non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:33 PM,
#99
RE: non veg kahani एक नया संसार
विजय सिंह की हवा शंट। वह हैरान परेशान सा प्रतिमा को देखने लगा। जबकि उसकी इस हालत को देख कर प्रतिमा मन ही मन हॅस रही थी। किन्तु प्रत्यक्ष में यही दिखा रही थी वो ये सब उसकी सेहत का ध्यान में रख कर कह रही थी। पर चूॅकि इन बातों में उसके दो अर्थ निकल रहे थे जो विजय सिंह को असमंजस में डाल कर असहज कर रहे थे।

"क्या हुआ चुप क्यों हो गए विजय?" प्रतिमा ने कहा___"दूध की बातों से तो नहीं घबरा गए तुम?"
"न न नहीं तो।" विजय सकपका गया।
"देखो विजय।" प्रतिमा ने कहा___"तुम जो मेहनत करते हो उसके लिए दूध घी का सेवन करना बहुत ज़रूरी है। वरना बुढ़ापे में किसी काम के नहीं रह जाओगे तुम। आज गौरी को भी बोलूॅगी कि तुम्हारे खाने पीने का अच्छी तरह से ख़याल रखा करे। अभी जब तक बच्चों की छुट्टियाॅ हैं तब तक मैं रोज़ाना तुम्हें खुद अपने हाथ से टिफिन तैयार करके लाऊॅगी।"

"आ आप तो बेवजह परेशान हो रही हैं भाभी।" विजय ने बेचैनी से कहा___"मैं रोज़ाना स्वादिष्ट और फायदेमंद भोजन ही करता हूँ।"
"वो तो मुझे दिख ही रहा है।" प्रतिमा ने घूर कर देखा विजय सिंह को, बोली___"अगर वैसा ही भोजन करते तो अपने शरीर की ऐसी हालत नहीं बना लेते तुम।"

"ऐसी हालत????" विजय ने चौंकते हुए कहा___"क्या हुआ भला मेरी हालत को?? अच्छा भला तो हूँ भाभी।"
"बस बस रहने दो तुम।" प्रतिमा ने कहा__"पोज तो ऐसे दे रहे हो जैसे दारा सिंह तुम्हीं हो।"

विजय सिंह को समझ न आया कि वो क्या कहे? दरअसल उसे अपनी भाभी से ऐसी बात करने का ये पहला अवसर था। शादी के बाद कभी ऐसे मधुर संबंध ही नहीं रहे थे कि वो अपनी प्रतिमा भाभी से कभी बात करता या घुलता मिलता। ख़ैर विजय सिंह ने किसी तरह खाना खाया और सीघ्र ही उठ कर कमरे से बाहर चला गया। कमरे से बाहर जब वह आया तब उसने जैसे राहत की साँस ली। वह बाहर भी रुका नहीं बल्कि खेतों की तरफ तेज़ तेज़ करमों से बढ़ता चला गया। जबकि कमरे से भागते हुए बाहर आई प्रतिमा ने जब विजय को दूर खेतों पर जाते देखा तो उसके होठों पर कमीनी मुस्कान रेंग गई।

"आज तो इतना ही काफी था विजय।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा___"मगर इतने से डोज में ही तुम्हारी ये हालत बता रही है कि तुम ज्यादा दिनों तक मेरे सामने टिक नहीं पाओगे। मेरे इस हुस्न के जाल में जल्द ही फॅस जाओगे। हाय विजय, थोड़ा जल्दी फॅस जाना मेरी जान क्योंकि ज्यादा देर तक बर्दास्त नहीं कर पाऊॅगी मैं।"

यही सब बड़बड़ाती हुई प्रतिमा वापस कमरे में गई। और बेन्च से टिफिन वाले सब बर्तन इकट्ठा करके वह कमरे से बाहर आ गई। कमरे के दरवाजों को ढुलका कर वह मकान से बाहर आ गई और फिर हवेली की तरफ बढ़ चली। मन में कई तरह के ख़याल बुने जा रही थी वह।
__________________________

इधर हवेली में दोपहर को हर कोई अपने अपने कमरे में होता था। बच्चों को भी दोपहर की धूप में कहीं बाहर नहीं जाने दिया छाता था। माॅ बाबूजी हमेशा की तरह नीचे वाले हिस्से पर बने अपने कमरे में ही रहते थे। बाबू जी को महाभारत पढ़ने का बड़ा शौक था। वो खाली समय में महाभारत की मोटी सी किताब लेकर आरामदायी कुर्सी पर बैठ जाते थे अपने कमरे में। जबकि माॅ जी बिस्तर पड़ी रहती। उनके घुटनों में बात की शिकायत थी इस लिए वो ज्यादा चलती फिरती नहीं थी।

राज और गुड़िया ज्यादातर अपने चाचा चाची के पास ही रहते थे। करुणा उन दोनो को पढ़ाती थी। राज से उसे बड़ा प्यार था। हवेली में सबका अपना अपना हिस्सा था। हलाॅकि उस वक्त बटवारा नहीं हुआ था लेकिन तीनो रहते उसी तरह थे अलग अलग। जबकि खाना पीना सबका साथ में ही होता था। उस समय हवेली में ऐसा था कि अंदर से ही सबके हिस्से में जाया जा सकता था। उसके लिए हर पार्टिशन में एक बड़ा सा दरवाजे थे जो ज्यादातर खुले ही रहते थे। विजय सिंह जिस हिस्से पर रहता था उसी हिस्से में माॅ बाबूजी भी नीचे रहते थे। विजय और गौरी का कमरा ऊपर वाले फ्लोर पर था। सबका खाना भी यहीं पर बनता था। नैना अजय सिंह वाले हिस्से पर रहती थी। क्योंकि वो स्कूल के समय पर खाली ही रहता था इस लिए वह उस हिस्से में ही अकेली रहती थी। हलाॅकि उसके साथ बच्चों में से कोई भी रोज़ सोने के लिए चला जाता था।

विजय सिंह दिन में खेतों पर ही रहता था और फिर रात में ही हवेली आता था। दोपहर का खाना उसे पहुॅचा दिया जाता था। हप्ते में एक दो दिन वह खेतों पर भी रात में रुक जाता था। पर ये तभी होता था जब रुकने की ज़रूरत हो अन्यथा नहीं।

प्रतिमा के जाने के कुछ देर बाद ही अजय सिंह बेड से उठा और कमरे से बाहर आ गया। इस वक्त वह अपने हिस्से की तरफ ही था। उसे पता था कि उसकी छोटी बहन नैना उसके हिस्से पर ही ऊपर अपने कमरे में है। वह कमरे से निकल कर ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया। सीढ़ियाॅ चढ़ते हुए वह ऊपर नैना के कमरे के पास पहुॅचा। उसने बंद दरवाजे पर आहिस्ता से हाँथ रखा और उसे कमरे की तरफ पुश किया। किन्तु कमरा अंदर से बंद था। अजय सिंह ने झुक कर दरवाजे के की-होल सें अपनी दाहिनी आँख सटा दी। कमरे के अंदर नैना बेड पर लेटी हुई दिखी उसे। उसके हाँथ में कोई मोटी सी किताब थी जिसे वह मन ही मन पढ़ रही थी। ये देख अजय सिंह ने राहत की साँस ली और फिर दबे पाॅव वह नीचे उतर आया।

नीचे आकर उसने पार्टीशन वाले दरवाजे के पास पहुॅचा। किन्तु उससे पहले वह बाएॅ साइड के पार्टीशन वाले दरवाजे की तरफ भी देखा। उसने ये दरवाजा बंद कर दिया था ताकि उधर से कोई इधर का देख न सके। बाएॅ साइड वाला हिस्सा अभय सिंह व करुणा का था, तथा दाएॅ साइड विजय सिंह का जबकि बीच का हिस्सा अजय सिंह का था।

दाएॅ तरफ वाले हिस्से के पार्टीशन पर लगे दरवाजे को पार कर वह दबे पाॅव ऊपर की तरफ जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ा। उसे पता था कि सीढ़ियों के पास जाने के लिए उसे माॅ बाबूजी के कमरे के सामने से होकर ही गुज़रना पड़ेगा। उसका दिल अनायास ही धड़कने लगा था। माॅ बाबूजी के कमरे के पास से होकर वह दबे पाॅव ही सीढ़ियों के पास पहुॅचा। उसके बाद आहिस्ता से सीढ़ियाॅ चढ़ता चला गया वह।

ऊपर आकर वह दाहिने साइड चौड़ी बालकनी से होते हुए गौरी के कमरे के पास पहुॅचा। धाड़ धाड़ बजती धड़कनों को काबू में रखने की असफल कोशिश भी कर रहा था वह। किन्तु कहते हैं ना कि चोर का दिल बेहद कमज़ोर होता है, वही हाल अजय सिंह का था। कमरे के पास पहुॅच कर उसने दरवाजे पर हाँथ रख कर उसे कमरे की तरफ धकेला। कमरा बेआवाज़ अंदर की तरफ पुश हो गया।

ये देख कर अजय सिंह की आँखें चमक उठीं। उसने दरवाजे बहुत ही आहिस्ता से थोड़ा और अंदर की तरफ धकेला ताकि वह थोड़ी सी झिरी से ही पहले कमरे के अंदर की वस्तुस्थिति का पता लगा सके। ख़ैर, झिरी के बनते ही अजय सिंह ने कमरे के अंदर उस थोड़ी सी झिरी से देखा। अंदर एक कोने की तरफ रखे बेड पर गौरी दूसरी तरफ को करवट लिए पड़ी थी। ऊपर छत पर पंखा मध्यम स्पीड से घूम रहा था जिसकी हवा से उसकी साड़ी का एक सिरा हिल रहा था। गर्मी के दिन थे इस लिए गौरी ने साड़ी को अपने बदन के ऊपरी हिस्से से हटाया हुआ था। ऊपर सिर्फ ब्लाउज ही था। गर्दन के नीचे पीठ की तरफ वाला एक तिहाई भाग दिख रहा था तथा नीचे कमर दिख रही थी। कमर के नीचे उसका पिछवाड़ा था जो कि साड़ी से ढॅका हुआ ही था। उसके नीचे उसकी साड़ी पेटीकोट सहित उटनों तक ऊपर खिसकी हुई थी जिसके कारण उसकी दूध सी गोरी पिंडिलियाॅ स्पष्ट दिख रही थी। पैरों में मोटी सी किन्तु घुंघुरूदार पायल थी।
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