RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
माँ मेरी और देखकर हँस रही थी। मैं माँ के हँसते होंठ पर एक उंगली रखकर अपने होंठ पर अपनी जीभ फिराने लगा। मैंने अपनी ओर से इशारा दे दिया की मैं तुम्हारे होंठों का रसपान करना चाहता हूँ।
राधा- “तर्क करना तो कोई तुमसे सीखे। पर तुम्हारी बातें है बहुत गहरी। हम उचित-अनुचित, भले-बुरे, पाप-पुण्य इन दुनिया भर के लफड़ों में उलझे पड़े रहते हैं, और जो मन चाहे वो कर नहीं पाते और सोचते ही रह जाते हैं। की दूसरे क्या सोचेंगे? किसी को भी कष्ट पहँचाए बिना जिस भी काम में मन को शांति मिले, आत्मा प्रसन्न हो वही निर्मल आनंद है..” माँ ने एक दार्शनिक की भाँति कहा।
मैं- “हाँ माँ, यही तो मैं तुम्हें कहता रहता हूँ। तुम्हारी और मेरी सोच कितनी मिलती है। जो मैं सोचता हूँ ठीक तुम भी वही सोचती हो। तभी तो तुमसे मेरा इतना मन मिलता है। जब से तुम यहाँ आई हो मुझे सिर्फ तुम्हारी कंपनी में ही मजा आता है। तभी तो स्टोर से सीधा तेरे पास आ जाता हूँ। घर से बाहर भी जितना मजा मुझे। तुम्हारे साथ आ रहा है उतना आज तक नहीं आया...”
हम माँ बेटे इस प्रकार काफी देर बातें करते रहे। फिर रोज की तरह माँ अपने कमरे में सोने के लिए चली गई। मैं बिस्तर पर काफी देर पड़े-पड़े सोचता रहा की माँ मेरी कोई भी चीज का थोड़ा सा भी विरोध नहीं करती है। पर मैं माँ को पूरी तरह खोलना चाहता था की माँ की मस्त जवानी का खुलकर मजा लिया जाय। माँ आधुनिक विचारों की, घूमने फिरने की, पहनने ओढ़ने की तथा मौज मस्ती की शौकीन थी।
दूसरे दिन मैं रोज वाले समय पर घर आ गया। आज कहीं भी बाहर जाने का प्रोग्राम नहीं बनाया, क्योंकी आज मैं माँ बेटे के बीच की दीवार गिरा देना चाहता था। खाने का काम समाप्त होने पर माँ बाथरूम में नहाने चली गई और मैं काफी देर सोफे पर बैठा सोचने लगा की आज माँ का कौन सा रूप देखने को मिलेगा। कल माँ मुझसे बहुत खुलकर पेश आई थी, तो क्या जितना आतुर मैं हूँ उतनी ही आतुर माँ भी है? फिर मैं भी अपने कमरे में जाकर बाथरूम में घुस गया। अच्छे से शावर लिया और बहुत ही मादक हल्की सी क्रीम अपने बदन पर लगा ली। मैं तैयार होकर बेड पर बैठा फिर माँ के बारे में सोचने लगा। मैं आँखें मूंदे माँ की सोच में डूबा हुआ था की माँ की इस आवाज से मेरी तंद्रा टूटी।
राधा- “लगता है बड़ी बेसब्री से इंतजार हो रहा है...”
मैंने आँखें खोली और जैसे ही माँ की तरफ देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। माँ ने शादी का जोड़ा पहन रखा था, जो शायद उसने अब तक संभाल रखा था। माँ ने सच्ची जरी का लाल घाघरा कमर में काफी नीचे बाँधा हुआ था और उसी का मैचिंग ब्लाउज़ पहन रखा था। इन सबके ऊपर उसने हल्के लाल रंग की झीनी चुनरी ओढ़ रखी थी, जिसे पूँघट के जैसे सिर पे ले रखा था। माथे पर लाल बिंदिया भी लगा रखी थी। गले में हार, हाथों में कंगन, कहने का मतलब माँ पूरी एक नव-व्याहता दुल्हन के रूप में थी। मैं आश्चर्यचकित होकर माँ के इस अनोखे रूप को निहारे जा रहा था।
राधा- “ऐसे क्या देख रहा है? क्या कभी कोई दुल्हन देखी नहीं? वैसे तो बहुत बोलता रहता है की मैं एक । सुहागन के रूप में रहूं, सजू धजू, शृंगार करूँ और जब तेरी इच्छा का मन रखते हुए इस रूप में आ गई तो तेरी सारी बोलती बंद हो गई...”
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