non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:22 PM,
#54
RE: non veg kahani एक नया संसार
ये एक बहुत बड़ा फार्म हाउस हुआ करता था पहले। अजय सिंह ने जब इस बिजनेस की शुरुआत की थी तो किसी दूसरे सेठ की वर्षों से बंद कपड़ा फैक्टरी को सस्ते दामों में खरीदा था। (ये सब बातें कहानी के पहले या दूसरे अपडेट में बताई जा चुकी हैं) उस समय ये कपड़ा फैक्टरी शहर के बीच ही बनी हुई थी। कुछ सालों बाद जब अजय सिंह की इस बिजनेस से अच्छे खासे मुनाफे के रूप में तरक्की हुई तो उसने इस फैक्टरी को नये सिरे से तथा नई मशीनों के साथ शुरू करने का विचार किया। अजय सिंह क्योंकि बहुत ही लालची व महत्वाकांक्षी आदमी था, और बढ़ती आय के साथ उसकी बुरी आदतों में भी इज़ाफा हुआ इस लिए पैसे के लिए वह उन रास्तों को भी अपना लिया जिसे गैर कानूनी कहा जाता है। इस रास्ते में उसके कई अपने गैर कानूनी लोग भी थे। किन्तु गैर कानूनी काम में रिश्क बहुत था तथा शहर के बीच उस छोटी सी फैक्टरी में इस काम को अंजाम देने में आसानी नहीं होती थी। कभी भी लोगों के बीच खुद की असलियत सामने आ जाने का खतरा बना रहता था। इस लिए उसने बहुत सोच समझ कर शहर से बाहर एक बहुत बड़ी ज़मीन ख़रीदी तथा वहाॅ पर इसने नये तरीके से फैक्टरी का निर्माण किया। फैक्टरी काफी बड़ी थी तथा उसके नीचे एक बड़ा बेसमेंट भी बनवाया गया था जो सिर्फ गैर कानूनी चीज़ों के उपयोग में ही आता था। यहाॅ पर उसे किसी चीज़ का खतरा नहीं था। फैक्टरी में मजदूरों को हप्ते में एक दिन अवकाश देने के पीछे भी उसका एक मकसद था। वो मकसद ये था कि अवकाश वाले दिन ही वह स्वतंत्र रूप से अपने गैर कानूनी धंधे को चलाता था। जिसके बारे में कभी किसी को भनक तक न लगी थी। फैक्टरी को बहुत सोच समझ कर ही बनवाया गया था। फैक्टरी के अंदर सिर्फ मशीनें थी जहाॅ पर मजदूर काम करते थे, जबकि फैक्टरी के आला अफसर या बाॅकी स्टाफ फैक्टरी से दूर कुछ फाॅसले पर बने एक बड़े से आफिस में होते थे।

अजय सिंह ने कदाचित ख़्वाब में भी न सोचा था कि कभी ऐसा भी समय उसके जीवन में आ जाएगा जब उसकी इस विसाल फैक्टरी में आग लग जाएगी और इस सबकी छानबीन खुद उसकी ही बेटी पुलिस इंस्पेक्टर बन कर करेगी। कानून का डर उसे कभी नहीं था क्योंकि उसने कानून के नुमाइंदों को अपने वश में कर लिया था। हर महीने वह अच्छी खासी रकम पुलिस के आला अफसरों तक पहुॅचवा देता था। उसके मंत्री तक से अच्छे संबंध थे इस लिए उसे इस धंधे में किसी का कोई डर नहीं था। मगर होनी को कौन टाल सकता था भला? होनी तो अटल होती है, बिना बताए तथा बिना किसी सूचना के वो अपना काम कर डालती है। यही अजय सिंह के साथ हुआ था।

ख़ैर ये सब तो बीती बातें हैं दोस्तो, आइए हम सब वर्तमान की तरफ चलते हैं और देखते हैं कि आगे क्या हो रहा है?

फैक्टरी के अंदर का नज़ारा ही कुछ अलग था। जैसा कि आप सब जानते हैं कि फैक्टरी में भीषण आग लगी हुई थी जिसमें सब कुछ जल कर खाक़ में मिल चुका था। अंदर हर चीज़ कोयला बन चुकी थी। हर जगह पानी में सनी हुई राख तथा टूटे हुए बहुत से टुकड़े पड़े थे। कुछ पल के लिए तो रितू को भी समझ न आया कि इस राख में वह क्या तलाश करे? किन्तु कुछ तो करना ही था, केस रिओपेन हुआ था। इस लिए बिना किसी नतीजे के वह बंद नहीं हो सकता था। ऊपर से आदेश था कि छानबीन अच्छे से होनी चाहिए।

पुलिस के खोजी कुत्ते तथा फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट के लोग अपने अपने काम में लग गए। खुद रितू भी वहाॅ की हर चीज़ को बारीकी से देख देख कर जाॅच करने लगी। जबकि इधर अजय, प्रतिमा व अभय चुपचाप उन सबकी कार्यप्रणाली को देखते रहे।

बड़ी बड़ी मशीनों पर जले हुए कपड़ों की राख तथा टुकड़े लिपटे हुए थे। कहीं कहीं पर पिघले हुए शीशे एवं प्लास्टिक नज़र आ रहे थे। अजय सिंह ये सब होने के बाद पहली बार ये सब ध्यान से देख रहा था तथा साथ ही अंदर ही अंदर दुखी भी हो रहा था। कुछ भी हो आखिर उसकी मेहनत का पैसा था वह, फिर चाहे गैर कानूनी वाला हो या फिर सच्चाई वाला।

"मैडम, यहाॅ पर कुछ है।" सहसा एक हवलदार रितू को दूर से ही चिल्लाते हुए कहा।

रितु के साथ साथ सबके कान खड़े हो गए। अजय सिंह की बढ़ी हुई धड़कन मानों उसे रुकती हुई प्रतीत हुई। चेहरे पर तुरंत ही ढेर सारा पसीना उभर आया, तथा चेहरा भय व घबराहट की वजह से पीला पड़ता चला गया। उसने जल्दी से खुद को सम्हाला। अपने दाहिने हाॅथ में लिए रुमाल से उसने तुरंत ही अपने चेहरे का पसीना पोंछा और सरसरी तौर पर इधर उधर देखा। प्रतिमा उसे देख कर तुरंत ही उसके करीब गई तथा हौले से पूछा__"क्या बात है अजय, तुम इतना परेशान और घबराए हुए क्यों लग रहे हो?"

"म मैं क कहाॅ परेशान हूॅ?" अजय सिंह हकलाते हुए बोला__"मैं ठीक हूॅ? ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि मैं परेशान व घबराया हुआ हूॅ?"

प्रतिमा ने उसे बड़े ग़ौर से देखा, फिर कहा__"मुझे ऐसा क्यों लगता है अजय कि जैसे तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो? या फिर ऐसा कि तुम किसी बात से इस लिए घबरा रहे हो कि किसी को वो बात पता न चल जाए।"

अजय सिंह हड़बड़ा गया, आॅखें फाड़े प्रतिमा को देखने लगा। मन में विचार उभरा 'बेटी क्या कम थी जो अब उसकी माॅ भी मेरी जान लेने पर उतारू हो गई है'।

"ऐसे क्यों देख रहे हो मुझे?" प्रतिमा ने कहा__"क्या मैंने कुछ ग़लत कह दिया है?"
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