RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
सब कुछ ध्यान से सुनने के बाद दत्ता कुछ देर ख़ामोश रहा, फिर बड़े ही सोचने वाली निगाहों से विनय की आँखों में देखते हुए पूछा,
“तो क्या सोचा तुमने?”
“किस बारे में?” – एक किंग साइज़ सुलगाते हुए, सिगरेट का पैकेट और लाइटर दत्ता की ओर बढ़ाते हुए विनय बोला |
“केस के बारे में.. योर होटल जाने का इरादा है क्या? ” – सिगरेट सुलगाने की बारी अब इंस्पेक्टर दत्ता की थी |
“सोच तो वही रहा हूँ .. अगले आधे घंटे में वहीं जाऊँगा |”
“तो फ़िर ठीक है.. जब जाओ तो मुझे भी बुला लेना | ”
“नहीं यार... मेरे दो तीन केस और पेंडिंग हैं .. दो जमानत की अर्जी भी आने वाली है .. ऐसा करो, तुम आज मेरी जगह उन कामों को संभाल लो | मैं कुछ सिपाहियों के साथ योर होटल का एक चक्कर मार कर आता हूँ... आ के सब सुनाऊंगा.. फ़िर अगर तुम्हे लगे की ये केस दिलचस्प है और इस केस के साथ जुड़ने का मन करे तब ही हाथ लगाना केस को... ओके?”
दत्ता मुस्कराते हुए बोला, “ओके .. नो प्रोब्लम | तू चिंता ना कर दोस्त... तेरा ये दोस्त तेरे कामों को संभाल लेगा | यू कैन काउंट ऑन मी |”
इस बात दोनों ठहाके लगा कर हँस पड़े |
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एक घंटे बाद,
योर होटल में पंद्रह सिपाहियों के साथ इंस्पेक्टर विनय | सभी सिपाही सभी कमरों की तलाशी ले रहे थे और इधर होटल का मेनेजर थोड़े घबराये अंदाज़ में विनय के सामने खड़ा था | विनय गिद्ध की तरह उसपर दृष्टि जमाए उसके हरकत को देख रहा था | मैनेजर का यूँ नर्वस होना विनय को कहीं न कहीं उसके पॉवर का एहसास करा रहा था पर साथ ही एक सम्भावना भी बन रही थी कि हो सकता है इस होटल में ज़रूर कुछ गड़बड़ है जिस कारण ये मैनेजर ऐसे घबरा रहा है | पसीने की एक बूँद मैनेजर के माथे से दांये तरफ़ से होते हुए गाल तक आ पहुँची और मैनेजर काँपते हाथों से अपने ब्लेजर के सामने के पॉकेट से रुमाल निकाल कर, पसीने को पोंछ कर रूमाल वापस अपने पॉकेट में रख लिया |
अपने ओहदे और औकात पर मन ही मन गर्व करता हुआ विनय गंभीर आवाज़ में मैनेजर से पूछा,
“दो बार पूछ चुका हूँ .. ये तीसरी और आखिरी बार है ; सच सच बताओ... यहाँ क्या क्या चलता है रातों को?”
“मैं सच कह रहा हूँ साहब.. यहाँ किसी भी तरह की कोई भी गलत एक्टिविटी नहीं होती है | सब अच्छे पोस्ट पर काम करने वाले और अच्छे घरानों के लोग आते हैं यहाँ | हाँ, फ़रमाइश पर ड्रिंक्स भी परोसी जाती है.... और साहब, ड्रिंक्स रखने और पिलाने की हमें लाइसेंस प्राप्त है |” – हिम्मत करते हुए मैनेजर बोला |
“लाइसेंस मैं देख चुका हूँ और यहाँ किस और कितने अच्छे घराने के लोग आते हैं उसका अंदाज़ा मुझे है ... बस प्रूफ नहीं है | जिस दिन कोई सबूत मिला न,
इतनी कठोर कार्रवाई करूँगा की शहर और जिला तो छोड़ो, पूरे देश भर में एक मिसाल होगा |” – हेकड़ी दिखाते हुए विनय बोला |
मैनेजर चुप रहने में ही भलाई समझा |
विनय फिर बोला,
“सुना है यहाँ लडकियाँ और औरतें भी वेटर का काम करती हैं ?”
“हाँ साब... जिन लड़कियों या फिर महिलाओं को पैसों की ज़रुरत होती है वो यहाँ पार्ट टाइम सर्विस देती हैं |”
“कौन सी सर्विस?” विनय ने आँखें तरेरा |
“वेटर वाली सर्विस सर, वेटर वाली....” मैनेजर घबराते हुए बात को संभालने की कोशिश करता हुआ बोला |
“ह्म्म्म... ठीक है... अच्छा .. जिन लड़कियों और महिलाओं की ‘सर्विस’ लिया जाता है इस होटल में ; उन लोगों का कोई रिकॉर्ड तो रखते होगे ना तुम लोग??”
“जी साब .. एक मिनट..” कह कर मैनेजर अपने डेस्क के पीछे गया और तीन चार रजिस्टर को इधर उधर करने के बाद एक नीली जिल्द लगी बड़ी सी रजिस्टर ले कर विनय के पास आया और उसके हाथो में रजिस्टर थमाते हुए बोला,
“आज तक जितनी भी महिलाओं और लड़कियों ने हमारे यहाँ काम किया है उन सबके नाम और फ़ोटो इस रजिस्टर में हैं |”
“हम्म, पता नहीं रखते? आई मीन एड्रेस?”
“नहीं साब |”
“ह्म्म्म...”
कहते हुए विनय सबसे दूर हट कर एक कुर्सी पर जा बैठा और रजिस्टर का एक एक पन्ना ध्यानपूर्वक पलट पलट कर देखने लगा | काफ़ी देर तक बहुत से पन्ने पलटने के बाद विनय एकाएक रुक गया और एक पन्ने को बड़े ही ध्यान से देखने लगा | उस पन्ने में लगे नाम ... और ख़ास कर उस नाम के साथ लगे फ़ोटो को बार बार आरी तिरछी कर अच्छे से देख रहा था | आश्चर्य से आँखें गोल और बड़ी बड़ी हो गई थी उसकी... शायद उस फ़ोटो को पहचान गया था, “ये क्या... नाम ..’चमेली’? प..पर.. इसका नाम तो .......|” कुछ देर तक आश्चर्य से उस फ़ोटो को देखने के बाद सहसा विनय के चेहरे पर एक कुटिल और मतलबी मुस्कान छा गई | अपने आस पास पैनी नज़र दौड़ाई, सब इधर उधर देख रहे थे ... विनय पर किसी का ध्यान नहीं था .. विनय ने चुपके से उस फ़ोटो को पन्ने से उखाड़ा और जल्दी से अपने पॉकेट में डाल लिया |
थोड़ी देर बाद,
होटल मैनेजर को कड़ी हिदायत देने और थोड़ी हेकड़ी और डांट पिलाने के बाद विनय अपने सिपाहियों के साथ पुलिसिया जीप में बैठा वापस थाने लौट रहा था की अचानक एक दुकान के सामने उसे वही आदमी (ख़बरी) दिखाई दिया | उसे देखते ही विनय को कुछ याद आया और तुरंत जीप रोकने को बोलकर उस आदमी को बुलाने लगा,
“ए... ए मंगरू.... इधर सुन |” – पूरे पुलिसिया तेवर में चिल्लाया विनय |
वह आदमी,जिसका नाम मंगरू था , धीरे धीरे सहमे अंदाज़ में उसके पास आया | उसके पास आते ही विनय ने उसे दो ज़ोरदार थप्पड़ देते हुए कहा,
“क्या रे.... तू सुधरेगा नहीं ना..? तेरी फ़िर शिकायत आई है...!!”
मंगरू - “आह्ह्ह... नहीं साब...नहीं.... ज़रूर कुछ गड़बड़ हुयी है... आपको गलतफहमी हुई है सरकार....”
“क्या बोला... मुझे गलतफ़हमी...!! साले.... ज़बान लड़ाता है.. |” कहते हुए विनय ने उसे दो तीन थप्पड़ और रसीद कर दिए |
फिर उसका कालर पकड़ कर अपने पास खींचते हुए बहुत धीरे से बोला, “क्या रे... कोई खबर है?”
मंगरू ने भी उसी अंदाज़ में कहा, “हाँ साब... शाम को मिलो |”
उसके इतना कहते ही विनय ने उसे जोर से झिड़कते हुए कहा, “आज के बाद फ़िर इस तरह की शिकायत नहीं आनी चाहिए... समझा??!!”
“जी सरकार...” मंगरू ने हाथ जोड़ कर कहा |
विनय की जीप अपने मंजिल की ओर आगे बढ़ चुकी ... बाज़ार में मौजूद लोगों में से कोई इसे पुलिस की दबंगई तो कोई मंगरू की ही गलती समझा रहे थे पर कोई भी उन दोनों, अर्थात मंगरू और विनय के होंठों पर उभर आये अर्थपूर्ण मुस्कान को देख नहीं पाया |
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