non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:31 PM,
#83
RE: non veg kahani एक नया संसार
"नहीं डैड।" रितू ने कहा__"बड़ा ही पेंचीदा मामला है। इस मामले में कुछ भी पता नहीं चल सका कि वो कौन था? हाॅ इतना जरूर पता किया कि फैक्टरी के गेट के बाहर मौजूद गार्ड झूठ बोल रहा था। दरअसल जिस रात ये हादसा हुआ था उस रात गेट पर एक ही गार्ड था और वो भी चौबीस घंटे की ड्यूटी पर। इस लिए रात में वह गेट के बाहर रखी कुर्सी पर बैठा बैठा ही ऊॅघ रहा था। इसके बाद उसने ये बताया कि उसे ये आभास हुआ कि कोई चीज़ उसकी नाॅक के पास लाई गई थी। जिसके असर से उसे पता ही नहीं चला कि वह कब बेहोश हो गया था? उसके बाद तब उसे होश आया जब फैक्टरी में लगी आग से अफरा तफरी मची हुई थी। यकीनन जो चीज़ उसके नाॅक के पास लाई गई थी वह क्लोरोफाॅम डाला हुआ कोई रुमाल रहा होगा या फिर खुद क्लोरोफाॅम की बाॅटल। इस हादसे से वह गार्ड बहुत ज्यादा डर गया था इसी लिए शुरू में उसने यही कहा था कि वह रात भर जागता रहा था और उसके सामने कोई भी ऐसा ब्यक्ति नहीं आया था जो फैक्टरी के अंदर गया हो।"

"तो फिर क्या फायदा हुआ तुम्हारे द्वारा केस को रिओपन करने से?" अजय सिंह ने रितू की तरफ अजीब भाव से देखते हुए कहा__"आख़िर क्या नतीजा निकला बेटी? वरना जिस तरह से तुमने इस केस को रिओपन किया था उससे तो यही ज़ाहिर हो रहा था कि इस बार कोई न कोई सुराग़ ज़रूर पुलिस के हाथ लगेगा। दूसरी बात ये भी मुझे पता चली थी कि इस केस के रिओपन होने के तुरंत बाद ही रातों रात शहर के सारे पुलिस डिपार्टमेन्ट का तबादला कर दिया गया था। सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ था?"

"ये सवाल तो मेरे लिए भी सोचने का विषय बना हुआ है डैड।" रितू ने सोचने वाले भाव से कहा__"मुझे खुद ये बात समझ में नहीं आ रही कि गृह मंत्री ने शहर के सारे पुलिस विभाग का रातों रात तबादले का आदेश किस वजह से दिया था? अगर हम ये सोचें कि इसकी वजह ये है कि पिछली बार फैक्टरी के केस में पुलिस ने अपनी पूरी ईमानदारी से तहकीकात नहीं की थी बल्कि ग़लत रिपोर्ट तैयार की थी तो भी ये इतनी बड़ी वजह नहीं हो सकती कि इसकी वजह से शहर के सारे पुलिस विभाग का इस तरह तबादला कर दिया जाए। पिछली रिपोर्ट पर ऊपर से इंक्वायरी भी हुई थी। जिसमें पुलिस के उस अफसर ने ये बयान दिया था कि ऐसी रिपोर्ट बनाने के लिए आपने कहा था क्यों कि आप नहीं चाहते थे कि इसकी वजह से आपकी इज्जत नीलाम हो जाए। ख़ैर, आपके कहने पर उस अफसर ने भले ही ग़लत रिपोर्ट बनाई थी लेकिन इसके लिए उसे ज्यादा से ज्यादा सस्पेंड किया जा सकता था मगर ऐसा नहीं हुआ बल्कि शहर का सारा पुलिस विभाग ही बदल दिया गया। यही वो बात है डैड जिसने दिमाग़ का दही किया हुआ है।"

"हम्म...यकीनन।" अजय सिंह ने गहन सोच के साथ कहा__"बात तो वाकई बड़ी ही चक्करदार है बेटी। और सबसे बड़ी समस्या तो ये है कि इस बारे में गृहमंत्री से पूछा भी नहीं जा सकता।"

तभी प्रतिमा हाथ में ट्रे लिए हुई आई। उसने काफी का कप रितू को दिया और चाय का एक कप अजय सिंह को और चाय का ही एक कप खुद लेकर वहीं सोफे पर बैठ गई।

"क्या बातें हो रही हैं बाप बेटी के बीच?" प्रतिमा ने मुस्कुरा कर कहा था।

अजय सिंह ने संक्षेप में उसे बता दिया। सुन कर प्रतिमा ने कहा__"ये तो सचमुच बड़ी सोचने वाली बात है। इस केस में आख़िर ऐसा क्या था जिसके लिए खुद गृहमंत्री को भी हस्ताक्षेप करना पड़ा? इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने रातो रात शहर के सारे पुलिस विभाग का तबादला भी कर दिया था।"

प्रतिमा की इस बात के बाद वहाॅ पर सन्नाटा छा गया। कोई कुछ न बोला, कदाचित् इस लिए कि किसी के पास इसका कोई जवाब नहीं था। ये अलग बात थी सबके मन में ये बात गहन रूप से विचाराधीन थी।
_________________________

"नहीं...प्लीज़ रुक जाइये...आप इस तरह कैसे जा सकते हैं?" निधि ने रोते हुए कहा था__"हम तो पिकनिक टूर पर आए थे न, फिर इतनी जल्दी ये टूर कैसे समाप्त हो जाएगा? और....और ये अचानक क्या हो गया है आपको जो ये कह रहे हैं कि हम अब घर चलेंगे???"

"मुझे कुछ नहीं हुआ है।" विराज ने अजीब भाव से कहा__"हम घर जा रहे हैं बस और कोई बात नहीं।"

ये कह विराज ने निधि को अपनी पीठ पर से अलग कर आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ाया। किन्तु ज्यादा दूर जा नहीं सका वह। क्योंकि उसके कानों में तुरंत ही निधि का करुणायुक्त वाक्य टकराया__"आपको मेरी कसम है अगर आपने एक क़दम भी आगे बढ़ाया तो मैं अपनी जान दे दूॅगी। मुझे बताइये कि आख़िर क्या हो गया है ऐसा जिसकी वजह से आप अचानक ही इस तरह का बर्ताव करने लगे। अगर मुझसे कोई ग़लती हो गई है तो आप उसके लिए मुझे जो चाहे सज़ा दे दीजिए....मुझे आपकी हर सज़ा मंजूर है। लेकिन अपने प्रति आपकी ऐसी बेरुखी मैं सह नहीं सकती।"

"मेरी इस बेरुखी की वजह तुम अच्छी तरह जानती हो।" विराज ने एक झटके में पलट कर कहा था__"तुम जानती हो कि किस वजह से मेरा बर्ताव अचानक ही बदल गया है। अगर नहीं जानती तो इस तरह रोती नहीं और ना ही मुझे अपनी कसम देती।"

निधि देखती रह गई विराज को। उसे तुरंत कोई जवाब न सूझा था। आॅखों में आॅसू लिए वह बड़ी मुश्किल से अपने दिल के जज़्बातों को काबू में करने की नाकामयाब कोशिश कर रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो विराज से क्या कहे?

"तुम ऐसा कैसे कर सकती हो गुड़िया?" उसे चुप देख विराज ने कहा__"क्या एक बार भी तुम्हें ये ख़याल नहीं आया कि तुम ये क्या कर रही हो? क्या एक बार भी ये नहीं सोचा कि मैं तुम्हारा सगा भाई हूॅ? क्या एक बार भी नहीं सोचा कि जो रिश्ता तुम बना रही हो वो भाई बहन के बीच नहीं हो सकता? क्यों गुड़िया, क्यों किया ऐसा?"

"मुझे माफ कर दीजिये।" निधि की रुलाई फूट गई, बोली__"मैंने जान बूझ कर ये सब नहीं किया। ये तो बस हो गया। कब कैसे मुझे खुद पता नहीं चला। आप यकीन कीजिए भइया, मैने ये नहीं किया। आप तो जानते हैं न कि कोई किसी से जान बूझ कर या सोच समझ कर प्यार नहीं करता बल्कि लोगों को किसी खास ब्यक्ति से प्यार खुद ही हो जाता है। और उसे स्वयं इस बात का पता नहीं चल पाता। वैसा ही मेरे साथ हुआ है भइया।"

"लेकिन ये ग़लत है मेरी गुड़िया।" विराज ने कहा__"क्या तू नहीं जानती ये बात?"

"मैं जानती हूॅ कि ये ग़लत है।" रितु ने नज़रें झुका कर किन्तु भारी स्वर में कहा__"ये भी जानती हूॅ कि देश समाज भाई बहन के बीच इस रिश्ते को कभी मान्यता नहीं दे सकता बल्कि ऐसे रिश्ते को पाप समझ कर ऐसा रिश्ता रखने वाले को गाॅव समाज से बहिस्कृत कर देता है। इसी लिए मैने कभी आपके सामने ये ज़ाहिर नहीं होने दिया कि मेरे दिल में आपके लिए क्या है? मैने अकेले में खुद को लाखों बार समझाया कि मुझे अपने दिलो दिमाग़ से आपके प्रति ऐसे ख़याल निकाल देना चाहिए क्यों कि ये ग़लत था। मगर मेरा दिल खुद के द्वारा लाखों बार समझाने के बाद भी मेरी नहीं सुनता। मैं क्या करूॅ भइया....हाय कितनी बुरी हूॅ मैं और कितनी बद्किस्मत भी हूॅ कि जिससे मुझे जीवन में पहली बार दिलो जान से प्यार हुआ वो मेरे भाई हैं तथा एक ही माॅ की कोख से जन्में हैं। मेरे दिल ने जिनकी अटूट चाहत व हसरत पाल बैठा वो उसे कभी मिल ही नहीं सकते।"

कहते कहते निधि वहीं फर्स पर असहाय अवस्था में बैठ कर ज़ार ज़ार रोने लगी। जाने कब से उसके दिल में ये गुबार बाहर निकलने के लिए मचल रहा था। आज उस गुबार ने दिल की कैद से बाहर निकल आने का जैसे रास्ता ढूॅढ़ लिया था। हमेशा हॅसती खेलती व शरारतें करने वाली निधि आज जैसे इस सबके बाद दुख का दर्पण बन गई थी। जिस दिन उसे इस बात का एहसास हुआ था कि उसे अपने ही भाई से प्यार हो गया है उस दिन वह खूब रोई थी। क्योंकि वह इस बात को भली भाॅति जानती और समझती थी कि ये ग़लत है। अपने ही भाई को अपना महबूब बना लेना कतई उचित नहीं है। इस संबंध को समाज निम्न दृष्टि से देखता है। उसने इस बारे में अपने आपको बहुत समझाया था। सबके सामने उसी तरह हॅसती मुस्कुराती रहती किन्तु अपने कमरे में रात की तन्हाई में जब उसका मन भटकते हुए अपने भाई तक पहुॅच जाता तो सहसा उसको झटका सा लग जाता था। धड़कने रुक सी जाती उसकी और ये ख़याल उसे पल में रुला देता कि ये उसके दिल ने क्या कर दिया? वह रात रात भर इस बारे में सोचती रहती और भावना व जज़्बातों के भॅवर में खुद को रुलाती रहती। दिल के हाॅथों मजबूर हो चुकी थी वह। छोटी सी इस ऊम्र में उसके दिल ने ये कैसा रोग़ लगा लिया था, और लगाया भी था तो किसका.....खुद अपने ही भाई का? जो उसका कभी हो ही नहीं सकता था।

उस दिन तो वह बहुत रोई थी जिस दिन उसे ये पता चला था कि उसका भाई किसी ऐसी लड़की से प्यार करता है जिसने उसके भाई को सिर्फ इस लिए दुत्कार कर छोंड़ दिया है कि अब वह धन दौलत वाला नहीं रहा। इस बात ने निधि के दिल में जाने क्यों जलन पैदा कर दी थी उस वक्त। लेकिन वहीं इस बात से उसके मन को थोड़ा राहत भी हुई थी कि वह लड़की अब उसके भाई को छोंड़ कर उसके जीवन से जा चुकी है। निधि खुद से ये सवाल करती कि उसको इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि उसके भाई के जीवन से कोई लड़की जा चुकी है या नहीं। पर दिल के किसी कोने से उसे ये आवाज़ भी आती कि 'बहुत फर्क पड़ता है....राज सिर्फ मेरे हैं'

अपने दिल की इस आवाज़ को सुन कर उसके रोंगटे खड़े हो जाते। उसका मन मयूर नाचने लग जाता था। मगर जब उसे इस बात का बोध होता कि वो जिसे प्यार करती है तथा जिसको अपना बनाने की हसरत रखती है वो तो उसका सगा भाई है जिसे वो किसी भी कीमत पर अपना नहीं बना सकती तो उसका दिल बैठ जाता। ये एहसास उसे एक ही पल में ज़िन्दा लाश में तब्दील कर देता। उसके अंदर एक हूक सी उठती और फिर आॅखों से मानो गंगा जमुना बहने लग जातीं। उसे लगता कि इस दुनिया में उससे ज्यादा कोई दुखी नहीं है।

निधि को इस तरह ज़ार ज़ार रोते देख विराज तड़प कर रह गया। आख़िर थी तो उसकी बहन ही। ऐसी बहन जिसकी आॅखों में आॅसू का एक कतरा भी वह नहीं देख सकता था। हालातों ने भले ही अपना चेहरा बदल लिया था और ये बता दिया था कि उसकी बहन के मन में वो जाने कब से एक महबूब बन कर बैठा हुआ था लेकिन वह तो अभी भी यही समझता था न कि निधि उसकी बहन ही है। जिसको वह किसी भी तरह दुख में नहीं देख सकता। इस लिए इसके पहले जो उसने बेरुखी का आवरण धारण कर लिया था उस आवरण को उसने सीघ्र ही दरकिनार कर दिया और तुरंत ही झुक कर फर्स पर बैठी रो रही अपनी बहन को उसके दोनो कंधों से पकड़ कर हौले से उठाया और अपने सीने से लगा लिया।

"बस कर अब।" विराज ने भर्राए हुए गले से कहा__"तू जानती है ना कि मैं तेरी आॅखों में आॅसू का एक कतरा भी नहीं देख सकता। इस तरह रो कर क्यों मेरे हृदय को चोंट पहुॅचा रही है गुड़िया? चल अब शान्त हो जा।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भइया।" निधि ने विराज के सीने से लगे हुए कहा__"लेकिन ये सच है कि मैं आपसे बेइंतहा प्यार करती हूॅ और आपके बिना एक पल भी जीने का सोच भी नहीं सकती। मैं जानती हूॅ भइया कि ये ग़लत है पर आप मेरी बेबसी को भी समझिये। आप मेरे मन मंदिर में इस हद तक बस चुके हैं कि अब मैं ही क्या बल्कि खुद भगवान भी मेरे मन मंदिर से आपको नहीं निकाल सकता। आप मेरे नहीं हो सकते और ना ही मैं आपको इस बात के लिए मजबूर करूॅगी कि आप मेरे हो जाइये। बस एक ही विनती है आपसे कि आप मुझे ये नहीं कहेंगे कि मैं आपसे प्यार का रिश्ता न रखूॅ, क्योंकि ये मेरे बस में नहीं है भइया।"

"ये हमारे भाग्य की कैसी विडम्बना है गुड़िया?" विराज ने अत्यंत गंभीर होकर किन्तु दुखी भाव से कहा__"मैं समझ सकता हूॅ तेरे दिल की हालत को क्योंकि मैं उस हालत से आज भी गुज़र रहा हूॅ। मगर ज़रा हम दोनो भाई बहन के नसीब का खेल तो देखो...जिसको मैने टूट कर चाहा उसने मुझे सिर्फ इस लिए ठुकरा दिया कि मैं रुपये पैसे वाला नहीं रहा था और जिसे तुम टूट कर चाहती हो वो तुम्हारा हो ही नहीं सकता। ये प्यार मोहब्बत क्यों ऐसी होती है? इसके नसीब को क्यों इस तरह का बना दिया है भगवान ने कि ये जिस किसी से होगी वो उसका हो ही नहीं सकेगा? क्यों ऐसी मोहब्बत बनाई बनाने वाले ने? क्या सिर्फ इस लिए कि मोहब्बत करने वाले अपने महबूब के विरह में जीवन भर तड़पें??"

"शायद इसी लिए राज।" निधि ने कहीं खोए हुए कहा था। उसे इस बात का आभास ही नहीं था कि वह अपने बड़े भाई को उसके नाम से संबोधित कर ये कहा था। जबकि...

"र राज..???" विराज बुरी तरह चौंका था। उसने निधि को खुद से अलग कर उसके चेहरे की तरफ हैरानी से देखा।
"क क्या हुआ भइया??" निधि चौंकी, उसको कुछ समझ न आया कि उसके भाई ने अचानक उसे खुद से अलग क्यों किया।

"क्या बताऊॅ??" विराज ने अजीब भाव से उसे देखते हुए कहा__"सुना है इश्क़ जब किसी के सर चढ़ जाता है तो उस ब्यक्ति को कुछ ख़याल ही नहीं रह जाता कि वह किससे क्या बोल बैठता है?"

"आप ये क्या कह रहे हैं?" निधि ने उलझन में कहा__"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा?"
"अरे पागल तूने अभी अभी मुझे मेरा नाम लेकर पुकारा है।" विराज ने कहा__"हाय मेरी बहन प्रेम में कैसी बावली और बेशर्म हो गई है कि अब वो अपने बड़े भाई का नाम भी लेने लगी।"

"क क्याऽऽ????" निधि बुरी तरह उछल पड़ी। हैरत और अविश्वास से उसका मुॅह खुला का खुला रह गया। फिर सहसा उसे एहसास हुआ कि उसके भाई ने अभी क्या कहा है। उसका चेहरा लाज और शर्म से लाल सुर्ख पड़ता चला गया। नज़रें फर्स पर गड़ गईं उसकी। छुईमुई सी नज़र आने लगी वह। उसे इस तरह खड़े न रहा गया। कहीं और मुह छुपाने को न मिला तो पुनः वह विराज से छुपक कर उसके सीने में चेहरा छुपा लिया अपना। विराज को ये अजीब तो लगा किन्तु अपनी बहन की इस अदा पर उसे बड़ा प्यार आया। जीवन में पहली बार वह अपनी बहन को इस तरह और इतना शर्माते देखा था।
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:31 PM

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