RE: Hawas ki Kahani हवस की रंगीन दुनियाँ
मै भी उनके पीछे पीछे उनके कमरे के दरवाजे तक गया | फिर वो बेड पर पैर नीचे लटकाकर बैठ गयी और तेज स्वर में बोली - तुमने जबाब नहीं दिया -वरुण कहाँ है और क्या कर रहा है ? तुम अन्दर कैसे आये ? तुम मेरे कमरे में क्या कर रहै थे ? जरुर उसने तुम्हे चाभी दी होगी .... लेकिन क्यों ? वो खुद कहाँ है ??
इतने सारे सवालों को एकसाथ सुनकर मै घबरा गया | मैंने धीरे से बोला - चाभी ही तो नहीं है |
आंटी ने तब पूछा - क्या मतलब ? तब मैंने शर्मिन्दा होते हुए धीरे धीरे रुक रुक कर बताया की कैसे वरुण हडबडाहट में दरवाजा खींचकर भाग गया और मै अन्दर फंस गया हूँ...
तो तुम प्रारम्भ से यहीं थे , बाहर गए ही नहीं ...आंटी शुष्क स्वर में बोली ...और मेरे कमरे में चाभी ढूंढ़ रहै थे |
फिर वही हुआ जिससे मैं बचना चाहता था - आंटी का लेक्चर शुरू हो गया - तुम लोगो को शर्म नहीं आती ऐसा काम करते हुए ? पढ़ लिख कर भी ऐसा काम करते हो ? क्या तुम्हे पता नहीं है कि इससे बीमारियाँ होती है ...होती क्या है , तुम्हे तो बीमारी लग चुकी है ...मरोगे और क्या ??
आंटी लगातार बोले जा रही थी और मै सर झुकाकर सुन रहा था | अंत में मै आहिस्ते से बोला - आंटीजी प्लीज ! दरवाजा खोल दीजिये ,मै बाहर जाना चाहता हूँ |
परन्तु आंटी शायद मुझे बख्शने के मुड में नहीं थी , उन्होंने मेरे ऊपर इल्जामो कि झड़ी लगा दी - कितना अच्छा था मेरा बेटा ..तुमने उसे बर्बाद कर दिया ..छिः कितनी गन्दी आदत डाल दी है उसे ..है भगवान् कहीं उसे भी बीमारी न लग जाए ...भगवान् तुम्हे कभी माफ़ नहीं करेगा ...बोलो क्यों किया ऐसा ?
अपने ऊपर सीधा इल्जाम आते देख मै तिलमिला उठा , फिर मैंने सच्चे और सीधे शब्दों में अपना सफाई देने लगा - वरुण को आदत मैंने नहीं लगाया ..वो तो पिछले दो सालों से इसका अभ्यस्त है , जब वह 'यादव' सर के यहाँ शाम को अकेले ट्यूशन पढने जाता था , उन्होंने ही उसे यह लत लगाया और ऐसा लगाया कि--- वह लौज के सारे सीनियरो का चहैता हो गया था , यहाँ तक कि वह छुट्टियों में उनके चले जाने पर लौज में ही रिक्शेवाले को बुलाकर .........
'प्लीज! चुप हो जाओ '-आंटी अपने कानो को हाथों से ढकते हुए बोली | फिर थोड़ी देर सोंचने के बाद धीरे से बोली - सच कह रहै हो ?आंटी को थोड़ा नरम पड़ते देख मेरा आत्मविश्वास बढ़ा , मै फिर बोला -बिलकुल सच आंटीजी ! कसम से !! बल्कि मेरे संपर्क में आने के बाद वरुण ने तो किसी और के पास जाना भी बंद कर दिया है ...अब वह सिर्फ मेरे पास ही आता है |
यही तो मै नहीं चाहती राजन ! कि वो तुम्हारे इस ढंग से संसर्ग में रहै ....तुम अन्दर आओ , मै तुम्हे समझाती हूँ
(मै अभी तक दरवाजे पर ही खडा था )उनके बुलाने पर मै बिस्तर के पास जाकर उनके सामने सर झुकाकर खडा हो गया (आँख मिलाने का हिम्मत कहाँ था , मुझमे )| फिर आंटी ने मुझे समझाना शुरू किया - देखो बेटा ! ये अच्छी बात नहीं है , तुमलोग सब कुछ भूलकर अपनी पढ़ाई -लिखाई पर ध्यान दो ...सबकुछ अपने आप ठीक हो जाएगा | तुम्हे एक सच्ची सलाह देती हूँ कि जाकर किसी अच्छे डॉक्टर से अपना चेक-अप कराओ , सही इलाज से तुम्हारी बीमारी ठीक हो जायेगी |
मै अब चौंका , आंटी ने बीमारी की बात पहले भी दो तीन बार बोली थी परन्तु मैंने उसे उनका गुस्सा समझा था , लेकिन अभी तो बिलकुल शान्ति से समझा रही थी | मैंने डर और उत्सुकता से पूछा- आंटी मुझे हुआ क्या है और कौन सी बीमारी के इलाज का सलाह दे रहीं है ?
|