RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
जफ़र से जितना हो सका उसने किया... मेरा काम अभी के लिए पूरा हो गया था.. | जफ़र को धन्यवाद बोल कर मैं स्कूटी से अपने घर रवाना हुआ | रास्ते भर यही सोचता जा रहा था की आखिर इन सभी बातों का चक्कर क्या हो सकता है.. होटल योर... दोपहर से शाम... चरस और गांजा.. गोला बारूद.. जो बोलूँगा वो करेगी... शादी शुदा... नाम दीप्ति... ओफ्फ्फ़ ... लगता है शुरू से सोचना पड़ेगा...| इन्ही बातों को सोचते सोचते घर के पास पहुँच गया.. | देखा गली के पास एक स्कूटर पार्क किया हुआ है ... शक के पंखों ने फिर अंगड़ाई ली..| मैंने अपना स्कूटी अँधेरे में एक तरफ़ लगाया और गली के मुहाने के पास इंतज़ार करने लगा | अँधेरे में जाने का रिस्क नहीं लेना चाहता था मैं | और इतनी सारी बातों के उजागर होने के बाद से तो बिल्कुल भी कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था | गली से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी.. खड़े खड़े पंद्रह मिनट से ऊपर हो गए... मैंने सिगरेट सुलगाया और बगल के दीवार से सट कर धुंआ छोड़ने लगा.. तीन सिगरेट के ख़त्म होने और लगभग बीस से पच्चीस मिनट गुजरने के बाद अचानक गली से एक हल्की सी आवाज़ आई | शायद दरवाज़ा खुलने की आवाज़ थी वो .. मैं चौकन्ना हुआ.. ध्यान दिया.. दो जोड़ी जूतों की आवाज़ इधर ही बढती आ रही थी | मैं तैयार हुआ.. पता नहीं क्या करने वाला था.. बस उनका गली के मुहाने पर आने का इंतज़ार करने लगा... और जैसे ही वो दोनों मुहाने पर पहुँच कर आगे बढ़े ... मैं अनजान और जल्दबाजी में होने का नाटक करता हुआ उन दोनों से टकरा गया |
“अरे अरे... सॉरी भैया... आपको लगी तो नहीं ...” मैंने हमदर्दी जताते हुए पूछा.. पर जिससे पूछा.. वो ना बोल कर उसका साथी बोल पड़ा, “जी कोई बात नहीं... अँधेरे में होता है ऐसा...|”
मैंने फिर पहले वाले से पूछा, “आप ठीक हैं?” इस बार फिर दूसरे शख्स ने कहा, “जी... आप फ़िक्र न करे... हम ठीक है...|” ऐसा कह कर उसने पहले वाले की ओर देखा और बोला, “चलिए जनाब..” दोनों अपने स्कूटर की ओर बढ़ गए थे और जल्द ही स्टार्ट कर वहाँ से चले गए...| मैं उन्हें तब तक देखता रहा जब तक की दोनों आँखों से ओझल नहीं हो गए | उनके ओझल होते ही मैं नीचे ज़मीन पर देखने लगा | दरअसल, जब मैं उनसे टकराया था तब उनमें से किसी एक के पॉकेट या कमर या कहीं और से कोई चीज़ नीचे गिरी थी जिसे या तो उन्होंने जान बुझ कर नहीं उठाई या फिर अचानक मेरे सामने आ जाने से उनको इस बात का ध्यान ही नहीं रहा या वाकई पता नहीं चला होगा | ढूँढ़ते ढूँढ़ते मेरे पैर से कुछ टकराया | तुरंत उठा कर देखा | समझ में नहीं आया... तो मैंने स्कूटी के लाइट को ऑन कर के उस चीज़ को हाथ में लेकर देखा और देखने के साथ ही मारे डर के छोड़ दिया | कंपकंपी छूट गई मेरी... वो दरअसल एक पिस्तौल थी !! मैंने जल्दी से लाइट ऑफ किया और पैर से मार कर पिस्तौल को उसी जगह पर ठोकर मार कर रख दिया जहाँ वो था | इतने ही देर में दूर से रोशनी के आने का आभास हुआ और साथ में स्कूटर की भी | मैं दौड़ कर गली में घुसा और एकदम आखिरी छोड़ तक चला गया |
वे दोनों आ कर स्कूटर खड़ी कर इधर उधर ज़मीन पर देखने लगे | उनके हाथ में टॉर्च था ... जला कर तुरंत ढून्ढ लेने में कोई दिक्कत नहीं हुई उन्हें.. उठा कर स्कूटर में बैठे और चलते बने | जैसे वो चाहते ही नहीं थे की कोई उन्हें देखे..| कुछ देर वहाँ रुकने के बाद मैंने गली से निकलने का फैसला किया ... आगे बढ़ते हुए गली के दरवाज़े तक पहुँच ही था की उस पार से किसी की आवाज़ आई | दरवाज़े के दरारों से देखने का कोई फायदा नहीं था क्यूंकि उस तरफ़ पूरा अँधेरा था | पॉवर कट के कारण .. मैंने किसी तरह कोशिश करके दीवारों में जहां तहां बने दरारों पे पैर रख कर थोड़ा ऊपर चढ़ा और सिर ऊँचा कर के उस पार देखा... और जो देखा उसे देख कर अपनी आँखों पर यकीं करना शत प्रतिशत मुश्किल था... | पूर्णिमा वाले रात के दो-तीन बाद वाले रात के चांदनी रोशनी में देखा की सामने ज़मीन पर मेरी चाची नंग धरंग हालत में पड़ी है !! उनके सारे कपड़े साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट, ब्रा और पैंटी ज़मीन के चारों ओर बिखरे पड़े हैं और चाची पेट के बल लेटी खुद को ज़मीन से रगड़ते हुए उठाने की कोशिश कर रही थी .......................
मैं अपने कमरे में बैठा हाथ में फ़ोटो लिए चुपचाप उस फ़ोटो को देखे जा रहा था और नेत्रों से अश्रुधरा अविरल बहे जा रहे थे | जो कभी भूले से भी कल्पना नहीं की थी मैंने आज वो किसी बुरे सपने के हकीकत में बदल जाने के जैसा मेरे आँखों के सामने फ़ोटो के रूप में मेरे हाथों में था | मैं असहाय सा चुपचाप खुद पे आँसू बहाने के अलावा कुछ भी करने की स्थिति में नहीं था |
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