non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:26 PM,
#79
RE: non veg kahani एक नया संसार
जैसा कि अभय ने निर्णय ले लिया था इस लिए उसने ससुराल में अपने साले युवराज सिंह को फोन कर दिया था और उसे जल्द से जल्द यहाॅ से करुणा के साथ दिव्या तथा शगुन को ले जाने के लिए कह दिया था। अभय के साले युवराज ने अचानक इस तरह यहाॅ आने और फिर अपने साथ उसकी बहन व भांजा भांजी को घर ले जाने का कारण पूॅछा तो अभय ने कुछ नहीं बताया। बस यही कहा कि वह कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा है।

अभय ने करुणा तथा दिव्या से भी कह दिया था कि इस बात की चर्चा वो लोग अपने मायके तथा ननिहाल में किसी से नहीं करेंगी। अभय की ससुराल हल्दीपुर से ज्यादा दूर नहीं थी। बल्कि एक घंटे की दूरी पर थी। इस लिए उसके साले को आने में ज़्यादा देर नहीं हुई।

करुणा ने अपने पति अभय के लिए शाम का खाना बना कर रख दिया था जिसे वह गरम करके शाम को खा लेगा और खुद भारी मन से अपने बच्चों को लेकर अपने भाई के साथ अपने मायके मणिपुर चली गई थी। अभय ने उसे बता दिया था कि वह अगले दिन सुबह ही यहाॅ से मुम्बई के लिए निकलेगा। अभय ने अपनी पत्नी और बच्चों को अपने साले के साथ बेहद ही गुप्त रूप से भेजा था। किसी को भनक तक न लगने दी थी कि उसकी पत्नी और बच्चे किसके साथ कब कहाॅ गए हैं?

करुणा ने अभय से कहा था कि वह आज रात यहाॅ हवेली में न रहे बल्कि अपने किसी दोस्त या मित्र के यहाॅ रात रुक जाए और सुबह वहीं से मुम्बई के लिए रवाना हो जाएं। करुणा ये सब किसी अंजानी आशंका की वजह से कह रही थी जबकि उसकी इस सलाह पर अभय ने आवेश में कहा था__"मैं किसी से बाल बराबर भी नहीं डरता करुणा। मैंने किसी के साथ कोई ग़लत काम नहीं किया है, इस लिए किसी से डरने का सवाल ही नहीं है। रही बात बड़े भइया की तो उन्हें भी देख लूॅगा। मैं भी तो देखूॅ कि कितने बड़े तीसमारखाॅ हैं वो???" करुणा अभय की इस बात पर कुछ न बोल सकी थी।

उधर प्रतिमा ने अपने पति अजय सिंह को फोन करके आज हुई इस घटना के बारे में सब कुछ बता दिया था। जिसे सुन कर अजय सिंह के पैरों तले से ज़मीन निकल गई थी। उसे अपने बेटे पर बेहद गुस्सा आ रहा था। उसी की वजह से ये सब हुआ था वर्ना अभय ये सब कभी न सोचता कि उससे क्या कुछ छुपाया गया था??

अजय सिंह अपने बेटे के इस कार्य पर गुस्सा तो बहुत हुआ था किन्तु वह ये भी जानता था कि अब गुस्सा करने का कोई मतलब नहीं है। यानी जो होना था वो तो हो ही चुका था। अब तो उसे ये करना था कि इससे आगे कोई बात बढ़े ही न और ना ही उस पर कोई बात आए।

अजय सिंह अपनी फैक्टरी को फिर से चालू करने की कोशिशों में लगा हुआ था इस लिए वह ज्यादातर हवेली से बाहर ही रहता था। किन्तु आज हुई इस घटना की जानकारी जब उसकी पत्नी द्वारा फोन के माध्यम से उसे मिली तो वह शहर से हवेली आने के लिए कह दिया था प्रतिमा से। उसने ये भी हिदायत दी थी कि आज की घटना के बारे में उसकी बेटी रितू को पता न चले। जबकि अपने बेटे शिवा को कुछ दिन के लिए शहर में बने मकान पर रहने के लिए कह दिया था। ऐसा इस लिए था क्योंकि शिवा की बुरी हालत देखकर कोई भी ढेरों सवाल पूॅछने लगता। जबकि रितू तो अब पुलिस वाली थी, हर बात पर शक करना उसका पेशा था। दूसरी बात वह अपने भाई की आवारा गर्दी करने वाली इस असलियत से अंजान भी नहीं थी। इस लिए वह कई तरह के सवाल पूछने लगती सबसे। अजय सिंह ने प्रतिमा से ये भी कह दिया था कि वह हवेली में रहने वाले नौकर व नौकरानियों को भी इस बात की ठोस शब्दों में हिदायत दे दे कि वो लोग आज हुई इस घटना के बारे में एक लफ्ज़ भी रितू से न कहें या उनके द्वारा किसी तरह रितू के कानों तक ये बात न पहुॅचे।

अजय सिंह शाम को हवेली पहुॅचा था। हवेली में शमशान की तरह सन्नाटा फैला हुआ था। ऐसा लगता था जैसे इतनी बड़ी हवेली में किसी जीव का कहीं कोई वजूद ही न हो। अजय सिंह समझ सकता था कि हवेली में ये सन्नाटा क्यों फैला हुआ है। उसकी बेटी रितू किसी केस के सिलसिले में बाहर ही थी, यानी अभी तक वह हवेली नहीं लौटी थी पुलिस थाने से। जबकि शिवा अजय सिंह के पालतू कुछ आदमियों के साथ शहर वाले मकान में कुछ दिन रहने के लिए चला गया था।

अजय सिंह खामोशी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। कमरे में पहुॅचते ही अजय सिंह ने देखा कि उसकी बीवी प्रतिमा बेड पर पड़ी है। बेड पर पड़ी प्रतिमा एकटक व निरंतर कमरे की छत पर झूल रहे पंखे को घूरे जा रही थी। बल्कि अगर ये कहें तो ज़रा भी ग़लत न होगा कि वह पंखे को भी नहीं घूर रही थी वह तो बस शून्य में ही देखे जा रही थी। उसका मन कहीं और ही भटका हुआ नज़र आ रहा था। कदाचित् यही वजह थी कि उसे कमरे में अजय सिंह के दाखिल होने का ज़रा भी एहसास न हुआ था।

अजय सिंह ने गौर से अपनी बीवी की तरफ देखा फिर उसने अपने जिस्म पर मौजूद कोट को उतार कर उसे दीवार पर लगे एक हैंगर पर लटका दिया। इसके बाद वह बेड की तरफ बढ़ा। प्रतिमा अभी भी कहीं खोई हुई शून्य में घूरे जा रही थी।

"ऐसे किन ख़यालों में गुम हो प्रतिमा?" अजय सिंह ने उसे देखते हुए कहा__"जिसकी वजह से तुम्हें ये भी एहसास नहीं हो रहा कि मैं कब से इस कमरे में आया हुआ हूॅ?"

"सब कुछ खत्म हो गया अजय।" प्रतिमा उसी मुद्रा में तथा अजीब से भाव के साथ बिना अजय की तरफ देखे ही बोली__"सब कुछ खत्म हो गया। कुछ भी शेष नहीं बचा। हमने गुज़रे हुए कल में जो कुछ भी अपने हित के लिए किया था वो सब अब बेपर्दा हो चुका है। कैसी अजीब सी स्थित हो गई है हमारी। मैं और तुम ज़िंदा तो हैं मगर ऐसा लगता है जैसे हमारी एक एक साॅस हमारे मरे हुए होने की गवाही दे रही है। हम ऐसे जी रहे हैं अजय जैसे हर साॅस हमने किसी से उधार ली हुई है। आज आलम ये है कि हम अपने ही बच्चों के बीच डर डर कर जीवन का एक एक पल गुज़ार रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं अजय कि हमने जो कुछ भी अपने सुख सुविधा के लिए अपनों के साथ किया है उसी का प्रतिफल आज हमें इस रूप में मिल रहा है?"

"ये तुम क्या कह रही हो प्रतिमा?" अजय सिंह पहले तो चौंका था फिर अजीब भाव से प्रतिमा की तरफ देखते हुए कहा__"यकीन नहीं होता यार। अरे इतनी सी बात पर तुम इतना हताश व विचलित हो गई??? नहीं डियर, तुम इतनी निराशावादी बातें नहीं कर सकती। तुमने तो गुज़रे हुए कल में मेरे कहने पर ऐसे ऐसे कठिन व हैरतअंगेज कामों को अंजाम दिया है जिसे करने के लिए कोई साधारण औरत सोच भी न सके।"

"मैं भी तो एक इंसान हूॅ, एक औरत ही हूॅ अजय।" प्रतिमा ने बेड से उठ कर तथा गंभीर होकर कहा__"भले ही गुज़रे हुए कल में मैंने तुम्हारे कहने पर या हमारे हित के लिए हैरतअंगेज कामों को अंजाम दिया हो मगर मुझे इस बात का भी एहसास है कि वह सब जो मैने किया था वो निहायत ही ग़लत था। ये एक सच्चाई है अजय कि इंसान जो कुछ भी कर्म करता है उसके बारे में वो इंसान भी भली भाॅति जान रहा होता है कि वह किस प्रकार का कर्म कर रहा है? इंसान जान रहा होता है कि वह ग़लत कर्म कर रहा है इसके बावजूद वह रुकता नहीं है बल्कि ग़लत कर्म को करता ही चला जाता है। कदाचित् इस लिए कि उसमें ही उसका हित होता है। जब इंसान सिर्फ अपने ही हित के लिए ज़ोर देता है तब वह ये नहीं देखता कि अपने हित में उसने किस किस की खुशियों की या किस किस के जीवन की बलि चढ़ा दी है?"

"ये आज तुम्हें क्या हो गया है प्रतिमा?" अजय सिंह हैरान परेशान होकर बोला__"कैसी बहकी बहकी बातें कर रही हो तुम?"

"सच्चाई किसी भी तरह की हो अजय उसे सुन कर ऐसा ही लगता है सबको।" प्रतिमा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा__"क्या ये सच नहीं है कि हमने सिर्फ अपने स्वार्थ व हित के लिए अपने ही रिश्तों के साथ अहित किया है? ये बात तुम भी भली भाॅति जानते और समझते हो अजय। हाॅ ये अलग बात है कि तुम इस सब को स्वीकार न करो।"

"इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं रह गया है प्रतिमा।" अजय ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा__"और मत भूलो इसके पहले तुमने भी इन सब बातों के बारे में नहीं सोचा था। आज ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से तुम किसी के साथ सही ग़लत और हित अहित की बातें करने लगी? "

"आज हालात बदल गए हैं अजय।" प्रतिमा ने कहा__"पहले हम दूसरों के साथ अहित कर रहे थे इस लिए कुछ भी नहीं सोच रहे थे। मगर आज जब हमारे साथ अहित होने लगा है तब हमें इन सबका एहसास होना स्वाभाविक ही है। ये इंसानी फितरत है अजय, जब तक कोई बात खुद पर नहीं आती तब तक हमें किसी बात का एहसास ही नहीं होता।"

"ये सब बेकार की बातें हैं प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"आज की घटना से तुम ज़रा विचलित हो गई हो। जबकि इस सबसे इतना परेशान या दुखी होने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

"तुम्हें आज के समय की वस्तुस्थित का एहसास ही नहीं है अजय।" प्रतिमा ने कहा__"अगर होता तो समझते कि हालात किस कदर बिगड़ गए हैं। ज़रा सोचो अजय...जो अभय आज तक हमारी ही कही बातों पर आॅख बंद करके यकीन करता आया था वही आज हमारी हर बात पर शक करने लगा है। इतना ही नहीं उसने तो हर सच्चाई का पता लगाने के लिए कदम भी उठाने की बात कर रहा था। अगर उसने ऐसा किया और इस सबसे उसे सारी सच्चाई का पता चल गया तो सोचो क्या होगा अजय?"

"कुछ नहीं होगा प्रतिमा।" अजय ने बड़ी सहजता से कहा__"तुम बेकार ही इतना परेशान हो रही हो। तुम्हें मैंने बताया नहीं है...हमारी सारी ज़मीन और ज़ायदाद अब सिर्फ हमारे ही बच्चों के नाम पर हैं। ये हवेली भी मैंने तुम्हारे नाम पर करवा दी है। मैं जब चाहूॅ तब अभय को इस हवेली और सारी ज़मीनों से बेदखल कर सकता हूॅ। यूॅ समझो कि वो सिर्फ मेरे रहमो करम पर इस हवेली पर है। मुम्बई में किसी होटल या ढाबे पर अपनी माॅ बहन के साथ कप प्लेट धोने वाले उस हरामज़ादे विराज का तो पत्ता ही साफ है। इस लिए कानूनन कोई कुछ भी नहीं कर सकता मेरा। अभय को अगर सच्चाई का पता चल भी गया तो क्या कर लेगा हमारा??"

प्रतिमा अवाक् सी देखती रह गई अजय की तरफ। उसे कुछ कहने के लिए तुरंत कुछ सूझा ही नहीं। जबकि.....

"मैने कहा था न कि तुम बेकार ही इतना परेशान हो रही हो।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए प्रतिमा के खूबसूरत चेहरे को सहला कर कहा__"तुमने तो खुद मेरे साथ कानून की एल एल बी की है। इस लिए जानती हो कि कानूनन कोई कुछ नहीं कर सकता। मैंने सारी ज़मीनें हमारे बच्चों के नाम कर दी हैं। और अगर कोई बात होगी भी तो इनमें से किसी के पास इतनी क्षमता ही नहीं है कि ये लोग ज़मीन ज़ायदाद को पाने के लिए मेरे साथ कोई मुकदमा वगैरह कर सकें। और अगर इन लोगों ने मुकदमा चलाने की कोशिश भी की तो सारी ज़िन्दगी इनसे कोर्ट कचहरी का चक्कर लगवाऊॅगा। इतने में ही इन सबका मूत निकल जाएगा।"

"वो सब तो ठीक है अजय।" प्रतिमा के चेहरे पर पहली बार राहत के भाव उभरे थे, किन्तु फिर तुरंत ही असहज होकर बोली__"लेकिन हम अपनी बेटियों को इस सबके लिए कैसे कन्विंस करेंगे? नीलम का तो भरोसा है कि वो हमसे कोई सवाल जवाब नहीं करेगी, लेकिन रितू का कुछ कह नहीं सकते। वो शुरू से ही तेज़ तर्रार रही हैं और न्यायप्रिय भी। अब तो वह पुलिस वाली भी बन गई है इस लिए इस सबका पता चलते ही वह कहीं हम पर ही न कोई केस ठोंक दे।"

"हद करती हो यार।" अजय सिंह ठहाका लगा कर हॅसते हुए बोला__"अपनी ही बेटी से इतना डरने लगी हो तुम।"
"ज्यादा शेखी न बघारो तुम।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा__"आज भले ही इतना हॅस रहे हो तुम, मगर थोड़े दिन पहले तुम्हारी भी जान हलक में अटकी पड़ी थी जब रितू ने फैक्टरी वाला केस रिओपेन किया था।"

"यार सच कह रही हो तुम।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा__"यकीनन उस समय मेरी हालत की वाट लगी हुई थी। कितनी अजीब बात थी कि मेरी ही बेटी मेरी ही*****मारने पर तुली हुई थी। भला उस बेचारी को क्या पता था कि उसके द्वारा इस प्रकार से मेरी*****मारने से मुझे कितनी तक़लीफ हो रही थी।"

"अब आए न लाइन पर।" प्रतिमा खिलखिला कर हॅसते हुए बोली__"बड़ा उड़ने लगे थे अभी तो।"
"यार मेरा तो के एल पी डी भी हो गया।" अजय सिंह ने उदास भाव से कहा__"मेरे बेटे ने ही सारा काम खराब कर दिया वर्ना करुणा की आगे पीछे से लेने का चान्स बन ही जाना था। अब तो ये असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर हो गया है।"

"असंभव क्यों नहीं??" प्रतिमा चौंकी।
"असंभव इस लिए नहीं क्यों कि मैं चाहूॅ तो अभी भी उसको आगे पीछे से ठोंक सकता हूॅ।" अजय सिंह ने कहा__"लेकिन ये सब अब प्यार या उसकी रज़ामंदी से नहीं हो सकेगा बल्कि इसके लिए मुझे बल का प्रयोग करना पड़ेगा।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" प्रतिमा हैरान।
"साली को उठवा लूॅगा किसी दिन।" अजय सिंह सहसा कठोर भाव से बोला__"और शहर में अपने नये वाले फार्महाउस पर रखूॅगा उसे। वहीं रात दिन उसकी आगे पीछे से लूॅगा। इतना ही नहीं अपने आदमियों को भी मज़ा करने का कह दूॅगा। मेरे आदमी उसकी आगे पीछे से बजा बजा कर उसकी***** का ****** बना देंगे।"

"ऐसा सोचना भी मत।" प्रतिमा ने आॅखें फैलाकर कहा__"वर्ना अभय तुम्हें कच्चा चबा जाएगा।"
"अभय की माॅ की ***** साले की।" अजय ने कहा__"उसने अगर ज्यादा उछल कूद करने की कोशिश की तो उसका भी वही अंजाम होगा जो विजय का हुआ था, लेकिन ज़रा अलग तरीके से।"

"उसकी छोंड़ो अजय।" प्रतिमा ने सहसा पहलू बदलते हुए कहा__"हमारी बेटी रितू के बारे में सोचो। उसे इस झमेले के लिए कैसे मनाएंगे?"

"उसकी भी फिक्र मत करो डियर।" अजय सिंह ने कुछ सोचते हुए कहा__"तुम तो जानती हो कि मुझे अपने रास्तों पर किसी तरह के काॅटें पसंद नहीं हैं। हम दोनो उसे इस सबके लिए पहले प्यार से समझाएंगे, अगर उसे हमारी बातें समझ आ गईं तो ठीक है वर्ना मजबूरन उसके साथ भी हमें बल का प्रयोग करना ही पड़ेगा।"
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 12:26 PM

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