non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:33 PM,
#93
RE: non veg kahani एक नया संसार
राज जब दो साल का हुआ तो मेरी बड़ी ननद सौम्या की शादी की बात चली। बाबू जी ने बड़े भइया को संदेश भेजवाया और कहा कि वो अपनी बहन की शादी के लिए अपनी तरफ से क्या खर्चा कर सकते हैं? बाबू जी बात से बड़े भइया ने पैसा देने से साफ इंकार कर दिया था। उनका कहना था कि उनका कारोबार आजकल बहुत घाटे में चल रहा है इस लिए वो पैसे नहीं पाएॅगे। बाबू जी उनकी इस बात से बेहद दुख हुआ। बाबू जी के दुख का जब विजय जी को पता चला तो वो खेतों से आकर हवेली में बाबू जी से मिले। उन्होने बाबू जी से कहा कि आप किसी बात की फिक्र न करें, सौम्या की शादी बड़े धूमधाम से ही होगी। बाबू जी जानते थे कि हवेली बनाने में जो कर्जा हुआ था उसे विजय जी ने कितनी मेहनत करके चुकाया था। इसके बाद कहीं फिर से न कर्ज़ा हो जाए। खैर, सौम्या की शादी हुई और वैसे ही धूमधाम से हुई जैसा कि विजय जी ने बाबू जी से कहा था। शहर से बड़े भइया और दीदी भी थे, वो दोनो हैरान थे किन्तु सामने पर यही कहते फिलते बाबू जी से कि इतना खर्च करने की क्या ज़रूरत थी? इससे जो कर्ज़ हुआ है उसे मेरे सिर पर मत मढ़ दीजिएगा। बाबू जी इस बात से बेहद गुस्सा हुए। कहने लगे कि तुम तो वैसे ही खुद को सबसे अलग समझते हो, तुम्हें किसी बात की चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मेरे दो दो सपूत अभी बाॅकी हैं जो मेरा हर तरह से साथ देंगे और दे भी रहे हैं। सौम्या की शादी के तीसरे दिन बड़े भइया ने बाबू जी से कहा कि अगर आप ये समझते हैं कि मैं आप सबसे खुद को अलग समझता हूँ तो आप मुझे सचमुच ही अलग कर दीजिए। ये रोज रोज की बेज्जती मुझसे नहीं सुनी जाती। बाबू जी ने कहा कि तुम तो अलग ही हो अब किस तरह अलग करें तुम्हें? तो बड़े भइया ने कहा कि मेरे हिस्से में जो भी आता हो उसे मुझे दे दीजिए। हवेली में और ज़मीनों में जो भी मेरा हिस्सा हो। बाबू जी उनकी इस बात पर गुस्सा हो गए। कहने लगे कि तुम्हारा हवेली में तभी हिस्सा हो सकता है जब तुम अपने हिस्से की कीमत दोगे। क्योंकि हवेली में तुमने अपनी तरफ से एक रुपया भी नहीं लगाया। हवेली में जो भी रुपया पैसा लगा और जो भी कर्ज़ा हुआ उस सबको अकेले विजय ने चुकता किया है। हाँ अगर विजय चाहे तो अपनी मर्ज़ी से तुम्हें बिना कीमत चुकाए हवेली में हिस्सा दे सकता है।

बाबू जी की बात से बड़े भइया नाराज़ हो गए। कहने लगे कि विजय होता कौन है मुझे हिस्सा देने वाला। उस मजदूर के सामने मैं हाँथ फैलाने नहीं जाऊॅगा। मुझे आपसे हिस्सा चाहिए। उनकी इन बातों से बाबू जी भी गुस्सा हो गए। कहने लगे कि अगर ऐसी बात है तो तुम्हें भी अपने कारोबार और शहर के मकान में दोनो भाइयों को हिस्सा देना होगा। तुम्हारा कारोबार तो वैसे भी विजय के ही पैसों की बुनियाद पर खड़ा हुआ है। बाबू जी इस बात से बड़े भइया ने साफ कह दिया कि मेरे कारोबार और शहर के मकान में किसी का कोई हिस्सा नहीं है। तो बाबू जी ने भी कह दिया कि फिर तुम भी ये भूल जाओ कि तुम्हारा इस हवेली में और ज़मीनों में कोई हिस्सा है।

बाबू जी की इस बात से बड़े भइया गुस्सा हो गए। कहने लगे कि ये आप ठीक नहीं कर रहे हैं। आप बाप होकर भी अपने बेटों के बीच पक्षपात कर रहे हैं। बाबू जी ने कहा कि तुम अपने आपको होशियार समझते हो कि तुम सबके हिस्सा ले लो और तुमसे कोई न ले। ये कहाँ का न्याय कर रहे हो तुम? अरे तुम तो बड़े भाई हो, तुम्हें तो खुद सोचना चाहिए कि तुम अपने छोटे भाइयों का भला करो और भला ही सोचो।

बाबू जी की इन बातों से बड़े भइया कुछ न बोले और पैर पटकते हुए वापस शहर चले गए। उधर ये सारी बातें जब विजय जी को पता चलीं तो वो बाबू जी से बोले कि आपको बड़े भइया से ऐसा नहीं कहना चाहिए था। भला क्या ज़रूरत थी उनसे ये कहने की कि हवेली में हिस्सा तभी मिलेगा जब वो अपने हिस्से की कीमत चुकाएॅगे? मैने ये सोच कर ये सब नहीं किया था कि बाद में मैं अपने ही भाइयों से हवेली की कीमत वसूल करूॅ। बाबू जी बोले इतना महान मत बनो बेटे। ये दुनिया बहुत बुरी है, यहाँ बड़े खुदगर्ज़ लोग रहते हैं। समय के साथ खुद को भी बदलो बेटा। वरना ये दुनिया तुम जैसे नेक और सच्चे ब्यकित को जीने नहीं देगी। बाबू जी की इस बात पर विजय जी बोले जैसे सूरज अपना रोशनी फैलाने वाला स्वभाव नहीं बदल सकता वैसे ही मेरा स्वभाव भी नहीं बदल सकता। आप और माॅ की सेवा करूॅ छोटे भाई के लिए खुद की सारी खुशियाॅ निसार कर दूॅ। भला क्या लेकर जाऊॅगा इस दुनियाॅ से? सब यहीं तो रह जाएगा न बाबू जी। इंसान की सबसे बड़ी दौलत व पूॅजी तो वो है जिसे पुन्य कहते हैं। एक यही तो लेकर जाता है वह भगवान के पास।

विजय जी की इन बातों से बाबू जी अवाक् रह गए। कुछ देर बाद बोले तू तो कोई फरिश्ता है बेटे। मन से बैरागी है तू। तुझे किसी धन दौलत का मोह नहीं है। जब तू पढ़ता लिखता नहीं था न तो दिन रात कोसता था तुझे। सोचता था कि कैसा निकम्मा बेटा दिया था मुझे भगवान ने लेकिन भला मुझे क्या पता था कि वही निकम्मा बेटा एक दिन इतना महान निकलेगा। मुझे तुझपे गर्व है बेटे। लेकिन मेरी एक बात हमेशा याद रखना कि दूसरों खुश रखने के लिए खुद का बने रहना भी ज़रूरी होता है।

बाबू जी की इस बात को सुन कर विजय जी मुस्कुराए और फिर से अपनी कर्मभूमि यानी खेतों पर चले गए। बाबू जी की बातों में छुपे किसी अर्थ को शायद विजय जी समझ नहीं पाए थे। लेकिन बाबू जी को शायद भविष्य दिख गया था।

उधर शहर में बड़े भइया और दीदी इस बार कुछ और ही खिचड़ी पका रहे थे। सौम्या की शादी को एक महीना हो गया था जब बड़े भइया और दीदी को तीसरी औलाद के रूप में एक बेटा हुआ था। वो दोनो शहर से आए थे घर। इस बार बाबू जी ने उनके बेटे के जन्म पर राज के जन्मोत्सव से भी ज्यादा उत्सव मनाया कारण यही था कि बड़े भइया और दीदी को ये न लगे कि हमें कोई खुशी नही हुई है उनके बेटे के जन्म पर। बड़े भइया खुद भी उत्सव में खूब पैसा बहा रहे थे। वो दिखाना चाहते थे कि वो किसी से कम नहीं हैं। ख़ैर, इस बार एक नई चीज़ देखने को मिली। वो ये थी कि बड़े भइया और दीदी हम सब से बड़े अच्छे तरीके से मिल जुल रहे थे। विजय जी से भी उन्होने अच्छे तरीके से बातें की। एक दिन बड़े भइया खेतों पर घूमने गए। वहाँ पर उन्होने देखा कि ज़मीनों पर काफी अच्छी फसल उगी हुई थी। बगल से जो बंज़र सा पहले बड़ा सा मैदान हुआ करता था अब वहाँ पर अच्छे खासे पेढ़ लगाए जा चुके थे। खेतों पर एक तरफ बड़ा सा मकान भी बन रहा था। खेतों पर बहुत से मजदूर काम कर रहे थे। विजय जी ने बड़े भइया को वहाँ पर देखा तो वो भाग कर उनके पास आए और बड़े आदर व सम्मान से उन्हें खेतों के बारें में तथा फसलों से होने वाली आमदनी के के बारे में बताने लगे। उन्होंने ये भी बताया कि दूसरी तरफ जो बीस एकड़ की खाली ज़मीन पड़ी थी उसमें मौसमी फलों के बाग़ लगाने की तैयारी हो रही है। उससे काफी ज्यादा आमदनी होगी।

ऐसे ही बातें चलती रही फिर बातों ही बातों में जब हवेली का ज़िक्र आया तो विजय जी ने खुद कहा कि हवेली में सबका बराबर का हिस्सा है वो जब चाहें ले सकते हैं। उन्हें कोई कीमत नहीं चाहिए। ये सब अपनो के लिए ही तो बनाया गया है। विजय जी की इन बातों से बड़े भइया खुश हो गए। किन्तु उनके मन में शायद कुछ और ही था जो उस वक्त समझ नहीं आया था।

ऐसे ही वक्त गुज़रता रहा। इसी बीच मुझे एक बेटी हुई और दस दिन बाद करुणा ने भी एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया। राज उस वक्त चार साल का हो गया था। वो दिन भर अपनी उन दोनो बहनों के साथ ही रहता, और उनके साथ ही हॅसता खेलता। शहर से बड़े भइया और दीदी भी आए थे। सबके लिए कपड़े भी लाए थे। हम सब बेहद खुश थे इस सबसे।

इस बीच एक परिवर्तन ये हुआ कि बड़े भइया शहर से हप्ते में एक दो दिन के लिए हवेली आने लगे थे। माॅ बाबू जी से वो बड़े सम्मान से बातें करते और खेतों पर भी जाते। वहाँ देखते सुनते सब। मैं और करुणा घर के सारे काम करती। उसके बाद मैं खेत चली जाती विजय जी के पास। खेतों में जो मकान बन रहा था वो बन गया था।

इस बीच बच्चे भी बड़े हो रहे थे। राज पाॅच साल का हुआ तो उसका स्कूल में दाखिला करा दिया अभय ने। गर्मियों में जब स्कूल की छुट्टियाॅ होती तो बड़े भइया और दीदी के बच्चे भी शहर से गाॅव हवेली में आ जाते। सब बच्चे एक साथ खेलते और खेतों में जाते। बड़े भइया की बड़ी बेटी रितू अपनी माॅ पर गई थी। वो ज्यादा हम लोगों से घुलती मिलती नहीं थी। शिवा अपने बाप पर ही गया था। वह अपनी चीज़ें किसी को नहीं देता था और दूसरों की चीज़ें लड़ झगड़ कर ले लेता था। राज से अक्सर उसकी लड़ाई हो जाती थी। बच्चे तो नासमझ होते हैं उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान कहाँ होता है। इस लिए अगर इनकी आपस में कभी लड़ाई होती तो जेठानी जी अक्सर नाराज़ हो जाती थीं। बड़ी मुश्किल से गर्मियों की छुट्टियाॅ कटती और जेठानी जी अपने बच्चों को लेकर शहर चली जातीं।

प्रतिमा अपने पति के साथ जब अपने कमरे में पहुॅची तो अचानक ही पीछे से अजय ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया साथ ही अपने होठों को उसकी गर्दन पर लगा कर करते हुए अपने दोनो हाथों से प्रतिमा के बड़े बड़े चूॅचों को बुरी तरह मसलने लगा।

"आऽऽऽह धीरे से प्लीज़।" प्रतिमा की दर्द और मज़े में डूबी आह निकल गई थी, बोली___"ज़रा धीरे से आहहहहह मसलो न अजय। मुझे दर्द हो रहा है।"

"ये धीरे से मसलने वाली चीज़ नहीं है मेरी जान।" अजय सिंह ने उसी तरह प्रतिमा के चूॅचों को मसलते हुए कहा__"इन्हें तो आटे की तरह गूॅथा और मसला जाता है। देख लो मैं वही कर रहा हूँ।"

"वो तो मैं देख ही रही हूँ।" प्रतिमा ने आहें भरते हुए कहा___"पर मुझे ये नहीं समझ आ रहा कि इस समय तुम ये सब इतने उतावलेपन से क्यों कर रहे हो? आख़िर किस बात का जोश चढ़ गया है तुम्हें?"

"मत पूछो डियर।" अजय सिंह ने खुद आह सी भरते हुए कहा___"इस हवेली में आज एक और चूॅत आ गई है। मेरी छोटी बहन की प्यारी प्यारी सी चूॅत। हाय काश! उसकी उस चूॅत को पेलने का मौका मिल जाए तो कसम से मज़ा आ जाए प्रतिमा।"

"हे भगवान।" प्रतिमा उछल पड़ी__"तो इस वजह से जोश चढ़ा हुआ है तुम्हें? कसम से अजय तुम न कभी नहीं सुधर सकते। तुम्हारे ही नक्शे कदम पर हमारा बेटा भी चल रहा है। मैने हज़ार बार देखा है उसे, उसकी नज़रें अपनी बहनों पर ही नहीं खुद मुझ पर भी गड़ जाती हैं। उसे ये भी ख़याल नहीं कि मैं उसकी माॅ हूँ। ये सब तुम्हारी वजह से है अजय। तुम खुद उसकी ग़लतियों को नज़रअंदाज़ करते रहते हो।"

"अरे तो क्या हो गया मेरी जान?" अजय ने प्रतिमा को उठाकर बेड पर लेटा दिया और फिर उसके ऊपर आकर बोला___"नज़रें तो होती ही हैं नज़ारा करने के लिए। तुम तीनो माॅ बेटियाॅ हो ही इतनी हाँट एण्ड सेक्सी कि हमारे बेटे का भी इमानडोल गया।"

"तुम्हारे बेटे का बस चले तो अपनी माॅ बहनों को भी अपने नीचे लेटा कर पेल दे।" प्रतिमा ने हॅस कर कहा था।
"तो इसमें दिक्कत क्या है डियर?" अजय ने बेशर्मी से हॅसते हुए कहा__"उसे भी अपनी कुण्ड का अमृत पिला दो। शायद उसकी प्यास और तड़प मिट ही जाए।"

"ओह अजय कुछ तो शर्म करो।" प्रतिमा ने हैरानी से देखा__"भला ऐसा मैं कैसे कर सकती हूँ? वो मेरा बेटा है, मैने उसे पैदा किया है।"
"तो क्या हुआ मेरी जान?" अजय ने अपना एक हाँथ सरका कर प्रतिमा की साड़ी को ऊपर कर उसकी नंगी चूॅत को मसलते हुए कहा___"इसी रास्ते से ही पैदा किया ना अपने बेटे को? अब इसी रास्ते का स्वाद भी चखा दो उसे। यकीन मानो मेरी जान उसके बाद तुम्हारा बेटा तुम्हारा गुलाम ना हो जाए तो कहना।"

"उफफफफ अजय तम्हें ज़रा भी एहसास नहीं है कि तुम क्या बकवास किये जा रहे हो?" प्रतिमा ने नाराज़गी भरे लहजे से कहा__"तुम मुझे ऐसा करने के लिए कैसे कह सकते हो? क्या तुम्हें ज़रा सी भी इस बात से तक़लीफ़ नहीं होगी कि हमारा बेटा तुम्हारी चीज़ों का भोग करे? किस मिट्टी के बने हो तुम यार?"

"यार तो कौन सा घिस जाएगी तुम्हारी ये रस से भरी हुई चूत?" अजय ने अपने हाँथ की दो उॅगलियाॅ प्रतिमा की रिस रही चूत में अंदर तक डाल कर कहा___"एक बार अपने बेटे का हथियार भी तो डलवा कर मज़ा लो। सक्सेना के साथ तो बड़ा मज़ा करती थी तुम। दो दो हथियारों से आगे पीछे से पेलवाती थी तुम। कसम से डियर, अगर ऐसा हो जाए तो मज़ा ही आ जाए। हम दोनो बाप बेटे एक साथ मिल कर तुम्हारी आगे पीछे से ठुकाई करेंगे।"

"आआआहहहहह अजय।" प्रतिमा ने मदहोशी में कहा___"मत करो ऐसी बातें। मुझे कुछ हो रहा है।"
"हाहाहाहा जब ऐसी बातों से ही तुम्हें कुछ होने लगा है तो ज़रा सोचो डार्लिंग।" अजय ने हॅसते हुए कहा___"सोचो डियर तब क्या होगा जब हम दोनो बाप बेटों के हथियार तुम्हारी पेलाई करेंगे?"

"शशशशशशश कुछ करो अजय।" प्रतिमा की हालत ख़राब___"जल्दी से कुछ करो। मेरी चूत में आग जलने लगी है। इसे बुझाओ जल्दी। वरना मैं इस आग में जल जाऊॅगी।"

"क्या करूॅ डियर?" अजय मुस्कुराया था।
"कुछ भी करो।" प्रतिमा ने बेड सीट को दोनो हाथों की मुट्ठियों में भींचते हुए कहा___"पर मेरी इस आग को शान्त करो जल्दी। उफफफ ये आज क्या हो रहा है मुझे??"

"आज बेटे के हथियार की बात चली है ना इस लिए शायद ऐसा हो रहा है तुम्हें।" अजय ने कहा__"पर बेटे का हथियार तो इस वक्त यहाँ नहीं है मेरी जान। कहो तो फोन करके शहर से बुला लूॅ उसे?"

"उसे तो आने में समय लगेगा अजय।" प्रतिमा ने आहें भरते हुए कहा___"तुम्हें ही इस आग को शान्त करना पड़ेगा। शशश जल्दी मुझे पेलो ना अजय।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:33 PM

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