RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
विजय- “अरे माँ, ये किसी को दिखाने की बात नहीं है बल्कि खुद की संतुष्टि होती है। देखना तुम्हें खुद पर नाज होगा। फिर मैं मुन्ना को सप्टइज देना चाहता हूँ। वो जब गाँव से वापस आएगा तो तुम्हें देखता ही रह जाएगा और सोचेगा की हमारे घर में यह स्वर्ग की अप्सरा कहाँ से आ गई?'
राधा- “मेरे ऐसे शहरी रूप को तो मेरा शहरी नटखट बड़ा बेटा ही देखना चाहता है। अजय तो भोला-भाला और सीधा साधा है उसे तो सीधी साधी ही माँ चाहिए.”
विजय- “माँ, मुन्ना अब पहले वाला मुन्ना नहीं रहा। कुछ ही दिनों में यहाँ रहकर पूरा चालू हो गया है। स्टोर में भी उसने अपना काम इतनी अच्छी तरह से संभाल लिया है की सब उसकी प्रशंसा करते हैं..."
राधा- “तुम्हारे साथ रहकर तो अजय चालू नहीं बनेगा तो और क्या बनेगा? कुछ ही दिनों में उसे भी अपने जैसा बना लेगा..."
विजय- “माँ, अजय भी तुम्हारी तरह पूरा शौकीन है। वो तो छुपा रुस्तम निकला पर मुझे पता चल गया और एक बार मेरे से खुल गया तो बहुत जल्दी पूरा खुल गया। मेरा भाई वैसे ही मक्खन सा चिकना है, अब देखो कैसे स्मार्ट बनकर रहता है और टाइट स्मार्ट कपड़ों में कैसा मस्त लगता है? तुम तो वैसे ही इतनी स्मार्ट हो और थोड़ा सा भी रख रखाव रखोगी तो पूरी निखर जाओगी...”
माँ- “पर एक विधवा का ज्यादा बन-ठन के रहना। भला आस-पास के लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे और क्या सोचेंगे?”
विजय- “माँ ये सब गाँव की बातें हैं। यहाँ शहर में इन बातों की कोई परवाह नहीं करता। मुझे ऐसे लोगों की
कोई परवाह नहीं। जिस भी चीज से या काम से तुझे खुशी दे सकें, उसे करने में ना तो मुझे कोई संकोच है और ना ही किसी की परवाह। यह विधवा वाली सोच मन से बिल्कुल निकाल दो। कौन कहता है की तुम विधवा हो? तुम तो मन से एकदम सधवा हो। अब तुम बिल्कुल एक सुहागन की तरह बन-ठन के रहा करो...”
माँ- “तो अब तुम मुझे विधवा से वापस सुहागन बनाएगा."
हम माँ बेटे इस प्रकार काफीदेर बातें करते रहे। फिर रोज की तरह माँ अपने कमरे में सोने के लिए चली गई। मैं बिस्तर पर काफी देर पड़े-पड़े सोचता रहा की माँ मेरी कोई भी बात का थोड़ा सा भी विरोध नहीं करती है। पर मैं माँ को पूरी तरह खोल लेना चाहता था की माँ की मस्त जवानी का खुलकर मजा लिया जाय।
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