Gandi kahani कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
11-13-2019, 12:07 PM,
#15
RE: Gandi kahani कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
आख़िरकार खंडाला का दिन ाही गया और दोनों परिवारें काफी खुश थे और उत्साहित भी l रेणुका, मनीषा और ज्योति मस्त जीन्स के ऊपर टॉप समेत जैकेट पहने तैयार हो जाते हैं, तो दूसरे और दोनों सुडोल औरतें भी आज सलवार कमीज में तैयार हुए थे l अजय और राहुल के आँखें तो जैसे कविता की मोटी मोटी जांघों पर ही चिपक गयी हो, लेकिन फिर टक्कर देने के लिए रेखा भी कम नहीं थी l

आख़िरकार सूमो चल पड़ा अपनी मंजिल की और l

आगे की तरफ राहुल बैठ गया ड्राइवर के साथ और पीछे के तरफ बैठ गयी रेखा, कविता और बीच में अजय l पीछे डिक्की के तरफ बैठ गयी रेणुका, मनीषा और ज्योति l

सब खिड़की से मंज़िल का आनंद लेने लगे l रेणुका अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से ज्योति और मनीषा को पकने लगी, लेकिन फिर यह बीवियाँ भी कम नहीं थी l

रेणुका : मनीषा भाभी आप कितनी हॉट लग रही हो जीन्स में! ओह गॉड! मैं क्या कहूँ!

मनीषा : (हास् के) अरे रेनू! तुम भी कम सेक्सी नहीं हो! यह गद्देदार जाँघे तो बिजली गिरायेगी लोगों पर

ज्योति ; हाँ! बस कहती रहती हैं! और पूछो तो कहती हैं के कोई दीवाना नहीं हैं इसकी!

मनीषा हसने लगी l

रेणुका : चुप भी करो भाभी! मनीषा भाभी क्या सोचती होगी! अरे मैं तो एक मासूम सी नन्ही सी परी हूँ (मासूम बर्ताव करने लगी)

ज्योति : (ननद की सुडौल पेट पे चिंटी काटके) मासूम और तू? नन्ही सी जान और तू? अरे गौर से चला कर रस्ते पे देखले कहीं कोई आवारा सांड न तेरे पीछे पड़ जाये दम हिलाते हुए!!

रेणुका : क्या भाभी! छेड़ो मत ऐसे!

ज्योति : अरे जानेमन! यह खिलती जवानी अब रुकेगी नहीं! अरे मुझे और मनीषा को ही देखले! शादी से पहले तम्बू जैसे थे और अब हमारे साइआ पतियो के कारन जवानी और भारी होती गयी l

मनीषा : उफ्फ्फ ज्योति! अब बस भी कर! बेचारी अभी अभी कॉलेज में आई हैं!

ज्योति : अरे तो क्या मस्ती नहीं कर सकती? अपनी भैया की तरह क्या अनार्य ही रहेगी?

तीनो ऐसे ही हां खेले बातें करने लगे l

वह सामने बैठे अजय दो सुडौल गदराये औरतों के बीच बैठे जन्नत का साइड में लगा हुआ था। रेखा और कविता, दोनों के मोटे मोटे जांघ अजय के इर्द किरद कस गए थे और सच पूछिए तो तीनो को इसमें मजा आने लगी l

रेखा : अजय बीटा! तू आराम से बैठा तो हैं न?

अजय : हाँ आंटी! फ़िक्र मत कीजिये

कविता खिड़की के बाहर देख रही थी और पुरानी यादों में खो गयी जब वह और उसके पति लंबे ड्राइव पव पे इसी रास्ते से गए थे शादी के बाद l

वोह खोई हुई थी कि उसकी कन्धों को कोई हाथ मसल देता हैं, एक सिसकी मुंह से निकालती हुई वोह नैनो को पीछे ले गयी तो देखि अजय मुस्कुराके उसे ही देखे जा रहा था, लेकिन वोह नज़रें केवल एक पुत्र का नहीं था , बल्कि उसमे काफी हवास भरा हुआ था, कहीं कुछ तो खोज करने में जुटा हुआ था। एक बेचैनिट भर गयी दोनों माँ बेटे के आँखों में। एक दूसरे में जैसे खो जाना चाहता हो l

अजय : माँ क्या सोचने लगी?

कविता : कुछ नहीं बेटा! तेरे पप्पा की याद आगयी!

अजय (कन्धों को और कस के मसलता ) माँ! मैं बहुत खुश हूँ! सच कहूं! खुले ज़ुल्फ़ों में तुम बहुत आकर्षित लगती हो! और (माँ के मस्त बदन को देखता हुआ) यह सलवार कमीज जैसे ......... क़यामत लग रही हो! (थोड़ा रुक के) माँ!

कविता इस ठैराव से थोड़ी सिसक उठी, कुछ बोली नहीं, बस खिड़की के बाहर देखने लगी l अजय अपने माँ के बारे में सोचता गया और वह पास बैठी रेखा सामने बैठे राहुल की और देख रही थी काश वोह भी ऐसे ही राहुल से चिपकी बैठी होती, तो कितना मज़ा आता l

वक़्त बिताने के लिए वोह अजय से बातें करने लगी

रेखा : अच्छा अजय यह बताओं! अपने माँ पे क्या अच्छा लगता हैं तुम्हे, साड़ी या सलवार?

अजय :हम्म्म्म मुश्किल सवाल है आंटी! मेरी माँ तो हर किसी में अच्छी लगती हैं!

रेखा : मुझे तो लगता हैं वोह सलवार में काफी हॉट लगती हैं (आँख मारती हुई)

कविता अपने में ही खोयी हुई थी, उसे कुछ अंदाज़ा नहीं था अपनी सहेली और बेटे के बातों का l

हॉट शब्द के प्रयोग से अजय के लुंड में हलचल होने लगी, उसने सोचा क्यों न रेखा से थोड़ी फ़्लर्ट की जाये l

अजय : वैसे हॉट तो आप भी आज लग रही हैं सलवार पहने (आँख मारके)

रेखा इस बार बुरी तरह शर्मा के 'नॉटी!' अलफ़ाज़ बिरबिरायी और खिड़की के बाहर देखने लगी l अजय तो बस दोनों गद्देदार जांघो से अपनी जाँघ चिपकाये मस्त होके बैठा था l धीरे धीरे गाडी मंज़िल की नज़दीक आने लगी l

सब के सब पहारी दृश्य देखके रोमांचित हो उठे l

रेणुका :वाह! क्या मस्त पहारें है !

ज्योति : (ननद की स्तन देखके) अरे कोनसे वाले, मेरे या तेरे?

रेणुका और मनिषा दोनों हास् पड़ते हैं और गाडी आगे बढ़ता गया l

_____________

दोस्तों, विलम्भ के लिए माफ़ी चाहता हूँ! साथ रहने के लिए दिल से शुक्रिया!
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