RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
तीन दिन बाद,
चौथे दिन,
थाने से दूर एक दुकान के सामने खड़ा इंस्पेक्टर विनय एक हाथ में चाय का ग्लास और दूसरे में सिगरेट लिए सोच की मुद्रा में खड़ा था | उसके सामने उससे छोटे कद का एक आदमी खड़ा था जो किसी आस से विनय को लगातार देखे जा रहा था | काफ़ी देर तक वैसे ही खड़ा रहा वह ..
अपनी सोच से तब बाहर आया जब सिगरेट सुलगता हुआ फ़िल्टर तक पहुँच गया और उसकी गर्म आंच विनय को अपनी उंगुलियों पर महसूस हुई |
एक हल्का कश लेकर सिगरेट को पैर के नीचे मसला...
और चाय की एक सिप लेता हुआ सामने खड़े आदमी से बोला,
“तुम्हें पूरा यकीन है...? जो खबर सुना रहे हो उसमें कहीं कोई भूल चूक नहीं है ना?”
“बिल्कुल सही कह रहा हूँ साहब, इस सूचना में ज़रा सा भी कोई मेल मिलावट नहीं है |” आदमी ने खैनी और पान से सड़े अपने दाँतों को भद्दे तरीके से दिखाते हुए चापलूसी अंदाज़ में अपने स्वर में मिठास लाते हुए बोला |
“ह्म्म्म... नाम क्या बताया?”
“योर होटल, सरकार ”
“वहीं पर सब होता है?”
“बिल्कुल सरकार”
“हम्म्म्म...|”
फ़िर कुछ सोचते हुए इंस्पेक्टर विनय ने पैंट के पॉकेट से सौ के दो नोट निकाल कर उस आदमी की ओर बढ़ाया; वह आदमी पहले तो खुश हुआ, फ़िर थोड़ा सहम कर कुछ बोलने का कोशिश करने ही वाला था कि तभी विनय जैसे उसके मनोभाव को पढ़ कर बोल पड़ा, “अभी के लिए ये रख ले और सुन, थोड़ा और कमाना है तो ........” कहते हुए विनय अपने पैंट के दूसरे तरफ़ के पॉकेट में हाथ डाल कर कुछ ढूँढने लगा और कुछ ही सेकंड्स में एक तीन फ़ोटो निकाल कर उस आदमी के हाथ में थमाते हुए कहा, “मुझे इन तीनों की ज़्यादा से ज़्यादा खबर चाहिए ; तीनों की तो मतलब तीनों की ही ख़बर चाहिए ... किसी एक को भी मत छोड़ना.. समझे..?”
वह आदमी तीनों फ़ोटो को जल्दी से अपने शर्ट के अन्दर के पॉकेट में रखते हुए इधर उधर देखा |
थोड़ा करीब आया...
और धीरे से बोला,
“कोई संगीन मामला है क्या सरकार?”
“ऐसा ही समझो, वैसे भी आजकल लगभग हर केस संगीन ही जान पड़ता है |” एक सिगरेट सुलगाकर लम्बा सा कश लेते हुए विनय बोला |
“ओह्ह..”
फ़िर करीब दो मिनट की शांति छाई रही |
दोनों में से किसी ने कुछ नहीं कहा |
फ़िर धीरे से उसी आदमी ने कहा,
“तो क्या अब मैं जाऊँ, साहब?”
“हाँ, जाओ... और अभी से ही काम पर लग जाओ |” एक लम्बा धुंआ छोड़ते हुए विनय काफ़ी सख्त लहजे में आदेश देते हुए कहा |
“जी सरकार”
बोल कर वह आदमी उस दूकान के सामने से हट कर तेज़ी से एक ओर बढ़ गया और जल्दी ही बाज़ार के भीड़ में गायब हो गया |
इंस्पेक्टर विनय कुछ देर तक वहीँ खड़े रह कर गहन सोच की मुद्रा में सिगरेट के कश लगाता रहा और सिगरेट के खत्म होते ही अपनी जीप की ओर बढ़ गया |
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दो तीन बीत गए..
थाने में अपने टेबल के सामने वाली कुर्सी में बैठा विनय, अपने सामने कुछ फ़ाइलों को टेबल पर रखकर किसी सोच में डूबा हुआ था | और देख के ही साफ़ जाहिर हो रहा था कि वह अपने किसी सोच को उसके मुकाम में पहुँचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है | अपनी सोच में इस कदर डूबा हुआ था विनय कि अभी कुछ ही मिनट पहले उसका दोस्त और उसी के साथ काम करने वाला सब इंस्पेक्टर सुशील दत्ता ‘गुड मोर्निंग’ बोल कर उसके विपरीत कुर्सी पर बैठ कर उसके जवाब का इंतज़ार कर रहा था इस बात का उसे पता ही नहीं चला |
कुछ देर के इंतज़ार के बाद इंस्पेक्टर दत्ता ने जोर से खांसते हुए उसे फ़िर से ‘गुड मोर्निंग’ कहा तो एकदम से विनय अपने सोच से बाहर आया और सामने अपने मित्र/सहयोगी को देख चौंक सा गया | इधर उधर देख कर खुद को संयत करते हुए अपने कुर्सी पर ठीक से बैठते हुए अपने मित्र की ओर मुखातिब होते हुए बात शुरू की,
“बोल यार, कैसे हो?”
दत्ता बोला- “मैं तो ठीक ही हूँ यार, पर तुम बताओ ... किस सोच में डूबे थे?”
विनय- “अरे एक केस है यार ... उसी में थोड़ा उलझा हुआ हूँ |”
“अच्छा !!.. कैसा केस भाई... हमें भी बताओ.. ”
“ह्म्म्म... तो सुन; एक दम्पति है.. उनके बच्चे बाहर बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते हैं | उनका भतीजा उनके साथ ही रहता है, अच्छा लड़का है.. पढ़ा लिखा है, एक कोचिंग सेंटर भी चलाता है जिससे उसे एक अच्छी आमदनी भी होती है , फैमिली बहुत ही अच्छी और उनका हिस्ट्री और बैकग्राउंड भी बढ़िया है | पर कुछ दिन से उनका भतीजा लापता है | एकदम अचानक से.. कहीं कोई ख़बर नहीं, हर संभावित जगह ढूँढा और पता लगाने की पूरी कोशिश की गई ; पर नतीजा कुछ नहीं | अभी दो तीन पहले ही मेरे ख़बरी ने मुझसे सुप्रसिद्ध योर होटल में धावा बोलने की सलाह दी है ; उसका कहना है कि कुछ सवालों के जवाब मुझे वहीँ से मिल सकते हैं |” – एक साँस में कह गया विनय |
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