non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:19 PM,
#40
RE: non veg kahani एक नया संसार
"तुमने कब देखा उसके लंड को?" अजय सिंह ने एक पल रुक कर पूछा और फिर से धक्के लगाने लगा।
"आआआहहह एक दिन दोपहर में खेत पर गई थी अपनी गरमा गरम चूत लेकर।" प्रतिमा ने कहा__"सोच लिया था कि आज इस कमीने से अपनी चूत और गाॅड दोनो मरवा कर ही जाऊॅगी। उस समय खेत मे कोई नहीं था। खेत के मकान के एक कमरे में वो विजय कमीना दोपहर को आराम फरमा रहा था। मैं चुपके से अंदर कमरे मे पहुॅची...आआआहहहह....देखा तो वो गहरी नींद में सोया हुआ नज़र आया। बदन में ऊपर एक बनियान तथा नीचे लुंगी लगा रखी थी उसने। मुझे लगा इससे बढ़िया सुनहरा मौका इससे चुदने का फिर नहीं मिलेगा। ये सोचकर मैंने जल्दी से अपने बदन से सारे कपड़े उतार कर नंगी हो गई और चुपके से विजय की तरफ बढ़ी जो पास ही चारपाई पर सोया हुआ था।"

"क्या हुआ रुक क्यों गई?" अजय सिंह प्रतिमा के एकाएक चुप हो जाने पर कहा__"आगे क्या हुआ था फिर??"
"तुम रुक गए तो मैं भी रुक गई।" प्रतिमा ने कहा__"तुम मेरी कुटाई करते रहो...तभी तो मजे में बताऊगी न।"

"ओह हाॅ।" अजय सिंह चौंका और फिर से धक्के लगाते हुए बोला__"अब बताओ।"
"आआहहहहह हाॅ ऐसे ही आआआहहह जोर जोर से चोदो मुझे।" प्रतिमा ने मजे से आंखें बंद करते हुए कहा__"विजय चारपाई पर चूॅकि गहरी नींद में सोया हुआ था इस लिए उसे ये पता नहीं चला कि उसके कमरे में कौन क्या करने आया है? मैं उसके हट्टे कट्टे शरीर को देख कर आहें भरने लगी थी। चारपाई के पास पहुॅच कर मैंने दोनों हाॅथों से विजय की लुंगी को उसके छोरों से पकड़ कर आहिस्ता से इधर और उधर किया। जिससे विजय के नीचे वाला हिस्सा नग्न हो गया। लुंगी के अंदर उसने कुछ नहीं पहन रखा था। मैंने देखा गहरी नींद में उसका घोंड़े जैसा लंड भी गहरी नींद में सोया पड़ा था। लेकिन उस हालत में भी वह लम्बा चौड़ा नज़र आ रहा था। उसका लंड काला या साॅवला बिलकुल नहीं था बल्कि गोरा था बिलकुल अंग्रेजों के लंड जैसा गोरा। कसम से अजय उसे देख कर मेरे मुॅह में पानी आ गया था। मैंने बड़ी सावधानी से उसे अपने दाहिने हाॅथ से पकड़ा। उसको इधर उधर से अच्छी तरह देखा। वो बिलकुल किसी मासूम से छोटे बच्चे जैसा सुंदर और प्यारा लगा मुझे। मैंने उसे मुट्ठी में पकड़ कर ऊपर नीचे किया तो उसका बड़ा सा सुपाड़ा जो हल्का सिंदूरी रंग का था चमकने लगा और साथ ही उसमें कुछ हलचल सी महसूस हुई मुझे। मैंने ये महसूस करते ही नज़र ऊपर की तरफ करके गहरी नींद में सोये पड़े विजय की तरफ देखा। वो पहले की तरह ही गहरी नींद में सोया हुआ लगा। मैंने चैन की साॅस ली और फिर से अपनी नज़रें उसके लंड पर केंद्रित कर दी। मेरे हाॅथ के स्पर्श से तथा लंड को मुट्ठी में लिए ऊपर नीचे करने से लंड का आकार धीरे धीरे बढ़ने लगा था। ये देख कर मुझमें अजीब सा नशा भी चढ़ता जा रहा था, मेरी साॅसें तेज़ होने लगी थी। मैंने देखा कि कुछ ही पलों में विजय का लंड किसी घोड़े के लंड जैसा बड़ा होकर हिनहिनाने लगा था। मुझे लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि विजय जाग रहा हो और ये देखने की कोशिश कर रहा हो कि उसके साथ आगे क्या क्या होता है? मगर मुझे ये भी पता था कि अगर विजय जाग रहा होता तो इतना कुछ होने ही न पाता क्योंकि वह उच्च विचारों तथा मान मर्यादा का पालन करने वाला इंसान था। वो कभी किसी को ग़लत नज़र से नहीं देखता था, ऐसा सोचना भी वो पाप समझता था। मेरे बारे में वो जान चुका था कि मैं क्या चाहती हूॅ उससे इस लिए वो हवेली में अब कम ही रहता था। दिन भर खेत में ही मजदूरों के साथ वक्त गुज़ार देता था और देर रात हवेली में आता तथा खाना पीना खा कर अपने कमरे में गौरी के साथ सो जाता था। वह मुझसे दूर ही रहता था। इस लिए ये सोचना ही ग़लत था कि इस वक्त वह जाग रहा होगा। मैंने देखा कि उसका लंड मेरी मुट्ठी में नहीं आ रहा था तथा गरम लोहे जैसा प्रतीत हो रहा था। अब तक मेरी हालत उसे देख कर खराब हो चुकी थी। मुझे लग रहा था कि जल्दी से उछल कर इसको अपनी चूत के अंदर पूरा का पूरा घुसेड़ लूॅ। किन्तु जल्दबाजी में सारा खेल बिगड़ जाता इस लिए अपने पर नियंत्रण रखा और उसके सुंदर मगर बिकराल लंड को मुट्ठी में लिए आहिस्ता आहिस्ता सहलाती रही। उसको अपने मुह में भर कर चूसने के लिए मैं पागल हुई जा रही थी, जिसका सबूत ये था कि मैं अपने एक हाथ से कभी अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को मसलने लगती तो कभी अपनी चूॅत को। मेरे अंदर वासना अपने चरम पर पहुॅच चुकी थी। मुझसे बरदास्त न हुआ और मैंने एक झटके से नीचे झुक कर विजय के लंड को अपने मुह में भर लिया....और यही मुझसे ग़लती हो गई। मैंने ये सब अपने आपे से बाहर हो कर किया था। विजय का लंड जितना बड़ा था उतना ही मोटा भी था। मैंने जैसे ही उसे झटके से अपने मुह में लिया तो मेरे ऊपर के दाॅत तेज़ी से लंड में गड़ते चले गए और विजय के मुख से चीख निकल गई साथ ही वह हड़बड़ा कर तेज़ी से चारपाई पर उठ कर बैठ गया। अपने लंड को मेरे मुख में देख वह भौचक्का सा रह गया किन्तु तुरंत ही वह मेरे मुह से अपना लंड निकाल कर तथा चारपाई से उतरकर दूर खड़ा हो गया। उसका चेहरा एक दम गुस्से और घ्रणा से भर गया। ये सब इतना जल्दी हुआ कि कुछ देर तो मुझे कुछ समझ ही न आया कि ये क्या और कैसे हो गया। होश तो तब आया जब विजय की गुस्से से भरी आवाज़ मेरे कानों से टकराई।

"ये क्या बेहूदगी है?" विजय लुंगी को सही करके तथा गुस्से से दहाड़ते हुए कह रहा था__"अपनी हवस में तुम इतनी अंधी हो चुकी हो कि तुम्हें ये भी ख़याल नहीं रहा कि तुम किसके साथ ये नीच काम कर रही हो? अपने ही देवर से मुह काला कर रही हो तुम। अरे देवर तो बेटे के समान होता है ये ख़याल नहीं आया तुम्हें?"

मैं चूॅकि रॅगे हाॅथों ऐसा करते हुए पकड़ी गई थी उस दिन इस लिए मेरी ज़ुबान में जैसे ताला सा लग गया था। उस दिन विजय का गुस्से से भरा वह खतरनाक रूप मैंने पहली बार देखा था। वह गुस्से में जाने क्या क्या कहे जा रहा था मगर मैं सिर झुकाए वहीं चारपाई के नीचे बैठी रही उसी तरह मादरजात नंगी हालत में। मुझे ख़याल ही नहीं रह गया था कि मैं नंगी ही बैठी हूॅ। जबकि,,,

"आज तुमने ये सब करके बहुत बड़ा पाप किया है।" विजय कहे जा रहा था__"और मुझे भी पाप का भागीदार बना दिया। क्या समझता था मैं तुम्हें और तुम क्या निकली? एक ऐसी नीच और कुलटा औरत जो अपनी हवस में अंधी होकर अपने ही देवर से मुह काला करने लगी। तुम्हारी नीयत का तो पहले से ही आभास हो गया था मुझे इसी लिए तुमसे दूर रहा। मगर ये नहीं सोचा था कि तुम अपनी नीचता और हवस में इस हद तक भी गिर जाओगी। तुममें और बाज़ार की रंडियों में कोई फर्क नहीं रह गया अब। चली जाओ यहाॅ से...और दुबारा मुझे अपनी ये गंदी शकल मत दिखाना वर्ना मैं भूल जाऊॅगा कि तुम मेरे बड़े भाई की बीवी हो। आज से मेरा और तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं...अब जा यहाॅ से कुलटा औरत...देखो तो कैसे बेशर्मों की तरह नंगी बैठी है?"
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