RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
पिक्चर शुरू होने के कुछ देर पहले हम हाल में आ गये। कुछ ही देर में हाल की बत्तियां गुल हो गई और कुछ
आड्स के बाद पिक्चर शुरू हो गई। पिक्चर कुछ रोमांटिक और बहुत मस्त थी। हीरो हीरोइन की छेड़छाड़, मस्त गाने, द्विअर्थी संवाद, बेडरूम दृश्य इत्यादि सारा मशाला था। पिक्चर 9:00 बजे के करीब खतम हो गई। कुछ देर मल्टीप्लेक्स के शापिंग सेंटर्स देखे और फिर रेस्टोरेंट में आ गये। माँ की पसंद पूछकर खाने का आर्डर दिया, तबीयत से दोनों ने भोजन का आनंद लिया और 10:30 के करीब घर पहुँच गये। हमारी आज की शुरुआती शाम बहुत ही अच्छी गुजरी। माँ को सब कुछ बहुत अच्छा लगा।
घर पहुँचकर माँ बहुत खुश थी। सोफे पर बैठते हुए माँ बोली- “विजय बेटा, तुम मेरा कितना खयाल रखते हो।। तुम्हारे साथ पिक्चर देखकर, घूमकर, होटेल में खाना खाकर बहुत अच्छा लगा। यहाँ शहर में लोग अपने हिसाब से जिंदगी जीते हैं। मैं तो गाँव में लोगों का ही सोचती रहती थी की लोग क्या सोचेंगे? लोग क्या कहेंगे? और अपनी सारी जिंदगी यूँ ही गंवा दी...”
माँ की यह बात सुनते ही मैं बोल पड़ा- “माँ गंवा कहाँ दी, अभी तो शुरू हुई है...”
माँ पिक्चर की बात छेड़ती हुई बोली- “बताओ इन सिनेमाओं की हेरोइनों के रख-रखाव और अंदाज के सामने हम लोगों की क्या जिंदगी है?”
विजय- “माँ वो हेरोइन तुम्हारे सामने क्या हैं? वो तो पाउडर और क्रीम में पुती हुई रहती हैं। तुम्हारे सामने तो ऐसी हजारों हेरोइन पानी भरती हैं...”
राधा- “अच्छा तो ऐसा मेरे में क्या देखा है?"
विजय- “तुमको क्या पता है की तुम्हारे में क्या है? कहाँ तुम्हारा सब कुछ नेचुरल और उनका सब कुछ बनावटी और दिखावटी...”
राधा- “तुम आजकल बातें बड़ी प्यारी-प्यारी करते हो और आजकल मेरा लाड़ला बहुत शरारती हो गया है। यह सब ऐसी पिक्चर देखने का असर है..." माँ ने मेरी ओर देखकर हँसके कहा।
विजय- “माँ तुम्हारी ऐसी मुश्कुराहट पर तो मैं सब कुछ कुर्बान कर दें...” हम कुछ देर इसी तरह बातें करते रहे।
और फिर माँ उठ खड़ी हुई और अपने रूम की ओर चल दी। मैं भी अपने रूम में आ गया और बेड पर पड़ा-पड़ा काफी देर माँ के बारे में ही सोचता रहा और ना जाने कब नींद आ गई।
इसके दूसरे दिन रात के खाने के बाद मैं और माँ टीवी के सामने बैठे थे।
विजय- “माँ, तुम्हें कल अच्छा लगा ना?”
राधा- “हाँ विजय बेटा, अच्छा क्यों नहीं लगेगा? जब तुम्हारी उमर के बेटे अपने दोस्तों के साथ पिक्चर जाते हैं, बाहर खाते हैं तब तुम्हें अपनी इस अधेड़ माँ की याद रहती है, माँ के सुख दुख की फिकार रहती है...”
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