non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:33 PM,
#94
RE: non veg kahani एक नया संसार
"आज बेटे के हथियार की बात चली है ना इस लिए शायद ऐसा हो रहा है तुम्हें।" अजय ने कहा__"पर बेटे का हथियार तो इस वक्त यहाँ नहीं है मेरी जान। कहो तो फोन करके शहर से बुला लूॅ उसे?"

"उसे तो आने में समय लगेगा अजय।" प्रतिमा ने आहें भरते हुए कहा___"तुम्हें ही इस आग को शान्त करना पड़ेगा। शशश जल्दी मुझे पेलो ना अजय।"

"इसका मतलब तुम्हें अपने बेटे से पेलवाने में अब कोई ऐतराज़ नहीं है।" अजय मुस्कुराया।
"मुझे तुम्हारी किसी बात से कभी कोई ऐतराज हुआ है क्या?" प्रतिमा ने झटके से उठ कर अजय के कपड़े उतारना शुरू कर दिया था, बोली___"मैं तो तुम्हारी हर जायज़ नाजायज़ बात को अब तक मानती ही आ रही हूँ। अब जल्दी से मुझे आगे पीछे पेलो। बहुत आग लगी हुई है।"

"ठीक है फिर कल हम दोनो शहर चलेंगे और वहीं पर अपने बेटे के साथ थ्रीसम करेंगे।" अजय ने कहा।
"जो तुम्हारी मर्ज़ी लेकिन अभी तो मुझे शान्त करो।" प्रतिमा ने अजय को नंगा कर दिया था।

अजय ने प्रतिमा की दोनो टाॅगों को अपने दोनों कंधों पर रखा और पोजीशन बना कर प्रतिमा पर छाता चला गया। कमरे के अंदर जैसे एकाएक कोई भारी तूफान आ गया था।
_______________________

फ्लैशबैक________

उधर मुम्बई में,

कुछ पल रुकने के बाद गौरी ने गहरी साँस ली उसके बाद फिर से कहा___"ऐसे ही कुछ साल गुज़र गए। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। राज़ अब बड़ा हो गया था। उस समय वह दस जमात में पढ़ रहा था। पढ़ने लिखने में वह शुरू से ही तेज़ था क्योंकि उसकी पढ़ाई की सारी जिम्मेदारी अभय और करुणा पर थी। विजय जी ने बाबू जी के लिए एक बढ़िया सी कार खरीद दी थी तथा अभय के लिए एक बुलेट मोटर साइकिल।

अब की बार जब गर्मियों की छुट्टियाॅ हुईं तो फिर से जेठ जेठानी अपने बच्चों के साथ शहर से गाव आए। किन्तु इस बार हालातों में बहुत बड़ा बदलाव हो चुका था।

गौरी की नज़रें सामने एक बड़े से टेबल पर रखे काॅच के एक बड़े से जार में टिकी थी। जिस जार में भरे हुए पानी पर रंग बिरंगी मछलियाॅ तैर रही थी। उसी काॅच के जार में गौरी एकटक देखे जा रही थी। जैसे वहाँ कोई फिल्म चल रही हो। एक ऐसी फिल्म जो गुज़रे हुए कल का एक हिस्सा थी।

"कल से ही तुम अपने काम में लग जाओ मेरी जान।" अपने कमरे में बेड के एक तरफ बैठे अजय ने प्रतिमा से कहा___"हमें किसी भी कीमत पर उस मजदूर को अपने काबू में करना है।"

"और अगर उसने कोई हंगामा खड़ा कर दिया तो?" प्रतिमा ने तर्क दिया___"तब तो मैं इस घर में किसी को मुह दिखाने के काबिल भी न रह जाऊॅगी।"
"ऐसा कुछ नहीं होगा।" अजय ने पुरज़ोर लहजे में कहा___"मुझे पता है वो साला इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगा। और अगर उसने इस सबमें ज्यादा चूॅ चाॅ की तो उसके इलाज़ के लिए भी फिर प्लान बी अपनाया जाएगा।"

"और प्लान बी क्या है?" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए पूछा था।
"प्लान बी ये है कि तुम्हारी उन हरकतों से अगर वह घर में किसी से कुछ कहता है और अगर सारी बात तुम पर ही आती है तो तुम उल्टा उस पर ही इल्ज़ाम लगाना।" अजय सिंह उसे समझा रहा था___"चीख चीख कर सबसे यही कहना कि विजय खुद कई दिन से तुम्हारी इज्जत लूटने के चक्कर में था। बाद में फिर मैं हूँ ही इन हालातों को अंजाम तक ले जाने के लिए।"

"तुम क्या करोगे उस सूरत में?" प्रतिमा ने पूछा।
"वो सब तुम मुझ पर छोंड़ दो।" अजय ने कहा___"अभी उतना ही करो जितना कहा है। इधर मैं भी अपने काम में लग जाता हूँ।"

"ठीक है।" प्रतिमा ने कहा___"लेकिन अभय और करुणा से सावधान रहना। अभय की तरह करुणा भी ज़रा तेज़ तर्रार है।"
"चिन्ता मत करो।" अजय ने कहा___"सबको देख लूॅगा एक एक करके। पहले इन दोनो से तो निपट लूॅ।"

"ठीक है।" प्रतिमा ने कहा___"आज विजय का खाना लेकर मैं जाऊॅगी। गौरी की तबियत बुखार के चलते परसो से कुछ खराब है। कल तो नैना गई थी विजय को खाना देने। आज मैं जाऊॅगी।"

"ठीक है।" अजय ने कहा__"और हाँ ब्लाउज बिलकुल बड़े गले वाला पहन कर जाना। बाॅकी तो तुम समझदार ही हो।"

प्रतिमा मुस्कुरा कर बेड से उठी और कमरे से बाहर निकल गई। जबकि अजय के होठों पर एक ज़हरीली मुस्कान तैर उठी। वह उसी बेड पर आराम से लेट कर ऊपर छत में कुंडे पर तेज़ रफ्तार से घूम रहे पंखे की तरफ घूरने लगा था।

प्रतिमा जब किचेन में पहुॅची तो उसकी छोटी ननद नैना विजय के लिए टिफिन तैयार कर रही थी। नैना उस वक्त बाइस तेइस साल की थी। उसने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी और बीएस सी करने बाद अब घर में ही रहती थी। उसकी शादी के लिए बाबू जी लड़का तलाश कर रहे थे।

"क्या कर रही हो नैना?" प्रतिमा ने बड़े प्यार से नैना से पूछा था।
"मॅझले भइया के लिए खाने का टिफिन तैयार कर रही हूँ भाभी।" नैना ने कहा__"मॅझली भाभी की तबियत ठीक नहीं है न इस लिए ये टिफिन मैं ही ले जा रही हूँ कल से। ख़ैर छोड़िये आप बताइये आप किस काम से किचेन में आई हैं?"

"मैं भी इसी लिए यहाँ आई थी कि अपने देवर के लिए खाना पहुॅचा दूॅ।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"बेचारी रात दिन जी तोड़ मेहनत करते हैं।"

"हीहीहीही आप तो शहर वाली हैं भाभी आप खेतों पर टिफिन लेकर जाएॅगी तो लोग क्या कहेंगे?" नैना ने हॅसते हुए कहा___"जाने दीजिए भाभी ये आपको शोभा नहीं देगा। टिफिन तैयार हो गया है अब चलती हूँ मैं। आज तो वैसे भी देर हो गई है। मॅझले भइया के पेट में तो अब तक चेहे भी कूदने लगे होंगे।"

"तो तुम भी मुझे ताना मारने लगी हो?" प्रतिमा ने अपने चेहरे पर दुख के भाव प्रकट करते हुए कहा___"क्या मेरा इतना भी हक़ नहीं बनता कि मैं अपनी इच्छा से इस घर में कुछ कर सकूँ?"

"ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" नैना ने हड़बड़ाते हुए कहा___"भला मैं क्यों आपको ताना मारूॅगी। और बाकी सब भी कहाँ आपको ताना मारते हैं?"

"सब समझती हूँ मैं।" प्रतिमा ने कहा___"लोग मेरे सामने मेरे मुख पर नहीं बोलते लेकिन मेरे पीठ पीछे तो सब यही बोलते हैं न। एक मैं हूँ जो हर बार यहीं सोच कर आती हूँ कि घर में इस बार सबका हाँथ बटाऊॅगी और सबसे खूब हॅसूॅगी बोलूॅगी। लेकिन हर बार यहाँ आने पर मेरी इन सभी इच्छाओं पर ग्रहण लग जाता है।"

"ओह भाभी प्लीज़।" नैना कह उठी__"आप ये सब बेकार ही सोचती हैं। आपके बारे कोई कुछ नहीं बोलता है और ना ही सोचता है ऐसा वैसा।"
"तो फिर क्यों मुझे इन सब कामों को करने से मना कर रही हो तुम?" प्रतिमा ने कहा__"मुझे करने दो ना जिसे करने का मेरा बहुत मन करता है। मैं भी सबकी तरह ये सब काम खशी खुशी करना चाहती हूँ।"

"पर भाभी आप ये।" नैना का वाक्य अधूरा रह गया।
"देखा, फिर से वही शुरू कर दिया।" प्रतिमा ने कहा__"तुम अभी भी यही समझती हो कि मैं ये सब करूॅगी तो लोग क्या सोचेंगे। अरे हर काम की शुरूआत पर लोग ऐसा ही सोचते हैं। तो क्या हम लोगों की सोच को लेकर कोई काम ही ना करें? दूसरे लोग सोचें या न सोचें किन्तु इस घर के लोग सबसे पहले सोच लेते हैं।"

नैना हैरान परेशान देखती रह गई प्रतिमा को। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपनी भाभी को क्या कहे।

"मैं तो ये सब इसी लिए कह रही थी भाभी क्योंकि आपको इन सब कामों की आदत नहीं है।" नैना ने कहा__"बाहर जिस्म को जला देने वाली धूप है और गर्मी इतनी कि पूछो ही मत। आप बेवजह इस धूप और गरमी में परेशान हो जाएॅगी।"

"कुछ नहीं होगा मुझे।" प्रतिमा ने कहा__"और क्या अपने देवर के लिए इतना भी नहीं कर सकती मैं?"
"अच्छा ठीक है भाभी।" नैना ने कहा__"पर मैं भी आपके साथ चलूॅगी। आप अकेले इस धूप में परेशान हो जाएॅगी।"

"नहीं नैना।" प्रतिमा ने कहा__"मुझे अकेले ही जाने दो। अकेली जाऊॅगी तो देवर जी को भी लगेगा कि उनकी भाभी को उनकी फिकर है। वरना अगर तुम्हारे साथ जाऊॅगी तो वो यही सोचेंगे कि मैं वहाँ कोई एहसान जताने आई थी।"

"विजय भइया ऐसे नहीं हैं भाभी।" नैना ने हॅस कर कहा__"वो किसी के भी बारे में कुछ भी बुरा नहीं सोचते। बल्कि वो तो हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह की तरह एकदम चुप व शान्त रहने वाले हैं।"

"चलो छोड़ो ये सब।" प्रतिमा ने कहने के साथ ही नैना के हाँथ से टिफिन ले लिया__"जब तक गौरी अच्छी तरह से ठीक नहीं हो जाती तब तक खेतों में विजय को खाना पहुॅचाने की जिम्मेदारी मेरी है। और तुम्हारी जिम्मेदारी ये है कि तुम रितू और नीलम यहाँ हैं तब तक उनको पढ़ाओ।"

"ठीक है भाभी जैसा आप कहें।" नैना ने हॅसते हुए कहा__"आप सच में बहुत स्वीट हैं। आई लव यू माई स्वीट ऐण्ड ब्यूटीफुल भाभी।"
"ओह लव यू टू माई स्वीट ननद रानी।" प्रतिमा ने भी मुस्कुराकर कहा__"चलो अब मैं चलती हूँ।"

इतना कह कर प्रतिमा किचेन से बाहर आ कर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। जबकि नैना अपने कमरे की तरफ मुस्कुराते हुए चली गई। इधर कमरे में आकर प्रतिमा ने टिफिन को बेड के पास दीवार तरफ सटे एक टेबल पर रखा और फिर आलमारी की तरफ बढ़ गई।

"क्या हुआ तुम यहीं हो?" अजय सिंह ने चौंकते हुए कहा था___"अभी तक खेतों पर गई नहीं???"
"तुम तो इस सबको इतना आसान समझते हो जबकि तुम्हें पता होना चाहिए कि कहने और करने में ज़मीन आसमान का फर्क होता है।" प्रतिमा ने आलमारी से एक झीनी सी साड़ी निकालते हुए कहा था।

"वो तो मुझे भी पता है।" अजय सिंह ने कहा___"लेकिन मेरे कहने का मतलब ये था कि टिफिन तैयार करने में बेवजह इतना समय क्यों लगा दिया तुमने?"

"यार जब मैं किचेन में गई तो वहाँ पर नैना आलरेडी टिफिन तैयार कर चुकी थी।" प्रतिमा ने कहा___"और वह टिफिन लेकर खेतों पर जाने ही वाली थी। इस लिए मुझे उसे इमोशनली ब्लैकमेल करना पड़ा।"


"क्या मतलब??" अजय सिंह चौंका।

प्रतिमा ने उसे किचेन में नैना और खुद के बीच हुई सारी बातें बता दी। सारी बातें सुनने के बाद अजय सिंह बोला___"ये बिलकुल सही किया तुमने। और अब इसके आगे का भी ऐसा ही परफेक्ट हो तो मज़ा ही आ जाए।"

"ऐसा ही होगा डियर।" प्रतिमा ने अपने जिस्म से पहले वाले कपड़े उतार दिये। अब वह ऊपर मात्र ब्रा में थी जबकि नीचे पेटीकोट था।

"इस ब्रा को भी उतार दो ना डियर।" अजय सिंह मुस्कुराया__"अपने बड़े बड़े तरबूजों के ऊपर सिर्फ ये लोकट वाला ब्लाउज ही पहन कर जाओ। ताकि उस साले मजदूर को नज़ारा करने में आसानी हो।"

"बड़े बेशर्म हो सच में।" प्रतिमा ने हॅसते हुए कहा और अपने हाँथों को पीछे अपनी पीठ पर ले जाकर ब्रा का हुक खोल कर उसे अपने शरीर से अलग कर दिया।

"हाय, इन भारी भरकम तरबूजों पर जब उस मजदूर की दृष्टि पड़ेगी तो यकीनन उस साले की आँखें फटी की फटी रह जाॅएॅगी।" अजय ने आह सी भरते हुए कहा था___"सारा इमान पल भर में चकनाचूर हो जाएगा उसका।"

"काश! ऐसा ही हो।" प्रतिमा ने ब्लाऊज को पहनते हुए कहा___"अगर बात बन गई तो मुझे भी एक नई चीज़ मिल जाएगी।"
"बिलकुल बात बनेगी डियर।" अजय सिंह ने ज़ोर देकर कहा___"तुम तो उर्वशी या मेनका से भी सुंदर व मालदार हो। भला तुम्हारे सामने वो मजदूर कब तक टिका रहेगा?"

"तुम हर बात पर उसे मजदूर क्यों बोल रहे हो अजय?" प्रतिमा ने कहा___"जबकि वह भी तुम्हारी तरह ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल की औलाद है और तुम्हारा सगा भाई है।"

"जो भी हो।" अजय सिंह बोला__"है तो एक मजदूर ही ना? अब मजदूर को मजदूर ना कहूँ तो और क्या कहूँ?"
"चलो अब मैं जा रहीं हूँ।" प्रतिमा ने आदमकद आईने में खुद को देखने के बाद कहा__"अब मेरा ड्रेस ठीक है ना?"
"एकदम झक्कास है मेरी जान।" अजय सिंह ने कहा___"इस ड्रेस में तुम्हें देख कर अब तो मुझे ऐसा लग रहा है कि अभी एक बार तुम्हें इसी बेड पर पटक कर पेल दूॅ पर जाने दो।"

प्रतिमा उसकी इस बात पर हॅस पड़ी और फिर टेबल से टिफिन उठा कर कमरे से बाहर जली गई।
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:33 PM

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