non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:38 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
वर्तमान अब आगे________

रितू विधी से मिलने के बाद शाम को अपने घर हवेली पहुॅची। विधी की कहानी और उसकी बातों ने उसे सच में अंदर तक हिला दिया था। वह प्यार मोहब्बत जैसी चीज़ों को बकवास ही मानती थी। किन्तु विधी से मिलने के बाद उसे इस प्यार मोहब्बत की अहमियत समझ आई थी। उसे समझ आया कि कैसे लोग किसी के प्यार में इस क़दर पागल से हो जाते हैं कि अपने महबूब की खुशी के लिए वो कोई भी काम किस हद से बाहर तक कर सकते हैं। विधी से मिलकर और उसके प्यार की सच्चाई व गहराई को जानकर उसे एहसास हुआ कि आज के युग में भी अभी ऐसे लोग हैं जो प्यार के लिए क्या नहीं कर डालते?

विधी की हालत और उसके प्यार की दास्तां ने रितू के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया था। एक तेज़ तर्रार लड़की जो खुद को किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं समझती थी आज विधी की असलियत ने उसके दिल को छू लिया था। उसके हृदय में विधी के प्रति पीड़ा जाग गई थी और जिस पीड़ा ने उसकी ऑखों से ऑसू छलका दिये थे।

वह आज तक नहीं समझ पाई और ना ही कभी समझने की कोशिश की कि क्यों वह अपने चाचा चाची के लड़के विराज से नफ़रत करती थी? क्यों उसने कभी उससे बात करना ज़रूरी नहीं समझा? क्यों उसने हमेशा विराज को अपना भाई नहीं समझा? आख़िर क्या अपराध किया था उसने उसके साथ? जहाॅ तक उसे याद था जब कभी भी विराज उससे बात किया था तो बड़ी इज्ज़त से किया था। हमेशा उसे दीदी और आप कह कर संबोधित करता था।

विधी से मिलने के बाद रितू हवेली में जाकर सीधा अपने कमरे में बेड पर लेट गई थी। उसकी माॅ ने तथा उसकी छोटी बुआ नैना ने उससे बात करना चाहा था मगर उसने सबको ये कह कर अपने पास से वापस लौटा दिया था कि वह कुछ देर अकेले रहना चाहती है।

बेड पर पड़ी हुई रितू ऊपर छत के कुंडे पर लगे हुए पंखे को घूर रही थी अपलक। उसकी ऑखों के सामने विधी का वो रोता बिलखता हुआ चेहरा और उसकी वो करुण बातें घूम रही थी।

"मेरी आपसे एक विनती है दीदी।" फिर विधी ने अलग होकर तथा ऑसू भरी ऑखों से कहा।
"विनती क्यों करती है पागल?" रितू का गला भर आया___"तू बस बोल। क्या कहना है तुझे?"

"मु मुझे एक बार।" विधी की रुलाई फूट गई, लड़खड़ाती आवाज़ में कहा___"मुझे बस ए एक बार वि..विरा...ज से मिलवा दीजिए। मुझे मेरे महबूब से मिलवा दीजिए दीदी। मैं उसकी गुनहगार हूॅ। मुझे उससे अपने किये की माफ़ी माॅगनी है। मैं उसे बताना चाहती हूॅ कि मैं बेवफा नहीं हूॅ। मैं तो आज भी उससे टूट टूट कर प्यार करती हूॅ। उसे बुलवा दीजिए दीदी। मेरी ख़्वाहिश है कि मेरा अगर दम निकले तो उसकी ही बाहों में निकले। मेरे महबूब की बाॅहों में दीदी। आप बुलवाएॅगी न दीदी? मुझे एक बार देखना है उसे। अपनी ऑखों में उसकी तस्वीर बसा कर मरना चाहती हूॅ मैं। अपने महबूब की सुंदर व मासूम सी तस्वीर।"

"बस कर रे।" रितू का हृदय हाहाकार कर उठा___"मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं तेरी ऐसी करुण बातें सुन सकूॅ। मैं तुझसे वादा करती हूॅ कि तेरे महबूब को मैं तेरे पास ज़रूर लाऊॅगी। मैं धरती आसमान एक कर दूॅगी विधि और उसे ढूॅढ़ कर तेरे सामने हाज़िर कर दूॅगी। मैं अभी से उसका पता लगाती हूॅ। तू बस मेरे आने का इंतज़ार करना।"

ये सब बातें रितू की ऑखों के सामने मानो किसी चलचित्र की तरह बार बार चलने लगती थी। जितनी बार ये दृष्य उसकी ऑखों के सामने से गुज़रता उतनी बार रितू के अंदर एक हूक सी उठती और उसके समूचे अस्तित्व को हिला कर रख देती।

"क्या सचमुच प्यार ऐसा होता है विधी?" रितू ने सहसा करवॅट बदल कर मन ही मन में कहा___"क्या सचमुच प्यार में लोग अपने महबूब की खुशी के लिए इस हद से बाहर तक गुज़र जाते हैं? तुम्हें देख कर और तुम्हारी बातें सुन कर तो ऐसा ही लगता है विधी। तुम सच में बहुत महान हो विधी। मेरे उस भाई से तुमने इस हद तक प्यार किया जिस भाई से मैं बात तक करना अपनी शान के खिलाफ़ समझती थी। और एक वो था कि हमेशा मुझे इज्ज़त देता था, मुझे दीदी कहते हुए उसका मुह नहीं थकता था। जब भी वो मुझसे बात करने की कोशिश करता तो हर बार मैं उसे दुत्कार देती थी। मुझे याद है विधी, जब मैं उसे दुत्कार कर भगा देती थी तब उसकी ऑखों में ऑसू होते थे। जिन्हें वह ऑखों से छलकते नहीं देता था बल्कि उन्हें ऑखों में ही जज़्ब कर लेता था। मैने तेरे विराज को बहुत दुख दिये हैं विधी। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।"

एकाएक ही रितू की ऑखों से ऑसू छलक कर उसके कपोलों को भिगोने लगे। सहसा जैसे उसे कुछ याद आया। वह तुरंत ही बेड से उठी और तेज़ी से बगल में दीवार से सटी हुई आलमारी के पास पहुॅची। उसने आलमारी का हैण्डल घुमाया लेकिन वो न घूमा। मतलब साफ था कि आलमारी लाॅक थी।

रितू दूसरी साइड रखे एक टेबल की तरफ बढ़ी और उसकी कबड को खोल कर उसमें से एक चाभी का गुच्छा निकाला। गुच्छा लेकर वह तुरंत आलमारी के पास वापस पहुॅची और गुच्छे से एक चाभी को चुन कर उसने आलमारी के की-होल पर डाल कर घुमाया। आलमारी एकदम से अनलाॅक हो गई। रितू ने हैण्डल पकड़ कर घुमाया और फिर आलमारी के दोनो फटकों को दोनो साइड खोल दिया।

आलमारी के अंदर कई सारे पार्ट्स थे जिनमें कुछ पर कपड़े व कुछ पर कुछ किताबें व फाइलें रखी हुई थी। किन्तु रितू की नज़र उन सब पर नहीं बल्कि आलमारी के अंदर मौजूद एक और लाॅकर पर थी। उसने एक दूसरी चाभी से उस लाकर को खोला। उसके अंदर भी कुछ काग़जात जैसे ही थे। एक प्लास्टिक का डिब्बा था। रितू ने उन काग़जातों को एक ही बार में सारा का सारा बाहर निकाल लिया।

उन सबको निकाल कर वह पलटी और बेड पर उन सभी काग़जातों को फैला दिया। उनमें कुछ रसीदें थी, कुछ एग्रीमेंट जैसे काग़जात थे और कुछ लिफाफे थे। रितू ने झट से एक लिफाफा उठा लिया। उसे खोल कर देखा तो उसमें कुछ फोटोग्राफ्स थे। रितू ने लिफाफे से सारे फोटोग्राफ्स निकाल लिये और फिर एक एक कर देखने लगी। पाॅच छः फोटोग्राफ्स को देखने के बाद रितू एक दम से रुक गई। एक फोटोग्राफ्स पर उसकी नज़र जैसे गड़ सी गई थी। कुछ देर देखने के बाद उसने बाॅकी सारे फोटोग्राफ्स को बेड पर गिरा दिया और बस एक फोटोग्राफ्स को लिए वह बेड पर एक साइड बैठ गई।

फोटोग्राफ्स में उसके माॅम डैड, नीलम, शिवा एवं वह खुद भी थी। किन्तु रितू की नज़र उन सबके पीछे कुछ दूरी पर खड़े विराज पर टिकी हुई थी। ये फोटोग्राफ्स कुछ साल पहले का था। हवेली में कोई कार्यक्रम था तब ही शहर से किसी फोटोग्राफर को बुलवाया गया था और ये तस्वीरें खींची गई थी। अन्य तस्वीरों में बाॅकी सबकी तस्वीरें थी लेकिन विजय सिंह गौरी व उनके बच्चों की कोई तस्वीरें नहीं थी। इस तस्वीर में भी ग़लती से ही विराज की फोटो आ गई थी। रितू को याद आया कि शिवा बार बार विराज से इस बात पर लड़ पड़ता था कि वो उसके साथ फोटो न खिंचवाए। मगर उत्सुकतावश वो आ ही जाता था।
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