RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
थाने में मेरे गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने के पाँच दिन बाद मैं, चाचा और चाची के साथ थाने गया; मेरे साथ घटी घटनाओं का विवरण देने | ऑफ़ कोर्स बहुत सी बातों को मैं छुपाने वाला था ; पर इन बातों को छुपाने के चक्कर में जो बातें मैं कहने वाला था उन्हें कुछ ऐसे कहना पड़ता जिससे किसी को ये लगे नहीं कि मैं कहीं कुछ भी छुपा रहा हूँ | थाने जाने से पहले मैं बहुत घबराया हुआ था पर चाची की चेहरे की दृढ़ता और उनका विश्वास की थाने में मुझे कुछ न होगा वरन कुछ प्रश्न कर छोड़ दिया जाएगा, ने मुझमें भी काफ़ी हद तक हिम्मत बढ़ाई | चाची को इतना कन्फर्म मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा था | एक तरफ़ जहां मैं अपने पास चाचा और चाची दोनों को पा कर निश्चिन्त था वहीँ दूसरी ओर मुझे किसी अनजाने डर का डर भी सता रहा था | खास कर अस्पताल में उस दिन मौजूद उन लोगों का डर |
अस्पताल की याद आते ही मुझे उस अनजान लड़की की याद आ गयी जिसने उस दिन दो-तीन लोगों की सहायता से अस्पताल से निकलने में मेरी सहायता की थी | बड़ी ही अजीब बात थी, न जान न पहचान.... फिर भी मैं तेरी कद्रदान ! क्यूँ मदद की उसने मेरी? क्या वह मेरे मकसद के बारे में कुछ जानती है? या सब कुछ जानती है ? और अगर जानती भी है तो फ़िर ‘मेरी’ मदद करने के पीछे का उसका क्या मकसद रहा होगा? नाम भी तो नहीं बताया था उसने उस दिन | और तो और , उसे मेरे घर का पता किसने बताया? अगर इस लड़की को मेरे घर का पता मालूम है तो क्या उन दूसरे खतरनाक लोगों को भी मालूम है?? हे भगवान ! कहीं वो लोग सीधे मेरे घर ही न पहुँच जाए !
थोड़ी ही देर बाद हम पुलिस स्टेशन के बाहर खड़े थे |
सभी अपने कार्यों में व्यस्त थे, किसी को किसी की सुध नहीं थी |
चाचा आगे बढ़ कर एक सिपाही से इंस्पेक्टर विनय से मिलने की बात कही |
सिपाही ने एक बार चाचा को ऊपर से नीचे तक अच्छे से देखा फिर मेरी ओर चाची की ओर एक सरसरी सी निगाह दौड़ा कर चाचा की ओर देखते हुए कहा,
“विनय साहब नहीं आये हैं, आज छुट्टी पर हैं | ”
“ओह्ह..!” चाचा ने निराशा व्यक्त की |
“क्यों, क्या काम है... अर्जेंट है क्या?” – सिपाही ने चाचा को निराश देख कर पूछा |
“जी, इंस्पेक्टर विनय ने ही बुलाया था.. एक केस के सिलसिले में...”
“कौन सा केस?” – सिपाही ने उत्सुकता में पूछा |
“मेरे भतीजे के लापता होने का केस.. लौट आया है .. इसलिए मिलना था |” चाचा ने अत्यंत संक्षेप में उत्तर दिया |
सिपाही ने मेरी ओर देखते हुए पूछा, “यही है क्या? कहाँ था इतने दिन? कहाँ चला गया था? कैसे आया?”
एक साथ प्रश्नों की बारिश सी कर दी उसने | मैं भी थोड़ा घबरा सा गया ; और चाची की ओर देखा | चाची मेरे मनोभावों को पढ़ते हुए सिपाही की ओर मुखातिब हुई और थोड़ा झिड़कते हुए बोली,
“आप इंस्पेक्टर विनय हैं क्या?”
चाची की झिड़क से सिपाही थोड़ा अकबका सा गया | खुद को तुरंत सँभालते हुए कुछ कहने जा रहा था की चाची ने फिर उसे उसी अंदाज़ में कहा,
“अगर इंस्पेक्टर साहब नहीं हैं तो उनके जगह थाना इन-चार्ज कौन हैं? जो हैं उनका नाम बताओ और अगर कोई नहीं है तो ठीक है... हम चलते हैं |”
चाची का यह रिएक्शन काफ़ी शॉकिंग था | हमने कभी सोचा ही नहीं था कि चाची इतनी निडरता से बात कर सकती है... और तो और उस सिपाही ने भी कभी सपने में कुछ ऐसा होने के बारे में सोचा नहीं होगा | वो बुरी तरह से हड़बड़ा गया | चाची को अच्छे से ऊपर से नीचे तक एक बार और देखने के बाद गला साफ़ करते हुए कहा,
“खं..ख्म... हम्म... इंस्पेक्टर दत्ता साहब अंदर बैठे हैं .. इंस्पेक्टर विनय साहब की अनुपस्थिति में वही यहाँ के इन-चार्ज होते हैं..... |”
सिपाही अभी अपनी बात पूरी कर पाता, उसके पहले ही चाची ने मुझे आगे करते हुए उस सिपाही को “एक्सयूज़ मी” बोल कर कमरे में घुस गई | चाचा भी किंकर्तव्यविमूढ़ सा खुद को कुछ कहने की स्थिति में ना पाकर चुपचाप चाची को फॉलो करना ही बेहतर समझा | अंदर घुसने के बाद हमें बगल में ही एक और कमरा मिला | कमरे के बाहर ही बैठे एक संतरी से पूछने पर पता चला की है तो ये इंस्पेक्टर विनय का ही कमरा पर उनके छुट्टी पर होने के कारण अभी इंस्पेक्टर दत्ता यहाँ के इन चार्ज हैं और वह ही अभी कमरे में बैठे हैं | हमारे कहने पर वो अंदर गया और इंस्पेक्टर दत्ता से मिलने की परमिशन ले कर बाहर आया,
“जाइये... साहब बुला रहे हैं |”
सुनते ही चाची कोहनी से मुझे हल्का सा मार कर इशारा करते हुए कमरे की ओर बढ़ गई, मैं उनके साथ ही घुसा जबकि चाचा थोड़ा रुक कर अंदर आए | फिर जो हुआ, उससे यह समझ में नहीं आया कि जल्दबाज़ी में हुआ या जान बुझ कर ....
हुआ यह कि, अंदर घुसते ही चाची तेज़ कदमों से चलते हुए सामने रखे चेयर तक गई पर चेयर के पिछले (पाया) पाँव से उनका पैर टकरा गया और वह गिरते गिरते बची | पर खुद को सँभालने के क्रम में वो चेयर को पकड़े आगे की ओर झुक गई और इससे उनका पल्लू उनके कंधे पर से हट कर उनके बाँह में आ गया |
और जैसा कि मुझे पहले से ही पता है की चाची कितना लो कट ब्लाउज पहनती है, इसलिए चाची के आगे गिरते ही मैं समझ गया की इंस्पेक्टर दात्ता को दुनिया की कई लुभावनी चीज़ों में से एक के दर्शन हो रहे हैं आज | दत्ता तो जैसे पलकें झपकाना ही भूल गया | पलकें तो दूर की बात, उसे देख कर ऐसा लगा मानो वो उस समय साँस तक लेने भूल गया है |
चाची जल्दी से अपने आँचल को दुरुस्त करते हुए इंस्पेक्टर दत्ता को नमस्ते की...
प्रत्युत्तर में इंस्पेक्टर दत्ता ने भी किसी तरह खुद को सँभालते हुए हाथ जोड़े, लाख कोशिश करे चाची के चेहरे को देखने की पर गुस्ताख आँखें अपना रास्ता उनके वक्षों तक ढूँढ ही लेते हैं |
“ज.. जी.... आ..आप??” – हलक में फँसते शब्दों के साथ शुरुआत किया इंस्पेक्टर ने |
“जी, मेरा नाम दीप्ति है... दीप्ति शर्मा, ये मेरे हस्बैंड मिस्टर आलोक शर्मा हैं और ये मेरा भतीजा अभय, अभय शर्मा.. दरअसल हम.............................” – और फिर चाची ने सब कुछ इंस्पेक्टर दत्ता को कह सुनाया |
मेरे गायब होने की, मेरे मिल जाने, इंस्पेक्टर विनय से हुई बातें... वगैरह वगैरह... |
इंस्पेक्टर दत्ता सब कुछ बहुत शांति से और ध्यानपूर्वक सुनता रहा |
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