RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
जैसा फ़ोन पे कहा गया था ठीक वैसा ही हुआ... मोड़ पे एक टैक्सी आ कर रुकी | दो बार हेडलाइट्स ऑन-ऑफ़ हुई | मैं टैक्सी के पास गया | दरवाज़ा खोला और उसमें बैठ गया | ड्राईवर ने टैक्सी के अन्दर का लाइट ऑफ़ कर रखा था.. शायद उसे ऐसा करने के लिए कहा गया था .. मैंने कुछ पूछना और सोचना उचित नहीं समझा, फिलहाल तो मंजिल पर पहुँचना ज़्यादा ज़रूरी था | करीब चालीस मिनट तक टैक्सी चलती रही | ड्राईवर चुप.. मैं चुप... एक अजीब सी विरानियत छाई हुई थी टैक्सी के अन्दर | शहर के व्यस्त सड़कों और माहौल को पीछे छोड़ते हुए एक सुनसान से रास्ते पे टैक्सी बढे चले जा रही थी |
कुछ ही देर में एक टूटे फूटे से घर के पास आ कर टैक्सी रुकी | ड्राईवर ने एक कागज़ का टुकड़ा बढ़ा दिया मेरी तरफ़ | मैं बिना कुछ बोले उस टुकड़े को ले कर टैक्सी से उतरा .. जेब से छोटी पॉकेट टॉर्च निकाल कर कागज़ को देखा | उसमें लिखा था, “अपने सीध में देखो. घर की तरफ़ .. लाल ईंटों के तरफ़ चले आओ |” मैंने नज़र उठा कर घर की तरफ़ टॉर्च की लाइट फेंकी.. पेंट भी उतर गई थी घर की.. सीमेंट पलस्टर भी आधे अधूरे से निकल आये थे | सामने तीन खम्बे थे घर के ... उनमें से एक खम्भे का बहुत बुरा हाल था | सिर्फ़ ईंटें ही बचीं थी | लाल ईंटें ...ऑफ़ कोर्स ...| मैं धीरे सधे कदमों से आगे बढ़ा |
उस खम्भे के पास पहुँच कर रुका..और इधर उधर देखने लगा | तभी एक आवाज़ गूँजी, “ आ गए...?! अब बिना कोई सवाल किये इस खम्भे से अपनी पीठ टिका कर पलट कर खड़े हो जाओ.. जिधर से आये, तुम्हारा मुँह उस तरफ़ होना चाहिए..|” मैं बिना कुछ कहे ठीक वैसा ही किया जैसा की करने को कहा गया | फिर आवाज़ आई और इस बार महसूस हुआ की आवाज़ ठीक मेरे पीछे से आ रहा है और इस आवाज़ का मालिक जो भी है, वो भी मेरी तरह ही उसी खम्भे से पीठ टिकाए बात कर रहा है, “सुनो अभय.. तुम बहादुर हो इसमें अब मुझे कोई संदेह नहीं है.. मौत का डर दिखाने पर और रात को अचानक से बुलाने पर भी तुम नहीं डरे.. ये काबिले तारीफ़ है.. पर एक बात हमेशा याद रखना की बहादुरी और बेवकूफी के बीच एक बहुत महीन; बारीक सी रेखा होती है... अगर काम कर गया तो रेखा के इस तरफ़.. यानि बहादुरी का गोल्ड मैडल और अगर कहीं चूक गये और रेखा के उस तरफ़ चले गये तो समझो जिल्लतों भरी, तौहीन वाली, साथ ही जग हँसाई वाली बेवकूफी के मशहूर किस्से... | और इन दोनों का या इनमें से किसी एक का चुनाव हम नहीं हमारी नियत और वक़्त करता है ... नियत कैसी भी हो ... वक़्त बड़ा बेरहम होता है.. वो किसी का सगा नहीं... इसलिए एक बार फिर सोच लो... क्या विचार हैं तुम्हारे... क्या वाकई तुम पूरी तरह से तैयार हो .. ऐसे काम के लिए..??”
मैंने शालीनता पर साथ ही कठोरता के साथ उत्तर दिया, “आपकी बातें बहुत पसंद आई मुझे .. माफ़ी चाहूँगा .. आपका दिल दुखाते हुए.. मैं उन लोगों में से नहीं जो फैसला कर के सोचते है और पलट जाते हैं... मैं जो भी फैसला करता हूँ ... हमेशा सोच कर ही फैसला करता हूँ... अब ये बताइए की इतनी रात में मुझे यहाँ बुलाने का क्या कारण है ?”
दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई, “ह्म्म्म.. ठीक है.. सुनो.. पिछले कुछ महीनो से शहर में अंडरवर्ल्ड और टेररिस्ट आर्गेनाइजेशन के लोग काफ़ी सक्रिय हो गए हैं और एकदम से बाढ़ आई हुई सी लग रही है इन लोगों की | चरस, कोकेन, गांजा, और कई तरह के दुसरे ड्रग्स सप्लाई किये जा रहे हैं मार्किट में... पुलिस भी कुछ खास नहीं कर पा रही क्यूंकि इन लोगों के काम करने का ढंग काफ़ी अलग और समझ से परे है | सिर्फ़ इतना ही नहीं.. ये लोग आर्म्स .. यानि की हथियारों की स्मगलिंग में भी शामिल हैं | और ऐसे काम में ये खुद शामिल ना होकर यहाँ के भोले भाले स्टूडेंट्स, बच्चे और यहाँ तक की घर की औरतों को भी शामिल कर रहे हैं.. और मुझे लगता है की तुम्हारी चाची भी ऐसे लोगों के साथ या तो मिली हुई है या फिर इनके चंगुल में फंस गई है | सच क्या है ये तो पता चल ही जाएगा... पर अब ये तुम सोचो की तुम्हे आगे क्या करना है.. और हाँ मैं तुम्हारी मदद के लिए हमेशा रहूँगा... पर दिखूंगा नहीं...|”
|