RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
मैं अभी इन सभी बातों को सुन ही रहा था की मेरी नज़र सीढ़ियों पर चढ़ते एक आदमी और एक औरत पर ठहर गई | आदमी कोई शेख़ सा लगा | मैंने औरत पर गौर किया और ऐया करते ही दिमाग घूम गया मेरा | वो औरत और कोई नहीं, मेरी चाची ही थी ...और...और..ये क्या ड्रेस में?? एक सफ़ेद शर्ट जिसके बटन सारे खुले थे और शर्ट के निचले दोनों सिरे आपस में एक गाँठ देकर बंधे हुए थे | पेट और कमर का थोड़ा सा हिस्सा दिख रहा था | कमर पर उन्होंने एक मैक्रो मिनी स्कर्ट भी पहन रखा था | पक्की स्लट लग रही थी | मैं सबकी नज़र बचाते हुए फ़ौरन उनके पीछे पीछे सीढ़ियों पर चढ़ने लगा | काफ़ी लम्बी और घुमावदार सीढ़ी थी | सीढ़ियों के ख़त्म होते ही एक लम्बा सा कॉरिडोर शुरू हुआ जिसके दोनों तरफ़ कमरे थे | थोड़ी चहल पहल भी थी | बहुत सावधानी से चाची के पीछे पीछे चलते हुए, दूसरे लोगों को हाई हेल्लो करता हुआ आगे बढ़ रह था मैं | इस पूरे दौरान वह आदमी कभी चाची को चूमने की कोशिश करता तो कभी उनके पिछवाड़े पर अपना दायाँ हाथ रख कर हलके से मसल देता | उसके हरेक बेहूदी हरकत को चाची हँस कर टालने की कोशिश कर रही थी | थोड़ी ही देर में दोनों एक कमरे एक आगे आ कर रुके | चाची ने उस आदमी की ओर बड़ी कामुक मुस्कान देते हुए अपनी क्लीवेज की गहराइयों में दो ऊँगली डाली और एक चाबी निकाल ली और फ़िर उसी चाबी से उस कमरे का दरवाज़ा खोल कर उसमें घुस गई | वह आदमी भी चाची के पीछे पीछे अन्दर घुसा और दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दिया | उस कमरे के दरवाज़े के आगे पहुँच कर मैं बड़ी आतुरता से इधर उधर देखने लगा | मुझे कमरे के अन्दर होने वाली हरेक गतिविधि के बारे में जानना था और इसके लिए मेरा, उस कमरे के अन्दर देख पाने के लिए सक्षम हो पाना अत्यंत आवश्यक था | अधिक समय नहीं लगा | एक चीज़ पर नज़र पड़ते ही आँखें चमक उठी मेरी |
कमरे में एक सॉफ्ट इंस्ट्रुमेंटल थीम सोंग बज रहा है और चाची अपनी सेक्सी अदाओं से एक शेख़ टाइप के आदमी को रिझाने का प्रयास कर रही है | शेख़ एक बड़े से आरामदायक सोफ़े पर बैठ कर एक हाथ में ड्रिंक का ग्लास और दूसरे में सिगार लिए चाची के भरे जिस्म के हरेक कटाव को बड़े चाव और खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था | चाची अलग अलग नृत्य मुद्राएँ दिखाते हुए थोड़े देर में उस शेख़ के करीब आई और थोड़ा सा आगे झुक कर शेख़ को अपने हृष्ट क्लीवेज का दीदार कराते हुए, अपने पेट पर बंधी शर्ट की गाँठ खोल कर धीरे धीरे अपने जिस्म से अलग कर एक ओर उछाल दी | चाची के गोरे से शरीर पर अब केवल एक छोटी साइज़ की ब्रा और कमर पर भी एक छोटी साइज़ की पैंटी रह गई थी जो ढकने से ज़्यादा दिखाने का काम अधिक कर रही थी | चाची के जिस्म के ऊपरी हिस्से में रह गई छोटी काली रंग की ब्रा भी कुछ ऐसी थी कि उनमें उनके यौवन के भारी दो कबूतर (चुचियाँ) समा नहीं पा रहे थे | मध्य आयु का शेख़ आँखें फाड़े चाची के अर्ध नग्न जिस्म को मानो आँखों से ही निगल जाने के लिए बुरी तरह बेताब हो चुका था | साला वो खूंसट सा शेख़, काली ब्रा की सीमाओं को तोड़कर खुले में उड़ पड़ने को तैयार ब्रा कप्स में कैद उन दो सफ़ेद से कबूतरों को ललचाई नज़रों से देख देख कर अपने होंठों पर हवसी पागलों जैसे जीभ फिराने लगा | उस कमीने की हालत ऐसी थी जैसे वो खुद बहुत मैच्यौर किस्म का हो जिसे ऐसे बातों से जल्दी फर्क नहीं पड़ता ... पर सच्चाई तो यह थी की लाख कोशिश करने के बावजूद भी वो खुद को चाची के भरे यौवन के मोहपाश से छुड़ा नहीं पा रहा था | वो अपनी आँखें चाची के जिस्म के दूसरे जगहों पर देना चाहता था पर ब्रा कप्स में कैद उन्नत यौवन उसे ऐसा करने की हरगिज़ कोई इजाज़त नहीं दे रहे थे |
चाची की चमकदार आँखों में खूबसूरती से लगे काले रंग की मसकरा (काजल) रह रह कर उस आदमी को जैसे अपनी ओर दौड़ कर आने का खुला निमंत्रण दे रही थी ; लाल लिपस्टिक से पुते उनके होंठ तो जैसे उस आदमी को मार देने का सुपारी लिए थी | चाची की बीच बीच में लचकाती – बलखाती कमर शेख़ के दिल के धड़कन को बार बार कई गुना अधिक बढ़ा दे रही थी और सच कहूं तो मैं भी चाची के इस कातिलाना रूप के मोहपाश से अछूता नहीं रह गया था | उस चोर खिड़की से देखते देखते न जाने कब मेरा एक हाथ पैंट के ऊपर से अपने हथियार को रगड़ने लगा था | और मेरा हथियार कोई ऐसा वैसा हथियार न होकर एक जहरीले नाग में बदल चुका था जिसे मानो अब सांस लेने बहुत दिक्कत हो रही थी और अब वह किसी भी तरह कैद से आज़ाद हो कर ; बाहर आ कर अपना कहर बरपाना चाहता था | वह शेख़ अपने सिगार के कश लगाना और ग्लास में बची खुची ड्रिंक को ख़त्म करने के बारे में कब का भूल चुका था | वह मंत्रमुग्ध सा एकटक चाची के हरेक कमसिन हरकत को देख रहा था | चाची को उसे अपनी तरफ़ यों देखते हुए शायद बहुत अच्छा लगा था क्योंकि उस शेख़ को देखते हुए वो भी अब हलकी हलकी विजयी मुद्रा वाली स्माइल देने लगी | शेख़ की हालत देख कर वो समझ चुकी है की शेख़ अब और कुछ भी ज़्यादा सोचने समझने की शक्ति को खो चुका है और यही बात शायद चाची को एक गर्व से परिपूर्ण मुस्कराहट देने के लिए विवश कर रहा था | चाची के चेहरे पर ऐसे गर्वित भाव और मुस्कान मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा था |
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