non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:31 PM,
#85
RE: non veg kahani एक नया संसार
मुम्बई जाने वाली ट्रेन के उस जनरल कोच में भीड़ तो इतनी नहीं थी किन्तु नाम तो जनरल ही था। कोई किसी को भी बैठने के लिए सीट देने को तैयार नहीं था। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो ज़बरदस्ती लड़ झगड़ कर अपने बैठने के लिए सीट का जुगाड़ कर ही लेते हैं। यहाँ प्यार इज्जत या अनुनय विनय करने वाले को कोई सीट नहीं देता और ना ही सीट के ज़रा से भी हिस्से में कोई बैठने देता है। जनरल कोच में तो ऐसा है कि अगर आप गाली गलौच या लड़ना जानते हैं या फिर तुरंत ही किसी भी ब्यक्ति पर हावी हो जाना जानते हैं तो बेहतर है। क्योंकि उससे आपको जल्द ही कहीं न कहीं सीट मिल जाती है बैठने के लिए। लेकिन उसमें भी शर्त ये होती है कि आपके पास अपनी सुरक्षा के लिए अपने साथ कुछ लोगों का बैकप होना ज़रूरी है वरना अगर आप अकेले हैं और अकेले ही तोपसिंह बनने की कोशिश कर रहे हैं तो समझिये आपका बुरी तरह पिट जाना तय है।

अभय सिंह गरम मिज़ाज का आदमी था। उसे कब किस बात पर क्रोध आ जाए ये बात वो खुद ही आज तक जान नहीं पाया था। मगर आज उस पर कोई क्रोध हावी न हुआ था। उसने सीट के लिए किसी से कुछ नहीं कहा था, बल्कि हाँथ में एक छोटा सा थैला लिए वह दरवाजे के पास ही एक तरफ कभी खड़ा हो जाता तो कभी वहीं पर बैठ जाता। सारी रात ऐसे ही निकल गई थी उसकी।

ट्रेन अपने नियमित समय से चार घंटे लेट थी। ये तो भारतीय रेलवे की कोई नई बात नहीं थी किन्तु इस सबसे यात्रियों को जो परेशानी होती है उसका कोई कुछ नहीं कर सकता, ये एक सबसे बड़ी समस्या है। यद्यपि अभय को समय का आभास ही इतना नहीं हुआ था क्योंकि वो तो अपने परिवार और अपने बीवी बच्चों के बारे में ही सोचता रहा था। रह रह कर उसके मन में ये विचार उठता कि उसने अपनी देवी समान भाभी के साथ अच्छा नहीं किया। उसे अपने भतीजे का भी ख़याल आता कि कैसे वह उसे हमेशा इज्जत व सम्मान देता था। परिवार में वही एक लड़का था जिस पर संस्कार और शिष्टाचार कूट कूट कर भरे हुए थे। उसे अपने इस भतीजे पर बड़ा स्नेह और फक्र भी होता था। उसकी भतीजी निधि उसकी लाडली थी। वह परिवार में सबसे ज्यादा निधि को ही प्यार और स्नेह देता था। सब जानते थे कि अभय गुस्सैल स्वभाव का था किन्तु उसका गुस्सा कपूर की तरह उस वक्त काफूर हो जाता जब उसकी लाडली भतीजी अपनी चंचल व नटखट बातों से उसे पहले तो मनाती फिर खुद ही रूठ जाती उससे। उसका अपनी किसी भी बात के अंत में 'हाँ नहीं तो' जोड़ देना इतना मधुर और हृदय को छू लेने वाला होता कि अभय का सारा गुस्सा पल में दूर हो जाता और वह अपनी लाडली भतीजी को खूब प्यार करता। परिवार की बाॅकी दो भतीजियाॅ उसके पास नहीं आती थी, क्यों कि वो सब उससे डरती थी।

अभय का दिलो दिमाग़ गुज़री हुई बातों को सोच सोच कर बुरी तरह दुखी होता और उसकी आँखें भर आतीं। वह अपने मन में कई तरह के संकल्प लेता हुआ खुद के मन को हल्का करने की कोशिश करता रहा था।

आख़िर वह समय भी आ ही गया जब ट्रेन मुम्बई के कुर्ला स्टेशन पर पहुॅची। अभय अपनी सोचों के अथाह समुद्र से बाहर आया और उठ कर गेट की तरफ चल दिया। काफी भीड़ थी अंदर, लोग जल्द से जल्द नीचे उतरने के लिए जैसे मरे जा रहे थे। अभय खुद भी लोगों के बीच धक्के खाते हुए गेट की तरफ आ रहा था। हलाॅकि खड़ा वह गेट के थोड़ा पास ही था किन्तु वह इसका क्या करता कि पीछे से आँधी तूफान बन कर आते हुए लोग बार बार उसे पीछे धकेल कर खुद आगे निकल जाते थे। वह बेचारा बेज़ुबान सा हो गया था। कदाचित् उसकी मानसिक स्थित उस वक्त ऐसी नहीं थी कि वह लोगों के द्वारा खुद को बार बार पीछे धकेल दिये जाने पर कोई प्रतिक्रिया कर सके।

कुछ देर बाद आख़िर वह गेट के पास पहुॅचा और ट्रेन से नीचे उतर गया। प्लेटफार्म पर आदमी ही आदमी नज़र आए उसे। उसे समझ न आया कि किस तरफ जाए? इतने बड़े मुम्बई शहर में वह अपनी भाभी व उनके दोनो बच्चों को कहाँ और कैसे ढूॅढ़ेगा? उसका तो खुद का कहीं ठिकाना नहीं था। उसे अब महसूस हुआ कि वो कितना असहाय और थका हुआ लग रहा है। भूख और प्यास ने जैसे उस पर अब अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। वह अपने साथ खाने पीने की कोई चीज़ लेकर नहीं चला था। कल अपने दोस्त के घर से खाकर ही चला था। हलाॅकि इतने बड़े सफर के लिए उसके दोस्त की बीवी ने खाने का एक टिफिन तैयार कर दिया था किन्तु अभय ने जाने क्या सोच कर मना कर दिया था।

ट्रेन से उतर कर अभय ने उसी तरफ चलने के लिए अपने कदम बढ़ाए जिस तरफ सारे लोग जा रहे थे। अभी वह कुछ कदम ही चला था कि एक कुली उसके पास आया और उसके अत्यंत निकट आकर बड़े ही रहस्यमय किन्तु संतुलित स्वर में बोला__"साहब जी! आपके भतीजे विराज जी आपको लाने के लिए हमें भेजे हैं। कृपया आप मेरे साथ जल्दी चलें।"

अभय सिंह को पहले तो कुछ समझ न आया फिर जब उसके विवेक ने काम किया तो कुली की इस बात को समझ कर वह बुरी तरह चौंका। उसके चेहरे पर अविश्वास के भाव नाच उठे। उसके मुख से हैरत में डूबा हुआ स्वर निकला__"क् कौन हो तुम? और कहाँ है मेरा भतीजा?"

"साहब जी अभी आप ज्यादा कुछ न बोलिए।" उस कुली ने कहा__"बस मेरे साथ चलिए और अपना ये बैग मुझे दीजिए। और हाँ, आप चेहरे से ऐसा ही दर्शाइये जैसे आप अपना सामान कुली को देकर उसके साथ बाहर जा रहे हैं। इधर उधर कहीं मत देखिएगा।"

"अरे...ऐसे कैसे भाई?" अभय को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है उसके साथ__"कौन हो तुम और ये सब क्या है?"
"ओह साहब जी समझने की कोशिश कीजिए।" कुली ने चिन्तित स्वर में कहा__"यहाँ पर ख़तरा है आपके लिए। इस लिए जल्दी से चलिए मेरे साथ। स्टेशन से बाहर आपके भतीजे विराज जी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।"

अभय के दिलो दिमाग़ में झनाका सा हुआ। एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। उसके मन में विचार उठा कि ये आदमी मुझे जानता है और मेरे लिए ही आया है, वरना दूसरे किसी आदमी को ये सब भला कैसे पता होता? दूसरी बात ये विराज का नाम ले रहा है और कह रहा है कि मेरा भतीजा स्टेशन से बाहर मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन ख़तरा किस बात का है यहाँ??

अभय को पूरा मामला तो समझ न आया किन्तु उसने इतना अवश्य किया कि अपना बैग उस कुली को दे दिया। कुली उसका बैग लेकर तुरंत ही पलटा और स्टेशन के बाहर की तरफ चल दिया। उसके पीछे पीछे अभय भी चल दिया। दिमाग़ में कई तरह के विचारों का अंधड़ सा मचा हुआ था उसके।

स्टेशन से बाहर आकर वो कुली अभय को लिए एक टेक्सी के पास पहुॅचा। टैक्सी के अंदर बैग रख कर कुली ने अभय को टैक्सी के अंदर बैठने को कहा। लेकिन अभय न बैठा, उसने सशंक भाव से देखा कुली की तरफ। तब कुली ने एक तरफ हाँथ का इशारा किया। अभय ने उस तरफ देखा तो चौंक गया, क्योंकि जिस तरफ कुली ने इशारा किया था उस तरफ उसका भतीजा विराज खड़ा था। विराज ने दूर से ही टैक्सी में बैठ जाने के लिए इशारा किया।

अभय अपने भतीजे को देख खुश हो गया और उसने राहत की सास भी ली। वह जल्द ही टैक्सी में बैठ गया। टैक्सी के अंदर चार आदमी थे। अभय के बैठते ही टैक्सी तुरंत आगे बढ़ गई। अभय को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे ये सब पहले से ही प्लान बनाया हुआ था। किन्तु उसे ये समझ न आया कि इस सबकी क्या ज़रूरत थी? आख़िर ये क्या चक्कर है?

"तुम सब लोग कौन हो भाई?" टैक्सी के कुछ दूर जाते ही अभय ने पूछा__"और ये सब क्या चक्कर है? मेरा मतलब है कि मुझे इस तरह रहस्यमय तरीके से क्यों ले जाया जा रहा है?"

"साहब जी ये तो हम भी नहीं जानते कि क्या चक्कर है?" कुली बने शंकर ने कहा__"हम तो वही कर रहे हैं जो करने के लिए विराज साहब ने हमे आदेश दिया था।"

अभय ये सुन कर मन ही मन चौंका कि ये विराज को साहब क्यों कह रहा है? किन्तु फिर प्रत्यक्ष में बोला__"ओह, तो अभी हम कहाँ चल रहे हैं? और मेरा भतीजा विराज कहाँ गया? वो इस टैक्सी में क्यों नहीं आया?"

"वो अपनी कार में हैं साहब जी।" शंकर ने कहा__"वो हमें आगे एक जगह मिलेंगे।"
"अ अपनी..क..कार में?" अभय लगभग उछल ही पड़ा था। उसे इस बात ने उछाल दिया कि उसके भतीजे के पास कार कहाँ से आ गई? वह तो खुद भी यही समझ रहा था कि विराज कोई मामूली सा काम करता होगा यहाँ।

"जी साहब जी।" उधर अभय के मनोभावों से अंजान शंकर ने कहा__"आगे एक जगह पर हमें विराज साहब मिल जाएॅगे। फिर आपको उनके साथ उनकी कार में बैठा कर हम इस टैक्सी को वापस कर देंगे जहाँ से लाए थे।"

"क्या मतलब?" अभय चौंका, झटके पर झटके खाते हुए पूछा__"कहाँ से लाए थे इसे? क्या ये टैक्सी तुम्हारी नहीं है?"
"नहीं साहब जी, ये टैक्सी तो हमने किराए पर ली थी।" शंकर ने कहा__"विराज साहब ने ऐसा ही कहा था। बाॅकी सारी बातें वही बताएॅगे आपको।"

अभय उसकी बात सुनकर चुप रह गया। उसे समझ में आ चुका था कि सारी बातें विराज से ही पता चलेंगी। क्योंकि इन्हें ज्यादा कुछ पता नहीं है। शायद विराज ने इन्हें नहीं बताया था। पर ये लोग विराज को साहब क्यों कह रहे हैं? क्या वो इन लोगों का साहब है? अभय का दिमाग़ जैसे जाम सा हो गया था।

अभय को ये बात हजम नहीं हो रही थी। लेकिन उसने फिर कुछ न कहा। टैक्सी तेज़ रफ्तार से कई सारे रास्तों में इधर उधर चलती रही। कुछ ही देर में टैक्सी एक जगह पहुॅच कर रुक गई। टैक्सी के रुकते ही शंकर नीचे उतरा और पीछे का गेट खोल कर अभय को उतरने का संकेत दिया। अभय उसके संकेत पर टैक्सी से उतर आया। अभी वह टैक्सी से उतर कर ज़मीन पर खड़ा ही हुआ था कि तभी।

"प्रणाम चाचा जी।" अभय के उतरते ही एक तरफ से आकर विराज ने अभय के पैर छूकर कहा__"माफ़ कीजिएगा आपको इस तरह यहाँ लाना पड़ा।"

"अरे राज तुम?? सदा ही खुश रहो।" अभय ने कहा और एकाएक ही भावना में बह कर उसने विराज को अपने गले से लगा लिया, फिर बोला__"आ मेरे गले लग जा मेरा शेर पुत्तर। कदाचित् मेरे दिल को ठंडक मिल जाए।"

अभय की आँखों में आँसू छलक आए थे। उसने बड़े ज़ोर से विराज को भींच लिया था। विराज को भी आज अपने चाचा जी के इस तरह गले लगने से बड़ा सुकून मिल रहा था। आज मुद्दतों बाद कोई अपना इस तरह मिला था। शिकवे गिले तो बहुत थे लेकिन सब कुछ भूल गया था विराज। कुछ देर ऐसे ही दोनो गले मिले रहे। फिर अलग हुए। अभय अपने दोनो हाँथों से विराज का सुंदर सा चेहरा सहला कर उसके शरीर के बाॅकी हिस्सों को देखने लगा।

"कितना दुबला हो गया है मेरा बेटा।" अभय ने भर्राए स्वर में कहा__"पगले अपना ठीक से ख़याल क्यों नहीं रखता है तू? और भ भाभी कैसी हैं...और...और वो मेरी लाडली गुड़िया कैसी है..बता मुझे??"

"सब लोग एकदम ठीक हैं चाचा जी।" विराज ने कहा__"चलिए हम वहीं चलते हैं।"
"हाँ हाँ चल राज।" अभय ने तुरंत ही कहा__"मुझे जल्दी से ले चल उनके पास। मुझे भाभी के पास ले चल...मुझे उनसे....।"

वाक्य अधूरा रह गया अभय सिंह का..क्यों कि दिलो दिमाग़ में एकाएक ही तीब्रता से जज्बातों का उबाल सा आ गया था। जिसकी वजह से उसका गला भारी हो गया और उसके मुख से अल्फाज़ न निकल सके।
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