non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:35 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
हाँ ये हम जानते हैं।" कमिश्नर ने कहा__"पर तुम करना क्या चाहती हो ये हम जानना चाहते हैं?"
"कल आपसे मिल कर सारी बातें बताऊॅगी सर।" रितू ने कहा___"इस वक्त मैं आपसे बस ये फेवर चाहती हूॅ कि दिवाकर चौधरी के बेटे और उसके दोस्तों के बारे में अगर आपके पास कोई बात आए तो आप यही कहिएगा कि पुलिस का इस बात से कोई संबंध नहीं है।"

"क्या मतलब??" कमिश्नर बुरी तरह चौंका था__"आख़िर तुम क्या कर रही हो ऑफिसर? उस समय भी तुमने हमसे इमेडिएटली सर्च वारंट के लिए कहा था और हमने उसका तुरंत इंतजाम भी किया। लेकिन अब तुम ये सब बोल रही हो आख़िर हुआ क्या है?"

"सर मैं आपको सारी बातें मिल कर ही बताऊॅगी।" रितूने कहा___"प्लीज़ सर ट्राई टू अंडरस्टैण्ड।"
"ओके फाइन।" कमिश्नर ने कहा__"हम कल तुम्हारा वेट करेंगे आफिसर।"
"जय हिन्द सर।" रितू ने कहा और रिसीवर वापस केड्रिल पर रख दिया।

रितू ने फिर से आॅखें बंद कर ली। तभी कमरे में काकी दाखिल हुई। उसके हाथ में एक ट्रे था जिसमें एक बड़ा सा कप रखा था। आहट सुन कर रितू ने ऑखें खोल कर देखा। काकी को देखते ही वह बड़ी सावधानी से उठ कर बेड पर बैठ गई। उसके बैठते ही काकी ने रितू को काफी का कप पकड़ाया।

काफी पीने के बाद रितू को थोड़ा बेहतर फील हुआ और वह बेड से उतर आई। आलमारी से उसने एक ब्लू कलर का जीन्स का पैन्ट और एक रेड कलर की टी-शर्ट निकाल कर उसे पहना तथा ऊपर से एक लेदर की जाॅकेट पहन कर उसने आईने में खुद को देखा। फिर पुलिस की वर्दी वाले पैन्ट से होलेस्टर सहित सर्विस रिवाल्वर निकाल कर उसे जीन्स के बेल्ट पर फॅसाया तथा आलमारी से एक रेड एण्ड ब्लैक मिक्स गाॅगल्स निकाल कर उसे ऑखों पर लगाया और फिर बाहर निकल गई।

बाहर उसे काकी दिखी। उसने काकी से कहा कि वह जा रही है। काकी उसे यूॅ देख कर हैरान रह गई। उसे समझ में न आया कि ये लड़की तो अभी थोड़ी देर पहले गंभीर हालत में थी और अब एकदम से टीम टाम होकर चल भी दी।

मकान के बाहर आकर रितू पुलिस जिप्सी की तरफ बढ़ी। वह ये देख कर खुश हो गई कि काका ने जिप्सी को अच्छे से धोकर साफ सुथरा कर दिया था। रितू को काका की समझदारी पर कायल होना पड़ा। जिप्सी को स्टार्ट कर रितू मेन गेट की तरफ बढ़ चली।

"काका उन लोगों का ध्यान रखना।" रितू ने गेट के पास खड़े काका और शंभू काका दोनो की तरफ देख कर कहा___"आज रात का खाना उन्हें नहीं देना। कल मैं दोपहर को आऊॅगी।"

"ठीक है बिटिया।" काका ने कहा__"तुम बिलकुल भी चिन्ता न करो। वो अब यहाॅ से कहीं नहीं जा पाएॅगे।"
"चलो फिर कल मिलती हूॅ आपसे।" रितू ने कहने के साथ ही जिप्सी को गेट के बाहर की तरफ निकाल दिया और मेन रोड पर आते ही जिप्सी हवा से बातें करने लगी।
_____________________
फ्लैशबैक अब आगे_______

कमरे से प्रतिमा के जाने के बाद विजय सिंह वापस अपने बिस्तर पर लेट गया। उसके ज़हन में यही ख़याल बार बार उभर रहा था कि वह अपनी भाभी का क्या करे? वह स्पष्टरूप से उससे कह चुकी थी कि वो उससे प्रेम करती है और वह अपने दिल में उसके लिए भी थोड़ी सी जगह दे। भला ऐसा कैसे हो सकता था? विजय सिंह इस बारे में सोचना भी ग़लत व पाप समझता था। उधर प्रतिमा उसकी कोई बात सुनने या मानने को तैयार ही नहीं थी। वह प्रतिमा से बहुत ज्यादा परेशान हो गया था। उसे डर था कि कहीं किसी दिन ये सब बातें उसके माॅ बाबूजी को न पता चल जाएॅ वरना अनर्थ हो जाएगा। आज वो जो मुझे सबसे अच्छा और अपना सबसे लायक बेटा समझते हैं , तो इस सबका पता चलते ही मेरे बारे में उनकी सोच बदल जाएगी। वो यही समझेंगे कि वासना और हवस के लिए मैने ही अपनी माॅ समान भाभी को बरगलाया है या फिर ज़बरदस्ती की है उनसे। कोई मेरी बात का यकीन नहीं करेगा। बड़े भइया को तो और भी मौका मिल जाएगा मेरे खिलाफ ज़हर उगलने का।

विजय सिंह ये सब सोच सोच कर बुरी तरह परेशान व दुखी भी हो रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह अब किसी भी सूरत में प्रतिमा के सामने नहीं आना चाहता था। उसने तय कर लिया था कि अब वह देर रात में ही खेतों से हवेली आया करेगा और अपने कमरे में ही खाना मॅगवा कर खाया करेगा।

अगले दिन से विजय की दिनचर्या यही हो गई। वह सुबह जल्दी हवेली से निकल जाता, दोपहर में गौरी उसके लिए खाना ले जाती। गौरी उसके साथ खेतों पर दिन ढले तक रहती फिर वह हवेली आ जाती जबकि विजय सिंह देर रात को ही हवेली लौटत। गौरी कई दिन से गौर कर रही थी कि विजय सिंह कुछ दिनों से कुछ परेशान सा रहने लगा है। उसने उसकी परेशानी का पूछा भी किन्तु विजय सिंह हर बार इस बात को टाल जाता। भला वह क्या बताता उसे कि वह किस वजह से परेशान रहता है आजकल?

विजय सिंह की इस दिनचर्या से प्रतिमा को अब उसके पास जाने की तो बात ही दूर बल्कि उसे देख पाने तक को नहीं मिलता था। इस सबसे प्रतिमा बेहद परेशान व नाखुश हो गई थी। अजय सिंह भी परेशान था इस सबसे। उसकी भी कोई दाल नहीं गल रही थी। गौरी के चलते प्रतिमा को खेतों पर जाने का मौका ही नहीं मिलता था। ऐसा नहीं था कि वह जा नहीं सकती थी लेकिन वह चाहती थी कि वह जब भी खेतों पर जाए तो खेतों पर गौरी न हो बल्कि वह और विजय सिंह बस ही हों वहाॅ। ताकि वह बड़े आराम से विजय पर प्रेम बाॅण चलाए।

एक दिन प्रतिमा को मौका मिल ही गया। दरअसल सुबह सुबह जब गौरी अपने कमरे के बाथरूम में नहा रही तो फर्स पर उसका पैर फिसल गया और वह बड़ा ज़ोर से गिरी थी। जिससे उसकी कमर में असह पीड़ा होने लगी थी। इस सबका परिणाम ये हुआ कि गौरी खेतों पर विजय के लिए खाना लेकर न जा सकी बल्कि प्रतिमा को जाने का सुनहरा मौका मिल गया। प्रतिमा पहले की भाॅति ही पतली साड़ी और बिना ब्रा का ब्लाउज पहना और विजय के लिए टिफिन लेकर खेतों पर चली गई।

प्रतिमा को पता था कि ये मौका उसे बड़े संजोग से मिला है इस लिए वह इस मौके को खोना नहीं चाहती थी। उसने सोच लिया था कि आज वह विजय से अपने प्रेम के लिए कुछ न कुछ तो करेगी ही। उसके पास समय भी नहीं बचा था। बच्चों के स्कूल की छुट्टियाॅ दो दिन बाद खत्म हो रही थी।

नियति को जो मंजूर होता है वही होता है। ये संजोग था कि गौरी का पैर फिसला और उसने बिस्तर पकड़ लिया जिसके कारण प्रतिमा को खेतों में जाने का अवसर मिल गया और एक ये भी संजोग ही था कि आज खेतों पर फिर कोई मजदूर नहीं था। सारी रात जुती हुई ज़मीन पर पानी लगाया और लगवाया था उसने। सुबह नौ बजे सारे मजदूर गए थे। आज के लिए सारा काम हो गया था।

प्रतिमा जब खेतों पर पहुॅची तो हर तरफ सन्नाटा फैला हुआ पाया। आस पास कोई न दिखा उसे। वह मकान के अंदर नहीं गई बल्कि आस पास घूम घूम कर देखा उसने हर तरफ। न कोई मजदूर और ना ही विजय सिंह उसे कहीं नज़र न आए। प्रतिमा को खुशी हुई कि खेतों पर कोई मजदूर नहीं है और अब वह बेफिक्र होकर कुछ भी कर सकती है।

मकान के अंदर जाकर जब वह कमरे में पहुॅची तो विजय को बिस्तर पर सोया हुआ पाया। उसके मुख से हल्के खर्राटों की आवाज़ भी आ रही थी। इस वक्त उसके शरीर पर नीचे एक सफेद धोती थी और ऊपर एक बनियान। वह पक्का किसान था। पढ़ाई छोंड़ने के बाद उसने खेतों पर ही अपना सारा समय गुज़ारा था। ये उसकी कर्मभूमि थी। यहाॅ पर उसने खून पसीना बहाया था। जिसका परिणाम ये था कि उसका शरीर पत्थर की तरह शख्त था। छः फिट लम्बा था वह तथा हट्टा कट्टा शरीर था। किन्तु चेहरे पर हमेशा सादगी विद्यमान रहती थी उसके। उसका ब्यक्तित्व ऐसा था कि गाॅव का हर कोई उसे प्रेम व सम्मान देता था।

प्रतिमा सम्मोहित सी देखे जा रही थी उसे। फिर सहसा जैसे उसे होश आया और एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। जाने क्या चलने लगा था उसके मन में जिसे सोच कर वह मस्कुराई। उसने टिफिन को बड़ी सावधानी से वहीं पर रखे एक बेन्च पर रख दिया और सावधानी से विजय की चारपाई के पास पहुॅची।

विजय चारपाई पर चूॅकि गहरी नींद में सोया हुआ था इस लिए उसे ये पता नहीं चला कि उसके कमरे में कौन आया है? प्रतिमा उसके हट्टे कट्टे शरीर को इतने करीब से देख कर आहें भरने लगी। उसने नज़र भर कर विजय को ऊपर से नीचे तक देखा। उसके अंदर काम वासना की अगन सुलग उठी। कुछ देर यूॅ ही ऑखों में वासना के लाल लाल डोरे लिए वह उसे देखती रही फिर सहसा वह वहीं फर्स पर घुटनों के बल बैठती चली गई। उसके हृदय की गति अनायास ही बढ़ गई थी। उसने विजय के चेहरे पर गौर से देखा। विजय किसी कुम्भकर्ण की तरह सो रहा था। प्रतिमा को जब यकीन हो गया कि विजय किसी हल्की आहट पर इतना जल्दी जगने वाला नहीं है तो उसने उसके चेहरे से नज़र हटा कर विजय की धोती यानी लुंगी के उस हिस्से पर नज़र डाली जहाॅ पर विजय का लिंग उसकी लुंगी के अंदर छिपा था। लिंग का उभार लुंगी पर भी स्पष्ट नज़र आ रहा था।

प्रतिमा ने धड़कते दिल के साथ अपने हाॅथों को बढ़ा कर विजय की लुंगी को उसके छोरों से पकड़ कर आहिस्ता से इधर और उधर किया। जिससे विजय के नीचे वाला हिस्सा नग्न हो गया। लुंगी के अंदर उसने कुछ नहीं पहन रखा था। प्रतिमा ने देखा गहरी नींद में उसका घोंड़े जैसा लंड भी गहरी नींद में सोया पड़ा था। लेकिन उस हालत में भी वह लम्बा चौड़ा नज़र आ रहा था। उसका लंड काला या साॅवला बिलकुल नहीं था बल्कि गोरा था बिलकुल अंग्रेजों के लंड जैसा गोरा। उसे देख कर प्रतिमा के मुॅह में पानी आ गया था। उसने बड़ी सावधानी से उसे अपने दाहिने हाॅथ से पकड़ा। उसको इधर उधर से अच्छी तरह देखा। वो बिलकुल किसी मासूम से छोटे बच्चे जैसा सुंदर और प्यारा लगा उसे। उसने उसे मुट्ठी में पकड़ कर ऊपर नीचे किया तो उसका बड़ा सा सुपाड़ा जो हल्का सिंदूरी रंग का था चमकने लगा और साथ ही उसमें कुछ हलचल सी महसूस हुई उसे। उसने ये महसूस करते ही नज़र ऊपर की तरफ करके गहरी नींद में सोये पड़े विजय की तरफ देखा। वो पहले की तरह ही गहरी नींद में सोया हुआ लगा। प्रतिमा ने चैन की साँस ली और फिर से अपनी नज़रें उसके लंड पर केंद्रित कर दी। उसके हाॅथ के स्पर्श से तथा लंड को मुट्ठी में लिए ऊपर नीचे करने से लंड का आकार धीरे धीरे बढ़ने लगा था। ये देख कर प्रतिमा को अजीब सा नशा भी चढ़ता जा रहा था उसकी साॅसें तेज़ होने लगी थी। उसने देखा कि कुछ ही पलों में विजय का लंड किसी घोड़े के लंड जैसा बड़ा होकर हिनहिनाने लगा था। प्रतिमा को लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि विजय जाग रहा हो और ये देखने की कोशिश कर रहा हो कि उसके साथ आगे क्या क्या होता है? मगर उसे ये भी पता था कि अगर विजय जाग रहा होता तो इतना कुछ होने ही न पाता क्योंकि वह उच्च विचारों तथा मान मर्यादा का पालन करने वाला इंसान था। वो कभी किसी को ग़लत नज़र से नहीं देखता था, ऐसा सोचना भी वो पाप समझता था। उसके बारे में वो जान चुका था कि वह क्या चाहती है उससे इस लिए वो हवेली में अब कम ही रहता था। दिन भर खेत में ही मजदूरों के साथ वक्त गुज़ार देता था और देर रात हवेली में आता तथा खाना पीना खा कर अपने कमरे में गौरी के साथ सो जाता था। वह उससे दूर ही रहता था। इस लिए ये सोचना ही ग़लत था कि इस वक्त वह जाग रहा होगा। प्रतिमा ने देखा कि उसका लंड उसकी मुट्ठी में नहीं आ रहा था तथा गरम लोहे जैसा प्रतीत हो रहा था। अब तक प्रतिमा की हालत उसे देख कर खराब हो चुकी थी। उसे लग रहा था कि जल्दी से उछल कर इसको अपनी चूत के अंदर पूरा का पूरा घुसेड़ ले। किन्तु जल्दबाजी में सारा खेल बिगड़ जाता इस लिए अपने पर नियंत्रण रखा उसने और उसके सुंदर मगर बिकराल लंड को मुट्ठी में लिए आहिस्ता आहिस्ता सहलाती रही।
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:35 PM

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