RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
रात के एक बज रहे हैं...
चारों तरफ़ सन्नाटा ...
बाहर साएँ साएँ से ठंडी हवा चल रही है ....
घुप्प अँधेरा.....
और ऐसे वक़्त अभय के कमरे से दीप्ति की एक मधुर, कराहने सी आवाज़ पूरे वातावरण में तैर जाती है,
“आह:.. आःह्ह्ह... अह्ह्ह. अभयssssssss….इस्स्स्सssss….ssss.....आह्हsssssss.... ऐसेsss..नहीं... अब ….और ना…… तड़पाओsssssss….”
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“आआह्हह्ह्ह्ह...आआऊऊऊउचचचचच.....कित.....कितना....ज़...ज़ो......ज़ोर स..सस..से करते ह...हो.... प..पागल हो क्या.....?!! आऊऊचचच... अररररे.... आह्ह:... धीरे दबाओ ....!!! ”
“आअह्ह्ह्ह...आआऊऊऊ....सससससआआआआ....सससससआआआ....आह्ह्ह्ह......!!” आवाजें अब भी आ रही थी और लगातार आ रही थी | रात के उस घनघोर अँधेरे और सन्नाटे में चाची की मदहोश और बेकरारी भरी आवाज़, माहौल को और अधिक रोमांटिक बना रही थी |
कमरे में उथल पुथल मची थी ...
नीले रंग का नाईट बल्ब जल रहा था ..
फलस्वरूप पूरे कमरे में नीला प्रकाश फैला था ...
बिस्तर पर भी...नीला प्रकाश ..
और उस नीले प्रकाश में नहाए, चाची यानि दीप्ति और अभय , दोनों एक दूसरे से चिपके, बारी बारी से पूरे बिस्तर पर एक दूसरे के ऊपर नीचे हो रहे थे |
और पागलों की तरह एक दूसरे पर चुम्बनों की बरसात कर रहे थे |
अंत में दोनों हांफते हुए थोड़ा स्थिर हुए और ऐसा होते ही दीप्ति अभय को बिस्तर पर लिटाये उसके कमर से थोड़ा नीचे होकर अपने दोनों घुटनों को अभय के शरीर के दोनों ओर रखते हुए बैठ गई | अपने नितम्बों का भार अभय के कमर से थोड़ा नीचे रखते हुए बहुत ही धीरे धीरे, इन ए वेरी इरोटिक वे, अपने कमर और नितम्बों को आगे पीछे करने लगी |
और दीप्ति के इस हरकत से अभय के कमर के नीचे का अंग धीरे धीरे सख्त होने लगा |
अंग के धीरे धीरे सख्त होने का अहसास दीप्ति को भी हुआ ; तभी तो वह अभय की ओर शरारत भरी नज़र से देखते हुए होंठों पर एक कुटिल मुस्कान लिए अपने रोब (नाईट गाउन) के सामने के फ़ीतों को बड़ी सेक्सी तरीके से धीरे धीरे खोली और खोल कर सावधानी से गाउन के दोनों पल्लों को इस तरह से साइड किया जिससे की उसका वक्ष वाला हिस्सा तो ढका रहे पर नाभि और पूरा पेट सामने दृश्यमान हो जाए |
अभय तो इस दृश्य को अपलक देखता ही रह गया |
अभय को यों बेबस सा अपनी तरफ़ देखते हुए देख कर दीप्ति को सफ़लता के बाद मिलने वाली ख़ुशी का एहसास जैसा महसूस हुआ | बड़े ही कामुक ढंग से मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ अभय के नंगे सीने पर घुमाने लगी और फिर कुछ देर तक ऐसे ही घूमाते रहने के बाद अभय के दोनों हाथों को पहले अपने जांघों पर, फ़िर पेट पर और फिर धीरे धीरे अपनी चूचियों पर रखी | जांघों की गर्मी, पेट की नरमी और चूचियों की नरमी और गर्मी, इन सबने मिलकर अभय को मानो एक मोहपाश में जकड़ लिया हो |
नाईट गाउन के नीचे दीप्ति (चाची) ने ब्लाउज और पेटीकोट पहना था | नीली रोशनी में दोनों कपड़े एक ही लग रहे थे | अति उत्साह में अभय की साँसे कम होती जा रही थी | वह स्वयं पर नियंत्रण की हार्दिक प्रयास कर रहा था पर चाची की कमसीन देहयष्टि उसके हर प्रयासों को हर बार और बार बार विफल कर दे रही थी | अपनी चूचियों पर उसके हाथ रख कर दीप्ति अपने हाथो का दबाव उसके हाथों पर बढ़ा दी | ये एक संकेत था अभय के लिए, उसे एक्शन में आने का...
मैं, यानि कि अभय, नीचे लेटा लेटा, एक बार चूची को जोर से दबाता फिर अगले बार उसी चूची को धीरे और आराम से नीचे से पकड़ कर ऊपर की ओर उठाते हुए हलके प्रेशर देता और उस चूची के ऊपर उठने और दबने की प्रक्रिया को बड़े लालसा और चाव से देखता |
चाची अपने वक्षों पर मेरे ऐसे ज़ोर आजमाइश से अपने अन्दर उठते उत्तेजना की लहरों को रोक पाने में असमर्थ हो रही थी और हर बार अपनी किसी एक चूची के दबने पर आँखें बंद कर होंठों को दबाते हुए, “आअह्ह्ह्ह..उउमममममममम....” की आवाज़ निकालती | रह रह कर उनकी सिसकारी इतनी मादक हो उठती की मैं जोश में और जोर से उनकी चूची को दबा देता |
लगातार चूची को दबाते दबाते मैं कमर से ऊपर तक के हिस्से को थोड़ा उठाता हुआ चाची को अपनी ओर थोड़ा झुका कर उनके गालों पर किस करने लगा | किस करते हुए चाची के गर्दन और कन्धों पर आता और वहां उस जगह को चुमते हुए चाटने लगता | और फ़िर बहुत ही प्रेम से चाची के गालों को चुमते हुए उनके स्तनों को दाबने लगता | गालों, कमर और वक्षों को सहलाते हुए उनके कंधों पर से गाउन को हौले से सरका दिया और जल्द ही शरीर से भी अलग कर दिया | चाची के कंधे पर के ब्लाउज के हिस्से को मैंने खिंच कर कंधे से थोड़ा नीचे किया और उस नग्न कंधे को पागलों की तरह चाटने लगा | मेरे लार लग जाने से कन्धा नीली रोशनी में चमकने सा लगा और ऐसी हालत में चाची बहुत ही जबरदस्त सेक्सी लग रही थी |
चाची ने अब अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को पकड़ा और अपनी ओर खींचते हुए मेरे मुँह को अपने वक्षों को बीच की घाटी में भर दी | मेरी सांस रुकने को हो आई पर साथ ही एक अत्यंत ही अदभुत सुखद अनुभूति भी हुई | इतना आनंद आया की मैं तो लगभग जैसे आनंद के समुद्र में गोते लगाने लगा | घाटी में मेरे मुँह के घुसने के कुछ सेकंड्स के बाद ही चाची की दिल की धड़कन बढ़ गई | उनका सीना तेज़ गति से ऊपर नीचे होने लगा | सीने के ऊपर नीचे होने के फलस्वरुप दोनों चूचियां मेरे दोनों तरफ़ के गालों से बड़ी नरमी से टकराते और मेरा मुँह और अधिक घुस जाता घाटी में | इतने नर्म मुलायम वक्षों की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी | चाची की तेज़ बढ़ी हुई धड़कन उनके उत्तेजना, कामुक भावनाएँ और वासना .. सब कुछ बयाँ कर दे रहे थे |
काफ़ी देर तक मेरे मुँह को अपने क्लीवेज में घुसाकर अप्रतिम सुख देने के बाद चाची ने एक झटके से मेरे चेहरे को ऊपर उठाया और मेरी आँखों में झाँकी | मैंने भी ऐसा ही किया | बिल्कुल अन्दर झाँकने की कोशिश की उनके आँखों में | वासना के अंदरूनी लहरों ने चाची की आँखों को सुर्ख लाल कर दिया था | एक अजीब सी बेचैनी, खुमारी, जंगलीपन सा दिख रहा था उनके आँखों में उठते भावनाओं के साथ | मैं देखता रहा उनकी आँखों में | और फिर ... रुक रुक कर आगे बढ़ते हुए अपने होंठ चाची के होंठों पर रख दिया | कुछ सेकंड्स वैसे ही रहे हम दोनों; मानो हमारे होंठ आपस में सट से गए हों | अपने होंठों को वैसे ही रखते हुए मैं चाची के होंठों से अपने होंठ आहिस्ते से रगड़ने लगा और ऐसा मैं पूरी फीलिंग्स के साथ कर रहा था | चाची चुपचाप बैठी मेरे कन्धों पर अपने दोनों हाथ रख कर इस कामक्रिया में पूर्ण सहयोग कर रही थी | उनके हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि मानो उन्होंने स्वयं को सम्पूर्णत: मुझे समर्पित कर चुकी है |
मेरे द्वारा लगातार उनके अंगों पर इस तरह के छेड़छाड़ से चाची गर्म होने लगी और गहरी लम्बी साँसे लेने लगी | अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दूसरे हाथ को मेरे सर के पीछे से ले जा कर अपनी मुट्ठी से मेरे बाल पकड़ कर मुझे अपनी तरफ़ झुकाने लगी |
मुझसे भी रहा न गया और अपने दोनों हाथों से चाची को अपने आगोश में ले लिया और चाची की गदराई मांसल पीठ को दबोच दबोच कर मसलने लगा | अपने जीभ को चाची के होंठों पर फिराने लगा | कुछ देर ऐसे करते रहने से चाची इशारा समझ गई और उन्होंने अपने होंठों को थोड़ा खोला | इतना मौका काफ़ी था मेरे लिए !
झट से अपना जीभ चाची के नर्म होंठों से होते हुए अन्दर घुसा दिया और उनके मुँह में अपने जीभ को इधर उधर घुमाने लगा | शायद चाची के लिए यह एक बिल्कुल ही नया अनुभव सा था | थोड़ा कसमसा सी गई | शायद ऐसी पोजीशन में इस तरह से लगातार एक के बाद एक कामक्रियाएं होने के कारण थोड़ा असहज महसूस कर रही थी | उन्होंने एक बार के लिए खुद को थोड़ा अलग करना चाहा पर मेरे मजबूत गिरफ़्त से खुद को आज़ाद नहीं कर पाई |
अंततः हार कर वो मेरा साथ देने में ही समझदारी समझी | इधर मैं अपने जीभ से उनके जीभ मिलाने में व्यस्त था | अब तो चाची भी अपना जीभ धीरे धीरे बाहर करने लगी | उनके ऐसा करते ही मैंने उनके जीभ को अपने होंठों के गिरफ़्त में चूसना शुरू कर दिया | कुछ ही सेकंड्स बाद पाला बदला और अब चाची मेरे जीभ को अपने होंठों में ले चूसने लगी | दोनों के जीभो का परस्पर द्वंद्व या कहें खेल ऐसे ही चलता रहा | काफ़ी देर बाद दोनों एक झटके से एक दूसरे से अलग हुए और तेज़ लम्बी सांस लेने लगे | दोनों ही बुरी तरह हांफ रहे थे |
कुछ देर तक लम्बे लंबे सांस लेने के बाद चाची मेरी ओर देख कर कुछ कहना चाही पर न जाने मुझे अचानक से क्या हुआ जो मैं उनको अपनी ओर खींचते हुए उनके होंठों को पागलों की तरह चूसने लगा | चाची होंठ चुसाई में मेरा साथ देने के अलावा और कुछ न कर पाई | होंठों को चूसते हुए इस बार मेरे हाथ भी एक्शन में आ गए और वो पूरी शिद्दत से दीप्ति (चाची) के नर्म चूचियों को दबाने में लग गए | चाची के होंठों को चूसते हुए ही मैंने उनके ब्लाउज को खोलना चाहा पर अति उत्तेजना के इस पड़ाव पर मेरे से उनके ब्लाउज के हूक्स खुल नही रहे थे | मेरे होंठों से अपने होंठ लगाए ही चाची ने थोड़ा सहयोग किया और अपने हाथ ब्लाउज हुक्स तक ले जा कर दो हुक खोल दिए ; पर मुझे तो सारे हुक खुले चाहिए थे, इसलिए मैंने भी हाथ लगाए और थोड़ी दिक्कत के बाद बचे सारे हुक भी खोल डाले | पर अभी भी काम पूरा नहीं हुआ.... क्योंकि एक अंतिम हुक बच गया था | झल्ला कर मैंने ब्लाउज के दोनों कप्स के ऊपरी दोनों सिरों को पकड़ा और एक झटका देते हुए अंतिम हुक को तोड़ डाला |
हूक्स के टूटते ही चाची, “ईईईईईईई” से चिल्लाते हुए अपने दोनों हाथो से अपने वक्ष स्थल को छुपाने लगी | मैंने फ़ौरन चाची के मुँह पर अपना हाथ रख कर उनकी आवाज़ को रोकने की कोशिश की | और दूसरे हाथ की एक ऊँगली अपने होंठों पर रखते हुए चाची को चुप रहने का इशारा किया | चाची मामले की नजाकत को भांपते हुए तुरंत चुप हो गई |
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