RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
मेरे जैसे 6'2” के गबरू गठीले शरीर वाले जवान के साथ यह बीवी के रूप में या पटाए हुए माल के रूप में बिल्कुल चल सकती थी।
हमें घर से निकलते-निकलते 8:00 बज गये। आज मैं माँ को ले शहर से थोड़ा बाहर ऐसे पार्क की सैर कराने ले चला जहाँ काफी तादाद में मनचले अपने जोड़ीदार के साथ मौज मस्ती के लिए आते थे। सनडे की वजह से पार्क में और दिनों की अपेक्षा काफी भीड़ थी। अभी 8:30 ही हुए थे सो काफी तादाद में परिवार वाले भी अपने बच्चों के साथ थे। मौज मस्ती वाले जोड़े कम थे। वे 9:00 बजे आने शुरू होते हैं, जब परिवार वाले वापस जाने लग जाते हैं। पार्क बहुत बड़े एरिया में फैला हुआ था, कई फव्वारे फुल स्पीड में चल रहे थे, तरह-तरह की आकृति में कटिंग किए हुए झाड़ जगह-जगह थे, पार्क के चारों और करीब 6' चौड़ी पगडंडी थी जिस पर टहलने वाले पार्क का चक्कर काट रहे थे, बच्चों के लिए एक स्थान पर कई तरह के झूले और स्लाइडिंग्स भी बने हुए थे। इसी स्थान के चारों ओर चाट, पाव-भाजी, कोल्ड ड्रिंक, आइसक्रीम, गोल-गप्पे, खुशबूदार पानन के कई स्टाल थे जिन पर सनई की वजह से काफी भीड़ थी।
माँ- “विजय बेटा, आज तो तुम मुझे स्वर्ग में ले आए हो। बहुत ही अच्छी जगह है...”
मैं माँ को लेकर लाइटिंग और म्यूजिक वाले फव्वारे के पास आ गया। संगीत की धुन और लाइटिंग की चकाचौंध में फव्वारा मानो डान्स कर रहा हो। फव्वारे के चारों और युवतियां, माँ के उमर की औरतें और बूढ़ियां भी बहुत ही माडर्न, शरीर के उभारों को उजागर करते परिधानों में सजी धजी हँस रही थीं, इस दिलकश वातावरण का पूरा मजा ले रही थी, अपने पुरुष साथियों के साथ हाथ में हाथ डाले घुल मिलकर बातें कर रही थी। चारों ओर । लिपस्टिक पुते होंठ, फेशियल सा सजा चेहरा, बाब-कट तथा खुले केश, जीन्स में कसे नितंब, अधकटी चोलियों से झाँकते स्तनों की बहार थी। हम काफी देर उस फव्वारे का आनंद लेते रहे।
विजय- “चलो माँ पहले कुछ खा पी लेते हैं फिर तुम्हें पूरा पार्क दिखाऊँगा...” मैंने माँ से कहा। मैं कुछ समय व्यतीत करना चाहता था ताकी पार्क में घूमते समाय माँ को मनचले जोड़ों की भी मस्ती देखे। जो सेक्स की भूख पिछले 15 साल से उसमें दबी पड़ी थी वो ऐसे मस्त वातावरण में उजागर हो जाय।
मैं माँ को लेकर खाने पीने के स्टालों में आ गया। हमने आलू टिकिया, दही चाट, गोलगप्पे इत्यादि का मिलकर आनंद उठाया। फिर हमने कोल्ड-ड्रिक की दो बोतलें ली और एक झाड़ के पास बैठकर मजे से पी।
विजय- “माँ तुम यहीं बैठो, मैं आइसक्रीम यहीं ले आता हूँ। कैसी लाऊँ? कैंडी या कोन?”
राधा- “मेरे लिए तो कल जैसी चूसने वाली ही लाना...”
मैं माँ के लिए एक कैंडी और मेरे लिए एक कोन लेकर आ गया। माँ कैंडी को मुँह में लेकर चूसने लगी और मैं कोन में जीभ डालकर आइसक्रीम खाने लगा।
विजय- "माँ तुझे आइसक्रीम चूस के खाने में मजा आता है पर मुझे तो इस लंबी कोन में जीभ डालकर चाट के खाने में मजा आता है.”
माँ खिलखिलकर हँस पड़ी।
विजय- “माँ यह पार्क बहुत बड़ा है। क्या पार्क का पूरा चक्कर काट के देखोगी?”
राधा- “हाँ, देखो लोग कैसे चक्कर काट रहे हैं। मैं तो अभी भी ऐसे पार्क के 3 चक्कर काट लँ..."
माँ की बात सुनकर मैं उठ खड़ा हुआ और माँ की तरफ हाथ बढ़ा दिया, जिसे पकड़कर वो भी खड़ी हो गई। पहले हम माँ बेटों ने एक-एक खुशबूदार पान खाया और फिर हम भी पगडंडी पर आ गये। 9:30 बज गये थे। पगडंडी पर नौजवान जोई, अधेड़ जोई सब थे जो साथ की महिला के हाथ में हाथ डाले, उसके कंधे पर हाथ रखे, उसकी कमर में हाथ डाले या उसे अपने बदन से बिल्कुल सटाए दीन दुनियां से बिल्कुल बेखबर होकर चल रहे। थे। हम माँ बेटे भी, जो दुनियां की नजर में जो भी हों, उससे बेखबर चुपचाप चल रहे थे।
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