RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
ड्राइविंग सीट पर चाचा थे और बगल में चाची बैठी थी | मैं पीछे परेशान सा बैठा था | परेशानी इस बात की थी कि ये इंस्पेक्टर दत्ता किसी तरह की परेशानी न बन जाए मेरे और परिवार के लिए |
अनायास ही मेरा हाथ मेरे पैंट के पॉकेट पर गया ... कोई कागज़ सी चीज़ अंदर थी | पर मैंने तो ऐसा कुछ नहीं रखा था ... तो फिर ?
जल्दी से पॉकेट से वो कागज़ निकला.... किसी छोटे बच्चे के स्कूल की कॉपी के पेज की जितनी बड़ी कागज़ थी ... और उसपे साफ़ साफ़ अक्षरों में लिखा था,
“पुलिस पर ज़्यादा भरोसा करने की गलती मत करना... पुलिस भी मुजरिमों से मिली हुई हो सकती है ... पुलिस के साथ ज़्यादा घुल मिल करोगे तो लेने के देने पड़ सकते हैं .. आज संध्या साढ़े छ: बजे नीचे दिए गए पते पर मिलना ... तुम्हारे काम की चीज़ बतानी है | ज़रूरी है .. इसलिए ज़रूर से आना... फ़िक्र न करो... तुम्हारा शुभ चिंतक हूँ |
पता:- **************
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मैं गहन सोच में डूबता चला गया .. कौन है ये अनजान मददगार..? मिस्टर एक्स? या फिर कोई और??
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घर पहुँच कर थोड़ी देर रेस्ट किया | फ़िर चार घंटे स्टूडेंट्स को पढ़ाया | कुछ नए स्टूडेंट्स ने भी मेरा इंस्टिट्यूट ज्वाइन किया था | मेरे अंडर में दो और टीचर हैं और एक स्टाफ है | मेरी अनुपस्थिति में यही लोग सबकुछ सँभालते हैं | बहुत दिनों बाद अपने स्टूडेंट्स, टीचर्स, स्टाफ और इंस्टिट्यूट के बीच खुद को पा कर बहुत अच्छा लग रहा था | मेरे इतने दिनों से इंस्टिट्यूट में न होने और लापता होने की खबर को लेकर सबने तरह तरह के प्रश्न दागने शुरू कर दिए | ज़्यादा बहाने नहीं बना पाया; किसी तरह सबकी जिज्ञासाओं को शांत किया | पर सबकी चिंताएँ देख कर थोड़ा अच्छा भी लगा | सबको मेरी फ़िक्र है.. और अगर बहुत ज़्यादा फ़िक्र नहीं भी है तो भी कम से कम पूछा तो सही सबने |
मुझे बेसब्री से साढ़े छ: बजे का इंतज़ार था | पौने छह होते ही मैं घर से निकल पड़ा और सवा छह होते होते गंतव्य पर पहुँच गया | एक पुराना सा बिल्डिंग .. उजाड़.. चारों ओर झाड़ियाँ .. कुछ कुछ वैसा ही जैसा पहली बार मिस्टर एक्स ने मिलने के लिए जिस जगह पर बुलाया था | अंतर इतना था कि पहली वाली बिल्डिंग किसी राजा महाराजा के जमाने की लग रही थी और अब ये वाली बिल्डिंग खाली, उजाड़ हुए कुछ बीस-तीस या उससे अधिक बरस की लग रही थी | कागज़ के टुकड़े के लिखे अनुसार मुझे अब तीसरी मंजिल पर किसी एक दरवाज़े जिस पर 3 C लिखा होगा उससे हो कर अन्दर घुसना है और ठीक दस मिनट इंतज़ार करने के बाद एक लाल बत्ती जलने के बाद मुझे उठ कर उसी दरवाज़े से बाहर निकल कर उसी तीसरी मंजिल की नौवीं दरवाज़े 3 I से अन्दर घुसना होगा | वहीँ पर मुझसे मेरा शुभ चिंतक भेंट करेगा |
मैंने एक सिगरेट सुलगाया और जल्दी से उस टूटी फूटी वीरान मकान की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा | सीढ़ियों पर जगह जगह जाले, धूल की मोटी परतें और मकान के कुछ टूटे हिस्से गिरे हुए थे | धूल से एलर्जी होने के कारण नाक मुँह ढकना पड़ा | जल्द ही मैं तीसरी मंजिल के तीसरे दरवाज़े के सामने खड़ा था | दरवाज़ा हलके धक्के से ही खुल गया | अन्दर घुसने पर चौंका .. एक फाइबर वाली चेयर रखी थी सामने | नई लग रही थी | अपने हाथ घड़ी पर नज़र रखते हुए मैं उस चेयर पर बैठने से पहले चारों ओर का मुआयना कर लिया | सब ठीक ही लगा |
चेयर पर बैठा बैठा मैं बोर भी हो रहा था पर करने के लिए कुछ था नहीं | एक के बाद एक सिगरेट सुलगाता रहा | दस मिनट दस घंटे से लग रहे थे | पर मानना पड़ेगा की जिस किसी ने भी टाइम सेट किया है वाकई समय का बड़ा पाबंद होगा ... क्योंकि दसवाँ मिनट होते ही उस कमरे में ही सौ वाट के जल रही बल्ब से कुछ ही दूरी पर स्थित लाल बल्ब सायरन की सी आवाज़ के साथ जल उठी | सायरन वाली आवाज़ भी केवल तीन बार ही बजी | उठ कर तुरंत कमरे से बाहर निकला और लगभग दौड़ते हुए नौवें दरवाज़े के पास जा कर रुका |
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