RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
शाम 8:00 बजे जब मैं स्टोर से घर पहुँचा तो माँ ने दरवाजा खोला। मैं अंदर आया तो देखा की अजय सोफे पर बैठा था। अजय नहा धोकर बिल्कुल फ्रेश होकर शार्टस पहनकर बैठा हुआ था, इसका मतलब उसे आए देर हो। गई थी। मैं भी अपने रूम में चला गया और फ्रेश होकर, नाइट ड्रेस पहनकर बाहर आ गया। अजय और माँ 3 प्लेटों में खाना लगाकर डाइनिंग टेबल पर बैठे मेरा इंतजार कर रहे थे। खाने के दौरान अजय से गाँव की बातें छिड़ गई। माँ गाँव में एक-एक का हाल पूछ रही थी और अजय सारी बातें बताता जा रहा था।
खाना खतम करके हम तीनों मेरे रूम में आ गये। वहाँ भी हम तीनों बेड पर बैठकर गाँव की ही बातें करते रहे। अजय ने बताया की चाचाजी जल्द ही हमारे घर का भी कोई अच्छा ग्राहक खोज देंगे।
तभी मैंने अजय को छेड़ा- “मुन्ना तूने तो गाँव में पूरी मस्ती की होगी। और तुम्हारे पुराने यार दोस्तों का क्या हाल है? खेत वेत में उनके साथ गये की नहीं गये? वहाँ सक्करकंदों की तो कमी नहीं, खूब आते होंगे...”
अजय ने मेरी ओर देखकर आँखें तरेरी और मेरा हाथ दबा दिया, और कहा- “भैया मेरा तो वहाँ गाँव और कचहरी के बीच चक्कर काटते-काटते टाइम बीत गया। पर लगता है आपने यहाँ पूरी मस्ती की है। आपने तो एक सप्ताह में माँ को ही पूरा बदल दिया है। माँ को ऐसी क्या घुट्टी पिला दी की माँ पूरी जवान हो गई है...”
अजय की बात सुनकर माँ ने थोड़ी आँखें झुका ली। तभी मैंने पास में अधलेटे अजय की गाण्ड अपनी एक अंगुली से खोद दी।
तभी माँ ने अजय को कहा- “तुम दिन भर ट्रेन से चलकर आया है इसलिए आराम कर ले..." और खुद उठकर अपने कमरे में चली गई।
माँ के जाते ही अजय ने उठकर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया, और कहा- “भैया मेरे गाँव जाते ही आपको यह चिंता सताने लगी की मैं गाँव जाते ही सारे काम भूलकर अपने दोनों दोस्तों के पास मरवाने ना भाग जाऊँ। जैसे बहुत सुंदर पत्नी के पति को हरदम यह चिंता सताए रहती है की मेरी गैरहाजिरी में यह किसी दूसरे के साथ मुँह काला ना कर ले, वैसे ही आपको यह चिंता खा रही थी? पर भैया चिंता मत करो जैसे माँ ने पूरा पतिव्रत धर्म निभाया है वैसे ही आपका भाई भी भ्रातृ धर्म निभा रहा है...”
विजय- “मुन्ना, भ्रातृ धर्म नहीं बल्कि पतिव्रत धर्म कहो। बताओ क्या तुम मेरी लुगाई नहीं हो?” यह कहकर मैं बेड से खड़ा हो गया और अजय को बाँहों में भरकर उसके होंठ चूसने लगा। मैंने दोनों हाथ उसके औरतों जैसे भारी चूतड़ों पर रख दिए और उन्हें मुट्ठी में कसकर दबाने लगा। फिर मैं सोफे पर बैठ गया और अपने प्यारे मुन्ना को अपनी गोद में बैठा लिया। मेरा लण्ड बँटे की तरह तना हुआ था जो भाई की गुदाज गाण्ड में चुभ रहा था।
अजय- "नीचे आपका लोहे का डंडा पूरा गरम है, उसपर बैठकर ही मुझे तो बहुत मजा आ रहा है। चाचाजी और चाचीजी ने तो इतना कहा था की सप्ताह 10 दिन गाँव में ही ठहर जाओ, पर मैं तो काम खतम होते ही आपके इंडे की गर्मी लेने भागा-भागा चला आया। भैया आपसे मस्ती लेने के बाद मैंने तो किसी दूसरे की तरफ झाँकने की भी नहीं सोची। पर भैया आपने तो मेरे जाते ही माँ को मेरी भाभी जैसा बना दिया। माँ का पूरा कायाकल्प हो गया है, जैसे स्वर्ग से अप्सरा उतर आई हो। भैया जैसे मेरे को अपनी लुगाई बना लिया कहीं माँ को भी सचमुच में मेरी भाभी तो नहीं बना दिया? आप बड़े चालू हो। मेरे जाने के बाद तो आपको पूरा मौका मिला था। इस बीच आपने अपने लण्ड का स्वाद माँ को भी चखा दिया होगा...”
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