भी। वो हमसे वो सब भी करवा लेता है जिसे करने की हम कभी कल्पना भी नहीं करते। पर कोई बात नहीं बेटे, इंसान वही श्रेष्ठ और महान होता है जो हर तरह के कस्टों को पार करके आगे बढ़ता है।"

"राज बेटा मैने तुम्हारे लिए काॅलेज जाने के लिए एक नई और शानदार कार मगवा दी है जो कि बाहर ही खड़ी है।" जगदीश अंकल ने मुस्कुराते हुए कहा___"हम चाहते हैं कि तुम अपने नये सफर की शुरूआत उसी से करो।"

"इसकी क्या ज़रूरत थी अंकल?" मैने कहा___"मैं वहाॅ पर पढ़ने जा रहा हूॅ ना कि किसी को अपनी अमीरी दिखाने। माफ़ करना अंकल लेकिन मैं चाहता हूॅ कि मैं भी उसी तरह कालेज जाऊॅ जैसे सभी आम लड़के जाते हैं। बाॅकि ऑफिस के कामों के लिए मैं ये सब यूज करूॅगा। मुझे खुशी है कि आपने मेरे लिए एक नई कार लाकर दी।"

"ठीक है बेटे जैसी तुम्हारी इच्छा।" जगदीश अंकल ने कहा___"मुझे ये जान कर अच्छा लगा कि तुम ऐसी सोच रखते हो।"
"वैसे राज किस काॅलेज में एडमीशन लिया है तुमने?" अभय चाचा ने कुछ सोचते हुए पूछा।
"..............में चाचा जी।" मैने बताया।
"अरे इस काॅलेज में तो नीलम ने भी एडमीशन लिया हुआ है।" अभय चाचा चौंके थे___"और निश्चय ही तुम्हारी मुलाक़ात उससे होगी ही वहाॅ। वो जब तुम्हें वहाॅ पर देखेगी तो जरूर बड़े भइया को बताएगी कि तुम भी उसी काॅलेज में पढ़ रहे हो जहाॅ पर वो पढ़ रही है। उसके बाद तुम पर ख़तरा भी हो सकता है बेटे। इस लिए ज़रा सम्हल कर रहना।"

"चिन्ता मत कीजिए चाचा जी।" मैने अजीब भाव से कहा___"मैं तो चाहता ही हूॅ कि अब धीरे धीरे बड़े पापा को ये पता लगे कि मैं किस जगह पर हूॅ। उन्होने तो मेरी तलाश में जाने कब से अपने आदमियों को लगाया हुआ है। उनके आदमी आज महीने भर से मेरी खोज में मुम्बई की खाक़ छान रहे हैं।"

"तुम्हें ये सब कैसे पता?" अभय चाचा बुरी तरह चौंके थे।
"मैं उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखता हूॅ चाचा जी।" मैने कहा___"आप अभी कुछ नहीं जानते हैं कि मैंने यहाॅ पर बैठे बैठे ही उनकी कैसी कैसी खातिरदारी की है।"

"क्या मतलब?" अभय चाचा के माथे पर बल पड़ता चला गया, बोले___"किस खातिरदारी की बात कर रहे हो तुम?"
"ये सब आपको जगदीश अंकल बता देंगे चाचा जी।" मैने कहा___"फिलहाल तो मैं अभी काॅलेज जा रहा हूॅ। आज मेरा पहला दिन है। इस लिए मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने इस सफर पर कामयाब होऊॅ।"

"मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ ही रहेगा राज।" अभय चाचा ने कहा।
उसके बाद हम सबने नास्ता किया और फिर नास्ता करके मैंने अपना बैग लिया। सबसे आशीर्वाद लेकर मैं निधि को लेकर बाहर आ गया।

मैने गैराज से अपनी बाइक निकाली और निधि को पीछे बैठा कर लान से होते हुए मेन गेट से बाहर निकल गया। निधि मेरे साथ इस लिए थी क्योंकि उसे भी स्कूल जाना था। जोकि मेरे काॅलेज के रास्ते पर ही था। निधि मेरे पीछे चुपचाप बैठी हुई थी। वो कुछ बोल नहीं रही थी। ये बड़ी आश्चर्य की बात थी वरना वह चुप रहने वालों में से न थी।

"तो मैडम आज चुप चुप सी क्यों है भई?" मैने बाइक चलाते हुए कहा___"वैसे आज तो मैडम ने ग़जब ही कर दिया है।"
"आप किससे बात कर रहे हैं भइया?" निधि ने कहा।
"किससे का क्या मतलब है मैडम?" मैने कहा___"आप ही से बात कर रहा हूॅ।"
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