RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
बहुत ही पीड़ा के साथ आँख धीरे धीरे खोल पाया मैं | सिर के दाएँ तरफ़ अभी भी बहुत दर्द है | और दर्द भी ऐसा के दर्द के मारे मुँह से ‘आह’ भी नहीं निकल रहा है | जहाँ पर लेटा था मैं, वहीँ से लेटे लेटे ही अपने चारों और नज़र घूमाया | आसपास के चीज़ों को देखने के बाद मैं समझ गया कि मैं इस समय एक अस्पताल में हूँ | अस्पताल में होने का ख्याल आते ही मेरा हाथ अनायास ही सिर पर चला गया; ठीक उसी जगह जहाँ दर्द हो रहा था चोट के कारण .. हाथ लगाकर अनुभव किया की पट्टी बंधा था | वाह! अर्थात मेरा उपचार भी हो गया ! उठने की कोशिश करने के बावजूद भी उठ न सका मैं | बहुत कमजोर-सा फील कर रहा था | चुपचाप लेटा रहा | थोड़ी ही देर बाद उस रूम के दरवाज़े पर एक हलकी सी आहट हुई .. मैं पूर्ववत आँख बंद कर चुपचाप पड़ा रहा | ‘खट खट’ सी आवाज़ हुई रूम में .. चलने की आवाज़ थी | और आवाज़ से ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि ये हील की आवाज़ है और रूम में एक लड़की/ औरत आई है | मेरे बगल के कुर्सी और टेबल के थोड़ा इधर उधर होने की आवाज़ आई | फ़िर, वो जो कोई भी थी; मेरे पास आ कर कुछ देर खड़ी रही | न जाने ऐसा क्यूँ लग रहा है की वो बगल में खड़ी हो कर मुझे ही देखे जा रही है | तीन-चार मिनट वहां रह कर वो वापस बेड के मेरे पैरों के पास से होते हुए मेरे दूसरे ओर आकर सिरहाने खड़ी हो गई और आसपास की चीज़ों के साथ कुछ करने लगी | फिर प्लास्टिक फाड़ने की आवाज़ आई | दो सेकंड बाद ही ‘टन टन’ से एक छोटी सी शीशी के बजने की आवाज़ आई .... | थोड़ी सी शांति छाई रही | फ़िर अचानक से मुझे मेरे दाएँ बाँह पर एक बहुत तेज़ चुभन सी महसूस हुई | मुँह से कराह निकलने को रहा पर किसी तरह मुँह बंद रखने में सफल हुआ | ‘खट खट’ सी आवाज़ फिर हुई | वो जो भी थी, अब वापस जा रही थी .... इधर मेरा दिमाग धीरे धीरे सुन्न होने लगा... हाथ तो छोड़िये, अँगुलियों तक की हरकत बंद हो गयी ... मैं धीरे धीरे अपनी चेतना फिर खो बैठा... सो गया |
“कम ऑन ... पागल हो गये हो क्या... तुम्हे पता भी है की तुम क्या कह रहे हो?”
“हाँ, पता है.. पूरे होश में हूँ और इसलिए कह रहा हूँ | तुम मेरी बात समझने की कोशिश करो |”
मेरी नींद टूट चुकी थी | मुश्किल हो रही थी आँख खोलने में अभी भी ... पर कानो को बहुत कुछ साफ़ सुनाई देने लगा था | मैंने बिना हिले डुले कानो को उन बातों पर लगा दिया जो शायद मेरे आसपास कहीं हो रही थी | दो आदमी बात कर रहे थे, एक बड़ा शांत था तो दूसरा बेहद उत्तेजित | कोई ऐसा मुद्दा था जिसपे बहस चल रही थी |
“नहीं.. नहीं... बात समझने की कोशिश तुम करो.. तुम्हें पता है न बॉस का क्या हुक्म है ... साफ़ लफ़्ज़ों में कहा है उन्होंने की इस लड़के की शिनाख्त करने के बाद इसके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी जुटाया जाए और फिर काम ख़त्म होने के बाद इसे भी सलटा दिया जाए | ”
ये बात मेरे कानों में पड़ते ही मैं चौंक सा उठा | ‘सलटा दिया जाए?!’ यानि के मुझे मार देने की योजना चल रही है ??!! ओह्ह!! हे भगवान... ये कहाँ आ फंसा मैं ?
“मुझे अच्छी तरह से याद है कि बॉस ने क्या कहा है... मैं बस एक-दो दिन इसलिए रुकने को कह रहा हूँ ताकि इसे होश आने के बाद हम इससे कुछ और जानकारियाँ निकाल सकें | ज़रा ये भी तो सोचो की जो लड़का किसी ऐसे होटल में, जहाँ हर समय बड़े बड़े माफ़ियाओं और उनके चमचों का जमावड़ा लगा रहता हो, नशीली चीज़ों का और हथियारों का स्मगलिंग होता हैं, देह व्यापार होता है... वहां सकुशल पहुँच कर हर तरफ़ जासूसी कर के वापस जा रहा था... कैसे? इतनी आसानी से कैसे... ज़रूर इसके और भी साथी होंगे... कौन होंगे वो... वगेरह वगेरह... ये सब जानना हमारे लिए बहुत ही ज़रूरी है | ”
“ह्म्म्म... तुम ठीक कहते हो... ये सब जानना भी ज़रूरी है...पर ज़्यादा दिन इसे रख नहीं सकते... एक काम करते हैं.. और तीन दिन देखते हैं.. अगर इसे होश आ गया तो ठीक है... नहीं तो इसे इसके बेहोशी में ही खत्म कर देंगे... ठीक??”
“हाँ, ठीक है...| ”
जूतों की आवाज़ हुई... जाने की...| वे दोनों वहां से जा चुके थे |
और मैं इधर चुपचाप लेटा अपने हालत के बारे में सोचने पर मजबूर था | क्या हो रहा है... क्या होगा...कौन हैं ये लोग... और मैं खुद कहाँ हूँ... कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था | मैं अपना एक हाथ अपने चेहरे पर ले गया... नकली दाढ़ी मूंछ नहीं थी ! ओफ्फ़!! चोरी पकड़ी गयी मेरी... और वो भी गलत लोगों के हाथों..!
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अगले दो दिन तक मैं लेटा लेटा, आँखें बीच बीच में खोल कर कमरे और वहां आस पास के माहौल का जाएजा लेता रहा | बहुत कुछ नहीं भी तो खुद को वहां एडजस्ट करने लायक मान ही चूका था मैं | पर अभी तक ये समझ नहीं आया था कि मैं ये कहाँ और किन लोगों के साथ हूँ | इतना तो तय था की मैं हूँ किसी अस्पताल में, पर हूँ किन लोगों के बीच??
तीसरा दिन ...
सोच ही लिया हूँ की जैसे भी हो आज तो यहाँ से भाग कर रहूँगा ही | पिछले दो दिनों में मैंने एक बात नोटिस किया कि, एक वार्ड बॉय आता है मेरे कमरे में, यहाँ वहां देख कर सब चेक करता है और मेरे पैरों से थोड़ी दूर; दरवाज़े के पास रखे एक स्ट्रेचर को निकाल कर बाहर ले जाता है | सफ़ेद स्ट्रेचर पर रखा सफ़ेद चादर इतना बड़ा/लम्बा होता है कि स्ट्रेचर का निचला हिस्सा दिखाई ही नहीं देता है | अगर मुझे यहाँ से निकलना है तो इसी स्ट्रेचर के सहारे ही संभव है | मेरे दिमाग में तरकीब सूझी |
दोपहर बारह से दो बजे तक मेरा रूम बिल्कुल खाली रहता है ..
बारह बजे से कुछेक मिनट पहले नर्स पानी और फल वगैरह रख कर चली जाती है .. फिर साढ़े बारह बजे वार्ड बॉय फिर आता है और स्ट्रेचर लेकर चला जाता है |
मेरे ही रूम में दो और मरीज़ थे .. जो एक दिन पहले ही एक साथ ही अपने अपने परिवार वालों के साथ चले गए थे | अब उस कमरे में मैं अकेला बन्दा था अब |
बारह बजे का इंतज़ार करने लगा ...
ठीक ग्यारह बज कर पचास मिनट पर एक नर्स अन्दर दाखिल हुई | मैं अधखुली आँखों से लेटा हुआ था | अधखुली तिरछी नज़रों से नर्स पर गिद्ध की तरह नज़र जमाये था |
पानी-फल रख कर वो वहां से चली गई |
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