non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:26 PM,
#80
RE: non veg kahani एक नया संसार
"न नहीं अजय नहीं।" प्रतिमा ने सहसा घबरा कर कहा__"तुम उसके लिए ऐसा कैसे कह सकते हो? वह हमारी अपनी बेटी है। हर ब्यक्ति की अपनी एक फितरत होती है, रितू की फितरत हम जैसी नहीं है तो इसमें उसकी क्या ग़लती है? इंसान का स्वभाव जन्म से ही बनने लगता है, और फिर हर इंसान का अपना एक प्रारब्ध भी तो होता है। सब एक जैसी सोच विचार के नहीं हो सकते अजय, ये प्रकृति के नियमों के खिलाफ है।"

"मुझे पता है प्रतिमा।" अजय सिंह ने गंभीरता से कहा__"मैं जानता हूॅ कि हमारी बेटी उनमें से है जिनकी रॅगों में सच्चाई और ईमानदारी का खून दौड़ता है। लेकिन हमारे साथ मामला ज़रा जुदा है, यानी हमारी बेटी का ये सच्चाई और ईमानदारी वाला खून भविस्य में हमारे लिए बड़ी मुसीबत भी खड़ी कर सकता है।"

"ऐसा कुछ नहीं होगा अजय।" प्रतिमा ने मजबूती से कहा__"मैं अपनी बेटी को अपने तरीके से समझाऊॅगी। वो ज़रूर मेरी बात को समझेगी और मानेगी भी।"

"अच्छी बात है।" अजय ने कहा__"तुम उसे अपने तरीके से ज़रूर समझा देना। क्योंकि तुम्हारे बाद अगर मुझे समझाना पड़ा उसे तो हो सकता है मेरा समझाना तुम्हें पसंद न आए।"

"मैं ज़रूर समझाऊॅगी अजय।" प्रतिमा के जिस्म में ठण्डी सी सिहरन दौड़ती चली गई थी, फिर बोली__"लेकिन अब अभय के बारे में भी तो सोचो। उसने साफ शब्दों में कहा है कि वह इस सच्चाई का पता लगाएगा कि गौरी और उसके बच्चों के साथ वास्तव में हुआ क्या था? इस लिए वह इस सबका पता लगाने के लिए मुम्बई में विराज तथा विराज की माॅ बहन के पास जाने का बोल रहा था। अगर उसे सारी बातों का पता चल गया तो क्या होगा अजय??"

"उसे जाने दो मेरी जान।" अजय ने अजीब से लहजे में कहा__"उसे सारी सच्चाई का पता लग भी जाएगा तो अब कोई कुछ भी नहीं कर सकेगा। जिस चीज़ के लिए हमने ये सब किया था वो तो हमें हासिल हो ही चुका है। इस लिए जाने दो जिसे जहाॅ जाना हो। विराज के साथ साथ उसकी माॅ बहन को तो मेरे आदमी भी ढूॅढ़ रहे हैं। अच्छा है कि अभय भी उन्हें तलाश करेगा वहाॅ मुम्बई में। साला इतनी बड़ी मुम्बई में कहाॅ ढूॅढेगा उन कप प्लेट धोने वालों को?"

"इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।" प्रतिमा ने कहा__"संभव है किसी संयोग के चलते अभय उन लोगों को ढूॅढ़ ही ले।"
"अगर ऐसा है तो मैं अपने कुछ आदमियों को अभय के पीछे लगा देता हूॅ।" अजय ने कुछ सोचते हुए कहा__"यदि अभय उन लोगों को ढूॅढने में कामयाब हो जाएगा तो मेरे आदमी तुरंत ही इस बात की मुझे सूचना दे देंगे।"

"हाॅ ये बिलकुल ठीक रहेगा अजय।" प्रतिमा ने खुश होकर कहा__"उस सूरत में तुम अपने आदमियों को आदेश दे देना कि वो इन सबको किसी भी तरह यहाॅ हमारे पास ले आएं। उसके बाद हम अपने तरीके से उन सबका कल्याण करेंगे।"

"ऐसा ही होगा मेरी जान।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा__"सब कुछ हमारे हिसाब से ही होगा और अभय के यहाॅ से जाते ही मैं उसकी खूबसूरत बीवी करुणा को भी अपने आदमियों के द्वारा उठवा लूॅगा।"

"ऐसा करना हमारे लिए कहीं खतरे का सबब न बन जाए अजय।" प्रतिमा ने अजय को अजीब भाव से देखते हुए कहा__"मुझे लगता है कि इस काम में तुम्हें अभी इतनी जल्दी इतना बड़ा क़दम नहीं उठाना चाहिए।"

"एक दिन तो ये होना ही है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"और वैसे भी आज जिस तरह के हालात बन गए हैं उससे सारी बातें सबके सामने आ ही जाएॅगी। इस लिए जब सारी बातों को खुल ही जाना है तो इस काम में मैं देरी क्यों करूॅ? मुझे हर हाल में अपनी ख्वाहिशों को परवान चढ़ाना है डियर। मेरी शुरू से ही ये ख्वाहिश थी कि मैं गौरी तथा करुणा को अपने इसी बेड पर अपने नीचे लिटाऊॅ और उन दोनो के खूबसूरत किन्तु गदराए हुए मादक जिस्म का भोग करूॅ।"

"ख्वाहिश तो तुम्हारी अपनी बेटियों को भी अपने नीचे लिटाने की है अजय।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा__"तो क्या अपनी बेटियों के साथ भी अपने छोटे भाईयों की बीवियों की तरह जबरदस्ती करोगे?"

"अगर ज़रूरत पड़ी तो ऐसा भी करुॅगा मेरी जान।" अजय ने स्पष्ट भाव से कहा__"लेकिन हमारी बेटियों को मेरे नीचे लाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है। तुम अगर इस काम में सफल हो जाती हो तो अच्छी बात है वर्ना घी निकालने के लिए मुझे अपनी उॅगली को टेंढ़ा करना ही पड़ेगा।"

प्रतिमा हैरान परेशान सी देखती रह गई अपने पति को। वह समझ नहीं पा रही थी कि उसका पति किस तरह का इंसान है??????
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उधर मुम्बई में।
विराज अपने वादे के अनुसार रविवार यानी स्कूल की छुट्टी के दिन निधि को बड़े से शिप में समुंदर घुमाने ले आया था। निधि बेहद खुश थी इस सबसे। पता नहीं क्या क्या उसके दिमाग़ में चलता रहता था। कदाचित् फिल्में देखने का असर ज्यादा हो गया था उस पर।

पिछली सारी रात वह विराज के कमरे में रही थी। सारी रात उसने तरह तरह की योजनाएं बना बना कर विराज को बताती रही थी कि कल समुंदर में किस किस तरह से हम मस्ती करेंगे। उसकी ऊल जुलूल बातों से विराज बुरी तरह परेशान हो गया था। किन्तु वह उसे कुछ कह नहीं सकता था क्योंकि निधि उसकी जान थी। उसकी खुशी के लिए वह कुछ भी कर सकता था। विराज ने उसकी सभी बातों पर अमल करने का उसे वचन दिया और फिर प्यार से उसे अपने सीने से छुपका कर कहा था__"गुड़िया अब हम लोग सो जाते हैं, कल सुबह हमें जल्दी निकलना भी है न।" विराज की इस बात से और उसको इस तरह सीने से छुपका लेने से निधि खुश हो गई और खुशी खुशी ही नींद की आगोश में चली गई थी।

सुबह हुई तो दोनो ने नास्ता पानी किया और कुछ ज़रूरी चीज़ें लेकर घर से निकल पड़े। गौरी के द्वारा उन्हें शख्त हिदायतें भी दी गई थी कि वहाॅ पर सावधानी से ही काम लेना और शाम होने से पहले पहले घर वापिस आ जाना। विराज निधि को लेकर कार से निकल गया था।

जगदीश ओबराय की अच्छी जान पहचान थी जिसकी वजह से विराज को किसी बात की कोई परेशानी नहीं हुई थी। कहने का मतलब ये कि विराज ने एक बेहतरीन सुख सुविधा सम्पन्न शिप को शाम तक के लिए बुक करवा लिया था।

शिप मे दो चालक और एक गाइड करने वाला था बाॅकी पूरा शिप खाली ही था। इस खूबसूरत शिप में चढ़ कर निधि खुशी से फूली नहीं समा रही थी। उसका बस चलता तो वह मारे खुशी के आसमान में उड़ने लगती। वह विराज से चिपकी हुई थी। फिर वह उससे अलग होकर शिप के किनारे पर आ गई तथा यहीं से हर तरफ का नज़ारा करने लगी थी। विराज उसे इस तरह खुश होते देख खुद भी खुश था। उसे आज पहली बार यहाॅ खुले आसमान के नीचे समुंदर में इस तरह अपनी बहन के साथ आकर खुशी हुई थी। वह अपनी बहन को ही देख रहा था, जो कभी कहीं देखती तो कभी कहीं और देखने लगती। उसके लिए ये सब नया था, हलाॅकि फिल्मों में उसने जाने कितनी दफा एक से बढ़कर एक सीन्स देखे थे। किन्तु यह नज़ारा उसके जीवन का पहला और वास्तविक था। विराज अपनी गुड़िया को इस तरह खुश होते देख खुद भी खुश था। फिर एकाएक ही जाने क्या सोच कर उसकी आॅखों में आॅसू आ गए। कदाचित् ये सोच कर कि इसके पहले उन लोगों ने ऐसी किसी खुशी को पाने की कल्पना भी न की थी। उसके अपनों ने किस तरह उसे और उसकी माॅ बहन को हर चीज़ से बेदखल कर दिया था। कुछ दर्द ऐसे भी थे जो अक्सर तन्हाई में उसे रुलाते थे।

अभी वह ये सब सोच कर आॅसू बहा ही रहा था कि निधि उसके सामने आ गई। उसने निधि को देखकर जल्दी से मुह फेर लिया ताकि वह उसकी आॅखों में आॅसू न देख सके।

"आप क्या समझते हैं मुझे कुछ पता नहीं चलता??" निधि ने भर्राए गले से कहा__"अगर आप ऐसा समझते हैं तो ग़लत समझते हैं आप। संसार की ऐसी कोई चीज़ नहीं है जिसे देख कर मैं अपने होश खो दूॅ और मुझे ये भी न पता चल सके कि जो मेरी जान है उसे किस पल किस दर्द ने आकर रुला दिया है। आप कहीं भी रहें लेकिन मैं ये महसूस कर लेती हूॅ कि आप किस लम्हें में किस दर्द से गुज़रे हैं।"

"ये सब क्या बोल रही है पगली?" विराज ने खुद को सम्हालते हुए तथा हॅसते हुए कहा__"चल छोंड़ ये सब और आ हम दोनों एंज्वाय करते हैं।"

"आप बातों को टालिये मत।" निधि ने विराज के चेहरे की तरफ एकटक देखते हुए कहा__"मुझे वचन दीजिए कि आज के बाद आप कभी भी अपनी आॅखों में आॅसू नहीं लाएॅगे।"

"जिन चीज़ों पर किसी इंसान का कोई बस ही न हो उन चीज़ों के लिए कैसे भला कोई वचन दे सकता है गुड़िया?" विराज ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा__"हाॅ इतना ज़रूर कह सकता हूॅ कि आइंदा ऐसा न हो ऐसी कोशिश करूॅगा।"

निधि एक झटके से विराज से लिपट गई, उसकी आॅखों में आॅसू थे, बोली__"क्यों उन सब चीज़ों के बारे में इतना सोचते हैं आप जिनके बारे में सोचने से हमें सिर्फ दुख और आॅसू मिलते हैं? मत सोचा कीजिए न वो सब...आप नहीं जानते कि आपको इस तरह दुख में आॅसू बहाते देख कर मुझ पर और माॅ पर क्या गुज़रती है? सबसे ज्यादा मुझे तक़लीफ होती है...आप उसे भूल जाइए न भाईया...क्यों उसे इतना याद करते हैं जिसे आपकी पाक मोहब्बत की कोई क़दर ही न थी कभी।"

विराज के दिलो दिमाग़ को ज़बरदस्त झटका लगा। ये क्या कह गई थी उसकी गुड़िया?? उसे ऐसा लगा जैसे उसके पास में ही कोई बम्ब बड़े ज़ोर से फटा हो और फिर सब कुछ खत्म व शान्त। कानों में सिर्फ साॅय साॅय की ध्वनि गूॅजती महसूस हो रही थी। विराग किसी बुत की तरह खड़ा रह गया था। उसकी पथराई सी आॅखें निधि के उस चेहरे पर जमी हुई थी जिस चेहरे को आॅसुओं ने धो डाला था। फिर सहसा जैसे उसे होश आया। उसने निधि के मासूम से चेहरे को अपनी दोनों हॅथेलियों के बीच लिया और झुक कर उसके माॅथे पर एक चुबन लिया। इसके बाद वह पलटा और शिप के अंदर की तरफ चला गया। जबकि निधि वहीं पर खड़ी रह गई।

जब काफी देर हो जाने पर भी विराज अंदर से न आया तो निधि के चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करने लगे। उसे अपने भाई के लिए चिन्ता होने लगी और उसका दिलो दिमाग बेचैन हो उठा। वह तुरंत ही अंदर की तरफ बढ़ गई। समुंदर में उठती हुई लहरों के बीच तैरता हुआ शिप बढ़ता ही जा रहा था। निधि जब अंदर पहुॅची तो शिप में मौजूद गाइड करने वाला आदमी बाहर की ही तरफ आता दिखाई दिया। निधि ने उससे विराज के बारे में पूछा तो उसने हाथ के इशारे से एक तरफ संकेत किया और बाहर निकल गया। जबकि निधि उसकी बताई हुई दिशा की तरफ बढ़ गई। एक कमरे में दाखिल होते ही उसकी नज़र जैसे ही अपने भाई पर पड़ी तो उसे झटका सा लगा। उसके पाॅव वहीं पर ठिठक गए। उसकी आॅखों से बड़े तेज़ प्रवाह से आॅसू बहने लगे। उसका दिल बुरी तरह हाहाकार कर उठा था।


अपडेट हाज़िर है दोस्तो.....
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:26 PM

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