non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:29 PM,
#82
RE: non veg kahani एक नया संसार
"मुझे माफ कर दे...माफ कर दे मुझे।" विराज ने निधि को अपने सीने से अलग करके अपने दोनो हाथ जोड़ कर कहा__"ये मैं क्या कर रहा था गुड़िया? अपने इन्हीं हाॅथों से अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी अपनी गुड़िया का गला दबा रहा था मैं। मुझे माफ कर दे गुड़िया, मुझसे कितना नीच काम हो गया...तू तू मुझे इस सबके लिए कठोर से भी कठोर सज़ा दे गुड़िया।"

"भइयाऽऽ।" निधि का दिल हाहाकार कर उठा, उसने एक झटके से विराज को खुद से चिपका लिया। बुरी तरह रोये जा रही थी वह। वह जानती थी कि ये जो कुछ भी हुआ उसमें विराज की कहीं कोई ग़लती नहीं थी। वो तो बस एक गुबार था, जो इस प्रकार से निधि को ही विधी समझ कर उसके अंदर से फट पड़ा था।

जाने कितनी ही देर तक यही आलम रहा। निधि अपने भाई को शान्त कराती रही। शराब के नशे में विराज वहीं निधि की गोंद में सिर रख कर सो गया था। निधि बड़े प्यार से उसके सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरती जा रही थी। उसकी नज़रें अपने भाई के उस चेहरे पर जमी हुई थी जिस चेहरे पर इस वक्त संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी।

'आप चिन्ता मत कीजिए भइया, आपकी ये गुड़िया आपको इतना प्यार करेगी कि आप संसार के सारे दुख सारे ग़म भूल जाएॅगे। आप मेरी जान हैं और मैं आपकी जान हूॅ। इस लिए आज से आपकी खुशी के लिए मैं वो सब कुछ करूॅगी जिससे आपको खुशी मिले। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

अब आगे,,,,,,,,

विराज को लगभग चार घंटे बाद होश आया। निधि की गोद में सिर रखे वह उसी तरह लेटा हुआ था। उसके सिर पर निधि का हाॅथ था और वह खुद भी वहीं पर यूॅ ही सो गई थी। दोनो ही नहीं जानते थे कि जिस शिप में वो दोनो इस वक्त थे वह कहाॅ से कहाॅ घूमते हुए पहुॅच गया था।

विराज को जब होश आया तो उसने अपने सिर को निधि की गोद में टिका हुआ पाया। उसने देखा कि उसकी जान उसके सिर पर अपना हाॅथ रखे यूॅ ही सो गई थी। उसके खूबसूरत चेहरे पर संसार भर की मासूमियत विद्यमान थी। विराज को उस पर बड़ा प्यार आया। वह आहिस्ता से निधि की गोद से उठा और फिर निधि को बड़ी ही आसानी से अपनी बाजुओं में उठा लिया। पास में ही एक तरफ रखे सोफे पर उसने निधि को आहिस्ता से लिटाया। उसके बाद वह खुद भी उसके चेहरे के समीप ही बैठ गया और अपनी गुड़िया को सोते देखने लगा। कुछ देर यूॅ ही देखने के बाद वह झुका और निधि के माथे पर आहिस्ता से चूॅमा फिर उठ कर बाथरूम की तरफ बढ़ गया।

विराज के जाते ही निधि ने मुस्कुराते हुए पट से अपनी आॅखें खोल दी। कुछ पल जाने क्या सोचती रही फिर उसने बहुत ही धीमे स्वर में कहा__"आपको तो ये भी नहीं पता जान जी कि किस किसी लड़की के माथे पर नहीं बल्कि उसके होंठो पर किया जाता है। लेकिन आप चिन्ता मत कीजिए....आप ये भी जानने लगेंगे...मैं सब बताऊॅगी न आपको, हाॅ नहीं तो।" ये कह कर वह हॅस पड़ी फिर सहसा शर्मा भी गई वह। अपने दोनो हाथों द्वारा तुरंत ही अपना चेहरा छुपा लिया उसने।

कुछ देर बाद विराज जब बाथरूम से वापस आया तो उसने अपनी गुड़िया को अपने ही हाथों अपने चेहरे को छुपाये हुए पाया। उसे लगा गुड़िया अभी भी उसके लिए दुखी है, इस लिए वह तुरंत ही उसके पास पहुॅचा और फर्स पर उसके घुटनों के पास बैठ गया।

"तू दुखी मत हो गुड़िया।" विराज ने अपने हाॅथों द्वारा निधि के चेहरे से उसके हाॅथों को हटाते हुए कहा__"मैं तुझसे वादा करता हूॅ कि अब से मैं खुद को दुखी नहीं करूॅगा। उसकी यादों पर तो मेरा कोई ज़ोर नहीं है लेकिन अब उसकी यादों से मैं खुद को विचलित नहीं करूॅगा।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है भइया।" निधि ने कहा__"उस लड़की को याद करके अपने दिल को क्यों तकलीफ़ देना जिसे प्यार की परिभाषा का ज्ञान ही न हो।"
"तू सही कह रही है गुड़िया।" विराज के चेहरे पर एकाएक ज़लज़ले के से भाव आए, बोला__"लेकिन इसका हिसाब तो मैं उससे लूॅगा गुड़िया। उसे मेरे साथ इस खिलवाड़ को करने की सज़ा ज़रूर मिलेगी मेरे हाथों। ऐसा हाल करूॅगा उसका कि फिर किसी के साथ ऐसा करने की हिम्मत भी नहीं करेगी वो।"

"क्या आपका ऐसा करना मेरा मतलब है कि उसे सज़ा देना उचित है भइया?" निधि ने कहा__"उसने जो किया उसे उसका फल भगवान खुद ही दे देगा। आपने उससे सच्चा प्यार किया था, इस लिए आप उसके लिए अपने मन में ऐसा विचार कैसे रख सकते हैं??"

"मैं जानता हूॅ गुड़िया कि प्यार में बदले की ऐसी भावना या विचार रखना उचित नहीं है।" विराज ने कहा__"लेकिन किसी को आईना दिखाना तो सर्वथा उचित है न। वही करना चाहता हूॅ मैं।"

"ठीक है आपको जो अच्छा लगे वो कीजिये भइया।" निधि ने कहा__"शायद इससे आपके दिल को सुकून मिल जाए।"
"माफ़ करना गुड़िया।" विराज ने खेद भरे स्वर में कहा__"मैं तुझे यहाॅ किस लिये लाया था और क्या हो गया। लेकिन तू फिक्र मत कर, अभी तो बहुत समय है। चल हम दोनो अब इस टूर का आनन्द लेते हैं।"

"कोई बात नहीं भइया।" निधि ने प्यार भरे लहजे में कहा__"आपसे बढ़ कर मेरे लिए कुछ भी नहीं है। आप मेरी जान हैं, और जब मेरी जान ही खुश नहीं रहेगी तो भला मैं कैसे किसी चीज़ से खुश रह सकती हूॅ?"

"तू और तेरी ये बातें।" विराज ने मुस्कुरा कर कहा__"मेरी समझ से बाहर हैं गुड़िया।"
"ऐसा क्यों?" निधि ने विराज की तरफ गौर से देखते हुए कहा था।

"कभी कभी मुझे ऐसा लगा करता है जैसे तेरे अलावा भी तुझ में कोई और कैरेक्टर है जो कुछ और कहने लगता है।" विराज ने कहा__"कुछ ऐसा कहने लगता है जो मेरी समझ में ही नहीं आता।"

"अच्छा, ऐसा आपको क्यों लगता है भइया?" निधि ने धड़कते दिल से कहा__"कि मेरे अंदर कोई और भी कैरेक्टर है जो कुछ और ही कह डालता है?"

"पता नहीं गुड़िया।" विराज ने कहा__"कभी कभी लगता है जैसे तू अब मेरी वो गुड़िया नहीं रही जो हर चीज़ को अपनी मधुर व चुलबुली बातों से हस कर उड़ा देती थी बल्कि अब तू बड़ी हो गई लगती है। इतनी बड़ी कि तेरी बातों में अब किसी रहस्य तथा किसी दूसरे ही अर्थ का आभास होता है जो समझ से परे होता है।"

निधि अपलक देखती रह गई विराज को। उसके दिल की धड़कने अनायास ही बढ़ गई थी। उसे समझ में न आया कि वो क्या जवाब दे???

"मैं सच कह रहा हूॅ न गुड़िया?" उसे चुप देख विराज ने कहा__"ऐसी ही बात है न तुझ में?"
"पता नहीं भइया।" निधि ने सिर झुका कर कहा__"जाने क्यों ऐसा लगता है आपको, जबकि ऐसी तो कोई बात ही नहीं है।"

"चल कोई बात नहीं गुड़िया।" विराज ने निधि के चेहरे को अपने दोनो हाॅथों में लेते हुए कहा__"पर तू इतना समझ ले कि तेरा ये भाई तुझसे बहुत प्यार करता है और तुझे हमेशा खुशियों से चहकती व फुदकती हुई ही देखना चाहता है।"

विराज की बातें सुन कर निधि की आॅखें भर आई। उसके दिल में भावना का एक तीब्र भूचाल सा आ गया। उसी भावना के वशीभूत होकर वह विराज से लिपट गई। विराज के सीने में चेहरा छुपाए हुए ही बोली__"पर ये तभी संभव है जब आप भी खुश रहेंगे। अगर आप किसी बात से दुखी होंगे तो मैं भी दुखी हो जाऊॅगी।"

"ऐसा क्यों भला?" विराज ने कुछ सोचते हुए पूछा था।
"क्योंकि मैं आपसे प्या....।" निधि कहते हुए अचानक ही रुक गई। उसे एकाएक ही ध्यान आया था कि वह ये क्या बोलने वाली थी। उसकी हालत पल भर में ख़राब हो गई। दिल की धड़कने इतनी तीब्र हो गई उसकी धमक कनपटियों में स्पष्ट सुनाई देने लगी थी। उसने तुरंत ही बात को सम्हालते हुए बड़ी मुश्किल से कहा__"क्यों कि आप हमारे लिए सब कुछ हैं भ भइया...अगर आप ही इस तरह दुखी रहेंगे तो हम माॅ बेटी कैसे खुश रह सकेंगे भला?"

निधि ने भले ही अपनी समझ में बात को सम्हाल लिया था किन्तु उसके पहले अधूरे वाक्य ने ही सारी सच्चाई स्पष्ट कर दी थी। विराज ने पूछा ही इस तरह था कि जल्दबाजी और बेध्यानी में उसके मुख से वो निकल गया था जो वर्षों से उसके दिल में पनप रहा था। विराज ये सुन कर तथा ये जान कर बुरी तरह हिल गया था कि उसकी जान उसकी गुड़िया उससे प्यार करती है। यही वो बातें थी जो द्विअर्थी होती थी और विराज को समझ में नहीं आती थी। किन्तु आज संयोगवश सब कुछ सामने आ गया था। निधि खुद ही बेख़याली में बोल गई थी।

अपने भाई को खामोश जान कर निधि को झटका सा लगा। उसे समझते देर न लगी कि सब गड़बड़ हो चुका है। मतलब उसका भाई उसके पहले ही अधूरे वाक्य को सुन कर समझ चुका है कि उसकी सच्चाई क्या है। बात को सम्हालने की उसकी कोशिश बेकार हो चुकी थी। हालत ये हो गई उसकी कि अपने भाई से नज़र मिलाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी अब। भाई के सीने में चेहरा छुपाए वह वैसी ही खड़ी रही। उसे लग रहा था कि ये ज़मीन फटे और वह पाताल तक उसमे समाती चली जाए। मगर चाह कर भी तो वह ऐसा न कर सकी। उसके होंठ घबराहटवश बुरी तरह थरथरा रहे थे।

वातावरण में अजीब सी शान्ति छा गई थी। काफी देर तक यही आलम रहा। दोनो में से कोई भी कुछ न बोल रहा था। विराज तो जैसे वहाॅ था ही नहीं बल्कि किसी गहरे ख़यालों के समंदर में डूबा हुआ नज़र आ रहा था। बार बार उसके ज़ेहन में यही बात गूॅज रही थी कि उसकी गुड़िया उसकी अपनी बहन उससे प्यार करती है।

"भ भइया।" सहसा निधि ने हिम्मत जुटा कर तथा विराज के सीने से अपना चेहरा उठा कर विराज की तरफ देखते हुए धीमे स्वर में कहा__"क्या बात है...आप एकदम से चुप क्यों हो गए? क्या मुझसे कोई ग़लती हो गई? अगर ऐसा है तो मुझे माफ़ कर दीजिए प्लीज़।"

विराज के कानों में निधि की जब ये बातें पड़ीं तो वह ख़यालों के गहरे समुद्र से बाहर आया। वस्तुस्थित का आभास होते ही उसने निधि की तरफ अजीब भाव से देखा। निधि खुद भी उसी की तरफ देख रही थी किन्तु सीघ्र ही उसकी नज़रें झुक गईं। जाने क्यों अपने भाई की आॅखों से आॅखें न मिला सकी वह। कदाचित् इस लिए कि उसके दिल का भेद उसके भाई के सामने खुल चुका था।

"आज का पिकनिक टूर यहीं पर खत्म हो चुका गुड़िया।" सहसा विराज ने सपाट भाव से कहा__"अब हम वापस घर चल रहे हैं।"

इतना कह कर विराज ने निधि को खुद से अलग किया और बाहर की तरफ चल दिया। निधि को जाने क्यों ऐसा लगा जैसे उसका सब कुछ लुट गया है, उसके सीने में बड़ा तेज़ दर्द उठा। आॅखों के सामने अॅधेरा सा छा गया। ऐसा लगा जैसे वह अभी गश खा कर वहीं फर्स पर गिर पड़ेगी। लेकिन अंतिम समय में उसने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाल लिया। दिल में उमड़ते हुए जज़्बातों में प्रबलता आ गई जिसकी वजह से उसकी रुलाई फूट गई। वह जी जान से विराज की तरफ दौड़ी और पीछे से विराज की पीठ से लिपट कर ज़ार ज़ार रोने लगी।
___________________________

"ये तुम क्या कह रहे हो हरिया?" अजय सिंह बुरी तरह चौंका था__"तुमने अच्छी तरह पता किया तो है न ?"
"जी हाॅ मालिक।" हरिया नाम का एक आदमी जो कि अजय सिंह का ही आदमी था बोला__"मैने अच्छी तरह पता किया है। आपके छोटे भाई कल ही यहाॅ से बम्बई के लिए निकल गए थे। उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों को कल ही उदयपुर भेज दिया था। मेरे एक खास आदमी ने अपनी आॅखों से उनको जाते हुए देखा था। उसी ने बताया कि छोटी मालकिन(करुणा) के भाई उनके साथ ही थे।"

अजय सिंह ये सब जान कर बुरी तरह भिन्ना गया। उसने तो सोचा था कि अभय के जाते ही वह करुणा को उठवा लेगा और उसे अपने नये फार्महाउस पर रखेगा। उसके बाद वह जिस तरह चाहेगा करुणा के गदराए हुए व मादक से जिस्म का मज़ा लूटेगा। किन्तु हरिया की इस ख़बर ने उसके सभी अरमानों पर पानी नहीं फेरा था बल्कि बाल्टी भर पेशाब कर दिया था। उसे इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि उसका छोटा भाई अभय इतना शातिर दिमाग़ निकलेगा जो इतना आगे का सोच कर अपना खेल खेल जाएगा।

अजय सिंह चाहता तो करुणा को उसके मायके से भी उठवा सकता था किन्तु उस सूरत में बहुत बड़ा बवाल हो जाता। इस लिए अब वह अपने हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था। करुणा नाम की खूबसूरत चिड़िया अब उसके हाॅथ से निकल गई थी।

अजय सिंह ने सोचा था कि अभय के पीछे अपने आदमियों को लगा देगा किन्तु वो भी न कर सका वह। क्योंकि उसे पता ही न चल पाया था कि अभय सिंह ने कब क्या किया था?

"तुम पता करो हरिया।" फिर उसने कुछ सोचते हुए कहा__"अभय मुम्बई जा चुका है या नहीं?"
"वो तो कल ही यहाॅ से चले गए थे मालिक।" हरिया ने कहा__"और आज तो वो बम्बई पहुॅच भी गए होंगे।"

"अरे बेवकूफ कल वो मुम्बई कैसे जा सकता है?" अजय सिंह ने हुड़की दी__"शाम से पहले तक तो वो यहीं था, और शाम को भला कौन सी ट्रेन इस शहर से मुम्बई जाती है। वह तो दोपहर को जाती है। मतलब साफ है कि अभय कल नहीं आज गया होगा मुम्बई।"

"ये तो मैने सोचा ही नहीं मालिक।" हरिया ने सिर झुका कर कहा__"छोटे मालिक अगर आज गए होंगे तो कल ही पहुॅचेंगे बम्बई। अब हम क्या करें मालिक?"

"अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है हरिया।" अजय सिंह ने कहा__"ये तो तुम्हें भी मालूम है कि हमारे कुछ आदमी मुम्बई में ही हैं जो विराज और उसकी माॅ बहनों की खोज में लगे हुए हैं। हम अपने उन आदमियों को फोन करके कह देंगे कि वो अभय पर नज़र रखें। अभय कल मुम्बई पहुॅचेगा। मुम्बई में जैसे ही वह ट्रेन से उतरेगा वैसे ही हमारे आदमी उसके पीछे लग जाएंगे।"

"ये तो बहुत बढ़िया आइडियवा है मालिक।" हरिया ने इंग्लिश की माॅ बहन एक करते हुए कहा__"छोटे मालिक जहाॅ जहाॅ जाएॅगे हमारे आदमीं भी उनके पीछे जाएॅगे।"

"अब तुम जाओ हरिया।" अजय सिंह ने कहा__"हम भी किसी ज़रूरी काम से बाहर जा रहे हैं।"
"ठीक है मालिक।" कहते हुए हरिया चला गया वहाॅ से।

अजय सिंह ने मोबाइल निकाल कर मुम्बई में स्थित अपने आदमियों को फोन लगाया। अपने आदमियों को सारी बातें समझाने के बाद उसने फोन काट दिया।

अभी वह इस सबसे फारिग़ ही हुआ था कि सामने से उसकी इंस्पेक्टर बेटी रितू आती हुई दिखी। अजय सिंह उसे देख कर बस आह सी भर कर रह गया। पुलिस की चुस्त दुरुस्त वर्दी में उसकी बेटी ग़ज़ब ढा रही थी। जिस्म का एक एक उभार साफ नज़र आ रहा था। अजय सिंह की आॅखें एकटक रितू के सीने पर टिकी हुई थी। जहाॅ पर रितू के सीने के दो ठोस किन्तु बड़े बड़े वक्ष उसके चलने के कारण एक रिदम पर ऊपर नीचे कूद से रहे थे।

अजय सिंह अपनी बेटी के वक्षों को ललचाई नज़रों से देख ही रहा था कि तभी अंदर से आती हुई प्रतिमा की नज़र अजय सिंह पर पड़ी। अपने पति को अपनी ही बेटी के बड़े बड़े पर्वत शिखरों को ललचाई नज़रों से देखते देख वह मन ही मन कह उठी 'उफ्फ अजय तुम कभी नहीं सुधर सकते।'

"अरे...तुम अभी तक यहीं बैठे हो?" प्रतिमा ने तुरंत ही अजय सिंह का ध्यान भंग करने की गरज से कहा__"तुम तो कह रहे थे कि शहर जाना था?"

अजय सिंह चौंका, उसने तुरंत ही अपनी बेटी पर से नज़रे हटा ली। कुछ पल के लिए उसके चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे इस सबसे वह बेहद शर्मसार हुआ हो किन्तु फिर अगले ही पल खुद को सम्हाल कर बोला__"ह हाॅ हाॅ बस निकल ही रहा हूॅ मैं।"

तब तक रितू भी आकर वहाॅ पर रखे एक सोफे पर लगभग पसर सी गई। अपने सिर से पुलिस की कैप उतार कर तथा हाथ में लिए पुलिस रुल को उसने एक तरफ रख दिया और फिर अपनी माॅ की तरफ देखते हुए कहा__"माॅम एक कप काॅफी मिलेगी क्या??"

"अभी लाई बेटी।" कहते हुए प्रतिमा वापस पलट गई और किचेन की तरफ चली गई।
"लगता है मेरी बेटी के सीने में काम और जिम्मेदारी का बोझ बहुत ही ज्यादा है।" अजय सिंह ने पुनः रितू के सीने की तरफ एक नज़र डाल कर कहा था।

"सीने पर?????" रितू ने चकरा कर कहा__"काम और जिम्मेदारी का बोझ तो कंधों पर होता है ना डैड??"

"ओह हाॅ हाॅ बेटी।" अजय सिंह बुरी तरह हड़बड़ा गया। उसके चेहरे पर घबराहट के भाव भी उभरे किन्तु फिर तुरंत ही सम्हल कर बोला__"यू आर राइट....अब्सोल्यूटली राइट।"

"डैड कल से शिवा कहीं नज़र नहीं आ रहा?" रितु ने पहलू बदलते हुए कहा__"और ना ही चाचा चाची जी वगैरा कहीं नज़र आ रहे हैं?"

"शिवा तो शहर में है बेटी।" अजय ने राहत की साॅस लेते हुए कहा__"बाॅकियों का मुझे पता नहीं। सब अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं। कहीं आने जाने के लिए वो किसी से पूछना ज़रूरी नहीं समझते। ख़ैर तुम बताओ, तुम्हारे केस का क्या हुआ? मेरा मतलब है कि क्या ये पता चल सका कि हमारी फैक्टरी में किसने बम्ब फिट किया था?"
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:29 PM

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