Antarvasna चुदने को बेताब पड़ोसन
11-09-2019, 11:52 AM,
#6
RE: Antarvasna चुदने को बेताब पड़ोसन
मैं- चाय बनने में घण्टा थोड़े ही लगता है। सिर्फ 5 मिनट की बात है। आ जाओ ना।
वो मान गई और चारपाई पर बैठ गई।
मैंने चाय बनाकर दी और उनके बगल में बैठकर चाय पीने लगा। उन्हें बगल में देखकर मेरा लण्ड खड़ा हो रहा था। पर उन्हें चोदने का उपाय मेरे दिमाग में नहीं आ रहा था। फिर भी मैंने बात शुरू की। शायद आज पट ही जाए। मैंने कहा- “भाभी एक बात पूछू, बुरा तो नहीं मानोगी?
मालकिन- पूछो... क्यों बुरा मानूंगी भला?
मैं- भाभी, तुम दिन पर दिन जवान और खूबसूरत होती जा रही हो। इसका क्या राज है?
वो शर्माने लगी- “नहीं तो। ऐसी कोई बात नहीं। ऐसा तुम्हें लगता है?”
मैं- “नहीं भाभी, मैं सच बोल रहा हूँ। अब तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो। जी करता है कि....”
मालकिन ने मेरी तरफ मस्ती से देखते हुए कहा- क्या जी करता है तेरा राज?
मैं- “कि तुमको बाँहों में भरकर तेरे लबों को चूम लँ..”
मालकिन- राज, तुझे ऐसी बातें करते शरम नहीं आती? तू जरूर मार खाएगा आज।
मैं- अरे भाभी, जो मन में था, वो बोल दिया। अगर सच कहने में मार पड़ती है तो वो भी मंजूर है। पर मारना तुम ही।
मालकिन- साले, तू बड़ा बदमाश हो गया है। बस अब मैं चलती हूँ।
मेरा तो दिमाग खराब हो गया। अपने से तो कुछ हुआ नहीं। इसलिए मन ही मन ऊपर वाले से दुआ माँगी कि कुछ ऐसा कर दे कि ये खुद मेरे लण्ड के नीचे आ जाए। कहते है ना कि सच्चे मन से किसी की लेनी हो तो वो मिलती ही है।
वो जैसे ही उठने को हुई। पता नहीं कहाँ से उनके सूट के अन्दर चींटी घुस गई। उन्होंने उसे निकालने के लिए अपना हाथ सूट के अन्दर डाला तो चींटी पीछे को चली गई।
मालकिन- राज कोई कीड़ा मेरे सूट के अन्दर चला गया है और मेरी पीठ पर रेंग रहा है। उसे निकाल दो प्लीज।
मैं- भाभी, उसके लिए मुझे अपना हाथ तुम्हारी पीठ पर लगाना होगा। तुम कहीं नाराज ना हो जाओ।


मालकिन- राज मजाक नहीं करो। उसे जल्दी निकालो। कहीं वो मुझे काट ना ले।
मैं उनके ठीक सामने खड़ा हो गया और हाथ को उनके सूट के अन्दर डालकर उनकी पीठ पर फिराने लगा। बड़ा अजीब सा मजा आ रहा था। कितने सालों के बाद उन्हें भी मर्द का हाथ मिल रहा था। उन्हें भी अच्छा लग रहा
था।
मालकिन- राज कुछ मिला?
मैं- “नहीं भाभी। ढूँढ़ रहा हूँ...”
तभी चींटी ने उनकी पीठ पर काट लिया। वो मुझसे चिपक गई- “उई.. राज, उसने मुझे काट लिया। प्लीज... जल्दी बाहर निकालो उसे...”
मैं- “पर भाभी, वो मिल नहीं रही है..” मैंने हाथ फेरना चालू रखा। मेरी साँसें उनकी साँसों से टकरा रही थीं।
मालकिन- राज, वो आगे की तरफ रेंग रही है। जल्दी कुछ करो।।
मैं- भाभी, तब तो तुम सूट उतारकर उसे एक बार अच्छी तरह से झाड़ लो कहीं ज्यादा ना हों।
मालकिन- तुम्हारे सामने कैसे?
मैं- तो क्या हुआ? मैं दरवाजा बंद कर लेता हूँ और मुँह फेर लेता हूँ।
मालकिन- ठीक है तुम मुँह उधर फेर लो।
मैंने दरवाजा बंद किया और मुँह फेरकर खड़ा हो गया। नीचे फर्श पर देखा तो चीनी का डब्बा खुला होने के कारण बहुत सारी चींटियां जमीन पर घूम रही थीं। मुझे अपना काम बनाने की एक तरकीब सूझी, मैंने चार-पांच चींटियां उठाई और मुट्ठी में बंद कर लीं।
मालकिन उसमें तो कुछ भी नहीं है।
मैं- भाभी यहाँ देखो बहुत सारी चींटियां हैं शायद सलवार के सहारे चढ़ गई हों। आप मुँह फेर लो मैं देख लेता हूँ।
वो मुँह फेरकर खड़ी हो गई तो मैंने चेक करने के बहाने पीछे से उनकी सलवार को थोड़ा सा खींचा और मुठ्ठी में दबाई हुई चींटियां उसके अन्दर डाल दीं। जो जल्दी ही अन्दर घुस गईं।
मैं- भाभी, तुम्हारी कमर पर और पीठ पर चींटी ने काटा है। पीठ लाल हो गई है। तुम कहो तो तेल लगा दें। दर्द कम हो जाएगा।


उनके ‘हाँ' कहते ही मैंने तेल लगाने के बहाने उनकी पीठ और कमर को सहलाना शुरू कर दिया। उन्हें भी अच्छा लग रहा था।
मैं- “भाभी, तुम्हारी ब्रा को पीछे से खोलना पड़ेगा। नहीं तो उसमें सारा तेल लग जाएगा। तुम आगे से उसे हाथ से पकड़ लो। मैं पीछे से इसे खोल रहा हूँ...”
“ठीक है...” वो बोली।
मैंने उनकी ब्रा खोल दी। जिसे उन्होंने आगे से हाथ लगाकर संभाल लिया। मैं पूरी पीठ पर और कमर पर आराम से तेल लगा रहा था। जिससे उन्हें आराम मिल रहा था। तभी नीचे सलवार में डाली चींटियों ने काम करना शुरू कर दिया। वो दोनों टाँगों से बाहर आने का रास्ता ढूँढने लगीं।
मालकिन- हाय राम... लगता है चींटियां सलवार के अन्दर भी हैं। वो पूरी टांगों पे रेंग रही हैं।
मेरा काम बनने लगा था। मैंने कहा- भाभी, तब तो तुम जल्दी से सलवार भी उतारकर झाड़ लो। कहीं गलत जगह काट लिया तो... तुमको दर्द के कारण अभी डाक्टर के पास भी जाना पड़ सकता है।
मालकिन- “मैं इस वक्त डाक्टर के पास नहीं जाना चाहती। वैसे भी कुछ देर में बच्चे आ जायेंगे। सलवार ही उतारनी पड़ेगी। पर कैसे? मैंने तो अपने हाथों से ब्रा पकड़ रखी है..." ।
मैं- “भाभी, तुम चिन्ता ना करो। मैं तुम्हारी मदद करता हूँ..” मैंने उनकी सलवार का नाड़ा खोल दिया। सलवार फिसल कर नीचे गिर गई। उनकी लाल पैन्टी दिखाई देने लगी। मैं पैन्टी को ही देखे जा रहा था और सोच रहा
था कि अभी कितनी देर और लगेगी... इसे उतरने में। कब इनकी चूत के दर्शन होंगे।
* * * * *
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