non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:34 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
अजय सिंह दरवाजे पर खड़ा न रह सका। वह आहिस्ता से दरवाजे को खोला और अंदर दबे पाॅव कमरे के अंदर दाखिल हो गया। अंदर आकर वह दबे पाॅव ही बेड की तरफ बढ़ा। उसके दिल की धड़कनें पूरी गति से दौड़ रही थी जिसकी धमक किसी हॅथौड़े की तरह उसे अपनी कनपटियों पर स्पष्ट बजती सुनाई पड़ रही थी।

बेड के बेहद करीब पहुॅच कर अजय सिंह रुक गया। कमरे में खिड़की से आता हुआ प्रकाश फैला हुआ था जिसकी वजह से कमरे में मौजूद हर चीज़ स्पष्ट दिखाई दे रही थी। बेड के करीब पहुॅच कर अजय सिंह ने देखा कि गौरी दूसरी तरफ करवट लिए पड़ी थी। उसने अपना बायाॅ हाँथ मोड़ कर अपनी बाॅई कनपटी के नीचे रखा हुआ था जबकि दाहिना हाँथ उसके पेट के आगे बेड पर टिका हुआ था। अजय सिंह धड़कते दिल के साथ झुक कर गौरी के चेहरे की तरफ देखा तो उसे पता चला कि गौरी की आँखें बंद हैं। अजय सिंह को यकीन करना मुश्किल था कि गौरी सो रही है या फिर उसने यूॅ ही अपनी आँखें बंद की हुई हैं।

गौरी के चाॅद जैसे चेहरे पर इस वक्त ज़माने भर की मासूमियत थी। आज कल उसकी तबीयत ज़रा नाशाद थी इस लिए उसके चेहरे पर वो नूर नहीं दिख रहा था जो हमेशा रहता था। किन्तु अजय सिंह को तो जैसे ऐसा चेहरा भी किसी नूर से कम न था। वह ये मान चुका था कि गौरी दुनियाॅ की सबसे खूबसूरत औरत है। उसकी खुद की बीवी भी खूबसूरती में कम न थी लेकिन गौरी के सामने उसकी खूबसूरती जैसे फीकी पड़ जाती थी। परिवार की हर औरत खूबसूरती में एक दूसरे को मात दे रही थी। लेकिन अजय सिंह का दिल गौरी के लिए धड़कता था। वह समझ नहीं पा रहा था कि ये वह गौरी की खूबसूरती पर हवस की वजह से आकर्शित था या फिर उसे गौरी से प्रेम था।

अजय सिंह ने थोड़ा और आगे की तरफ झुक कर देखा तो एकाएक ही उसके मन में संगीत सा बज उठा। गौरी के सीने के दोनो बड़े बड़े उभार आपस में दबे होने की वजह से उसकी ब्लाउज से बाहर झाॅक रहे थे। अजय सिंह जैसे उनमें ही खो गया। तभी वह बुरी तरह डर भी गया। क्योंकि उसी वक्त गौरी ने एक गहरी साँस लेते हुए पहले तो हल्की सी अॅगड़ाई ली और फिर सीधी लेट गई। अजय सिंह की धड़कन जो बुरी तरह बढ़ गई थी वो अब इस दृश्य को देख कर जैसे रुक ही गई। गौरी सीधी लेट गई थी। जैसा कि बताया जा चुका है कि गौरी ने गर्मी के चलते अपनी साड़ी को अपने ऊपरी भाग से हटाया हुआ था। इस लिए उसके सीधा लेटते ही ब्लाउज में कैद उसकी भारी छातियाॅ एकदम से तन गई थी। नीचे दूध सा गोरा नंगा पेट और उस पर उसकी गहरी नाभी। अजय सिंह की हालत एक पल में खराब हो गई। उसका जी चाहा कि वह तुरंत झुक कर गौरी के पेट और नाभी को अपनी जीभ से चूसना चाटना शुरू कर दे किन्तु वह ऐसा कुछ चाह कर भी नहीं कर सकता था।

गौरी की छातियाॅ बिना ब्रा के किसी कुतुब मीनार की तरह तनी हुई थी। अजय सिंह की नापाक नज़रें गौरी के पूरे जिस्म को जैसे स्कैन सा कर रही थीं। उसका खूबसूरत चेहरा और बिना लिपिस्टिक के ही लाल सुर्ख होंठ थे उसके। जिन्हें अपने होंठो में भर लेने के लिए जैसे उसे आमंत्रित कर रहे थे। और अजय सिंह ने उस निमंत्रण को स्वीकार भी कर लिया। वह मानो सम्मोहित सा हो गया था। वह सम्मोहित सा होकर ही आहिस्ता आहिस्ता गौरी के चेहरे की तरफ झुकने लगा। उसके हृदय की गति प्रतिपल रुकती हुई महसूस हो रही थी। वह गौरी के चेहरे के बेहद करीब झुक गया। उसके नथुनों में गौरी की गर्म साॅसें पड़ी। उसकी साॅसों की महक से जैसे वह मदहोश सा होने लगा। उसकी साँस भारी हो गई। उसने गहरी साँस खींचकर उसे तेज़ी से ही बाहर छोंड़ा और जैसे यहीं पर उससे बड़ी भारी ग़लती हो गई। एक तो गहरी साँस लेने की आवाज़ और दूसरी तेज़ी से ही उस लम्बी साँस को नाक के रास्ते बाहर निकालने से गौरी के चेहरे पर गर्म साँस का तीब्र वेग से स्पर्श हुआ। जिससे गौरी की नींद टूट गई। उसने पलकें झपकाते हुए अपनी आँखें खोल दी और....और अपने चेहरे के इतने करीब किसी को झुके देख वह बुरी तरह डर गई साथ ही हड़बड़ा भी गई। इधर अजय सिंह को भी जैसे साॅप सा सूॅघ गया। वह बड़ी तेज़ी से सीधा खड़ा हो गया। किन्तु तब तक देर हो चुकी थी।

गौरी ने जब देखा कि उसके चेहरे पर झुका हुआ शख्स कोई और नहीं बल्कि उसका जेठ है तो उसकी हालत खराब हो गई। मारे घबराहट के उसे समझ ही न आया कि क्या करे वह। फिर जैसे ही दिमाग़ ने काम किया तो उसने हड़बड़ा कर सीघ्रता से अपनी साड़ी को अपने बदन पर डाला।

"माफ़ करना गौरी।" अजय सिंह मानो तब तक खुद को सम्हाल चुका था, इस लिए बड़ी शालीनता बोला___"वो मैं दरअसल देखने आया था कि क्या हुआ है तुम्हें? मैने सुना कि कई दिन से तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है इस लिए देखने चला आया था।"

गौरी बोली तो कुछ न। बोलने वाली हालत में ही नहीं थी वह। अपने सिर पर साड़ी का घूॅघट डाल कर वह तेज़ी से ही बेड से नीचे उतर आई थी और अजय सिंह से दूर जाकर खड़ी हो गई थी। उसका दिल धाड़ धाड़ करके सरपट दौड़े जा रहा था। अपनी जगह पर खड़ी वह थरथर काॅप रही थी। उसे लग रहा था कि उसकी काॅपती हुई टाॅगें उसका भार ज्यादा देर तक सह नहीं पाएॅगी। वह बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाले खड़ी थी।

"अरे घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है गौरी।" उधर अजय सिंह उसकी हालत का बखूबी अंदाज़ा लगाते हुए बोला___"तुम मेरी छोटी बहन के समान हो। मैंने कहा न कि तुम्हें बस देखने आया था यहाँ। तुम आराम से सो रही थी तो मैने तुम्हें जगाना उचित नहीं समझा। मैं देख रहा था कि कैसे सारे संसार भर की मासूमियत अपने चेहरे पर लिए तुम सो रही हो। अगर तुम्हें मेरा इस तरह देखना अच्छा नहीं लगा तो माफ़ कर देना अपने इस बड़े भइया को।"

गौरी ने इस बार भी कुछ नहीं कहा। बल्कि वह पूर्व की भाॅति ही खड़ी रही। अजय सिंह उसका जेठ था और यहाँ का ये रिवाज़ था कि जेठ और ससुर के सामने घूॅघट में ही रहना है और उनसे बोलना नहीं है। यही एक भारतीय बहू के लिए नियम था यहाँ गाॅवों में।

"पता नहीं किस शदी में जी रहे हैं ये सब लोग?" अजय सिंह कह रहा था___"आज भी वही पुरानी परंपराएॅ और फिज़ूल के नियम कानून व रीति रिवाज़ों में बॅधे हुए हैं सब। शहरों में ये सब रूढ़िवादिता नहीं है और ना ही वहाँ पर इस सबको उचित मानता है कोई। शहर में सब लोग एक दूसरे से बोलते हैं। किसी के ऊपर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं रहती। भारतीय कानून ने भी हर मर्द व औरत को समानता का अधिकार दिया हुआ है। इस लिए ये सब बेकार की परंपराएॅ छोड़ो तुम सब। इज्जत सम्मान देने के लिए ये ज़रूरी नहीं होता कि कोई बहू अपने जेठ या ससुर के सामने चार हाथ का घूॅघट करे और उनसे बात न करे। बल्कि इज्जत सम्मान ये सब किये बग़ैर भी दिया जा सकता है।"

अजय सिंह की इन सब बातों का भला गौरी क्या जवाब देती? हलाॅकि उसे भी पता था कि शहर में वही सब नियम चलते हैं जिसके बारे में उसका जेठ उससे कह रहा है। किन्तु ये सब नियम कानून गाॅव देहातों में लागू नहीं हो सकते थे। ये सब यहाँ इतना आसान नहीं था बल्कि ऐसा करने वाली बहू को समाज के ये लोग चरित्रहीन की संज्ञा दे देते हैं।

"ख़ैर छोंड़ो ये सब।" अजय सिंह ने कहा___"गाॅव देहात में तो ये सब चल ही नहीं सकता। पता नहीं कब समझेंगे ये लोग? देश समाज की उन्नति में बाधा ऐसी सोच ही डालती है। ख़ैर, मैं अभय को बोल दूॅगा कि तुम्हें शहर ले जाए और वहाँ किसी अच्छे डाक्टर से तुम्हारा इलाज़ करवा दे। चलो जाओ अब तुम आराम करो।"

इतना सब कह कर अजय सिंह कमरे से बाहर की तरफ निकल गया। जबकि गौरी उसके जाने के बाद भी काफी देर तक बुत बनी खड़ी रही। मन में यही ख़याल बार बार डंक मार रहा था कि जेठ जी यहाँ किस लिए आए थे? क्या फिर से पहले की तरह बुरी नीयत से या सच में वो उसकी तबीयत के बारे में ही जानने आए थे? वो इस तरह मेरे इतने करीब कैसे आ सकते थे? क्या मतलब हुआ इस सबका?
____________________

गौरी के पास से आकर अजय सिंह पुनः अपने कमरे में बेड पर लेट गया था। उसका दिल अभी तक सामान्य नहीं हुआ था। अंदर अभी भी घबराहट के निसां शेष थे। बेड पर पड़े पड़े वह इन्हीं सब बातों के बारे में सोचे जा रहा था। बार बार वह इस ख़याल से डर जाता था कि अच्छा हुआ समय रहते उसने वस्तुस्थिति को सम्हाल लिया था वरना कुछ भी हो सकता था। अपनी बातों से उसने गौरी को जता दिया था कि वो सिर्फ उसकी तबीयत के बारे में ही जानने के लिए आया था उसके कमरे में। किन्तु उसके मन में बार बार ये सवाल भी उठ जाता था कि क्या वह अपनी बातों से गौरी को संतुष्ट कर पाया था? कहीं ऐसा तो नहीं कि गौरी को उस पर अभी भी कोई संदेह है? वह किसी निष्कर्श पर न पहुॅचा था।

अपने कमरे में वह जाने कितनी ही देर तक इस सबके बारे में सोचता रहा। उसे होश तब आया जब उसके कमरे का दरवाजा खोल कर उसकी पत्नी प्रतिमा अंदर दाखिल हुई। धूप और गर्मी से आने के कारण उसकी हालत खराब थी। पसीने से उसका जिस्म चमक रहा था। पतली सी साड़ी उसके शरापा बदन से चिपकी हुई थी। कमरे में आते ही प्रतिमा ने पहले कमरे का दरवाजा बंद किया उसके बाद सीधा बेड पर आकर चारो खाने चित्त होकर पसर गई। लेटते ही गहरी गहरी साॅसें लेने लगी वह। बड़े गले के ब्लाउज से उसकी भारी चूचियाॅ आधे से ज्यादा दिख रही थी।
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