RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
शाम को ठीक समय पर मैं घर पर आ गया। रोज की ही तरह हमने डिनर लिया। आज माँ फिर नहाने चली गई। मैंने भी बहुत तबीयत से शावर का मजा लिया और सोफे पर बैठकर माँ का इंतजार करने लगा। जब माँ मेरे रूम में आई तो आज वो सेक्सी खुली नाइट-गाउन में थी। गाउन के स्ट्रैप्स उसने आगे पेट पर बाँध रखे थे। चलकर आते समय उसकी भारी चूचियां गाउन में उछल रही थीं।
राधा- “लगता है बड़ी बेसब्री से इंतजार हो रहा है...” माँ ने अपनी स्वाभाविक हँसी से पूछा।
विजय- “जिस इंतजार का फल मीठा हो उस इंतजार में भी मजा है। पर माँ आज तो तुम कयामत ढा रही हो।
क्या इरादा लेकर आए हैं सरकार..” मैंने सोफे के पास खड़ी माँ का हाथ पकड़कर कहा।।
राधा- “कल तो मैं इतनी बेचैन हो गई की तुम्हें ठीक से देख ही नहीं सकी। पिछले 15 साल से जो मेरी तमन्नाएं सोई पड़ी थीं, उन्हें तुमने एकाएक जगा दिया था। मेरे पूरे शरीर में आग सी जलने लगी थी और चींटियां सी रेंगने लगी थी। जब तक तूने मेरी प्यासी धरती पर प्यार की बौछार नहीं की मैं धू धू करके जल रही थी। लेकिन आज अपने लाल की पूरी जवानी अच्छी तरह देगी। तेरे मतवाले अंग को जी भर के निहारूंगी, उसे खूब प्यार करूंगी। वैसे तो तू मुझे आइसक्रीम कैंडी खिलाने कहाँ-कहाँ ले जाता रहता है और पूछ-पूछ खिलाता है। आज अपनी नीचे वाली कैंडी इस माँ को नहीं खिलाएगा?” माँ ने कहा।
विजय- “अरे मेरी रानी इतनी जल्दी भी क्या है? आओ कुछ देर मेरी गोद में बैठो, मेरे से प्यारी-प्यारी खुलकर बातें करो। मेरा मतवाला लण्ड तो अब आपका बिना मोल का गुलाम है। जब सरकार हुकुम करेंगे, बिल्कुल सीधा खड़ा होकर आपको सल्यूट करेगा। आप जहाँ हुकुम देंगे वहीं दौड़ा चला जाएगा...” यह कहते हुए मैंने अपनी सेक्सी माँ को हाथ पकड़कर आपनी गोद में बैठा लिया।
राधा- “यह तो बहुत ही प्यारा स्वामिभक्त और आज्ञाकारी सेवक है। ऐसे सेवक के लिए तो मेरे महल का हर द्वार खुला है। कहीं भी कोई पहरा नहीं है और ना ही कहीं रोक है। इसकी जब भी जिस समय जहाँ जाने को इच्छा हो वहाँ फौरन बेरोक-टोक जा सकता है। राजमहल की महारानियों की सेवा में तो ऐसे ही फौलादी जिश्म के मुस्तैद गुलाम चाहिए..."
विजय- “यह आपका प्यारा गुलाम ठीक वैसा ही है जैसा की आप चाहती हैं। यह इस विशाल राजमहल का हर बंद पड़ा और गुप्त द्वार खुद-बा-खुद तलाश लेगा और अपना रास्ता खुद बना लेगा..."
राधा- “चलो अब उठो और अपने कपड़े खोलो। मुझे तो अभी कैंडी चूसनी है...” माँ ने मचलकर कहा।
विजय आज्ञाकारी बालक की तरह सोफे से उठा और एक-एक करके सारे कपड़े उतारकर माँ के सामने पूरा नंगा
हो गया। माँ सोफे से उठकर बेड पर बैठ गई थी। मेरा लण्ड तन गया था जिसे माँ ने हाथ में ले लिया और मुठियाने लगी।
राधा- “इतना प्यारा कैंडी सा लण्ड और रसगुल्ले सा सुपाड़ा। इसे आज जी भर के चूसूंगी। मैंने आज तक किसी मरद का लण्ड नहीं चूसा। लेकिन कल्पनाओं में किसी मोटे और तगड़े लण्ड को पक्की लण्डखोर की तरह चूसा । करती थी। आज वैसा ही लण्ड मेरे सामने है। विजय डार्लिंग अपने विशाल लण्ड को अपनी माँ के मुँह में दे दे...” यह कहकर माँ ने मुझे बेड पर ले लिया और खुद चिट लेट गई। मैंने माँ के कंधों के दोनों ओर घुटने जमा लिए
और माँ के मुँह में अपना लण्ड दे दिया।
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