RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
यहाँ दो बातें बताना ज़रूरी है, पहला तो ये की जब वे दोनों आदमी चाची को ले कर उतरे थे तब मैंने उनके चेहरों पर गौर किया था | कद काठी से तो यहाँ के नहीं लग रहे थे, साथ ही उनके चेहरे की रंगत भी अजीब सी थी.. सफ़ेद सफ़ेद सी... और ऐसी रंगत मैं टीवी पर कश्मीरियों के देखे थे ! दूसरी बात यह की जब चाची टेलर दुकान से निकली तब मैंने जो देखा था, उसे देख कर तो मेरा दिमाग ऐसा घुमा, ऐसा घूमा की मैं बेहोश होते होते बचा था | कारण था की जब चाची टेलर की दूकान से निकली तब भी बुर्के में ही थी पर पता नहीं क्यूँ मुझे ऐसा लग रहा था की जैसे मैं इतनी दूर से भी चाची के प्रत्येक अंग प्रत्यंग को भली भांति न सिर्फ देख सकता हूँ, बल्कि उनके जिस्म के हरेक कटाव को भी महसूस कर सकता हूँ !! यहाँ तक कि बुर्के के नीचे से जो थोड़ी बहुत भी चाची की साड़ी पहले दिख रही थी, वो भी मुझे इस बार नहीं दिखी ! मन घोर आशंकाओं से भर उठा था |
कुछ देर वहीँ रुकने के बाद मैंने अन्दर जाने का फैसला किया | यह ऐसा इलाका था जहां इंसान तो छोड़िये, दूर दूर तक एक पक्षी तक नहीं दिख रही थी | मैंने दौड़ कर रोड पार किया और एक पुरानी टूटे मकान के छत पर से कूद कर मैं उस टेलर वाले दुकान के मकान के छत पर जा पहुँचा | ऊपर की ही एक टूटी खिड़की से अन्दर दाखिल हुआ | चारों तरफ़ सिलाई के काम आने वाले कपड़ों के टुकड़े और धागे रखे और गिरे हुए थे | दूसरा कमरे का हाल भी कमोबेश कुछ ऐसा ही था | तीसरे कमरे में देखा ढेर सारे छोटे बड़े डब्बे रखे हुए थे | उन्हें खोल कर देखा तो उनमें रंग बिरंगे धागे पाया | उस रूम को छोड़ बाहर निकला और सीढ़ियों के रास्ते नीचे उतरा.. नीचे दो कमरे थे | एक जहां सिलाई होती है, सिलाई मशीन भी रखे थे ...ये शायद सामने से दूकान में घुसते ही पड़ने वाला कमरा होगा... मैं दुसरे कमरे में गया | अँधेरा था वहाँ ... शायद कपड़े बदलने वाला रूम होगा | पहले सोचा की छोड़ो यार, कौन जाता है फिर ना जाने क्या सोचते हुए मैं अन्दर चला ही गया | रूम में अँधेरा था तो देखने के लिए मैंने स्विच बोर्ड ढूंढ कर लाइट ऑन किया और फिर जो मैंने देखा वो देख कर तो मैं खुद के कुछ भी सोचने समझने की शक्ति मानो खो ही दिया | सामने मेरी चाची के वही ब्लड रेड कलर की साड़ी और वही गोल्डन थ्रेड सिलाई वाला मैचिंग ब्लाउज नीचे मेज पर गिरी हुई थी !! साथ ही एक पेटीकोट, एक पैंटी और एक सफ़ेद ब्रा भी उन पर रखी हुई मिली!! मेरा दिमाग तो जैसे सुन्न सा हो गया | त.... तो क्या...इस ....इसका मतलब चाची अपने कपड़े यहीं छोड़ उन लोगों के साथ नंगी ही कहीं चली गई ... ऑफ़ कोर्स उन्होंने बुर्का पहना था... पर थी तो नीचे से नंगी ही | मेरा सिर चकराया और मैं पीछे की तरफ़ गिरा पर पीछे रखे एक लकड़ी के अलमारी से टकरा गया | मेरे टकराने से अलमारी के अन्दर कुछ भारी सा आवाज़ हुआ | खुद को थोड़ा संभाल कर मैं उठा और बिना ताला लगे अलमीरा के दरवाज़े को खोला... अब एक बार फिर और पहले से कहीं ज़्यादा चौकने की बारी थी मेरी | अलमारी में कई तरह के, छोटे बड़े और अलग अलग से दिखने वाले हथियार जैसे की हैण्ड ग्रेनेड्स, पिस्तौल, एके 47, जैकेट्स और और भी कई तरह के हथियार करीने से सजा कर रखे हुए थे | दिमाग अब भन्न भन्न से बज रहा था मेरा... खतरे की घंटी तो बज ही रही थी... और जो ख्याल मेरे जेहन में आ रहे थे, की ‘हे भगवान .... ये कहाँ और किन लोगों के बीच है चाची...?? कहाँ फंस गई वो?’
अपने सामने हथियारों का जखीरा देख कर मैं दंग था | हाथ और होंठ काँप उठे थे | शरीर के सभी जोड़ जैसे ढीले पड़ने लगे | माथे पर पल भर में ही छलक आईं पसीने की बूँदों को हाथ से पोछा और बड़ी सावधानी से काँपते हाथों से मैंने अलमीरा के दरवाजों को लगाया | फिर वहीं पास में ही रखे एक छोटे से स्टूल पर सिर को दोनों हाथों से पकड़ कर बैठ गया | कमरे में मौजूद सभी चीज़ें जैसे जोर ज़ोर से मेरे चारों ओर चक्कर काट रहे थे | घबराहट और डर के कारण मेरा दिल किसी धौंकनी की तरह जोरो से चल रहा था | मैंने वहां अधिक समय बिताना उचित नहीं समझा, आगे का क्या सोचना है और क्या नहीं, ये सब तो यहाँ से निकल कर घर पहुँचने के बाद ही सोच पाऊंगा | फ़िलहाल इतनी बात तो मेरे को बिल्कुल अच्छे से समझ में आ गयी थी की चाची एक बहुत ही बड़ी और पेचीदे मुसिबत में फंसी है और बहुत जल्द इसकी आंच हमारे परिवार पर आने वाली थी | खास कर मैं जिस तरह से इस मुसीबत का पता करने के लिए पीछे पड़ा था, कोई शक नही की चाची के बाद अगला शख्स मैं ही होऊँगा इस भँवर में फँसने वाला | खुद को संभालते हुए किसी तरह खड़ा हुआ | हवाईयाँ तो अब भी चेहरे की उड़ी हुई थीं | गला भी सूख गया था | मुँह में बचे खुचे थूक को गटक कर गले को भिगाने की कोरी कोशिश करते हुए रूम से बाहर कदम रखा | जिस अदम्य साहस का परिचय देते हुए मैं यहाँ तक आया था, अब बाहर जाने के लिए वो साहस बचा नहीं | लड़खड़ाते कदमों से सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ा ही था कि तभी बाहर से किसी की आवाज़ आई | मेरे कान खड़े हुए | इधर उधर देखा | छुपने का कोई जगह नहीं था | बस ये सीढ़ी थी जो पीछे से आधी अधूरी बनी थी | मैं जल्दी से सीढ़ी के पीछे छिप गया |
|