non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:35 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
गेट से लेकर फार्महाउस की इमारत के मुख्य द्वार तक लगभग आठ फुट चौड़ी सफेद मारबल की सड़क बनी हुई थी तथा इमारत के पास से ही लगभग बीस फुट की ही चौड़ाई पर भी इमारत के चारो तरफ मारबल लगा हुआ था। बाॅकी हर जगह लान में हरी घास, पेड़ पौधे व फूलों की क्यारियाॅ थी।

मुख्य द्वार के बगल से जो कि पोर्च का ही एक हिस्सा था वहाॅ पर दो कारें खड़ी थी इस वक्त। एक ब्लैक कलर की इनोवा थी तथा दूसरी स्विफ्ट डिजायर थी। मुख्य द्वार बंद था। रितू को कहीं पर बेल लगी हुई न दिखी। इस लिए उसने दरवाजे पर हाथ से ही दस्तक दी। किन्तु अंदर से कोई दरवाजा खोलने नहीं आया। रितू ने कई बार दस्तक दी। परंतु परिणाम वही। ऐसा तो हो ही नहीं सकता था कि अंदर कोई है ही नहीं क्योंकि बाहर खड़ी दो कारें इस बात का सबूत थी कि इनसे कोई आया है जो इस वक्त इमारत के अंदर है।

जब रितू की दस्तक का कोई पराणाम सामने नहीं आया तो उसने इमारत से थोड़ा दूर आकर इमारत की तरफ ध्यान से देखा। इमारत दो मंजिला थी। मुख्य द्वार के कुछ ही फासले पर दोनो साइड काच की बड़ी सी किन्तु ब्लैक कलर की खिड़कियाॅ थी। जिनके ऊपर साइड बरसात के मौसम में पानी की बौछार से बचने के लिए रैक बनाया गया था। मुख्य द्वार पर एक लम्बा चौड़ा पोर्च था जो दोनो तरफ की उन कान की खिड़कियों तक था। पोर्च के ऊपर का भाग खाली था उसके बाद स्टील की रेलिंग लगी हुई थी।

अभी रितू ये सब देख ही रही थी कि मुख्य द्वार खुलने की आहट हुई। रितू ने बड़ी तेज़ी से चारो हवलदारों को इमारत के बगल साईड की दीवार के पीछे छुप जाने का इशारा किया जबकि खुद मुख्य द्वार के पास पहुॅच गई।

तभी दरवाजा खुला और सबसे पहले रोहित मेहरा बाहर निकला। उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे, वह पीछे की तरफ ही देख कर हॅसते हुए बाहर आ रहा था। उसके पीछे अलोक वर्मा व किशन श्रीवास्तव था और अंत में सूरज चौधरी था। इसका बाप दिवाकर चौधरी शहर का एम एल ए था।

"भाई तुम सब यहीं रुको मैं अपनी वाली उस राॅड को भी लेकर आता हूॅ।" रोहित मेहरा ने कहा___"साली का फोन स्विच ऑफ बता रहा है। अब तो उसे लेने ही जाना पड़ेगा। आज तो इसकी अच्छे से बजाएॅगे हम सब।"

"ठीक है जल्दी आना।" अलोक ने कहा___"तब तक हम इनके होश में लाने का प्रयास करते हैं। और हाॅ सुन........।" आगे बोलते बोलते वह रुक गया क्योंकि दरवाजे के पार खड़ी पुलिस की वर्दी पहने रितू पर उसकी नज़र पड़ गई।

"क्या हुआ बे बोलते बोलते रुक क्यों गया तू?" रोहित मेहरा हॅसा___"कोई भूत देख लिया क्या?"
"ऐसा ही समझ ले।" अलोक ने ऑखों से बाहर की तरफ इशारा किया।

उसके इशारे से सबने देखा बाहर की तरफ और पुलिस इंस्पेक्टर रितू पर नज़र पड़ते ही उन सबकी नानी मर गई। शराब और शबाब का सारा नशा हिरन हो गया उनका। किन्तु ये कुछ देर के लिए ही था अगले पल वो सब मुस्कुराने लगे।

"ले भाई तू अपनी वाली को लेने जा रहा था यहाॅ तो एक ज़बरदस्त माल खुद ही पुलिस की वर्दी में चल कर आ गया।" किशन ने हॅसते हुए कहा___"अब तुझे कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है। हम सब इसके साथ ही अब मज़ा करेंगे।"

"सही कह रहा है यार।" रोहित मेहरा ने रितू को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा__"क्या फाड़ू फिगर है इसका। कसम से मज़ा आ जाएगा आज तो।"
"तो फिर देर किस बात की भाई?" अलोक ने कहा___"उठा ले चल इसे अंदर।"

"ओये एक मिनट।" किशन ने कहा___"मत भूलो कि ये पुलिस वाली है। इस वक्त अकेली दिख रही है मगर संभव है इसके साथ कोई और भी पुलिस वाले हों। ऐसे में बड़ी प्रोब्लेम हो जाएगी।"

"अबे साले तू कब अपने वकील बाप की तरह सोचना बंद करेगा?" अलोक घुड़का___"ये हमारा बाल भी बाॅका नहीं कर सकती। अब चल उठा इसे और ले चल अंदर।"

रितू चुपचाप खड़ी इन सबकी बातें सुन रही थी। ये अलग बात थी कि अंदर ही अंदर वह गुस्से भभक रही थी। इधर सबसे आगे रोहित मेहरा ही था सो वही बढ़ा पहले। उसके बाद सभी दरवाजे के बाहर आ गए।

वो चारो रितू के चारो तरफ फैल गए और उसके चारो तरफ गोल गोल चक्कर लगाने लगे।

"भाई हर तरफ से पटाखा है ये तो।" अलोक ने कहा___"सूरज भाई पहले कौन इसकी ले....आहहहहहह।"

अलोक के हलक से दर्द भरी चीख गूॅज गई थी। रितु ने बिजली की सी फुर्ती से पलट कर बैक किक अलोक के सीने पर जड़ा था। किक पड़ते ही वह चीखते हुए तथा हवा में लहराते हुए पोर्च से बाहर जाकर गिरा था। रितूके सब्र का बाॅध जैसे टूट गया था। वह इतने पर ही नहीं रुकी बल्कि पलक झपकते ही बाॅकी तीनों भी पोर्च के अलग अलग हिस्सों पर पड़े कराह रहे थे।

"तुम जैसे हिजड़ों की औलादों को सुधारने के लिए मैं आ गई हूॅ।" रितू ने भभकते हुए कहा___"तुम चारों की ऐसी हालत करूॅगी कि दोबारा जन्म लेने से इंकार कर दोगे।"

"भाई ये क्या था?" किशन ने उठते हुए कहा__"ये तो लगता है करेंट मारती है। हमें इसे अलग तरीके से काबू में करना होगा।"
"सही कह रहा है तू।" अलोक ने कहा__"अब तो शिकार करने में मज़ा आएगा भाई लोग।"

"आ जाओ तुम चारो एक साथ।" रितू ने कहा___"मैंने तुम चारों का हुलिया न बिगाड़ दिया तो मेरा भी नाम रितू सिह बघेल नहीं।"
"चलो देख लेते हैं डियर।" सूरज ने पोजीशन में आते हुए कहा___"कि तुममें कोई बात है या हममें।"

चारों ने रितू को फिर से घेर लिया। किन्तु इस बार वो पूरी तरह सतर्क थे। उनकी पोजीशन से ही लग रहा था कि वो चारो जूड़ो कराटे जानते थे। रितू खुद भी पूरी तरह सतर्क थी।

चारो उसे घेरे हुए थे तथा उनके चेहरों पर कमीनेपन की मुस्कान थी। चारो ने ऑखों ही ऑखों में कोई इशारा किया और अगले ही पल चारो एक साथ रितू की तरफ झपटे किन्तु ये क्या??? वो जैसे ही एक साथ चारो तरफ से रितू पर झपटे वैसे ही रितू ने ऊपर की तरफ जम्प मारी और हवा में ही कलाबाज़ी खाते हुए उन चारों के घरे से बाहर आ गई। उसके बाहर आते ही चारो आपस में ही बुरी तरह टकरा गए। उधर रितू ने मानों उन्हें सम्हलने का मौका ही नहीं दिया बल्कि बिजली की सी स्पीड से उसने लात घूसों और कराटों की बरसात कर दी उन पर। वातावरण में चारों की चीखें गूॅजने लगी। कुछ दूरी पर खड़े वो चारो पुलिस हवलदार भी ये हैरतअंगेज कारनामा देख रहे थे।

ऐसा नहीं था कि चारो लड़के कुछ कर नहीं रहे थे किन्तु उनका हर वार खाली जा रहा था जबकि रितू तो मानो रणचंडी बनी हुई थी। जूड़ो कराटे व मार्शल आर्ट के हैरतअंगेज दाॅव आजमाए थे उसने। परिणाम ये हुआ कि थोड़ी ही देर में उन चारो की हालत ख़राब हो गई। ज़मीन में पड़े वो बुरी तरह कराह रहे थे।

"क्यों सारी हेकड़ी निकल गई क्या?" रितू ने अलोक के पेट में पुलिसिये बूट की तेज़ ठोकर मारते हुए कहा___"उठ सुअर की औलाद। दिखा न अपनी मर्दानगी। साला एक पल में ही पेशाब निकल गया तेरा।"

रितू सच कह रही थी, अलोक की पैन्ट गीली हो गई थी। बूट की ठोकर लगते ही वह हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाया था। साथ ही अपने दोनो हाॅथ जोड़कर बोला___"मुझे माफ़ कर दो प्लीज़। आज के बाद मैं ऐसा वैसा कुछ नहीं कहूॅगा।"

"कहेगा तो तब जब कहने लायक तू बचेगा भड़वे की औलाद।" रितू ने एक और ठोकर उसके पेट में जमा दी। वह फिर से चिल्ला उठा था। तभी रितू के हलक से चीख निकल गई। दरअसल उसका सारा ध्यान अलोक की तरफ था इस लिए वह देख ही नहीं पाई कि पीछे से किशन ने उसकी पीठ पर चाकू का वार कर दिया था। पुलिस की वर्दी को चीरता हुआ चाकू उसकी पीठ को भी चीर दिया था। पलक झपकते ही उसकी वर्दी उसके खून से नहाने लगाने थी।

"साली हमसे पंगा ले रही है तू।" किशन ने गुर्राते हुए कहा___"अब देख तेरी क्या हालत बनाते हैं हम?"

बड़ी हैरानी की बात थी कि कुछ ही दूरी पर खड़े चारो हवलदार तमाशा देख रहे थे। उनकी हालत ऐसी थी जैसे जूड़ी के मरीज़ हों। हाॅथों में पुलिस की लाठी लिए वो चारो डरे सहमें से खड़े थे। और उस वक्त तो उनकी हालत और भी खराब हो गई जब किशन ने पीछे से रितू की पीठ पर चाकू से वार किया था। चाकू का वार चीरा सा लगाते हुए निकल गया था, अगर किशन उसे पीठ पर ही पेवस्त कर देता तो मामला बेहद ही गंभीर हो जाता।
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