RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
मैं- “अरे माँ, इसमें और मेरे में क्या फर्क है? आज पहली बार मैं मुन्ना को इतने जोश में देख रहा हूँ। देखा कैसे तुझे भभोड़-भभोड़ कर तेरे साथ मस्ती कर रहा था। तू जो इतनी देर से इसका मजाक उड़ा रही थी ना एक बार यह तेरी ले लेगा ना तब देखना तुझे लौंडिया जैसा मजा आएगा। बोल दोनों भाइयों को बिल्कुल खुलकर और पूरी बेशर्म होकर मस्ती करवाएगी ना? तुम हम दोनों भाइयों से जितनी मस्त होकर चुदवायेगी तुझे उतना ही ज्यादा मजा आएगा..."
राधा- “तुम जैसों बेशर्मों के आगे बेशर्म तो मैं पहले ही बन गई हैं। मैंने तो कभी ख्वाब में भी ऐसी बेशर्मी भरी बातें नहीं की थी जैसी तुम दोनों के सामने कर रही हैं। लेकिन बिल्कुल खुलकर, एक दूसरे से पूरा बेशर्म होकर ऐसी बातें करने का एक अनोखा ही मजा है, जो मैंने आज तक नहीं लिया था। यह सब तुम्हारी करामात है जो मेरे साथ-साथ मेरे इस भोंदू छोटे बेटे को भी अपने जैसा बेबाक बेशर्म बना लिया है। मैं तो तुम दोनों की एक जैसी माँ हूँ। मेरे लिए तुम दोनों में ना तो पहले फर्क था और ना ही अब। जब पूरी खुल ही गई हूँ तो जी खोल के मस्ती करूंगी और तुम दोनों को करवाऊँगी। मेरे को क्या फर्क पड़ता है की पहले कौन आता है या दोनों साथ-साथ आते हो, चुदना तो मुझे हर हालत में है ही। फिर मैं क्यों नखरे दिखाऊँ और झूठी ना नुकुर करूँ। जितनी आग तुम दोनों में लगी है उतनी ही आग मेरे में भी लगी है और क्यों ना लगे.. आखिरकार, तुम दोनों
भी तो मेरे ही खून हो। जितनी गर्मी तुम दोनों के भीतर है उससे ज्यादा गर्मी मेरे में है...”
अजय- “माँ भैया की बात छोड़ो, यह तो पंडितजी की दक्षिणा भर है, असली मजा तो तेरा भैया ही लेंगे। तुम पर पहला हक तो भैया का ही है। मैंने तो यहाँ आने के पहले तेरा कभी सपना तक नहीं देखा था। यह तो भैया की दी हुई हिम्मत है की मैं तेरे साथ इतना कर सका। अब भैया शुरू भी तो करो ताकी मैं भी देखें की सुहागरात । कैसे मनाई जाती है? भैया माँ कह रही है ना की इसमें बहुत गर्मी है, आज इसकी सारी गर्मी निकाल दो। आज इसके साथ ऐसी सुहागरात मनाओ जैसी की इसने आज तक नहीं मनाई...” अजय की बात सुनकर मैंने माँ के सिर पर चुनर ओढ़ा दी और चेहरा उस चुनर से पूरा ढक दिया। इसके बाद बहुत धीरे-धीरे चुनर का पूँघट ऊपर उठाकर माँ का चेहरा उजागर कर लिया।
माँ ने एक लज्जाशील दुल्हन की तरह आँखें नीची कर रखी थी। फिर मैं माँ के दोनों गालों पर हथेलियां रखकर माँ की आँखों में झाँकने लगा। माँ मंद-मंद मुश्कुरा रही थी। मैंने भी माँ के रसभरे होंठों का एक लंबा चुंबन । लिया। फिर माँ की पीठ पर हाथ लेजाकर ब्लाउज़ के बटन खोलने लगा। सारे बटन खोलकर ब्लाउज़ माँ की बाँहों
से निकाल दिया और माँ की टाइट ब्रा में कसे कबूतर फड़फड़ा उठे।
विजय- "देख मुन्ना, माँ की चूचियां एकदम गोल-गोल और कितनी बड़ी-बड़ी है। हम दोनों इन्हीं का दूध पीकर । बड़े हुए हैं। अभी भी इतनी भारी दिख रही है की जैसे दूध से भरी हुई हैं..." यह कहकर मैंने माँ की एक चूची ब्रा के ऊपर से ही अपने हाथ में ले ली और उसे हल्के-हल्के दबाने लगा।
फिर मैंने माँ की ब्रा का भी स्ट्रैप खोल दिया और ब्रा भी बाँहों से निकाल दी। माँ की सुडौल चूचियां अब हम दोनों भाइयों के सामने नंगी थीं। मैं बारी-बारी से माँ की चूची दबाने लगा। उसके निपल को चींटी में भर मसलने
लगा।
विजय- “ले मुन्ना तू भी छूकर देख, कितनी मुलायम है। यह देख माँ का बड़ा सा निपल। इसे मुँह में लेकर चूस। बचपन में तो तूने इसको बहुत चूसा होगा, अभी जवानी में चूसकर देख, तुझे मजा आ जाएगा। ऐसी मस्त औरत की चूचियां दबा-दबा कर धीरे-धीरे मस्ती ली जाती है। क्यों माँ अपना दूध हम दोनों भाइयों को पिलाओगी ना?”
मेरी बात सुनकर अजय ने गप्प से माँ का एक निपल अपने मुँह में ले लिया और उसे चुभलाते हुए चूसने लगा। मैंने भी दूसरा निपल अपने मुँह में ले लिया और मैं भी उसे जोर-जोर से चूसने लगा मानो उसके भीतर का सारा दूध निचोड़ रहा हूँ। तभी माँ ने अपने दोनों हाथ हम दोनों भाइयों के सिर के पीछे लगा दिए और हमारे सिर
अपनी चूचियों पर दबाने लगी। हम दोनों भाई भी माँ की चूचियां मस्त होकर काफी देर तक चूसते रहे।
अजय- “भैया, माँ की चूची पीने में जो मजा है वो और कोई चीज पीने में नहीं है। हम दोनों कितने खुशनशीब है। की इस जवानी में माँ की चूचियां एक साथ पीने को मिल रही हैं, और माँ भी कितने प्यार से अपनी चूची हमारे मुँह में ठेल-ठेलकर पिला रही है। माँ तुम्हारी चूचियां अभी भी पूरी टाइट हैं। बहुत जान है इनमें। माँ तुम मस्त होकर हमसे अपनी चूचियां मसलवाया करो, हमसे दबवाया करो, हमसे चुसवाया करो। हमें जब भी भूख लगे हमारे मुँह में अपनी चूची ढूंस दिया करो...”
माँ- “अरे अब ये मेरी दूध पिलाने वाली चूची नहीं है बल्कि तुम दोनों के खेलने के लिए बड़ी-बड़ी गेंदें हैं। खूब जी भर के इनसे खेला करो। तुम लोगों की जब भी इच्छा हो मेरी चूची मसल दिया करो, मेरी चूची पीनी हो तो उसमें मुँह लगा दिया करो, मैं खुद तुम लोगों को अपने आँचल में ढक के प्यार से दुधू पिलाऊँगी...”
मैं- “अभी तो तूने खाली माँ की चूची का ही मजा लिया है। माँ का असली माल तो इसके घाघरे में है। घाघरे में इसने अपनी सबसे खाश चीज छिपाकर रखी है। चल अब माँ का घाघरा तू उतार, तुझे माँ की ऐसी मस्त चीज
का दर्शन कराता हूँ की तू मर्दो के लण्डों को छोड़कर उसी का दीवाना हो जाएगा...”
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